Monday, December 23, 2024
Homeलेखकों की पत्नियां"क्या आप सुधा शुक्ल को जानते है?"

“क्या आप सुधा शुक्ल को जानते है?”

अब तक आपने भारतेंदु युग के लेखक महाकवि नाथूराम शर्मा शंकर, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, मैथिली शरण गुप्त, राजा राधिक रमण प्रसाद सिंह, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामबृक्ष बेनीपुरी , आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी , नागार्जुन, रामविलास शर्मा, नरेश मेहता और प्रयाग शुक्ल की पत्नी के बारे में पढ़ा। अब पढ़िये हिंदी के प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल की पत्नी के बारे में।
विनोद जी की ख्याति एक कवि और उपन्यासकार के रूप में है। नौकर की कमीज, दीवार में एक खिड़की रहती थी , खिलेगा तो देखेंगे जैसे अदभुत उपन्यास लिखने वाले विनोद जी के साहित्य सृजन के पीछे उनकी पत्नी का भी बड़ा योगदान है।उन्होंने परिवार को चलाने के लिए नौकरी छोड़कर घर को संभाला।
कथाकार उर्मिला शुक्ल ने विनोद जी की पत्नी के बारे में यह जानकारी उपलब्ध कराई हैं। वह रायपुर में रहती हैं और विनोद जी के घर आती जाती हैं लेकिन कोरोना काल मे बड़ी मुश्किल से उन्होंने यह जानकारी हासिल की है।
तो पढ़िये सुधा जी के बारे में-
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श्रीमती सुधा शुक्ल
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छतीसगढ़ में निवासरत विनोद कुमार शुक्ल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं | हिंदी साहित्य जगत में कविता ,कहानी और उपन्यास के जरिये उनके हिस्से में कई ख्यात कीर्तिमान शामिल हैं | उनकी रचनाओं के फ्रेंच ,स्वीडिश ,जर्मन , अंग्रेजी और अरबी जैसी विदेशी भाषाओँ में अनुवाद के साथ ही कई भारतीय भाषाओँ में भी अनुवाद हुए हैं | लगभग जयहिंद , सब कुछ होना बचा रहेगा ,नौकर की कमीज , खिलेगा तो देखेंगे ,दीवार में खिड़की रहती थी जैसी रचनाओं के रचियता पर हम छतीसगढ़ वासियों को गर्व है | उनके साथ ही हमें उनकी धर्म पत्नी श्रीमती सुधा शुक्ल जी पर भी गर्व है | यह गर्व इसलिए भी की वे एक कुशल गृहणी होने के साथ ही साहित्य प्रेमी भी है | साहित्य जगत में अनेक साहित्यकारों की यह शिकायत रही है कि घर के लोगों ,खासकर उनकी पत्नी को उनकी रचनाओं में कोई रूचि नहीं है | यूँ तो विनोद कुमार शुक्ल जी कई दृष्टियों खुश किस्मत हैं ;मगर वे इस दृष्टि से बहुत ज्यादा खुश किस्मत हैं कि सुधा जी को से विरक्ति नहीं, आसक्ति है | सुधा जी उनकी रचनाओं की पहली श्रोता हैं |
सन 1948 में नागपुर के प्रतिष्ठित मिश्रा परिवार में जन्मीं सुधा जी अपने माता पिता की मंझली सन्तान हैं | इनकी माता श्रीमती विद्या देवी मिश्रा और पिता श्री देवी दयाल मिश्रा बेटियों की उच्च शिक्षा के हिमायती थे | सो उन्होंने अपनी बेटियों का मार्ग प्रशस्त किया और उन्हें उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान किये | सुधा जी ने माता पिता की प्रेरणा और अपनी मेधा से उच्च शिक्षा ग्रहण की और उस जमाने में जब लड़कियों को मिडिल तक की शिक्षा भी बड़ी मुश्किल से मिलती थी ,बाटनी में एम एससी जैसी उच्च डिग्री प्राप्त की | सुधा जी शुरू से मेधावी थीं | इनका चयन चिकित्सा शिक्षा (मेडीकल ) के लिए भी हो गया था ;मगर उस ओर रूचि न होने के कारण, इन्होंने उसे अस्वीकार कर बाटनी में एम एससी को प्राथमिकता दी | उच्च शिक्षित होने के कारण अच्छी नौकरी के अनेक अवसर भी आये | विवाह से पहले और विवाह के बाद कुछ नौकरियाँ भी कीं ; मगर फिर परिवार हित में नौकरी न करने का फैसला लिया |
नौकरी छोड़ने के फैसले के पीछे कोई पारिवारिक दबाव नहीं था ,बल्कि यह फैसला सुधा जी का खुद का फैसला था | सो नौकरी छोड़ने के बाद वे घर परिवार को पूरी तरह से समर्पित रहीं और अपने दोनों बच्चों बेटा शाश्वत और बेटी वैचारिकी की अच्छी परवरिश की | उन्हें आत्म निर्भरता का पाठ पढ़ाया | बेटे और बेटी में कोई भेद न करते हुए उन्हें अपना काम स्वयं करने की ट्रेनिंग दी | परिणामत: इनके परिवार का प्रत्येक सदस्य अपना काम खुद करता है और खासियत यह कि काम करते हुए उन्हें कोई झिझक या संकोच भी नहीं घेरता |
विनोद कुमार शुक्ल साहित्य जगत का एक बड़ा नाम है | सो घर का वातावरण साहित्यमय रहा है | सुधा जी साहित्य की विद्यार्थी नहीं थीं | ये विज्ञान की विद्यार्थी थीं | सुधा जी लिखती तो नहीं हैं ;मगर साहित्य से गहन लगाव है | विनोद कुमार शुक्ल जी की रचनाएँ बड़े चाव पढ़ती हैं | उनकी रचनाओं की प्रथम श्रोता हैं सुधा जी | साहित्य जगत में ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि पत्नी साहित्य की विद्यार्थी न भी हो ,फिर भी पति के साहित्य में इतनी गहरी रूचि लेती हो | साहित्य के आलावा सुधा जी की रूचि बागवानी में भी है | पेड़ पौधों से उनके जीवंत संवाद को उनके बगीचे में महसूस जा सकता है | साहित्यिक कार्यक्रमों में वे कम ही जाती हैं ;मगर विनोद कुमार जी से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति रही है | “ एक सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है|” समाज में प्रचलित यह उक्ति, विनोद जी पर बखूबी लागू होती है | सुधा जी ने उन्हें घर में ऐसा में ऐसा वातावरण दिया कि वे एक के बाद एक नायाब कृतियाँ रचते रहे | सो सुधा जी ने साहित्य न रचते हुए भी हिंदी साहित्य में अपना जो योगदान दिया है ,उसके हिंदी जगत सुधा शुक्ल जी का हमेशा ऋणी रहेगा |
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प्रस्तुति :उर्मिला शुक्ल .
शाश्वत शुक्ल ( सुधा शुक्ल के बेटे )से हुई बातचीत के आधार पर)
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