अब तक आपने 34 नामी गिरामी लेखकों की पत्नियों के बारे में पढ़ा। आज पढ़िए विश्व प्रसिद्ध लेखक लियो टॉलस्टॉय की पत्नी सोफिया टॉलस्टॉय के बारे में। लियो टॉलस्टॉय केवल एक लेखक ही नहीं बल्कि एक विचारक भी थे और उन्होंने महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग को भी प्रभावित किया था। लेकिन उनके जीवन में कितने अंर्तविरोध थे और उनका दाम्पत्य जीवन बाद में कितना तनावपूर्ण हो गया था, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। जिस सोफिया ने टॉलस्टॉय के विश्वप्रसिद्ध महाकाव्यात्मक उपन्यास “वॉर एंड पीस” को सात बार अपने हाथों से लिखकर ठीक किया और संपादित किया। रात में वह जगकर मोमबत्ती की रौशनी में वह यह काम करती रही। उस त्यागमयी पत्नी के साथ टॉलस्टॉय ने क्या किया पढ़िए नेहा अपराजिता का यह लेख। इससे पहले आप चेखव और हेमिंग्वे की पत्नी की दास्तान पढ़ चुके हैं।
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“क्या टॉलस्टॉय ने अपनी पत्नी पर अत्याचार किये थे?”
“औरत अपना आप बचाए तब भी मुज़रिम होती है
औरत अपना आप गवांए तब भी मुज़रिम होती है ।”
नीलमा नाहीद दुर्रानी ने ये लिखने से पहले कितनी ही औरतों के जीवन को परखा होगा, कितनों के ज़ख्म देखे होंगें, कितनी जगह चुप रही होंगी। बहुत सी औरतों के जीवन की स्थिति एक तरफ कुआँ दूसरी तरफ खाई वाली होती है, वे ना आगे बढ़ पाती हैं ना अपने वर्तमान में संतुष्ट रह पाती हैं, ऐसी ही एक स्त्री के जीवन के बारे में आज हम जानेंगें जिनका नाम है सोफिया टॉलस्टॉय। जी हाँ ये रूस के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार लियो टॉलस्टॉय की पत्नी हैं जिन्होंने टॉलस्टॉय के लगभग सभी उपन्यासों को रात में जग जग कर मोमबत्ती की रौशनी में अपने हाथों से कॉपी करती रही और इस तरह प्रतिलिपिकार रहीं हैं जबकि वह स्वयं सोलह वर्ष की आयु से डायरी लेखन करती रहीं।उन्होंने अपने लेखन की जगह पति के लेखन पर ध्यान दिया।
काउंटेस सोफिया अंद्रेएवना टॉलस्टॉय एक सम्पन्न परिवार से थीं। इनका जन्म 22 अगस्त 1844 को ओकरग ,रूस में हुआ, इनके पिता पेशे से डॉक्टर थे तथा इनके नाना रूस के पहले शिक्षा मंत्री थे। सोफिया का परिचय टॉलस्टॉय से 1862 में हुआ। तब वह मात्र अठारह वर्ष की थीं जबकि टॉलस्टॉय 34 वर्ष के थे। टॉलस्टॉय और सोफिया में सोलह साल का अंतर था। सितंबर 1862 में टॉलस्टॉय एक लिखित पत्र से प्रेम प्रस्ताव रखते हैं और कुछ दिन बाद उनकी शादी हो जाती है। शादी के हफ्ते भर बाद वे दोनों मॉस्को चले जाते हैं। शादी के दिन ही टॉलस्टॉय सोफिया को अपनी डायरी देते हैं जिसमें उन्होंने ये बात स्वीकार की थी कि विवाह से पूर्व उनके न जाने कितने अवैध संबंध किसान मजदूर औरतों के साथ थे। उनसे बच्चे भी हुए।
टॉलस्टॉय के उपन्यास एना कैरेनिना की प्रारंभिक पंक्तियां हैं कि : ‘सभी ख़ुशहाल परिवार एक जैसे होते हैं किंतु प्रत्येक दुःखी परिवार अपने अलग ही तरीके का दुःखी होता है।’ टॉलस्टॉय की ये पंक्तियां उनके ही पारिवारिक जीवन का प्रत्यक्ष दर्पण है। सोफिया की डायरी उनके पचास वर्ष से अधिक समय के जीवन को अपने में बुने हुए है। उन्होंने सोच लिया था कि वह अपने उलझन भरे जीवन पर प्रकाश डालेंगी। उन्होंने अपनी डायरी में टॉलस्टॉय को एक निर्दयी और बेहद जटिल इंसान की छवि में रखा है जो कि अपने परिवार के प्रति बहुत उदासीन रहे। उनके तेरह बच्चे थे और टॉलस्टॉय सोफिया को सभी तेरह बच्चों को स्तनपान कराने के लिए विवश करते थे। इसका सोफिया के मानसिक और शारीरिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा उस पर उन्होंने कभी ध्यान नही दिया। परिवार के प्रति उनका रवैया बेहद आलोचनात्मक था, सोफिया के अनुसार वे सभी उपदेश जो उन्हें उनके पति द्वारा मानवता के सम्मान हेतु दिए जाते थे दरअसल वे उपदेश उनका व्यक्तिगत जीवन उलझा देते थे और उनका जीवन कठिन कर देते थे।
टॉलस्टॉय अपने खानपान से शाकाहारी थे जिसके बारे में सोफिया ने अपनी डायरी में लिखा है कि उनके शाकाहारी होने के कारण उनको दो बार खाना बनाना पड़ता था, दो बार मेहनत करनी पड़ती है और खाने के ऊपर दोहरे ख़र्चे भी होते थे। उनके धार्मिक और नैतिक विषयों पर दिए प्रवचन ने उन्हें अपने ही परिवार के प्रति उदासीन बनाये रखा जिससे पारिवारिक जीवन में हस्तक्षेप होता रहा। टॉलस्टॉय ने संसारिक वस्तुओं का परित्याग सा कर दिया जिससे दूसरे उन्हें कम पसन्द आते थे और वे एक अंतहीन आलोचक बनते गये। सोफिया ने अपनी डायरी में ऐसी तमाम गम्भीर बातें लिखी हैं, आगे वे यसनाया पोलयाना के किस्से बताती हुए लिखती हैं कि अक्टूबर 1899 की बात है – एक बार टॉलस्टॉय बिना बताये ही सैर पर निकल गए , उस वक़्त वे सर्दी जुखाम से पीड़ित भी थे। उनके जाने के बाद तेज़ तूफान आ गया। बारिश और बर्फ़बारी हुई, पेड़ और घरों की छत गिर पड़ी, खिड़की के शीशे टूट गये। अंधेरी रात थी और ना चंद्रमा सोफिया को दिख रहा था और ना ही टॉलस्टॉय। वह आगे बताती हैं कि वे घर के पोर्च में रुंधे गले और डूबते मन के साथ खड़ी रहीं जैसा कि वो तब भी किया करती थी जब टॉलस्टॉय शिकार पर जाते थे और वह घंटों प्रतीक्षारत रहती थीं। अंततः टॉलस्टॉय उनको लौटते हुए दिखते हैं, उनके आते ही सोफिया रो पड़ती हैं और उन्हें फटकार लगा देती हैं,जिस पर टॉलस्टॉय जवाब देते हैं कि तो क्या हुआ कि मैं बाहर गया था, मैं छोटा बच्चा तो नही जो तुमको बताना पड़े। इस वाक़ये पर सय्यदा अर्शिया हक़ का एक शेर याद आता है;
“औरत हो तुम तो तुम पे मुनासिब है चुप रहो
ये बोल खानदान की इज़्ज़त पे हर्फ़ हैं।”
सोफिया को उस दिन अपने प्रेम और ख़्याल रखने की आदत से निराशा हुई। एक प्रतिभाशाली स्त्री का भविष्य सिर्फ इसलिए सिमट कर रह गया क्योंकि उन्हें अपने पति के कारण एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ा और उन्हें कभी भावनात्मक सहारा नही मिला। सोफिया जिसे अपना आदर्श मानती थीं उन्हीं से उनको यातनाएं मिलती रही। उनकी डायरी के पुरोवाक में डोरिस लेसिंग ने भी टॉलस्टॉय को एक बुरे पति की संज्ञा दी है जो कि निजी सम्बन्धों में अविवेकी रहे। 82 वर्ष की उम्र में टॉलस्टॉय ने अपनी पत्नी को छोड़ भी दिया था। सोफिया ने इतना दुख सहने के बाद पति को लेकर निष्ठावान रहीं। उन्होंने किसी गैर मर्द की ओर देखा तक नहीं। उन्होंने आत्महत्या करने की भी कोशिशें की। उन्होंने लिखा है वह अपने घर मे फर्नीचर की तरह इस्तेमाल की जाती रहीं।
सोफिया टॉलस्टॉय के बारे में अनेक पुस्तकें आ चुकी हैं। उन दोनों के जीवन पर फ़िल्म भी बन चुकी है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि दुनिया टॉलस्टॉय को पूज्य मानती है पर एक पति के रूप में वह कितने निर्दयी थे। अगर सोफिया की डायरी नहीं छपती तो दुनिया को आज पता भी नहीं चलता। हर स्त्री को अपनी डायरी जरूर लिखनी चाहिए।
-नेहा अपराजिता
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