कविता कृष्णपल्लवी
लगभग दो दशकों से क्रान्तिकारी वाम विचारधारा के साथ मज़दूरों, विशेषकर स्त्री मज़दूरों के बीच शिक्षा, राजनीतिक जागरूकता बौर संगठन के कामों में सक्रिय रही हैं। 2006 से कविताएँ लिखना शुरू किया। विभिन्न सामाजिक राजनीतिक विषयों पर भी लिखती रही हैं। हिन्दी की कई महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। उनकी कविताओं और क़िस्सों का पहला संकलन ‘नगर में बर्बर’ 2019 में प्रकाशित हुआ है।
उनकी अनेक कविताओं और क़िस्सों में स्त्री मन और जीवन के रहस्य और सपने, दर्द और उम्मीदें भी जीवन्त हो उठते हैं। लेकिन पिछले कई वर्षों की उनकी कविताओं का प्रमुख काम रहा है अपने समय की विसंगतियों और विद्रूपताओं को कभी व्यंग्य के नश्तर से उधेड़ डालना, तो कभी सीधे हाथ बढ़ाकर तमाम पर्देदारियों को हटा देना। आज के समय की ”अमानवीय और आश्चर्यजनक, लेकिन तार्किक बेवक़ूफ़ियों और बेतुकी बातों का अति-यथार्थवादी थिएटर” हो, या ”वामपन्थ की चूनर ओढ़े सत्ता संग रास” रचाने वाले हों, कृष्णपल्लवी की ”विद्वत्तापूर्ण, सुन्दर भ्रमों और झूठों के विरोध में सीधे-सादे सच की अनगढ़-फूहड़ कविता” किसी को नहीं बख़्शती। मगर तीखे व्यंग्य और गहरी अन्तर्दृष्टि से लैस अपनी कविताओं और क़िस्सों की सबसे प्रखर धार वे सत्ता में क़ाबिज़ फ़ासिस्टों के लिए सुरक्षित रखती हैं।
जन्म: गोरखपुर (उ.प्र) में
शिक्षा: एम. ए. (राजनीति शास्त्र)
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