Tuesday, May 14, 2024

डा. नाज सिंह
जन्मः 6 जनवरी 1974 सिरहा, नेपाल
शिक्षा: एम बी बी एस (रसियाली जनमैत्री विश्व विद्यालय मास्को, थर्ड मेडिकल इंस्टीट्यूट मास्को रसिया)
प्रकाशित पुस्तक: ‘तिर्खा’ कविता सङ्ग्रह 2019 (नेपाली, हिन्दी और मैथिली)
नेपालके हाईस्कूलों के बारहवीं कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में उनकी मैथिली कविता ‘सिया’ को समावेश किया गया है।
उनकी कविताएं प्रतिष्ठित हिन्दी, नेपाली, मैथिली और मगही पुस्तकों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।

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कविताएं

किरदार में स्त्रियां

“स्त्री पैदा नहीं होती उसे बनाया जाता है”
‘सिमोन द बुवा’ कि 
यह पंक्ति अक्सर याद आती है मुझे
मैं सोचती हूं
वास्तव में स्त्री को,
बनाया जाता है
एक कलाकार के रूप में 
बोलने के लिए भी पंक्तियां दि जाती हैं
वह हर वक़्त 
किसी कैमरें के निगरानी में
या, 
किसी निर्देशक के 
निर्देशन में कैद रहतीं हैं
जब बेटी होती है,
तब माता-पिता के 
निगरानी में रहती है
और सिखाए गए हर पंक्तियों को दोहराती है
जब बहू, पत्नी, भाभी, देवरानी 
और इत्यादि होती है
तब उनके लिए 
संस्कारों वाली पंक्तियां 
बनाई जाती है
जब मां, दादीमां और 
नानीमां बनतीं है
तब नये जेनेरेशन के हिसाब से
नए नए स्क्रिप्ट्स को
क्रिएट करते  हैं
क्या बोलना है?
कैसे बोलना है?
और कब बोलना है?
बस,
दिए गए स्क्रिप्ट्स को 
ही दोहराते रहना है
न ज्यादा न ही कम बोलना है
और उसि किरदार में जिना है
कहते हैं न कि 
“सुनो सब का करो अपना”
लेकिन स्त्रियां,
सुनती है अपने मन की
करतीं हैं सब की
इस तरह,स्त्रियां हमेशा 
शूटिंग के सेट पर
किसी न किसी किरदारका
रोल प्ले करती रहती है
जिसकी अपनी कोई 
मौलिकता नहीं होती
भटकती रहती है फिल्मों कि तरह
नए नए किरदारों में
कभी इस घर में 
तो कभी उस घर में
स्त्रियां ता-उम्र  
किसी न किसी 
किरदार में ही जी रही होतीं हैं।।।।।
 
–नाज सिंह
10/09/2021 Gurgaon India

कविता लिखना आसान नहीं

कविता लिखना इतना आसान नहीं होता
नहीं होता आसान
कविता लिखना मतलब,
विचारों में हलचल मचाकर
भावनाओं को जगाना होता है 
जैसे,
तलाब के ठहरे हुए पानी में कंकर मारना
शब्दों को शिद्दत से चुनना होता है जैसे,
गोता लगाके शिप से मोती निकालना
फिर
शब्दों को शब्दों से जोड़ने परतें है 
तब जा कर भाव का उत्पन्न होता है 
जैसे,
सम्भोग के समय अंग को अंग से जोड़ने पर 
वासनाओं का उत्पन्न होना
कविता लिखना इतना आसान नहीं होता
नहीं होता आसान
 
शब्दों को दुल्हन की तरह सजाना
और संवारना होता है
फिर अपने संस्कारों के साथ 
वह कविता में प्रवेश करती है
जैसे, 
दुल्हन ससुराल आती है 
अपनें संस्कारों के साथ
 
कविता एक खुबसूरत ख़्वाब है 
जो पहेलियों के लिबास में 
कल्पनाओं की उड़ानें भरति है 
चांद सितारों से रूबरू होकर
हवाओं में अवतरण करतीं हैं
 
कभी,
यादों के झीलों में छलांग लगाती
फिर स्मृतियों का इन्द्रधनुष बनाती 
कल्पनाओं का उड़ान भरकर
चांद सितारों को जमीं पर उतारती 
बादलों के ऊपर अपना घर बना 
ख्वाबों के शहर में आबाद रहती 
दिनों को रातों से
और रातों को दिनों से
रूबरू कराती है
इस तरह,
कल्पनाओं के रंगों को शब्दों के कैनवस पर
उतारना पड़ता है
 
कविता लिखना इतना आसान नहीं होता
नहीं होता आसान…. नहीं होता।।।।
 
–नाज सिंह
11/09/2021 Gurgaon India

कशमकश

ना जानें आज 
सूरज के किरणों को क्या खयाल आया
खिड़की से झांकती हूई
मुझे जगाने मेरे बिस्तर तक आ पहुंचीं
और मेरी आंखों पर जोर की रौशनी डाल दीं
 
अचानक से तिलमिलाई और  
झट से मेरी आंखें खुल गईं 
 
बिस्तर के सिलवटों से लीपटी हुई नींद 
उठ कर बिस्तर के किनारे बैठ गई
देखा किरणों के आंखों में 
नाराज़गी आग-सी तप रही थी
शायद उनकी नाराज़गी जायज भी थी
 
सुबह ढलकर दोपहर के आगोश में 
बहुत तेजी से प्रचन्ड होने जा रही थी
पंछियों ने अपने बच्चों के लिए 
आहार चूनना शुरु कर दिया था
दिनचर्या में लोग अपने-अपने कामों पर निकल चुके थे
 
मानो सृष्टि का बनाया हुआ सब कुछ 
सृष्टि के मुताबिक ही चल रहा हो
सिर्फ़ एक मैं थी,
जो सृष्टि के गैर मुताबिक विपरीत दिशा में थी
उनकी नाराज़गी जायज ही थी
 
जब पृथ्वी पर अवतरण किया 
सूरज की पहली किरणों ने
मैं उनके स्वागत के लिए खड़ी नहीं थी वहां
 
पर, उनको क्या पता,
कल रात देर तक मैं उलझती रही थी
धुंधलाती हुई कई उम्मीदों के साथ 
कभी जो रौशन हुआ करता था मेरे सपनों का बाग 
उम्मीदों की रोशनी से
वो आज मध्धम हो गया है
 
लगता है जैसे आते-आते वो कहीं दूर ठहर गया हो
और उसी ठहराव से वो हिम् सा जम गया हो
जाने वो कब पिघलेगा और 
अंधकारमय कोहरे को फाड़ कर बाहर निकलेगा
इसी कशमकश में मैंने पूरी रात गुजारी है
अब, जब सुबह होने को थी, 
तब जा के आंखों में नींद आईं हैं ।।।।।
 
 
25/07/2020 गुड़गांव भारत

देह के दहलीज पर

बन्द है मेरी आंखें पर मैं सोच रही हूं
कितना अच्छा होता अगर 
मैं उड़ा देती उन सारे परिंदों को
जो सदियों से कैद र्है
अपना घोंसला समझकर
अपने ही मन के पिंजरे में
पंख बेहतर बनने कि ख्वाहिश में उड़ानें नहीं भरता
अपनी कस्तुरी आवाजों को पहचान नहीं पाता
सायद, उसको पता है
बिन पुछे काया से निकाला जा सकता है
किसी भी समय,
देह दफ्न हो सकता है 
मिट्टी के सौंधी सी महक बनकर
ये काया भी किसी किराए के घर से कम नहीं
जब तक कंचन काया में रहते हैं
काया के उजरत भी भरते रहना है
आज़ादी के लिए, शायद
किसी दस्तक का इंतजार है उसे
मख्सूस बज़्म-ए-जाना
देह के दहलीज पर कदम रखने से
दुनिया के दीवारों पर टिकी है नज़रें सब की, 
ज़िन्दगी कि कसौटी पर खरा उतरने में
कौन कितना मरा है, कितना जीया है
कौन जानता है,
इतिहास को उड़ेलने कि कोशिश करते करते
दिलकश अंदाज ने शून्यता को पेश किया है
जिंदगी ने जिंदगी को हमेशा
चुनौती से भरा सुबह से सुरुवात करनें की
अवसर प्रदान करती है
पर हम उस अवसर को देख नहीं पाते है
हमारी आंखों पर धिर्तराष्ट् के पट्टी बांधे हुए हैं
गलत महत्वाकांक्षाएं पूरी करने में।।।
 
  ~ नाज़
20 April 22 Birmingham United Kingdom

'आहट'

शब्दों के समंदर में जब मैं तैर रहा था
तुम मिली तो थी वहीं
कभी तट पर तो कभी
लहरों के आगोश में लिपटी हुई
कभी शब्दों के महलों में
सोती रही
तो कभी पायलों के
झन्कार मे गुंजति रही….
आहटों के हर क़दम पर
तुम्हें देखा है मैने
तेरे आने से ही तो
मैने ये फैसला लिया था
और अपना रास्ता भी तय किया था
तुम्हारे साथ …
कदम से कदम मिलाकर चलने की
फिर ना जाने क्यों
वहां से तुम आगे चली गई और
मैं वापस आ गया था
वहीं जहां हर रात तुम मुझे सपनों में
मिला करती थी,
सोती हुई आंखों में जागते हुए तस्वीर
लगाया करती थी
जो तुम्हें बेहद पसंद था
तुम्हारी खनकती हुई चुरीयो के संगीत से
मेरे रातें भी सोते हुए नींदों में
मुस्कुराया करती है,
तुम कितनी आसानी से
चली गई न मुझे छोड़कर
एक बार भी नहीं सोचा
मैं कैसे जिऊंगा तुम्हारे बगैर
जब ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं लगती
तब सांसे भी नि:शेष हो जाती है
पर तुम्हारी आहट ने
कभी बेवफाई नहीं की मुझसे
हर वक्त मेरे साथ रहती है
मेरे आस-पास रहती है।।।।।

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किताबें

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