Saturday, November 23, 2024
Homeलेखकों की पत्नियां"क्या आप कैलाश कुमारी को जानते हैं?"

“क्या आप कैलाश कुमारी को जानते हैं?”

अब तक आपने महाकवि नाथू रामशर्मा ” शंकर “, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त, राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामबृक्ष बेनीपुरी, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, नागार्जुन, नरेश मेहता और प्रयाग शुक्ल की पत्नी के बारे में पढ़ा।
आज पढ़िये रामविलास शर्मा की पत्नी के बारे में। दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कालेज में हिंदी के प्रोफेसर एवम कवि जसवीर त्यागी रामविलास जी की पत्नी के बारे में यह लेख लिखा है। जसवीर जी का रामविलास जी के घर आना जाना था और उनके परिवार से आत्मीय रिश्ता था। उन्होंने रामविलास जी की दो किताबों का संकलन संपादन किया है।
रामविलास जी ने इतना लिखा है कि उन्हें पढ़ने के लिए एक उम्र काफी नहीं। महापंडित राहुल सांकृत्यायन के बाद वह दूसरे लेखक हैं जिन्होंने इतना लिखा। जाहिर है उनकी पत्नी के सहयोग के बिना यह संभव नहीं हुआ होगा। उनकी पत्नी के इस त्याग से आप लोग परिचित नहीं होंगे। पढ़िए जसवीर जी का लेख।
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डॉ.रामविलास शर्मा हिंदी के युगपुरुष साहित्यकार हैं। हिंदी साहित्य को जानने और समझने के लिए उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है।रामविलास जी का जन्म 10 अक्टूबर 1912 को हुआ। वे छह भाई और एक बहन थे। वे जब आठवें दर्जें में पढ़ रहे थे और 14 साल की उम्र भी पूर्ण नहीं हुई थी, सन 1926 की गर्मियों में उनका विवाह उत्तर प्रदेश के जबरौली गाँव की कैलाश कुमारी जी से हुआ। जाहिर है उस समय उनकी पत्नी भी अपनी बाल्यावस्था में थीं। रामविलास जी ने अपनी आत्मकथा ‘अपनी धरती अपने लोग’ में लिखा है- “कि दसवें दर्जें में पढ़ते हुए उन्होंने पहली बार अपनी पत्नी का मुँह देखा था।”
रामविलास जी की पत्नी विधिवत तरीके से स्कूल नहीं गयी थीं। स्कूल जाने की उम्र में उनका विवाह हो गया था। रामविलास जी ने अपनी पत्नी को स्वयं घर पर ही लिखाया-पढ़ाया। उन्हें साक्षर बनाया। धीरे-धीरे निरन्तर प्रयास से वे हिंदी और अँग्रेजी पढ़ने में सक्षम हो गयीं। वे रामायण, गोदान, कर्मभूमि ,रंगभूमि और अँग्रेजी की इंग्लिश रीडर पुस्तकें चाव से पढ़ती थीं। रामविलास जी अपनी पत्नी को ‘मालकिन’ संबोधन देते थे। मालकिन उन्हें ‘मालिक’ या कभी-कभी डॉ.साहब कहती थीं।
रामविलास शर्मा जी लखनऊ विश्वविद्यालय के अँग्रेजी-विभाग के प्रथम पीएच.डी.धारक थे। उन्होंने प्रसिद्ध कवि जॉन कीट्स पर शोध किया था। वे आगरा के बलवंत राजपूत कॉलेज के अँग्रेजी-विभाग के अध्यक्ष रहे। हिंदी-अँग्रेजी में लिखी उनकी पुस्तकों की सँख्या लगभग सौ के आसपास हैं। उनका लेखन वैविध्यपूर्ण है।
कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है। वह स्त्री माँ,बहन,पत्नी कोई भी हो सकती है। रामविलास जी के जीवन और लेखन में उनकी पत्नी कैलाश कुमारी का अविस्मरणीय योगदान रहा। रामविलास जी संयुक्त परिवार में रहते थे। संयुक्त परिवार में सबके साथ चलने और सबको साथ लेकर चलने की सोच केंद्र में रहती है। रामविलास जी की धर्मपत्नी ने संयुक्त परिवार की अवधारणा का सदा सम्मान किया और उसे कभी टूटने-बिखरने नहीं दिया। वे बहुत कर्मठ और जीवट की महिला थी। परिवार में सभी उनका मान-सम्मान करते थे।छह भाईयों में रामविलास जी का नम्बर दूसरा था। उनके एक भाई का पारिवारिक नाम अवस्थी था। रामविलास शर्मा जी के परिवार से ‘सचेतक’ नाम का एक साहित्यिक पत्र निकलता था। जो आज भी प्रकाशित हो रहा है। उसमें उनके पारिवारिक जन हिंदी में लेखन करते हैं। अवस्थी ने रामविलास जी की पत्नी यानी अपनी बड़ी भाभी के बारे में लिखा- “परिवार के इतिहास में उनकी एक विशेष भूमिका रही है। वह इस परिवार में उस समय आयीं थी, जब उसका केंद्र गाँव था। ग्रामीण परिवेश में उन्होंने अपने आपको अनुकूल पाया था। परिवार के युवा ग्रामीण वातावरण छोड़ विद्या अध्ययन के लिए बाहर निकल आये थे, इसी के साथ भाभी भी गाँव से शहर आ गयीं।पहले झाँसी, फिर लखनऊ, आगरा, दिल्ली तथा अंत में बनारस में रहीं।”
मालकिन बच्चों को अनन्य प्यार करती थीं। बच्चे भी उन्हें बहुत मानते थे। रामविलास जी के छोटे भाई रामशरण शर्मा ‘मुंशी’ के सुपुत्र मुकुल शर्मा अपने संस्मरण “ताई जी : नजदीक से” में लिखते हैं- “कई बार दोपहर को ताई जी हम लोगों के पास बैठ जातीं, सिर में तेल डालती और बाबा, दौआ, दादी, चाचा और अम्मा के बारे में बतातीं। हमारी अम्मा की बहुत तारीफ़ करती थीं। उनकी कोई बुराई नहीं सुन सकती थी,चाहे वह चाचा( पिताजी)ही क्यों न कर रहे हों।”
मालकिन सबके प्रति सहयोग की भावना रखती थीं। आसपड़ौस में भी वे दूसरों के प्रति सहज सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाती थीं। उनके छोटे देवर रामशंकर शर्मा उनके बारे में लिखते हैं- ” अनेक साहित्यकार घर आते थे और उनके आदर-सत्कार का सारा भार भाभी के ऊपर ही रहता था। निराला जी, अमृतलाल नागर,पढीस जी, उग्र जी केदारनाथ अग्रवाल जी आदि अक्सर घर पर आया करते थे। कुछ लोग तो घर में भी रह जाते थे। सब के साथ भाभी जी का व्यवहार समान रहता था।”
निराला रामविलास जी के प्रिय कवि रहे हैं। दोनों का एक-दूसरे के घर आना-जाना था। निराला जी रामविलास जी को बहुत मानते थे। उन्होंने रामविलास जी को पीएच.डी की डिग्री मिलने से पूर्व ही डॉक्टर संबोधन दे दिया था। निराला जी अनेक बार रामविलास जी के घर गये। मालकिन भोजन बहुत स्वादिष्ट बनाती थीं।निराला जी उनके हाथ से बना भोजन करने के बाद उनके सुपुत्र विजयमोहन शर्मा से कहते- “विजय तुम्हारी अम्मा बहुत दिव्य-भोजन बनाती हैं, खाकर आत्मा तृप्त हो गयी।”
निराला जी का ऐसा कहना किसी भी गृहिणी के लिए उत्तम पुरस्कार होगा।
मालकिन को दूसरों को खिलाने का बहुत शौक था।उनकी देवरानी श्रीमती रक्षा शर्मा उन पर लिखे ‘मेरी ममतामयी जेठानी’ संस्मरण में कहती हैं- “विवाह-शादी के अवसर पर किसने खाया है, किसने नहीं, इसका उन्हें पूरा ध्यान रहता। शादी-ब्याह की व्यवस्था वह ऐसे करती कि किसी को भी कष्ट न हो।”
मालकिन ने अपने घर में फूल-पौधे आदि लगाने के लिए कुछ कच्ची जमीन छोड़ रखी थी।
रामविलास जी से अनेक लेखक, पत्रकार, शोधार्थी मिलने आते थे।उनके चाहने वालों और शिष्यों की सूची लंबी थी।उनके एक प्रिय शिष्य ब्रजकिशोर सिंह थे,जो आगे चलकर बलवंत राजपूत कॉलेज के डीन भी बने। एक बार ब्रजकिशोर सिंह उनके घर देशी पुदीने की पौध लेकर आये और माताजी को आँगन में लगाने को दी। अगले दिन ब्रजकिशोर सिंह फिर किसी काम से रामविलास जी के घर आये। माताजी ने उनसे कहा- “अरे ब्रज कल तुम इतना अच्छा पुदीना देकर गये कि सारा दिन मेरी अंगुलियाँ महकती रहीं।” यह वाक्य सुनकर रामविलास जी ने कहा- “देखो बी.के.सिंह आजकल हमारी पत्नी कविता करने लगी हैं।” यह सुनकर तीनों हँस पड़े।
रामविलास जी के तीन पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं। वर्तमान में शोभा जेटली शेष हैं।अपनी अम्मा की स्मृतियों को याद करते हुए उन्होंने बताया- “कि वे सब बच्चे अपनी पिताजी को चाचा कहते थे। अम्मा चाचा का बहुत ध्यान रखती थीं।उनके लत्ते, कपड़े, जूते और जरूरत के अन्य सब सामान हमारी अम्मा ही खरीदती थीं।चाचा का अधिकांश समय लिखने-पढ़ने में ही जाता था।हमने अपने चाचा और अम्मा को कभी लड़ते-झगड़ते नहीं देखा।”
यही विचार शोभा जेटली की चाची श्रीमती रक्षा शर्मा का भी है।वे अपनी ममतामयी जेठानी और रामविलास जी के संबंधों के विषय में लिखती हैं- ” डॉ. साहब के प्रति उनकी भक्ति व अनुरक्ति तो अवर्णनीय है।डॉ.साहब को वह घर की किसी भी चिंता में नहीं डालती थी।यदि उनका लेखन कार्य चल रहा है या वह सो रहे हैं तो उनका यही प्रयत्न रहता कि कोई बाधा न आये।”
रामविलास जी भी अपनी पत्नी का बहुत ध्यान रखते थे।हर सामाजिक समारोह में उन्हें साथ लेकर जाते थे। उनकी सुख-सुविधा, जरूरत का उन्हें सदा ख्याल रहता था। उम्र बढ़ने के साथ-साथ मालकिन का स्वास्थ्य खराब रहने लगा।रामविलास जी उनकी सेहत के प्रति बहुत सावधान और सजग रहते थे। साहित्य अकादमी, दिल्ली में 11 जनवरी,1994 को बोलते हुए रामविलास जी ने अपने भाषण में कहा-“लगभग 25 वर्ष पहले मेरी पत्नी बीमार रहने लगीं। मैं आगरे में था और अकेले उनकी सेवा करता था। उन्हें छोड़कर जाने में बहुत कठिनाई थी। कभी-कभी लोग कहते थे,किसी को यहाँ बिठा दे, आप चलिए। मैंने कहा,मेरा मन नहीं करता,कहीं बाहर जाकर बोलने को।”
मालकिन शुगर की मरीज थीं,और एक-दो छुटपुट रोग उन्हें घेरे रहते थे। रामविलास जी उनकी बीमारी में सदा उनके रहते थे। यहाँ तक कि मालकिन के चाय छोड़ देने पर रामविलास जी ने भी चाय पीना छोड़ दिया था।रामविलास जी अपनी पत्नी को कितना मानते थे,इसका प्रमाण 17 अप्रैल 1975 को कवि केदारनाथ अग्रवाल के नाम लिखे पत्र से लगाया जा सकता है- “आजकल मैं भी घूमने नहीं जा पाता सवेरे मालकिन के साथ रसोईघर में नाश्ता बनवाता हूँ।” यह पत्रांश पति-पत्नी के प्रति अटूट आत्मीयता और पूर्ण समर्पण के भाव का साक्षी है।
रामविलास शर्मा जी ने अपनी बातचीत में कई बार इस सच्चाई को स्वीकार किया कि उनकी लिखाई-पढ़ाई में बहुत बड़ा योगदान उनकी पत्नी यानी मालकिन का रहा है। उनके त्याग, समर्पण,सहयोग के बूते ही वे जीवन में कुछ सार्थक लिख-पढ़ पाये। रामविलास जी के अध्ययन-कक्ष में उनके पलंग के सिरहाने पर मालकिन और निराला जी की फोटो रखी रहती थी। 1 दिसम्बर,1967 को रामविलास जी ने अपने छोटे भाई ‘मुंशी’ को दिये
एक इंटरव्यू में बताया- “अक्सर ऐसा होता है कि उन्होंने कहा- “बैठो तो एक बात बताये” तो, हम बैठने से पहले ही कहते हैं- “तुम यह कहोगी” एक तरह का Telepathic communication- जो हफ्ते में एक बार जरूर होता है।शकुंतला ने दुष्यंत को डाँटते हुए कहा था कि मैं तुम्हारी पत्नी नहीं, तुम्हारी माँ भी हूँ।यह पंक्ति मुझे अक्सर याद आती है। एक होमर की पंक्ति जिंदगी के अनुभवों के आधार पर बहुत मीठी लगती है- I will not exchange my old wife for immortality.”
रामविलास जी के इस उद्धरण से मालकिन के प्रति उनकी अनन्य आत्मीयता और समर्पण का पता चलता है। रामविलास जी के मंझले बेटे भुवनमोहन शर्मा बीएचयू में थे। मालकिन वहीं पर उनके साथ थीं। रामविलास जी छोटे बेटे डॉ. विजयमोहन शर्मा के पास जनकपुरी दिल्ली में थे। 14 अगस्त, 1983 को प्रातः 4 बजे बनारस में मालकिन का स्वर्गवास हो गया। रामविलास जी दिल्ली से बनारस के लिए रवाना हुए। पहुँचकर उन्हें ज्ञात हुआ कि मालकिन नहीं रहीं।रामविलास जी के बड़े भाई भगवानदीन शर्मा जी ने मालकिन के न रहने पर 15 नवम्बर, 1983 के ‘सचेतक’ में लिखा- “मालकिन नहीं रहीं,एक युग नहीं रहा। वास्तव में मालकिन एक साक्षात आदर्श गृहणी की मूर्ति थीं। उनकी आत्मा की शांति का तो प्रश्न ही क्या। वह तो अनेक रूपों में अब भी विद्यमान है, और आशा है आगे भी रहेगी।”
‘सर्वनाम’ पत्रिका के संपादक विष्णुचंद्र शर्मा जी ने रामविलास जी से अपनी पत्नी पर लिखने का निवेदन किया। रामविलास जी ने ‘मालकिन’ पर लिखना आरंभ किया। कुछ पंक्तियों के बाद ही कलम थम गयी, गला अवरुद्ध हो गया।आँखों में अश्रु उभर आये।लिखना अपूर्ण रहा। ऐसे में रामविलास जी ने विष्णुचंद्र शर्मा को अपने आत्मीय मित्र अमृतलाल नागर जी का 26 अगस्त, 83 का लिखा हुआ वह पत्र दिया,जो उन्होंने ‘मालकिन’ के स्वर्गवास के बाद रामविलास जी को भेजा था-
” प्रिय रामबिलास,
तुम्हारी जिस चिट्ठी को पाने का डर पिछले दो वर्षों से मेरे मन में समाया हुआ था वह कल शाम आ पहुँची। सुन्दरबाग लखनऊ में एकाध बार देखी हुई घूंघट वाली भाभी फिर आगरे की मर्दानी भाभी फिर रुग्णा भाभी-जनकपुरी दिल्ली में अंतिम बार देखी हुई भाभी तक-जाने कितनी तस्वीरें मन में नाच रही। तुम्हारी सत्तरवीं सालगिरह के बहाने जीवन में प्रथम और अंतिम बार उनके चरण छूने का सौभाग्य प्राप्त किया था। तपस्विनी थीं। बड़ी भाग्यशालिनी थीं। रामजी उनकी फुलवारी सदा हरि भरी रखें,भाभी अब उनमें ही जीवित हैं। तुम्हारे द्वारा किये गए सारे लेखन कार्य में वे समाई हैं। दिल्ली में तुमको कहा था कि अब लेखनी को विश्राम दो, लेकिन अब यह कहने को जी चाहता है कि कोई ऐसा काम मन से उठा लो जिससे वे आठों पहर तुम्हारे मन में जागती जोत सी चमकती रहें।”
अमृतलाल नागर के इस पत्र को रामविलास जी ने बहुत महत्त्वपूर्ण और मार्मिक पत्र कहा था। प्रस्तुत पत्रांश मालकिन के व्यक्तित्व पर एक सार्थक मूल्यवान टिप्पणी है।
डॉ.जसवीर त्यागी
एसोसिएट प्रोफेसर
हिन्दी-विभाग
राजधानी कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय
राजा गार्डन,दिल्ली -110015
मो : 9818389571
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