Saturday, December 21, 2024
परिचय — श्रीमती श्रद्धा सुनील 
जन्म- 17 जनवरी 1968 
जन्म स्थान -भोपाल मध्य प्रदेश 
 
शैक्षणिक योग्यता–
~हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायन में बरकत उल्लाह विश्व विद्यालय भोपाल से स्नातकोत्तर ।
~सुश्री मीरा वी राव से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त किया।
 
~दिग्दर्शिका पुनर्वास एवं अनुसंधान संस्थान (NIMH सिकंदराबाद) भोपाल से ( मानसिक विकलांगता )में विशेषज्ञता। विशेष शिक्षक प्रशिक्षण।
 
साहित्यक यात्रा —
~अखबारों व साहित्यक  पत्रिकाओं “अक्षरा”, प्रेम संकलन “खिल गया जवा कुसुम” “वागर्थ “में  कविताओं का प्रकाशन।
 ~कुछ कविताओं का मराठी में अनुवाद ।
~अंग्रेजी अनूदित संकलन in no Time में कविता का अनुवाद प्रकाशित।
 
~काव्य संग्रह–“हिमालय की कंदराओं में “आस्था प्रकाशन जलंधर दिल्ली से प्रकाशित वर्ष 2021।
~ऑल इंडिया रेडियो भोपाल मध्य प्रदेश से कविताओं का प्रसारण।
~दिग्दर्शिका पुनर्वास एवं अनुसंधान संस्थान भोपाल से विशेष शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर एक वर्ष मानसिक विकलांग बच्चों के लिए विशेष शिक्षण कार्य किया ।
~सत्य साई महिला महाविद्यालय भोपाल में छात्रावास अधीक्षक पद पर 3 वर्ष कार्य किया। 
~मध्य प्रदेश देश बंधु मीडियाटिक समूह”स्वयं सिद्धा” डिजिटल ग्रंथ में काव्य संग्रह हिमालय की कंदराओं का उल्लेख 
~वर्तमान में स्वतंत्र देखन एवं इन्टरनेट पर साहित्यक डिजिटल चैनल और पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशन व सक्रिय सहभागिता।
~लखनऊ संदेश वाहक (प्रिंट मीडिया) अखबार में कविताओं का नियमित प्रकाशन ।
~मध्य प्रदेश लेखिका स॔घ जबलपुर की सदस्य ।
 
~सम्मान —
अखिल भारतीय कादंबरी द्वारा सम्मान 
2021
वर्ष 2021 का सुनीति सक्सेना सम्मान त्रिवेणी पारिषद जबलपुर।
~संपर्क — साई निलयम 
प्लॉट 52 शक्ति भवन रोड रामपुर, नेशनल कॉलोनी, जबलपुर, मध्यप्रदेश पिन -482008
मोबाइल–7000053236

श्रीमती श्रद्धा सुनील की कविताएं

कविता

पेड़ के नीचे बैठकर
लिखी कविता
कागज़ हवा उड़ाकर ले गई
स्याही सूख गई धूप में
कड़ी दोपहरी में झुलस गईं
घनी बरसात में बह गईं
धूप हवा पानी में घुल गईं अनुभूतियां
कविता मैने पेड़ के नीचे
बैठकर लिखी है
सुंदर अलमारियों में
सहेज कर नहीं रख पाई
रंगीन किताबों में नहीं हो
सकीं कैद
नहीं पहुंच सकीं विश्व पुस्तक मेला तक
इसके उसके जेहन में कभी किसी मस्तिष्क में
मचाती रहीं उत्पात
नहीं लिख सकी घर के सुख चैन में बैठकर
कविता मैने
जंगल की भयावह खूंखार आंधियों में
पेड़ के नीचे बैठकर लिखी है ।।
श्रद्धा सुनील

प्रेम

पृथ्वी की तर्ज पर
अति विलंबित लय में
सूर्य की परिक्रमा कर रही
उस अति प्राचीन स्त्री ने
अपने ढलते सौंदर्य को दर्पण में देखा
और
आत्मा के उजाले में
अपना चिर युवा वह रुप तेजस्वी चैतन्य देखा जिसे पार्थिव आखों से
कभी कोई देख न सका
देखी जर्जर होती अपनी देह
और देखा
युवा होती बेटी का उगते सूर्य जैसा दमकता चेहरा
लावण्य में डूबी एक सिंदूरी सांझ में उसने
बेटी को जीवन अनुभव का मर्म समझाया
तुम सदैव प्रेममयी रहना
प्रेम तुम्हे शाश्वत सौंदर्य के सत्य तक पहुंचाएगा
लेकिन
यह सीख हमेशा याद रखना
इसे संसार में कहीं मत
तलाशना
यह कहीं मिलेगा नहीं ।।
श्रद्धा सुनील।।

मुस्कराती स्त्रियाँ

 
सजी-धजी स्त्रियाँ
रंग-बिरंगी पोशाक में बेहद खूबसूरत लगती हैं 
 
कोई नहीं जानता ,,किसी से नहीं बताती 
कि 
कभी-कभी उनके भीतर की  दुनिया
बदरंग भी होती है 
 
सीख चुकी हैं सेल्फ़ी के लिये 
सुंदर दिखने का रहस्य
खिलखिला कर हंसना
 
इसी तरह संसार में सुख का भ्रम बनाये रखती हैं 
मुस्कराती स्त्रियाँ  ।।
 
श्रद्धा सुनील।।

नदी से उसने कहा

उसने कहा तुम नदी हो !!
 
नदी खिलखिला कर बोली 
 
हाँ 
लहराती बल खाती डूबती उफ़नाती 
पहाड़ों से उतरती नृत्यांगना हूँ 
 
पृथ्वी आकाश नक्षत्रों के आरोह-अवरोह में 
लयबद्ध स्वरमयी प्रिया हूँ  
 
रोकना नहीं
 
मैं  
ताल-तलैया में ठहरती नहीं,,,
 
श्रद्धा सुनील।।

उस रात

उस रात !!
मैने आकाश में बिछौना लगाया था
ओस भीगी चाँदनी में
मेरे सपनों का हर सिंगार झरता रहा
नींद‌ और स्वप्न में खोई
मै जाग गई थी, तुम चांदनी के संग ओस बन कहीं और झरते रहे
मेरी देह आकाश की सीढ़ियों से चुपचाप
नीचे उतर आई थी
लेकिन
आज भी मेरा हृदय,, मन वहीं कहीं नक्षत्रों में विचर रहा है
खास बात यह है
कि
अब उदासी,, दुख,,उसे छू नहीं सकते हैं ।।
श्रद्धा सुनील।।

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