Wednesday, September 17, 2025
Homeविरासतसाहसी लेखन की पर्याय: शिवरानी देवी

साहसी लेखन की पर्याय: शिवरानी देवी

मित्रो आज स्त्री दर्पण शिवरानी देवी को याद कर रहा है। इस मौके पर हम प्रसिद्ध आलोचक डॉ क्षमा शंकर पण्डेय का एक लेख यहां दे रहे।हाल ही में शिवरानी देवी उनकी किताब आई है।वे शिवप्रसाद सिंह के प्रिय छात्र रहे और उनके निर्देशन में मुक्तिबोध की काव्य भाषा पर पीएचडी की ।उग्र पर भी उनकी किताब आई है। तो पढ़ते हैं उनका लेख ।

………………..

डा.क्षमा शंकर पाण्डेय
स्वतंत्रता पूर्व स्त्री कहानी लेखन में शिवरानी देवी एक विलक्षण नाम है। सन् 1889 में मौजा सलीमपुर डाकखाना कनवार, जिला फतेहपुर के निवासी मुंशी देवी प्रसाद के घर में जन्मी शिवरानी की निर्मिति जीवन की पाठशाला में हुई। वाल विवाह, बाल, विधवा की नियति का साक्षात् करने वाली शिवरानी जी के जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद से उनका विवाह था। बालिका शिवरानी का बचपन जिम्मेदारियों का पर्याय था। ग्यारह वर्ष की उम्र में पहली शादी और तीन-चार महीने बाद ही वैधव्य की पीड़ा झेलने वाली बालिका के ऊपर जिम्मे-वारियों और दु:खों का पहाड़ था। उनकी आत्म स्वीकृति के अनुसार “मेरी मां मर चुकी थी। एक मेरा भाई पांच बरस का था1 उसंको मैं उसी तरह प्यार करती थी, जैसे मां अपने बच्चे को करती है। मेरे जब चौदह साल पूरे हुए थे, तभी मॉं मर चुकी थी। मेरा भाई तब तीन वर्ष का था। उसी समय से मुझे अपनी जिम्मेदारियों का ज्ञान हुआ (प्रेमचंद घर में : शिवरानी देवी पृ.20) इस जिम्मेदारियों के बोझ से आजीवन उनका पिंड नहीं छूटा1 प्रेमचंद से पुनर्विवाह के उपरांत भी उनके घर में जगह बनाने में भी कम संघर्ष नहीं करना पड़ा। संकोची स्वभाव वाले प्रेमचंद खुल कर विरोध नहीं कर पाते थे। ऐसे में उनकी ओर से मोर्चे पर खड़ी होती थीं शिवरानी। चाहे आर्थिक मामले हों या व्यावहारिक शिवरानी जी अपनी शक्ति भर प्रेमचंद को उन उलझनों से दूर रखती थीं। प्रेमचंद के साथ उनकी नौकरी के कारण विभिन्न स्थानों पर साथ रहते हुए नाम मात्र की औपचारिक शिक्षा प्राप्त शिवरानी जी का साहित्य से परिचय हुआ। महोबा में तैनाती और ‘सोजे वतन’ काल में ही शिवरानी के मन में साहित्य के प्रति आकर्षण बढ़ा। इसका विवरण देते हुए उन्होने लिखा है कि, “वे जब दौरे पर रहते तो मेरे साथ ही सारा समय काटते और अपनी रचनाएँ सुनाते। अंग्रेजी अखबार पढ़ते तो उसका अनुवाद मुझे सुनाते। उनकी कहानियों को सुनते-सुनते मेरी भी रुचि साहित्य की ओर हुई। जब वे घर पर होते, मैं कुछ पढ़ने के लिए उनसे आग्रह करती। सुबह का समय वे लिखने के लिए नियत रखते। दौरे पर भी वे सुबह ही लिखते। बाद काे मुआइना करने जाते। इसी तरह मुझे उनके साहित्यिक जीवन के साथ सहयोग करने का अवसर मिलता। जब वे दौरे पर होते, तब मैं दिन भर किताबें पढ़ती रहती। इस तरह साहित्य में मेरा प्रवेश हुआ’’। (प्रेमचंद घर में:शिवरानी देवी पृ.31) इस तरह लगभग अठ्ठारह उन्नीस वर्ष की आयु में साहित्य का ककहरा जानने वाली शिवरानी जी ने पैंतीस वर्ष की लगभग पकी उम्र में कहानी लेखन की दुनियॉं में प्रवेश किया। प्राप्त प्रमाणों के अनुसार प्राय: इक्कीस बाइस वर्ष तक का काल उनके साहित्य का रचनात्मक काल है, पर लिखने से पूर्व उन्हों ने पंद्रह वर्षों तक खूब पढ़ा। जीवन के संघर्षों के बीच बढ़ती,पढ़ती और गढ़ती हुई शिवरानी ने अपनी समकालीन लेखिकाओं की तुलना में संभवत: सबसे अधिक उम्र में कहानी लेखन के क्षेत्र में प्रवेश किया।
शिवरानी जी की लेखकीय सक्रियता का काल भी प्राय: वही काल है जब वे कांग्रेस के कार्यक्रमों में भाग लेते हुए स्वतंत्रता आन्दोलन में सम्मिलित थीं। साहित्य पढ़ते और स्वयं लिख-लिख कर फाड़ते वे लेखन की ओर बढ़ रही थीं। प्रेमचंद को भी यह अनुमान नहीं था कि उनका बोया हुआ बीज पौधे का आकार ग्रहण कर रहा है। उस काल की अधिकांश लेखिकाओं की तरह वे भी कहानी लेखन के क्षेत्र में शौकिया ही प्रविष्ट हुई थी। उन्हें अपनी क्षमता पर विश्वास नहीं था, जैसा कि उन्होने लिखा है कि, “ मुझे भी इच्छा होती कि मैं कहानी लिखूँ। हालांकि मेरा ज्ञान नाम मात्र को भी न था, पर मैं इसी कोशिश में रहती कि किसी तरह मैं कोई कहानी लिखूँ। उनकी तरह तो क्या लिखती। मैं लिख्लिख कर फाड़ देती। और उन्हें दिखाती भी नहीं थी”। (प्रेमचंद घर में: शिवरानी देवी पृ. 31) पर शिवरानी जी का साहस उन्हें प्रेरणा देता रहा और अंतत: 1924 में चांद पत्रिका में उनकी पहली कहानी छपी ‘साहस’। यह कहानी उस बालिका की कहानी है जिसके पिता धनाभाव में बेटी की शादी चार बच्चों के बाप, चालीस वर्षीय वृद्ध से करना चाहते हैं। बेटी राम प्यारी पहले तो विवाह को टालना चाहती है, पर जब सफल नहीं होती तो जो कार्य करती है वह कम से कम चरित्र सृष्टि की दृष्टि से विलक्षण है। शिवरानी जी ने कहानी में लिखा, “रामप्यारी धीरे से अपने बगल में हाथ ले गई, फिर तन कर खड़ी होकर उसने घूँघट उलट दिया, सहसा तड़-तड़ की जवाज के साथ मंडप गूँज उठा। उपस्थित सज्जनों ने चकित होकर देखा-वर के सिर पर जूतें पड़ रहे हैं, किंतु सबसे आश्चर्य की बात तों यह थी कि यह काम किसी और का नहीं था, स्वयं वधू ही यह कार्य कर रही थी!! दस पन्द्रह जूते जमा कर राम प्यारी ने अपने हाथ का पुराना जूता अपने पिता के सामने फेंक दिया और शीघ्रता से बाहर चली गई”। (नारी-हृदय पृ 32-33) पुरूष वर्चस्व वाले समाज में इस तरह की कहानी लिखते हुए, कहानी लेखन के क्षेत्र में प्रविष्ट हाने वाली शिवरानी ने अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच अपना लेखन जारी रखा। 1937 तक उनके दो कहानी संग्रह ‘नारी हृदय’ और ‘कौमुदी’ प्रकाशित हो चुके थे। इन संकलनों में सोलह-सोलह कहानियां हैं। 1937 के बाद लिखी उनकी लगभग पन्द्रह-सोलह कहानियां अभीं पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठों में हैं जो संकलित नहीं हो सकीं। 1943 में उनकी प्रसिद्ध कृति ‘प्रेमचंद घर में’ का प्रकाशन हुआ था। पांचवें दसक के बाद शिवरानी का लेखन उपलब्ध नहीं होता। 05 दिसंबर 1976 को अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करने वाली शिवरानी जी ने पॉंचवें दशक के बाद कलम ही नहीं उठाई यह बात हजम नहीं होती, पर सामग्री के अभाव में कुछ भी कहना मुश्किल है।
शिवरानी जी की अधिकांश कहानियां स्त्री केंद्रित हैं। इन कहानियों में स्त्री जीवन मे विविध चित्र उपलब्ध हैं, जिसमें स्त्री जीवन की विडंबना, उसका त्याग, समर्पण और संघर्ष सब मिलते हैं। स्त्री अधिकारों की पक्षधर होने के बाद भी उनकी स्त्रियां, स्त्री स्वतंत्रता का पाश्चिमी मॉडल स्वीकार नहीं करतीं। त्याग, समर्पण, कर्त्तव्य निष्ठा, सेवाभाव आदि गुणों को अपनाने वाली उनकी अत्याचार के विरोध में तन कर ,खड़ी होती हैं। अन्याय, अत्याचार और कुरीतियों का विरोध करती ये स्त्रियां परंपराओं के नकार का भी साहस रखती हें और जरूरी होने पर प्रतिकार का भी। ‘कर्म का फल’ कहानी की कांती, ‘साहस’ की ‘राम प्यारी’, ‘माता’ की ‘राधा’, वरयात्रा ‘की रामेश्वरी’ समझौता की ‘ललिता’, वधू-परीक्षा’ की ‘निर्मला’ ‘बलिदान’ की प्रभा देवी ‘नर्ष’ कहानी की ‘क्षमा,ऋण की ‘सुर्जी’ ,एवम ‘सिदूर की रक्षा’ की चंदा आदि ढ़ेरों स्त्रियां हैं जो सम्मान, स्वाभिमान और अधिकार के लिए आवाज उठाती हैं और यथाशक्ति प्रतिराध भी करती हैं। यौन उत्पीड़न के लिए उद्यत पुरूष की नाक काट लेने वाली कर्म का फल की कांति, एवम ‘ऋण’ कहानी की विधवा कृषक महिला ‘सुर्जी’ वे चरित्र हैं जो परंपरा की जमीन से रस लेते हुए भी स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार हैं। समझौता कहानी की ललिता’ और बलिदान की प्रभादेवी स्त्री अधिकारों के लिए वैचारिक रूप से सन्नद्ध स्त्रियां है। अधिकारों की बात चलने पर ललिता अपने पति मोहन से कहती है, “मैं यही अधिकार लूँगी कि स्त्री और पुरूष दोनों के हक हर बात में बराबर हों। रत्ती भर का फर्क न हो। पिता की संपत्ति, पति की संपत्ति या ससुर की संपत्ति पर स्त्री का उतना ही हक हो जितना पुरूष का होता है। सरकारी नौकरियां दोनों को बराबर मिलें, कौसिंल में स्थान भी बराबर हो और अपने धर्म और देह पर भी उसका अपना अधिकार हो-उसी तरह जैसे पुरूषा का अधिकार अपनी ध्येय और धर्म पर होता है। स्त्रियां यह कभी न स्वीकार करेंगी कि पुरूष का जो धर्म हो, वही धर्म उन्हें भी मानना पड़े या माता-पिता जिसको चाहें उसे दान कर दे”। (नारी दृदय: पृ.151) यह था वह सपना जो शिवरानी जी अपनी कहानियों के माध्यम से बुन रही थीं। बलिदान ‘कहानी की स्वतंत्रता सेनानी प्रभा देवी स्त्री अधिकारों के लिए न केवल एसेम्बली से इस्तीफा देती हैं बल्कि सामूहिक संघर्ष का आह्वान करते हुए आमरण अनशन करते हुए अपना बलिदान दे देती हैं। बधू परीक्षा की ‘निर्मला’ और ‘प्रेमा’ की प्रेमा विवाह में पुरूष की प्रधानता पर प्रश्न चिन्ह लगाती हैं वे स्वयं पसंद और नापसंद करने का अधिकार चाहती हैं। निर्मला लड़की देखने गए लड़के की अस्वीकार कर देती है और कारण बताते हुए कहती हैं, “मुझे इन महाशय से विवाह करना मंजूर नहीं है। इसलिए कि जिस विवाह का आधार रूप है, वह रूप की तरह ही आस्थिर होगा और जिस पुरूष हृदय में रूप का ऐसा मोह है वह इस योग्य कदापि नहीं हैं कि कोई उसे वरे”। (नारी हृदय:प्र196 ) वह पुरूष की श्रेष्ठता ग्रंधि पर निर्णायक प्रहार करते हुए कहती हैं, “ मैं क्यों समझूं कि पुरूष विवाह करके कन्या का उद्धार करता है। मैं तो समझती हूँ कि कन्या विवाह करके पुरूष का उद्धार करती हैं”। (नारी हृदय: प्र.198) विवाह के बहाने स्त्री को गुलाम बनाने वाली प्रवृत्ति का विरोध शिवरानी जी की स्त्रियां करती है। राम प्यारी, निर्मला, प्रेमा और कनक जैसी स्त्रियां विवाह संस्था पर प्रश्न उठाती है। वे आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन कर समाज. निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वाह करती हैं।
शिवरानी जी ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योगदान देने वाली स्त्री चरित्रों को भी अपनी कहानियों में प्रस्तुत किया है। वे निडर भाव से आंदोलन में भाग लेती हैं। स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि में लिखी कहानियों में माता, गिरफ्तारी, जेल में, हत्यारा, सच्चा व्याह और बलिदान प्रमुख हैं । गिरफ्तारी’ कहानी की राजकुमारी अपने पति विजय सिंह को प्रेरित करते हुए कहती है,’’ जब मुआफी नहीं मॉगनी है और जाना है ही , तो मोह में पडकर बिलंब क्यों करते हो। लोग यहां तो कहेंगे कि पहले तो बहुत उछलते कूदते थे, जब चलने का समय आया तो, बगलें झांकने लगे। क्या मैं इतना नहीं जानती कि नन्हें तुम्हें प्राणों से अधिक प्यारा है, लेकिन धर्म के आगे प्रेम की क्या हस्ती है। मैं जानती हूं, मेरा दिल भी कमजोर है और अवसर पडने पर मेरी क्या दशा होगी, कह नहीं सकती: लेकिन जब आप ही दिल छोटा कर लेंगे तो मुझे कैसे बल होगा। हमारी माताओं-बहनों ने धर्म और कर्तव्य के नाम पर हॅसते-हॅसते प्राण दे दिए हैं। वही कर्तव्य हमारे सामने है। (नारी ह्रदय:पृ. 134) यही राजकुमारी पति की अनुपस्थिति में आंदोलन की लगाम थाम लेती है और निडर भाव से अपनी गिरफ्तारी देती है। ‘बलिदान’ कहानी की प्रभा देवी का परिचय देते हुए लेखिका ने लिखा, “जब इलाहाबाद में गोली-चली थी, तब उनके रान से गोली आर-पार हो गई थीं। उस जुलूस पर पडी डंडो की मार से ज्यादा चोट आई थी, जिससे वह मरते-मरते बची थीं और तीन-दिन तक अस्पताल में बेहोश पडी रहीं। उनके साथ बहुत सी स्त्रियों को चोट आई थी लेकिन उनका स्थान विशेष था। अच्छी होते ही उसी दिन अस्पताल में प्रतिज्ञा कर लीं कि जब तक जिन्दा रहूंगी तन-मन-धन से देश की सेवा करूगीं”। (चॉद, नवंबर 1937 पृ.111) ऐसे साहसी, कर्तव्यनिष्ठ और जागरूक चरित्रों के माध्यम से कहानी बुनने वालीं शिवरानी जी का लेखन निडर और साहसी लेखन की मिशाल है।
रोती, विसूरती, कष्ट सहती, कुप्रथाओं का शिकार होती स्त्रियों के बीच जैसे का तैसा का पाठ पढाने वाली स्त्रियों की रचना वस्तुत: शिवरानी जी का सपना है। ‘नर्स की क्षमा विवाह के लिए 5000/ मांगने वाले पुरूष से समर्थ होने पर 10000/ लेकर विवाह के लिए सहमत होती है। ‘ऑसू की बूंद’, की कनक दहेज लोभी प्रेमी से विवाह करने से इनकार करती है। इसी कहानी की एक पात्र पति से कहती हे कि मेरे पिता ने दहेज देकरा तुम्हें खरीदा है। तुम मेरे उपर प्रतिबंध नहीं लगा सकते/ साम्प्रदायिकता के प्रश्न को लेकर लिखी कहानी ‘सिंदूर की रक्षा’ की चंदा का मत है कि युद्ध हो चाहे दंगा परिणाम तो अंतत: स्त्रियों को ही भोगना पडता है। परस्पर एक दूसरे से बदला लेने को तैयार पुरूषों से वह कहती है, “ अगर यह सिलसिला यों ही चलता रहे, तो एक भी मुसलमान या हिन्दू स्त्री की आबरू न बचेगी इससे तो यह कहीं अच्छा है कि हिन्दू और मुसलमान मरदों का अंत हो जाये। औरतें उनके नाम को रो लेंगी”। (कौमुदी : शिवरानी देवी : पृ. 113)। यहॉं यह स्पष्ट संदेश देने का प्रयास है कि पुरुषों के किए का दंड स्त्रियां क्यों भोगें? करे कोई भरे कोई यह रीति ठीक नहीं है। निराला नाच’ कहानी की ग्रामीण स्त्रियॉं गॉंव में स्त्रियों को अपमानित करने वाले खलक सिह को स्त्री वेश धारण कर नाचने के लिए विवश कर देती हैं। उनकी कहानियों में स्त्रियों द्वारा अन्याय और अत्याचार के एकल और सामूहिक प्रतिरोध के चित्र मिलते हैं। उनकी कहानियॉं स्त्री जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हुए स्वतंत्रता जागरण और सशक्तता की दिशा में अग्रसर हो रही स्त्रियों का चित्र प्रस्तुत करती हैं। इन स्त्रियों में नकार का साहस है, रचने का संकल्प है और है संघर्ष के लिए कटि बद्धता।
शिवरानी जी का समूचा लेखन अपनी समकालीन रचनाकारों की तुलना में साहसी लेखन का साक्ष्य है। यह ‘साहस’ उनके व्यक्तित्व का गुण था। गलत बात का विरोध करने में वे कभी पीछे नहीं रहीं। पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन में उनके इस साहस का साक्ष्य उनकी कृति ‘प्रेमचंद घर में’ मे कदम-कदम पर मिलता है। गलत बात और व्यवहार पर वे प्रेमचंद को भी रोकने से बाज नहीं आती थीं। लखनऊ में भाषण देते समय, जब कि उन्हें मालूम था कि कांग्रेस गैर कानूनी करार दी गई है वे उग्र भाषण दे रही थीं। प्रेमचंद ने पूछा, “मालूम होते हुए आग उगल रही थी”। उन्होने उत्तर दिया, “मैं क्या करती। जब बोलने खड़ी हुई तो चुप रहती¬¬¬¬ जब मरना ही है तो कुछ कर जाना चाहिए थ”। (प्रेमचंद घर में : पृ. 133) निडर, साहसी और कर्तव्यनिष्ठ शिवरानी जी की कहानियों में आई जूझती, नकारती, रचती और अपना आकाश पाने का प्रयास करती स्त्रियां वस्तुत: शिवरानी जी के साहसी लेखन का साक्ष्य हैं। उनके इसी प्रकार के लेखन को देख कर प्रेमचंद को कहना पड़ा था कि। “मेरे जैसा शांत स्वभाव का आदमी इस प्रकार की दंबग औरतों के प्लाट की कल्पना भी नहीं कर सकता”। समानता, स्वतंत्रता के मूल्यों को मन में बसाये शिवरानी जी का कहानी लेखन वास्तव में साहसी लेखन का पर्याय है।
RELATED ARTICLES

Most Popular

error: Content is protected !!
// DEBUG: Processing site: https://streedarpan.com // DEBUG: Panos response HTTP code: 200
Warning: session_start(): open(/var/lib/lsphp/session/lsphp82/sess_11obtdc00603a71mn1v360g4eb, O_RDWR) failed: No space left on device (28) in /home/w3l.icu/public_html/panos/config/config.php on line 143

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/lib/lsphp/session/lsphp82) in /home/w3l.icu/public_html/panos/config/config.php on line 143
ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş ilbet yeni giriş