Tuesday, September 16, 2025

नताशा एम ए (हिन्दी साहित्य) संग्रह- 'बचा रहे सब ' प्रकाशन - प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित संप्रति - अध्यापन Vatsasnehal@gmail.com

………………………….

कविताएँ

1. ईश्वर

सबके अपने-अपने ईश्वर थे
 
अपने तर्क अपने पक्ष थे
 
सभी गुनाहगार ईश्वर की निगरानी में थे ।

2

उन्हीं गुनाहगारों में एक मैं 
 
अपने लिये ईश्वर तलाशती रही
 
जिसे अपने एकांत में पूज सकूँ 
 
मेरी गलतियों का साक्षी वह
 
मुझे माफ़ करता रहे

3

ईश्वर जितना इन दिनों कमजोर हुआ
 
पहले कभी नहीं 
 
जितना बदनाम हुआ
 
पहले कभी नहीं 
 
ईश्वर की इतनी खरीद -बिक्री 
 
पहले कभी नहीं हुई 
 
ईश्वर न्याय से न्यायालय पहुंचा 
 
अभी भी 
 
ईश्वर पर फैसला आना बाकी है !

4

तुम्हारे मृत होने की घोषणा भी
 
उतनी पीड़ादायक नहीं  थी
 
जितनी तुम्हारे जीवित होने के प्रमाण हैं!

5

दाम्पत्य के एक दशक 
 
  
 
अनमने दिन की पीठ पर चलते हुए 
 
लौटते हो थककर छाँव की तलाश लिए
 
तब भी कागज पर घिसा हुआ सा मेरा कुछ 
 
तुम्हारी कान की ओर अपलक निहारता है
 
-“देखना तो,कैसा लिखा है ?”
 
 
 
घडी की सूई भी जब हो रही एकमेक
 
तब भी अपने वितान में उलझा मेरा मन
 
गर्दन के स्पर्श को झटक देता है
 
कमरे के उनींदे उजास  में 
 
बेआवाज़ बिखर जाते तरंगित स्पर्श 
 
सर्द से जड़ हो जाते कामनाओं के दूत
 
 
 
मेरे व्यस्ततम क्षणों में उबासी के लिए जगह है 
 
थकान और नींद के लिए भी
 
अपराध -बोध का यह बोझ
 
दिन – ब – दिन मेरे कंधे के दर्द को बढ़ाता है
 
जब तुम याद दिलाते हो
 
कि मैं भूल गई हूँ प्रेम करना शायद !
 
 
 
मैंने कई रोज़ से झाँका नहीं 
 
उन आँखो को जो कभी आइना हुआ करती थीं
 
भरा नहीं हथेलियों में तुम्हारा चेहरा
 
पता नहीं कब से
 
 
 
इतनी बार में 
 
तो प्रेमी भी चुन लेते विकल्पों  की राह
 
प्रेमिका की चौखट से लौटकर 
 
हृदय के सांकल में उलझी ऊँगलियां
 
देर तक रहतीं
 
प्रतीक्षारत उधेड़बुन में …
 
 
 
इसलिए ,
 
कि देह की उपस्थिति 
 
हाथ बढ़़ाने की दूरी भर है
 
और प्यास के बहुत करीब है सोते का मीठा जल
 
 कोई जल्दी नहीं रहती प्रेमालापों की 
 
इस आश्वस्ति में महीनों बीत जाते हैं
 
 
 
नहीं लिखती स्त्रियाँ पतियों पर कविताएँ 
 
इस बात को याद रखकर भी मैं लिख रही
 
कि उनके नायक सदैव प्रेमी ही रहे 
प्रेम – कहानियों से गुमशुदा होते ये पात्र
 
ताउम्र ख़लनायक होते रहे दर्ज़ 
 
फिर भी  …

6

छूटी हुई चीजें 
 
 
 
प्रसव वेदना में जननी का सुख दीप्त है
 
रुदन में आदि मनुष्य का हास्य
 
एक स्वर 
 
जो क्षितिज के पार हो मद्धम स्वर में 
 
गाने लगते जीवन के गीत
 
साँझ की नर्तकियां 
 
दिया – बाती का मेल कराती ओठों से बुदबुदाती हैं मंत्र 
 
मन के सूने प्रकोष्ठों में 
 
अपरिचित – सी आहट से कांपती  है देह
 
खोल देती है वर्षो से बंधी गाँठ को
 
 
 
प्रेमी विदा हुए छोड़ 
 
राग -विराग के अनचीन्हे चिन्ह
 
छत की उस मुंडेर पर 
 
 
 
 स्मृतियों की स्मारक इस देह में 
 
 
 प्रेम की आवाजाही प्राण फूंकती है
 
 
 
यदि तुम प्रेम की पीठ पर स्पष्टीकरण लिख रहे 
 
 
तो बंद कर देना पिछला दरवाज़ा 
 
चुंबन धरते आँखे नहीं मुंदी बेपरवाह 
 
तो कलपने दो होठों के उतप्त गुप्तचरों को
 
 
 
क्षितिज के छोर पर नृत्य करती चाहनाएं
 
 
संभाले रखती हैं सिर पर 
 
अतृप्त इच्छाओं के कलश ताउम्र
 
 
 
 
आओ प्रेयस! 
 
 
कि गुलाल का कोई मौसम लाने से आता है
 
 
कि दीप जलाने से ही दीवाली आती है ।
 
 

7

साथ-असाथ 
 
मैं लेटी थी पीठ की ओट किए 
एक प्रेम कविता पढ़ने के बाद 
मन किया सहलाऊं तुम्हारे बाल 
रख दूं गालों पर गर्म चुंबन 
यह जानते हुए कि तुम मेरे नायक नहीं हो 
 
तुम भी ऊबकर मोबाइल की क्रियाकलापों से 
मेरी पीठ पर कोई चित्र उकेर रहे थे 
यह जानते हुए कि उस चित्र में मेरा चेहरा नहीं था 
आपसदारी का साझा ठीया 
जहाँ फलीभूत होती रहे हमारी अव्यक्त कामनाएँ 
हमने निजी स्वप्न साकार किये
 
अब देह से मिलती नहीं देह अक्सरहां 
तब भी उपस्थित हैं एक दूसरे की अनुपस्थिति में 
 
वाशिंग मशीन में मिलते हैं दोनों के कपड़े 
सिंक में बतियाते हैं झूठे बर्तन 
दोनों की चप्पलें दरवाजे पर पहरे देते साथ 
 
तिथियों की आवृत्ति में 
गठबंधन के विलुप्त सिराओं ने बाँधे रखा है एक पूरा संसार 
हम एक दूसरे के साथ हैं 
असाथ हैं नदी के दो किनारे ।

8

नींद
 
नींद किसी रोते हुए बच्चे की आंखों में जा छुपी है 
हां नींद, तुम वहीं रहो 
बस देखने दो मुझे उसके गालों की 
सूखी हुई लकीर 
और शर्मिंदा होने दो अपनी कविता पर!
 
हम रचेंगे 
खूब रचेंगे दुख 
क्योंकि हमारे पास 
सुख की ढेरों कहानियाँ हैं
नींद की गलियों में 
जिन्न और परियां हैं 
मेरे बच्चे 
हम सिखाएंगे तुम्हें 
सुंदर, कोमल और चमकदार की परिभाषा 
कभी नहीं बताएंगे तुम्हें 
बम, बारूद और अफीमों के बारे में 
इस क्षमा के साथ 
कि एक दिन तुम 
उन्हीं के हवाले कर दिए जाओगे!

9

जिंदा हूं
 
तोड़ती हूं तुम्हारे 
निरंकुश नियम और शर्तें
जो तुमने लागू किये थे मुझ पर 
और अपने इस फैसले पर 
मुझे तुम्हारे मुहर की ज़रूरत नहीं
 
सांप अपने विष से सांप है 
विष के बिना तो बस सपेरे का रोजगार है 
और जितना मारा जाता है सांप का विष 
उतना ही बढ़ता है सपेरे का रोजगार भी 
माफ करना 
तुम्हारे इस करतब में 
मैं शामिल नहीं
 
मुझे नीचे ही गिरना होगा
तो चाहूंगी वहां गिरना 
जहां की ज़मीन में खाद पानी हो 
खुरपी कुदाल से 
जहां की मिट्टी को चोट नहीं लगती 
मेरा नीचे गिरना भी 
तुम तय नहीं कर सकते
 
मुझे कृत्रिम ही होना है 
तो होना चाहूंगी 
किसी गुर्दे , हृदय 
या आंख नाक कान  के रूप में 
जहां बचा रहेगा ज़िंदा होने का एहसास
 
जहां से मैं देख रही हूं तुम्हें 
तुम्हारे पीछे बस दीवार है 
जहाँ से तुम देख रहे  मुझे 
मेरे पीछे हैं 
तुम्हारे निरंकुश नियम और शर्तें 
तोड़ते हुए असंख्य लोग !!

………………………….

किताबें

………………………….

error: Content is protected !!
// DEBUG: Processing site: https://streedarpan.com // DEBUG: Panos response HTTP code: 200 ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş