अनुराधा ओस
जन्म : मीरजापुर जनपद, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, ‘मुस्लिम कृष्ण भक्त कवियों की प्रेम सौंदर्य दृष्टि’ पर पीएच. डी.।
प्रकाशन : वागर्थ, आजकल, अहा! जिंदगी, वीणा, समकालीन स्पंदन, सोच विचार, उत्तर प्रदेश पत्रिका, विपाशा, अभिनव प्रयास, कथा बिंब, पाठ, दैनिक जागरण आदि में तथा ‘हौसला’ ‘बिजूका’ एवं ‘मेरा रंग’ ब्लॉग पर कविताएँ प्रकाशित।
प्रसारण : आकाशवाणी वाराणसी केंद्र और लखनऊ दूरदर्शन से कविताओं का प्रसारण।
काव्यकृति: कविता संग्रह ‘ओ रंगरेज’, ‘वर्जित इच्छाओं की सड़क’ प्रकाशित.
आंचलिक विवाह गीतों का संकलन ‘मड़वा की छाँव में’ प्रकाशित।
संपादन: शब्दों के पथिक साझा संकलन ,मशाल सांझा संकलन।
अन्य : परिवर्तन साहित्यिक मंच के कार्यक्रम ‘आगाज-ए-सुखन’ का संचालन।
सम्मान : परिवर्तन संस्था द्वारा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा सम्मानित।
सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन।
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खुरदुरी आवाज़ वाली लड़कियां---
मोबाइल पर सुनी
अक़्सर कोई मधुर आवाज़
उसका परिचय होतीं हैं
जबकि हमारे अंदाज़े
ज़्यादातर ग़लत हो जातें हैं
मीठी आवाज़ वाले लोग
अक़्सर मिठास से भरे नहीं होते हैं
अक़्सर खुरदुरी आवाज़ वाली लड़कियां
अच्छी व्यक्तित्व की मालकिन होती हैं
उनकी आवाज़ के खुरदुरे पन में
होती है जिंदगी के काँटे
हो सकता है वह घुल मिल गया हो
उसी तरह उनमें
जैसे मिट्टी में पानी
जैसे नए पौधों की अँकुआहट खुरदुरी ज़मीन में।।
अंतिम आदमी--
अंतिम आदमी
जोह रहा है सभ्यता की बाट
वो खड़ा है कतार में सबसे पीछे
उसके पास पहुँचता है
सब कुछ सबसे अंतिम में
सरकारी योजना भी
वहां पहुंचते-पँहुचते
दम तोड़ देती है
रक्त रंजित युद्ध
उन्हे नही लड़नी हैं
उन्हें लड़नी होती है
भूख की लड़ाई
अपने अस्तित्व की लड़ाई
ताकि बचे रहे धरती पर
कुछ इंसान
अन्तिमआदमी सिर्फ
नही लड़ता भूख से
बल्कि वो जंगल और पहाड़
अस्तित्व के लिए भी लड़ता है
ताकि धरती पर कुछ
धरती बची रहे कुछ हरियाली।।
एकांत स्वीकर है--
अपनी अलिखित कहानियों को
ढूढ़ना
एकांत में
गहरी मिट्टी में दबाने के बाद भी
कहीं न कहीं
बची रहतीं है
किसी फ़ांस सी
हाँ!चाहना जरूर
कुछ पल एकांत के
उसी तरह जैसे पलाश
की पंखुड़ियां
इंतजार करतीं हैं
बसन्त का
एकांत बहुत बड़ा दोस्त होता है
कभी -कभी
कोलाहल से टक्कर लेने के लिए।।
प्रेम का आलपिन--
रोक लेता है
बाँध लेता है
जब हम जूझ रहे होते हैं
रास्तों में बिखरे काँटो से
नत्थी कर देता है
उन सम्भावनाओं से
जिनका उपजाऊ पन
धूसर मिट्टी को
बंजर होने से बचा लेता है
तुम्हारे प्रेम का आलपिन।।
| तुम्हारी हथेलियाँ ||
तुम्हारी पसीजी हथेलियों को
छूती हूँ
तो महसूस करती हूँ
बारिश का सौंदर्य
जब पहाड़ की चोटी पर
खिले पलाश को देखती हूँ
महसूस होती है संघर्ष की परिभाषा
जब तुम्हारी आँखों में देखती हूँ
लगता है बह रही हो नदी
कंपकंपाती सी
जैसे अनगढ़ सौंदर्य प्रेम का
और तुम्हारा मौन
रेल की सीटियों सा
महसूस करती हूँ।।