बिहार के हथुआ (जिला-गोपालगंज) में जन्म। हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट में स्नातक और ह्यूमन रिसोर्स में परास्नातक।
5 वर्षों का मीडिया और कॉरपोरेट अनुभव, 5 वर्षों का अध्यापन का अनुभव
सम्प्रति समस्तीपुर कॉलेज में हिंदी की अतिथि शिक्षक। शमशेर पर पीएचडी जारी।
फोटोग्राफी, साहित्य और लोक-कलाओं में गहरी रुचि। तद्भव, पूर्वग्रह, सदानीरा, कथन आदि पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। कवितायें, अनुवाद, कहानियाँ और आलेख पत्र-पत्रिकाओं और ब्लॉग्स में प्रकाशित
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कवितायें
जमाई-पूजन
फाँस गड़ी है करेजवा में
चूल्हे में लकड़ियाँ और अपना जीवन झोंकती किसी भी औरत को बेर-कुबेर घर-दालान के बाहर
ओसारे के पीछे
हवा-बयार में कौन सी डाकिन इन्हें कब कैसे ग्रस लेती है
कोई नहीं जानता
बंसबाड़ियों से न जाने कितनी कथाएँ हवा में तेज टिटकारी मारती चीलों सी उठती हैं
तेज तीख़ी आवाज़ में अट्टाहास करती ये औरतें गाँव भर की चटखारेदार गप्पों का केंद्र बनी रहती हैं
कैसे फलना-बहु देह उघाड़ कर ठाकुरबाड़ी पर लोट गयी
कैसे फलना की पुतोहु अपनी कोठड़ी बन्द कर टिहुक पार रोती रही
गाँव की कुलदेवी, ब्रह्म देवता और ओझा-भगतों की महिमा कुछ और बढ़ जाती है
ये बेसुध पीले मुखों वाली औरतें, ये बिखरे केशों धूल सनी औरतें
ये कभी बड़बड़ाती कभी सोती कभी रोती औरतें
ये कलही-कुटनी कही जाने वाली औरतें
ये गुम पड़ी गूँगी हुई औरतें
ये शून्य में निहारती औरतें
करूण आवाज़ में बटगमनी गाती ये औरतें
ये सदियों से मार खाती औरतें
ये तरुणाई में ब्याही गयी औरतें
ये साल दर साल बच्चे जनती औरतें
ये भूत-प्रेत-पिचाश ग्रस्त, रक्तहीन, वयसक्षीण औरतें
इन्हें ओझा-वैदाई, पूजा-बलि, मंत्र-तंत्र नहीं
माथे पर रखा ममत्व सना एक हाथ चाहिए और सुनने वाला गहरा हृदय
ये बिलख-बिलख कह जायेंगी कि कौन सी
फाँस गड़ी है करेजवा में
छाया उपासना
उपासना झा केवल कवयित्री ही नहीं हैं बल्कि वह एक सुंदर फोटोग्राफर भी हैं।उन्होंने अपने मोबाइल से ये सुंदर फोटो लिए हैं।
प्रेमिका
रोना
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किताबें
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