Tuesday, May 14, 2024

निवेदिता झा
लेखक, कवि
वरिष्ठ पत्रकार,सामाजिक कार्यकर्ता
लंबे समय तक पत्रकारिता किया
लगभग सभी राष्ट्रीय अखबारों में काम किया। नवभारत टाईम्स से शुरुआत।
लाडली मीडिया अवॉर्ड मिला सर्वश्रेष्ठ हिन्दी पत्रकारिता के लिए
मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के मामले को लेकर लंबी लड़ाई। अदालत से लेकर सड़कों तक। इस मामले लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अपराधियों को उस आधार पर सजा हुई।
कविता की दो किताब वाणी प्रकाशन से प्रकाशित
ज़ख्म जितने थे
प्रेम में डर
और संस्मरण
पटना डायरी के नाम से प्रकाशित वाणी से
कहानी संग्रह
अब के बसंत
प्रलेक प्रकाशन से प्रकाशित
E mail id – [email protected]

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कविताएं

अँधेरे समय की कविता

निवेदिता
मैं लिखना चाहती हूँ ताकि इतिहास में ये दर्ज रहे, की हम तानाशाह के आगे हारे नहीं थे
जब झूठ रचे जा रहे थे और सारे दानिशमंद पर पहरे बिठाये गए
तब भी रौशनाई सूखी नहीं थी .
न्यायधीश जब जिरह कर रहे थे ठीक उसी समय सारे गवाह खरीद लिए गए
हवा जो हंसती थी उसे कैद कर लिया गया
सूरज को उगने से रोक दिया गया
नील विस्तीर्ण आकाश के आलोक मंडल में अपने पंख फैलाये उड़ रहे पक्षी पर निशाना साधा गया
जिन स्त्रियों की बलात्कार के बाद हत्या हुयी उनके मेडिकल रिपोर्ट में
कहा गया कि वो एक अदृश्य मौत से मरी
दुनिया के स्कूल में सारे छात्र गूंगे करार दिए गए
उन्होंने अपनी प्रेमिकाओं के नाम नहीं पुकारे
नहीं देखा गुलाब को खिलते हुए
धूप को पहाड़ों की पीठ पर चढ़ते हुए
झींगुरों और टीटहरियों की तान सुनते हुए वे बड़े नहीं हुए
घृणा का खारा जल लिए वे
शहरों को लड़ते हुए देखते रहे
नफरत को बिकते हुए
वे नहीं सुन रहे थे एक दूसरे को
उनकी आँखों ने भीड़ में चेहरे पहचानना बंद कर दिया था
औरतों , बच्चों से ताजादम बस्तियां
मेहनत से फसल उगाते किसान
झूल गए रस्सियों पर
जिन्होंने ये बयां दर्ज किया
वे सब काल कोठरी में ठूंस दिए गए
वहां से भी कविताएं फूट पड़ीं हैं
स्याही फैल गयी है
एक इतिहास रचा जा रहा है

हम फिर से जी उठेंगे

हम फिर से जी उठेंगे
भर लेंगे फेफड़े में पूरी हवा
रगों में फिर बहेगी जिन्दगी
फिर खिलेंगे मोगरे के फूल
और चांद उतर आएगा मेरे सिराहने
प्रेम में डूबे उन तमाम रातों को बुलाएंगे पास
तुम पढ़ना पाब्लो नेरूदा की कविता
और हम कविता के साथ तुम्हारे भीतर पड़े रहेंगे
तारे अनगिनत झिलमिलायेंगे
नदी हंसेगी
बह जायेंगे हमारे सारे दुख
जो बचे रहेंगे
वे हमारी – तुम्हारी हंसी में घुलकर नए रंग में ढल जाएंगे
निवेदिता

इस कविता को कोई नाम ना दो

दुनिया की कोई किताब नहीं जो तुम्हारे दुखों को समेट सके
कोई ग्रंथ नहीं
कोई ईश्वर नहीं
जो तुम्हें भरोसा दे
सिर्फ सड़के हैं गवाह
तुम्हारे पैरों के धूल से लिपटे
खून से भीगे
उन पथरीले रास्ते पर कोई नदी भी नहीं बहती जहां तुम अपने जख्मी पैरों के लहू धो सको
कोई शहर नहीं बचा जहां तुम्हारे क़दमों के निशान नहीं हैं
मुझे ईश्वर के पांव नहीं दिखते
तुम्हारे पांव दिखते हैं
जैसे तुम पृथ्वी को नाप रहे हो
ईश्वर ने चार डेग से पूरा ब्रह्मांड नापा था
तुम्हारे पांव घरती से आकाश की तरफ
पूरा आकाश तुम्हारे लहू से लाल है
तुम इस्पात पर चले
लोहे, पत्थर,गारे, मिट्टी
धूल के कण तुम्हारे फेफड़े में रचे बसे हैं
घर पंहुचने और अपनी मिट्टी में सांस लेने
के ख्वाब के साथ
तुम सो गए
ट्रेन की पटरियों पर
पटरी पर नींद उतर आई
जैसे
चांद उग आया था
पत्तियों से फिसलता हुआ तुम्हारे सिरहने पड़ा था
अंधेरे में गुम शाखों से फूल झर रहे थे
की अचानक
ख़ून से भर गई पृथ्वी
तानाशाह को नहीं पता
इतिहास लहूं से लिखे जाएंगे
अनगिनत मौत का हिसाब होगा
ख्वाबों की बावडी से उठती हुई आग
की लपट में जलेगा सबकुछ
निर्मम सत्ता के विरुद्ध
फिर उठ खड़े हुए हैं वे अपने दुखों को लांघते हुए
भेद रहे हैं अंधरे को
फूलो से पटा है मैदान
ऊपर उठ रहे हैं
ऊपर उठ रहे हैं वो
जमीन की सतह से
सैकड़ों मीनारों जितनी ऊंचाई तय कर
अपनी धरती से लिपट रो रहे हैं
तानाशाह अंतरिक्ष में चकरघिन्नी की तरह घूम रहा है
चमकीले ख्वाब बुन रहा है
उसके हाथ मजदूरों की गर्दन पर है
उसके नोकीले दांत खून से भीगे हुए हैं
फ़रिश्ते जैसे चेहरे वाली मां अपनी गुलाबी गालो वाली बच्ची को पीठ पर उठाए भाग रही है
माप रही है पृथ्वी
निवेदिता

लक्ष्मी की पुकार

मैं थक गई हूं
सदियों से तुम्हारी सेवा करते हुए देव
हे विष्णु
हे जगत के पालनहार
मेरा सुख तुम्हारे पांव तले कभी नहीं था
मैं चाहती हूं
तुम्हारे साथ जीना
ये आकाश,
ये हवा
और रात के सितारे
मेरे प्राणों में बाँसुरी सी बजती है
ओ विष्णु
वसंत में आम्रकुंज से आती सुगंध
मुझे खुशी से पागल करती है,
आषाढ़ में पूरी तरह से फूले धान के खेत
में तुम्हारे साथ नंगे पांव भागना चाहती हूं
नहीं चाहती तुम किसी सामंत की तरह शेष नाग पर विश्राम करो और मैं तुम्हारे पांव के पास बैठी रहूं
मैं महालक्ष्मी हूं तुम्हारी
हम क्षीर सागर में साथ – साथ उतरे थे
ये संसार हमनें साथ रचा
साथ साथ देखें मुक्ति के स्वपन
देव ये विधि का विधान नहीं है
स्त्रियां पुरुषों के पांव तले रहे
हे देव मैं एक साधारण स्त्री की तरह जीना चाहती हूं
चाहती हूं संसार के रस में हम साथ भीगे
मैं चूल्हा जलाऊं तुम आटा गूंथ दो
तुम खेत में हल चलाओ
मैं बीज बो दूं
हम खुले आकाश के नीचे पड़े रहें
समुद्र के गहरे जल में उतर जाएं
मैं चाहती हूं शेष नाग करवट लें और जल, थल सब डोल जाए
तुम सारे दिन विश्राम मत करो देव
संसार को देखो
सुख – दुख के भागीदार बनो
आज खिलने दो ह़दय-कमल को,
भूलो की तुम देव हो
मेरे मन में बसो
प्रेमी की तरह
आओ प्राणों में
आओ गन्धों में
आओ अंगों में
आओ इन दोनों नयनों में

मैं अब भूलने लगा हूँ

मत देखो मुझे हिकारत से
मेरी यादें मेरा साथ छोड़ रही हैं
साथ तो शरीर भी छोड़ रहा है
मैं भूल जाता हूं हर बार अपने कहे शब्द को
और मेरे ज़ेहन में देर तक नहीं ठहरता कुछ भी
मैं देखता हूँ तुम्हारे चेहरे की खीज़
और झेंपता हूँ
जोर डालता हूँ
शब्द बह जाते हैं
मैं यादों की पतवार बना उसे आपनी नाव में बिठाना चाहता हूँ
शब्द के नाव उम्र की बाढ़ में बह जाते हैं
बस मुझे तुम्हारा चेहरा याद है
तुम्हारी हंसी
तुम्हारे बचपन के सवाल
जिसे तुम बार-बार दुहराते थे
और मैं कभी नहीं थकता था तुम्हारे सवालों से
तुमने अभी-अभी कुछ कहा
मुझे बार- बार समझाया
मैं फिर भूल गया हूँ
परेशान हूँ
मैं अब शब्दों से डरने लगा हूँ
उसकी चालाकियों से
उसके घमंड से
जो मुझे कह रहे हैं
मैं नहीं तो तुम कुछ भी नहीं
मेरे बच्चे ठहरो ज़रा
मेरा हाथ थाम लो
मुझे भरोसा दो
शब्दों के बिना भी कुछ है जो हमसब के भीतर बहता है
जैसे चुपचाप बहती है नदी
जैसे आसमान में इंद्रधनुष के रंग
जैसे शाखों पर बिना कुछ कहे खिलते है फूल
तुम
मेरे मन को समझ लेना
उम्र की इस नदी में मैं डूब रहा हूं
तुम हाथ देना
मुझे सिर्फ तुम्हारा स्पर्श याद है
भरोसे और प्यार से भरा
मैं अब नहीं डर रहा हूँ शब्दों से
शब्द हैरान हैं
शब्दों के शोर में
बिना कुछ कहे कौन समझ सकता है
मैं हंसता हूँ
मेरे हाथों को तुम्हारे गर्म और खूबसूरत हाथों ने जो थाम लिया है।
निवेदिता

ये इश्क है ये इश्क है

भली-भली सी रात है
खुला –खुला सा चाँद है
ये दिल जला-जला सा
ये प्यास बुझी-बुझी सी
हलक पर तेरा नाम है
ये इश्क है ये इश्क है
मैं इश्क का असीर हूँ
तू हवा की मौज है
फिज़ा का रंग रूप ये
अजब सी ये आग है
कहीं बुझी – बुझी सी
कहीं लगी- लगी सी
किसी रहगुज़र पर तुम जो मिल जाओ तो
कुछ तुम कहो कुछ हम सुनें
ये भला-भला सा साथ है
ये रात है
ये बात है
बात ये दिल की है
दिल बड़ी चीज़ है
दिल की आग में जो हर रोज़ जला करते हैं
दिल जख्म-जख्म है
ये आँखें नम -नम हैं
ये दिल ही है
दिल है
ये आग है
ये आग है
ये जनून है जूनून है
हज़ार तीर जिगर में हैं
ये इश्क है ये इश्क है
निवेदिता

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किताबें

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