नाम…रश्मि तारिका
जन्मतिथि…२५ जुलाई,१९६८
विधा..कहानियाँ ,लघुकथाएँ ,हाइकू ,कविताएँ और लेख
मुख्य सम्प्रति ..”कॉफ़ी कैफ़े “कहानी संग्रह
प्रकाशित साहित्य…
यूँ तो एक गृहिणी होना ही अपने आप में एक सम्पूर्ण प्रोफेशन है । लेकिन जबसे मैंने कलम हाथ में थामी है ,लफ़्ज़ों से दोस्ती की है तब से मन के भाव समेट कर अपनी कहानियों कविताओं को पत्र पत्रिकाओं में भेजते हुए…
“मैं मैथिलीप्रवाहिका, मौसम , आँच ,आगमन ,खबरयार , लेखनी ,राजस्थान पत्रिका ,सन्मार्ग,प्रवासी दुनिया, कैच माय पोस्ट आदि कई पत्रिकाओं से जुड़ी।
“आगमन द्वारा आयोजित ” सिर्फ तुम “प्रतियोगिता में तीसरे स्थान पर रही और कहानी संग्रह का भी हिस्सा बनी ।
अशोक जैन जी द्वारा संपादित लघुकथा संग्रह “दृष्टि “का हिस्सा बनी।
“प्रतिलिपि .कॉम में काफी महीनों तक टॉप टेन राइटर्स में बनी रही ।
प्रतिलिपि द्वारा ही प्रायोजित कहानी प्रतियोगिता में टॉप 20 विजेताओं में मेरी कहानी”तुम पगली हो” को आठवां स्थान मिला ।
“नया लेखन नया दस्तखत लघुकथा द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में मेरी ६ लघुकथाएँ विजेता रहीं ।
“गागर में सागर द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में भी विजेता रही।” लफ्ज़ अपना रास्ता खोज लेते हैं “अभी मातृभारती द्वारा आयोजित पत्र लेखन में भी जीतना ख़ुशी का सबब बन गया।
मातृभारती पर प्रकाशित ई उपन्यास ” आईना सच नहीं बोलता ” की सह लेखिका।
ओबीओ के संचालक और जाने माने लघुकथाकार और ग़ज़लकार “आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ” का साक्षात्कार किया।उनके द्वारा संपादित लघुकथा महा विशेषांक का हिस्सा बनना खुशी का सबब बना
मेरे साझा संकलन ..
1.सिर्फ तुम (संमत्ति पब्लिकेशन)
2.सोलह गियर वाली साइकिल (रुझान पब्लिकेशन)
3.हाइकू सँग्रह ” शत हाइकुकार/साल शताब्दी “विभा रानी श्रीवास्तव जी द्वारा संपादित
4.लघुकथा साझा संकलन “आस पास से गुज़रते हुए “(अयन प्रकाशन)
5.लेख संग्रह “नारी विमर्श के अर्थ” रश्मि प्रभा जी द्वारा संपादित(हिन्द युग्म)
लेखन कार्य का आगाज़ तो हो चूका है ,सफर काफी है।बस चलते जाना है …चलते जाना है ।
पता…
12 A , tower B..
रतन अंश अपार्टमेंट
धीरज संस के पास
जी.डी .गोयनका स्कूल रोड़
वेसु
सूरत, गुजरात
मोबाइल ….९७२६९२४०९५
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किताबें
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कहानी
ओ वोमेनिया ...!
हिमाचल के कसौली हिल स्टेशन पहुँचने में अभी दो घन्टे शेष थे।बस घुमावदार पहाड़ियों से गुज़रती हुई सफर तय कर रही थी और उस में बैठी आभा इन हसीन वादियों में खोई हुई कभी खिड़की से बाहर कर, बारिश की बूंदों से अपना हाथ भिगोती तो कभी आँखे बन्द कर ठंडी हवाओं के स्पर्श को महसूस करती। इन पहाड़ियों की यही ख़ासियत थी कि कभी भी बादलों को आग्रह कर बुला लेतीं और बादल भी इस पहाड़ियों के प्रेम निवेदन को मान प्रेम पानी बरसाने लगते।
आभा अपनी ज़िन्दगी में पहली बार इन पहाड़ियों के बीच बसे इस खूबसूरत शहर में जा रही थी वो भी अकेले।अकेले यानि बिना परिवार के। वैसे उसके संग उसकी तीन मित्र और थीं ।अंजलि ,महक और शालू। महक और शालू तो काफी साल पहले आ चुकीं थी और अंजलि यहीं की पली बढ़ी थी।हाँ ,अंजलि का परिवार उसके विवाह से कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली जा बसा था।लेकिन उसे कसौली की हर जगह मालूम थी इसलिए उसकी जानकारी का अनुभव बाकी तीनों सखियों के लिये बेहद उपयोगी था तो चारों बस से ही सफर के मज़े लेने निकल पड़ीं थीं।
कसौली पहुँच कर सबने होटल में आकर सामान रखा और सुस्ताने लगीं।सफर की थकान थी लेकिन दिल सबका यूँ उछल रहा था मानो स्कूल के बच्चे हों और किसी पिकनिक पर आए हों।
“अरे यार ! यहाँ सोने या आराम करने नहीं आए।जल्दी से फ्रेश हो जाओ ।भूख भी लगी है,बाहर खाने चलते हैं।”महक ने वॉशरूम से निकल कर चेहरा पौंछते हुए कहा।
“नहीं यार …बहुत थक गए। अभी यहीं होटल में खाना मँगवा लेते हैं न ! कुछ देर आराम करके चलते हैं।”शालू ने भी अलसाये से स्वर में कहा और कम्बल ओढ़ लिया।
“सच्ची यार ! कितना अच्छा मौसम है यहाँ का और तुम इसे सोने में मिस कर दोगी ? सारी जिंदगी खाकर और सोकर ही गुज़ारी है हमने। अब उठो ,चलो महारानियों !” कहने के साथ ही आभा ने शालू का कम्बल खींच कर उतार दिया।
“मैं रेडी हो रही हूँ ! तुम भी दस मिनट के अंदर रेडी हो जाओ चुपचाप ।” आभा कहकर सूटकेस से कपड़े निकालने लगी।
“एक तो ये आभा है न ,उम्र में हमसे उम्र में चार साल बड़ी क्या है रुआब रखती हैं।”
“देखो ,मेरी सखियों ! न मैं यहाँ किसी की दीदी हूँ न ही कोई यहाँ छोटा बड़ा है। बिंदास रहो और मुझे भी रहने दो।मैं ये बड़े होने के एहसास का लबादा ओढ़ने लगी न तो फिर कर लिया मैंने एन्जॉय ! बख्शो मुझे !”हँसते हुए ही आभा ने बाकी तीनों को अल्टीमेटम दे दिया।
“क्या बात है आभा ! अब तो जी लगाने का झंझट ही हटा।दिल खोलकर ,बेफिक्र होकर बात करेंगे अब हम ।”शालू ने मुस्कुराते हुए कहा ।
“बात क्या अब तो मस्ती भी करेंगे और पंगे भी लेंगे।अब तो पूरी छूट है न !
“सही है यार महक ! वैसे महक तेरी वो कविता थी न बिगड़ने बिगाड़ने वाली।आज तो बस वही करेंगें।देखते हैं ये आभा बिगड़ती है या नहीं।”
“हाँ हाँ ..देख लेना।हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या ! बस रहना ज़रा हद्द में !”
आभा ने मुस्कुराते ,बात करते अपनी जीन्स टॉप पहन ली।बालों को रबड़ बैंड से आज़ाद करते हुए खुला छोड़ लिया और गले में एक स्टॉल डाल लिया।
“माशाअल्लाह ! क्या रूप निखर आया है ! आभा जी से मिस आभा लगने लगी हो। फिगर तो पहले ही मेन्टेनेड है।उस पर ये जलवे ! वैसे जीजाजी को कभी दिखाए हैं क्या ऐसे जलवे ?”
पूछते हुए अंजलि ने भी अपनी ड्रेसिंग को एक फाइनल टच दिया और चारों होटल से निकल पड़ी।
“यार ! पेट पूजा तो हो गई।अब ठंड भी बढ़ने लगी है।वापिस होटल चलते हैं।”
सुरमई सी शाम हल्की सी ठंड के साथ दस्तक देने लगी थी। यूँ भी पहाड़ियों में दिन भी जल्दी ढल जाता है। और ठंड भी बढ़ने लगती है।।शालू को अब इस मौसम में कंपकंपी सी छूट रही थी।
“एक काम करो ! आभा और शालू तुम दोनों ज़रा यहीं कहीं पांच मिनट इंतज़ार करो।हम अभी आते हैं।”
अंजलि और महक दोनों बिना उनका जवाब सुने एक दुकान पर पहुँचीं और उन्होंने वोदका ,वाइन खरीद ली।
“क्या लाई हो तुम ?” आभा ने शक की नज़रों से पूछा।
“अरे वही ! एपी फिज़ …कोल्ड ड्रिंक्स वगैरह।”अंजलि ने झूठ कहा।
“अंजलि .. मैंने उम्र का बँधन बेशक हटाया है लेकिन मुझे तुम बेवकूफ़ समझने की गलती मत करना मैडम।सब जानती हूँ।”
“अब जानती हो तो कुछ कहो मत।यहाँ एन्जॉय करने आएँ हैं ,भजन कीर्तन करने नहीं।” महक ने भी अंजलि की बात से सहमति जताई।
“शालू तू ही समझा न इन दोनों को।पागल हो गईं हैं आते ही !”
“चिल यार ! एन्जॉय द ट्रिप ! ये दिन बार बार नहीं आएँगे।”
आभा परेशान सी , उलझी हुई सी उनके साथ चलते चलते भी , समझाती रही और इस बीच सब हुए होटल तक पहुँच गईं।
“देख आभा ! हम शराब विस्की नहीं पी रहे। ये वोदका ,या रेड वाइन तो होती ही लेडीज के लिए। कोई नशा नहीं और अब न नुकर की कोई गुंजाइश नहीं।न हम तेरी सुनने वाले हैं।”
“तो फिर मुझे तो माफ ही करो और तुम तीनों ऐश करो ।मैं जाती हूँ सोने।”
” आभा ! डोंट बी ए स्पोइल स्पॉट ! ऐसे नहीं चलेगा। अच्छा बस एक पैग।”
तीनों सखियों ने ज़िद्द करके एक पैग के लिए आभा को मना ही लिया।बैग में से कुछ चिप्स नमकीन के पैकेट भी साथ में निकाल लिए।
“चल महक ! अपनी मधुर आवाज में एक फिल्मी गीत सुना दे यार।अपनी इस दोस्ती के नाम !”
“अरे पहले चियर्स तो करो।”शालू ने कहा और चारों चियर्स करके वोदका के सिप लेने लगीं।महक ने माहौल को देखते हुए ” आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे “गीत गुनगुनाया ।
“यार ! सच्ची आज तो मेरे भी पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ रहे।ज़िन्दगी का पहला अवसर ,पहला अनुभव ! सब से दूर बेशक हूँ लेकिन खुश हूँ..बहुत खुश हूँ !”आभा पर वोदका का नहीं शायद खुशी का सुरूर छाने लगा था।
“तो ले न आभा ! आज इसी खुशी में बस एक और पैग और ! बस ये आखिरी।इसके बाद हम भी नहीं लेंगे। फ़ॉर कम्पनी सेक प्लीज !”अंजलि ने आभा के गिलास में फिर से वोदका डाल दी।
“अरे नहीं नहीं ! बस एक काफी है।” आभा ने इनकार किया लेकिन शालू उठकर पास आकर बैठ गई।
“देख आभा ! सारी उम्र पति और बच्चों की सेवा , त्याग और उनकी इच्छाओं को पूरा करते करते हमारी उम्र निकल जाती है।इन्फेक्ट निकल ही गई है।यहाँ से लौट कर भी यही होना है।कम से कम यहाँ आने के लिए तुमने सच बोलने की हिम्मत तो दिखाई।अब आगे की ज़िंदगी के लिए हिम्मत तो बनी रहेगी।”
” अरे ! झूठ कैसा ? आभा क्या तुम जीजाजी से झूठ बोलकर आई हो यहाँ ?” महक ने हैरानी से पूछा।
“नहीं यार ! बोलकर तो सच ही आई है हमारी झाँसी की रानी लेकिन झूठ बोलकर ही आने वाली थी और झूठ भी क्या बताऊँ ..?”शालू ने हँसते हुए कहा और हँसती चली गई। इतना कि हँसते हँसते उसकी आँखों से आँसू आ गये !
“हाँ हाँ ! उड़ा लो मज़ाक ! “आभा ने बनावटी गुस्से दिखाते हुए शालू की पीठ पर एक मुक्का मारा।
“नहीं मज़ाक नहीं उड़ा रही ।तुम्हारा सच बता रही हूँ ।दोस्तों में कैसी शर्म ! है न अंजलि ?”
“बिल्कुल सही ! चल फिर बता न ! हमारी आभा का सच।”अंजलि ने अपना गिलास खाली किया ।
“ये मैडम न जीजाजी को यह कहने वाली थी कि हम सब तीर्थ स्थान पर जा रहे हैं।यह तो अच्छा हुआ कि इसने मुझे बता दिया।अब मैंने तो बोल दिया इस आभा रानी को कि हम न तीर्थ स्थान जायेंगे ,न हमें कोई शौक है जाने का।हमसे जीजाजी पूछेंगे तो हम सच बता देंगे।यूँ भी हमारी उम्र नहीं आई तीर्थ जाने की।हमारा ट्रिप खराब न करो और तुम अपने पति के पास विश्राम करो।”
“फिर क्या हुआ …?” महक बड़ी जिज्ञासा से पूछने लगी तो शालू फिर हँस पड़ी।
“यार ! वो कहते हैं न ! मुंह में राम राम और बगल में छुरी। इसका भी यही हाल था।”
“पागल ! ये मुहावरा गलत है।इसके पास छुरी कहाँ है ?बस मुँह में राम राम था !” अंजलि को अब अपने दूसरे पेग का नशा सा होने लगा था और वो बहकने लगी थी।
“जो भी हो यार ! मेरे कहने से इसने जीजाजी को सच बता कर यहाँ आने के लिए मना ही लिया।जंग जीत ही ली आखिर इसने।”
“वैसे आभा ! एक बात बता। हमारी इतनी उम्र हो चली है ,हम आज तक इतने नियमों ,बंधनों और दायरों में क्यों बंधे हैं ? सभी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हुए भी हमारे पास हमारा कहने को क्या है? “अंजलि ने प्रश्न किया
“सही कहा तुमने ! कुछ भी हमारा नहीं ! तन ,मन धन से खाली हैं हम ! पति कहते हैं ,दुनिया कहती है कि सब कुछ तो है हमारे पास।किस चीज़ की कमी है ? लेकिन देखा जाए तो सब कुछ है ,न देखा जाए तो कुछ भी नहीं । हम बस अपनी गृहस्थी के चौकीदार हैं जिसे देख रेख करनी है बस।”
कहते कहते आभा की पलकें नम हों गईं और स्वर भीग गया।
“आभा ! रो मत यार ! सब की यही कहानी है। कहने को दुर्गा ,शक्ति के मालूम नहीं क्या क्या नाम दे दिए जाते हैं हम औरतों को।लेकिन घर के मामले में एक फैसला लेने की भी आज्ञा नहीं।सबकी खुशी में ही हमारी खुशी है बस यही मूल मंत्र है हमारे जीवन का।”महक ने आभा के पास आकर उसके आँसूं पौन्छ दिए और कहा “चलो छोड़ो यार ! आज हम एक दूजे से अपनी जिंदगी के कुछ गम साँझा करते हैं। वो क्या कहते हैं शायर लोग ..ग़म गलत करते हैं।”
“आ गई हमारी शायरा ! चल पहले तूँ ही अपनी कहानी बता।”अंजलि ने खाली गिलास बाजू में रख दिये।चारों सखियों को अब मज़ा वोदका से अधिक एक दूसरे की जिंदगी के सच सुनने में आने लगा था।
महक ने एक लंबी साँस ली और पहले सबसे यह वादा लिया कि हम एक दूसरे के दुख इन्हीं वादियों के इस होटल के कमरे में छोड़ जाएँगे।कभी किसी भी बात का जिक्र नहीं करेंगे।”
चारों ने एक दूजे के हाथ पर हाथ रख कर वादा लिया कि ज़िन्दगी के ये राज़ हमेशा राज़ ही रहेंगे।
“मैं इस बार मनीष से झगड़कर आई हूँ क्योंकि उसका अफेयर ऑफिस की एक एम्प्लॉई के साथ चल रहा है।काफी समझाया ,झगड़े भी हुए लेकिन मनीष ने झूठ बोलकर चोरी छिपे इसे ज़ारी रखा।नम्बर बदल दिया उस कमीनी का और किसी मेल एम्प्लॉई के नाम से फीड कर दिया। कुछ दिन पहले मुझे मालूम हुआ लेकिन मैंने इस बार कुछ नहीं कहा।बस एक फैसला ले लिया और उसे कहा कि वो अफेयर करे या अब खत्म करे,उसकी बलां से।अब वो भी मेरी जिन्दगी में दखलंदाजी नहीं करेगा।”फिर एक घूँट भरने के बाद कहा ..
“जानती हो शालू ,अंजलि ..ये मर्द हमें बेवकूफ समझते हैं।इन्हें लगता है ये हमें कुछ भी कहेंगे और हम इनकी बातों पर यकीन कर लेंगे ! हम रोयेंगे ,गिड़गिड़ाएंगे और बच्चों का वास्ता देंगे।नहीं ..ये रोकर भीख माँगने के दिन बीत गए।अब तो तूँ डाल डाल मैं पात पात का ज़माना आ गया है।”
“यानी हम भी अफ़ेयर करें ? फिर उनमें और हम में क्या फर्क रहा ?”आभा ने सवाल किया।
“नहीं ,अफेयर करना नहीं लेकिन अपने लिये आज़ादी माँगना ही उनके लिए सबसे बड़ी अड़चन है।पतंग को जितनी ढील दोगे ,उतनी ज़्यादा उड़ेगी लेकिन कोई एक पतंग होती है जो उसे काटती भी है।बस पति वो पतंग है जिसे ढील दी गई और हमे वो पतंग बनना है जो उस पतंग को काट दे।मैंने जब से अपनी ज़िंदगी से उसे दखलंदाजी करने से मना किया है ,वो अब परेशान रहने लगा है।मेरी चुप्पी उसे काटने लगी है।ये मर्द लोग न ,अपने वज़ूद के नकारे जाने को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं पाते। हम आगे पीछे हों तभी उनके अहं की संतुष्टि होती है और वही अब उसे मिल नहीं रही।यहाँ आने के लिए मैंने इज़ाज़त नहीं ली ,बस बताया उसे ।तब से अब तक दस बार फोन आ चुके हैं उसके।”
महक ने फोन वाली बात बताई तो शालू का चेहरा लटक गया।उसे अभी तक एक भी फोन नहीं आया था।
“क्या हुआ शालू ..? तूँ अचानक उदास क्यों हो गई ?”अंजलि शालू की ओर मुख़ातिब हुई।
“क्या कहूँ यार ! जब से आई हूँ , मुझे एक फ़ोन या एक मैसज तक नहीं आया जैसे मेरा होना ,न होना किसी के लिए मायने ही नहीं रखता। पूरे परिवार के लिए सारा सिन खटते रहो ,सुबह से रात तक कभी चाय ,कभी ये कभी वो बना कर देते रहो फिर भी कोई खुश नहीं।मेरा दिन रसोई से शुरू और रसोई पर ही खत्म होता है।
ख़ैर अब तो ज़बरदस्ती खुद के लिए समय निकालना शुरू कर दिया है।जानती हो क्यों ..क्योंकि उम्र ने असर दिखाना शुरू किया तो थाइरोइड ,बी ट्वेल्व की कमी की बीमारियों ने घेर लिया। किसी को क्या फर्क पड़ना था सुनकर भी ! कभी मैं रो पड़ती थी कभी थकी निढाल सी,खुद को घसीटते हुए भी काम में लगी रहती।लेकिन बाकी सब सदस्य तठस्थ।पतिदेव ने हमदर्दी के तहत डॉक्टर को दिखा दिया लेकिन हालत जस की तस।इलाज तो ठीक करने के लिए इसलिए करवाया गया ताकि मैं जल्दी से ठीक हो जाऊँ और फिर वही मेरे बदन में वही चुस्ती फुर्ती आ जाये और बाकी सबकी ज़िन्दगी ढर्रे पर आ जाए। मेरे ठीक होने में सबका स्वार्थ छिपा हुआ था ,प्यार नहीं। मेरी बीमारी तन से अधिक मन की थी।तनाव शरीर को खोखला कर देता अगर मैं खुद के लिए स्वंय ही सचेत न होती। एक बात समझ आ गई कि काम तो सारी जिंदगी खत्म न होंगे ,जिंदगी बेशक खत्म हो जाए। तो मैंने भी दिन भर के काम के लिए एक और काम वाली बाई रख ली और खुद पर ध्यान देने के लिए योगा और शाम की सैर आरम्भ कर दी।अब खाने में ज़रा सी देर हो जाये ,सब चला लेते हैं लेकिन मैं अपने लिए कोई कोताही नहीं दिखाती। हमारे शरीर के बदलाव या परेशानियाँ किसी को नहीं दिखती नहीं तो मन के अंदर कोई झाँक कर क्या देखेगा ?”एक लंबी साँस ले ,चेहरे पर दृढ़ता पूर्वक शालू ने महक से कहा..
“महक ..सही कहा था तुमने ! अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है।नहीं किया न सही फ़ोन किसी ने ,पर मैं भी नहीं करूँगी अब।”
अब तक का सारा गुस्सा ,भड़ास आंसुओं के साथ आज निकल गया तो शालू का मन शांत हुआ।
“चलो यार ,ज़िन्दगी यही है ,हम भी वही हैं।उतार चढ़ाव तो आने ही हैं।बस खुद को स्ट्रॉन्ग बनाकर रखना है हमें !”
शालू की इस बात को सुन दो पलों की खामोशी सी छा गई।
“चलो ,लेटस मूव ऑन !अब अंजलि की बारी है बताने सुनाने की।”शालू ने कहा तो सबकी निगाहें अंजलि की तरफ घूम गईं।
“मैं बाद में…पहले आभा जी ..ओह सॉरी ! आभा अब अपना दिल ए बहाल अर्ज़ करेंगी।उसके बाद मैं ..!”
बातों की सुई फिर से आभा की ओर मुड़ गई।वो दवाई ले रही थी।
“अरे ये दवाई किसलिए ?”
“उम्र छुपाने से छुपती नहीं बहनों।ये तो हँसी मज़ाक में कह दिया कि तुम मुझे दीदी मत कहो।पर जो सच है सो सच है।बस उसी उम्र का साइड इफ़ेक्ट है।”
“लो ,आप चार साल बड़ी हैं तो क्या बूढ़ी हों गई अभी से ? इतने तो जवान दिखते हो।वो ऐड है न ‘मेरी उम्र से मेरी त्वचा का पता ही नहीं चलता।”
शालू ने अपने गालों पर हाथ रख कर एक्टिंग करते हुए कहा।
“नहीं यार ! ये त्वचा तो हेरिडिटी है।मेरी माँ की त्वचा आज भी इतना ग्लो करती है अस्सी साल की होकर भी ।आज तक उन्होंने दवाईयों से खुद को दूर रखा।एक मैं हूँ कि ज़िन्दगी दवाइयों के सहारे चल पड़ी है।”आभा ने एक लंबी साँस ली और मुस्कुराने लगी ।
“आप इतना जो मुस्कुरा रही हो ,क्या गम है जो छुपा रही हो !” महक ने गाते हुए आभा से सवाल किया।
“क्या गम बताऊँ ,क्या दर्द दिखाऊँ
ज़िन्दगी एक धोखा है ,कैसे बतलाऊँ !”
आभा ने भी महक की बात का जवाब शायराना अन्दाज़ में दिया।महक ,शालू और अंजलि तीनों ने ताली बजाते हुए खूब वाह वाह की।
“अब तुम्हारीशायरी सुनकर तो तुम्हारे दर्द को जानने की इच्छा और बढ़ गई है। बताओ न !” महक की उत्सुकता बढ़ने लगी थी।
“क्या कहूँ ..कैसे कहूँ ! शालू ने कहा था न कि हमें खुद को खुश करने के लिए ,सही रखने की ज़द्दोज़हद खुद ही करनी पड़ती है।हमीं से जुड़े रिश्ते हमीं से सौ कदम दूर रहते हैं तब लगता है जिंदगी में हम ठगे से गये हैं वो भी हमारे अपनों द्वारा ही।
रोहित और मैं विवाह के इतने वर्षों बाद भी अजनबियों की तरह ही हैं।न मन की केमिस्ट्री मिली और न ही बायलोजिकली एक दूजे के हो पाए।एक खानापूर्ति सी रही रिश्ते में बस वो भी परिवार को बढ़ाने के लिए। आरम्भ से ही रिश्ते में रोहित का एक ठंडापन देख कर मन कोफ्त से भर जाता था।हमारे समाज में आदमी अगर अपने तन की इच्छाओं का प्रदर्शन करे तो उसे तो सहज लिया जाता है और अगर औरत दिखाए तो उस के लिए न जाने क्या क्या अनुमान लगाए जाते हैं।कैरेक्टर सर्टिफिकेट उतार कर हाथ में रख देते हैं।क्या हम औरतों की कोई इच्छाएँ नहीं होती तन मन की ?
आज तुम्हें एक बात बताती हूँ ..अभी मेरी उम्र हो लगभग 48 वर्ष हो गई है।लेकिन आज से आठ नौ साल पहले ,कुछ ऐसा वक़्त आया कि रोहित और मेरे बीच संबंधों में सुधार आया।रोहित अपनी इच्छाओं को ज़ाहिर करना सीख गए थे इतने अरसे की चुप्पी के बाद। रोमांटिक मूड में रहते और जब भी प्रणय निवेदन करते ,मैं इंकार न करके उनकी इस अदा पर न्यौछावर सी हो जाती।उनके प्रेम निवेदन में पूर्ण समर्पण से मेरे बदन में भी एक हरारत सी होती।मेरी चाहत बढ़ती जाती कि रोहित मुझसे भी अपेक्षा रखें कि मैं बताऊँ कि मैं क्या चाहती हूँ।फिर एक दिन मैंने बातों बातों में ज़ाहिर कर दिया और बस…. वो हमारे उस “प्रगाढ़” रिश्ते का अंतिम दिन था।”
“ऐसा क्या हुआ ..?”
तीनों साँस थामे सुन रही थीं कि आभा के रुकने पर शालू ने पूछ लिया।
“जैसे ही मैंने अपनी इच्छा जताई ,रोहित ने पूछा कि क्या मैंने उनकी अनुपस्थिति में ऐसी वैसी फ़िल्म देखी है या’ किसी’ ने कुछ बताया है ? यह ‘किसी ने’ शब्द सुनकर तो मेरे तनबदन में आग लग गई।मैंने उसी पल रोहित से उनके इस ‘किसी’ शब्द का अर्थ पूछा। गुस्से से पूछे गए मेरे प्रश्न से रोहित घबरा गए उनके चेहरे के हाव भाव बदल गए तो बात भी बदलने लगे।कहा कि मेरा मतलब था कि तुम्हारी किसी दोस्त ने कोई हिंट दिया हो, ये मतलब था।फिर मैंने कहा कि “ऐसी वैसी फिल्मों की ज़रूरत तुम्हें है देखने की ,मुझे नहीं।”बस इस बात को अपनी मर्दानगी पर ताना समझ कर उन्होंने मुझसे बात करनी बंद कर दी।”
“यार एक बात बताओ ,क्या मैं गलत थी ? अपनी इच्छाओं के लिए पति से नही कहूँगी तो क्या गैर मर्द के पास जाती ? लोग कहते है “मेन बिकम्स नॉटी एट फोर्टी ” तो क्या औरतें नॉटी नहीं हो सकती ? क्या हमें हक नहीं नॉटी होने का या अपनी ज़िंदगी जीने का ?यह जो आज तुम मुझे अच्छे फिगर का कॉलिमेंट देती हो न ,वो ऐसा नहीं था पहले। वज़न अधिक था तो जिम जाकर पसीना बहाया और खुद को मेंटेन किया। जैसे जैसे वज़न कम हुआ तो सुंदर ,स्टाइलिश कपड़े पहनने लगी।खुद में ही खूबसूरत दिखने की फीलिंग बलवती होने लगी।वो कहते हैं न पहले खुद से प्यार करो ,अपनी कद्र करो तो दुनिया आपकी कद्र करेगी।”
“बस उसके बाद तो मैंने कभी सोचा ही नहीं कि रोहित क्या सोचते हैं ! हमने कुछ गलत किया नहीं तो डर कैसा ? लेकिन अगर हम औरतों में आये बदलाव को पति और बच्चे सहज रूप से न लें तो ये उनकी समस्या है।हर पल केवल उन्हें खुश करने के लिए हम जीना नहीं छोड़ सकते।अगर वो अपनी मानसिकता नहीं बदल सकते तो हम ज़बरदस्ती नहीं बदल सकते।”
“उसे घटना कहो या कुछ भी। उसके बाद अगर मैंने रोहित से कोई अपेक्षा नहीं रखी तो उनकी उम्मीदों के हिसाब से हर पल तैयार रहूँ वो भी नहीं किया।”
“तो जब इतना बदलाव आया ही तो यहाँ आने के लिए झूठ का सहारा क्यों लेना चाहा कि तुम शिमला नहीं तीर्थ स्थान जाने वाली हो?”
“तुम्हारी बात सही है अंजलि।एक पल के लिए मैं कमज़ोर पड़ी थी यह सोचकर कि मेरी हर पल की उपस्थिति के बावज़ूद रोहित ने जिस ‘किसी’ शब्द का जिक्र किया उसने मेरे वज़ूद को छलनी छलनी कर दिया था।उस शब्द के पीछे उनकी क्या मंशा रही होगी ये बात मेरे दिमाग से निकल नहीं रही थी ।ऐसा लगता था कि दूरी बना कर भी उसका शक मेरे दिमाग में घर कर गया है।जब शिमला जाने की बात आई तब यह शब्द फिर खड़ा हो गया कि कहीं …!
लेकिन भला हो शालू का ! इसके इंकार ने मेरे अंदर एक हिम्मत पैदा की।जब मैं गलत नहीं तो झूठ बोलकर क्यों जाऊँ और कब तक ऐसे बेसिर पैर के सवालों से भागती रहूँगी ? दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई और हम अपने अगर मगर से ही नही निकल पाते ।बस वही एक क्षण था जब मैंने रोहित से पूछा नहीं बल्कि अपना फैसला बताया और यकीन मानो उसी दिन ,उसी पल में मुझे उस शब्द किसी से भी छुटकारा मिल गया । एक बोझ सा उतर गया जो मेरा खुद का ही लादा हुआ था।
“तो क्या जीजाजी और आपके बीच अब कुछ भी नहीं …?”शालू ने हैरत से पूछा।
“होगा क्यों नहीं ..! न वो सन्यासी बने न मैं ।रोहित को अपनी गलती का एहसास तो हो ही चुका था लेकिन अब इस में मेरी मर्ज़ी शामिल हो गई थी।मर्ज़ी का मतलब यह नहीं कि आप अपनी मनमानी करने लगो कि आप अपने पार्टनर को दरकिनार करो ,इग्नोर करो। इससे तो समस्याएँ और बढ़ती हैं ।बस इतना एहसास करवा दिया कि अगर वो मेरी तरफ से मेरी इच्छाओं को सहज नहीं ले पाते तो मैं भी उनकी इच्छाओं के लिए “टेकन फ़ॉर गारेण्टेड “नहीं हूँ।अपनी अपनी मर्यादाओं का पालन करते हुए हम अपने रिश्ते को निभा रहे हैं बिना किसी शिकायत के !
लेकिन एक बात का एहसास हुआ कि इस तरह रिश्ता निभाना तो आसान है पर उस में वो उमंग ,वो तरँग गायब ही हो जाती है जो होनी चाहिए।पर ठीक है न ..ऑल इज़ वेल डेट एंड्स वेल !”
“अच्छा है सुकून है अब कि लाइफ नॉर्मल हो रही है।हम ज़िन्दगी में एक बार परीक्षा में फेल हो जायें तो इसका यह मतलब नहीं कि ज़िन्दगी में आगे परीक्षा आएगी ही नहीं।पॉजिटिव रहो और बस इम्तेहान देते जाओ।”
आभा ने अपनी बात एक पॉज़िटिव थॉट के साथ खत्म की।
“अंजलि.. अब तो बच्ची तुम रह गई हो।पानी वानी पी लो सब।हमने तो अब अपनी दर्दनाक कहानियाँ सुना दी।अब तुम्हारी बारी आई।शुरू हो जाओ ।”
“मेरी कहानी दर्दनाक नहीं है।इंटरेस्टिंग है और एक सरप्राइज़ के साथ है।तो सुनो दिल थाम कर …!”
“हाँ बोलो न मनचली अंजलि ..! तुम्हारे खुराफ़ाती दिमाग में क्या चल रहा है ,जल्दी बताओ।”
“बता दूँ ..पर एक वादा करो कि मेरा साथ दोगी।”
“अब हम नहीं साथ देंगे यहाँ तो कौन देगा ?तुम्हारा पति तो बैठा नहीं यहाँ जो मेरी अंजलि जी करता तुम्हारे आगे पीछे डोलता फिरेगा।”महक ने चिढ़ाते हुए कहा।
“वो भी है ..ख़ैर मैं आपको अपने यहाँ आने के प्रयोजन क्या है बता दूँ।वो क्या है न कि मैं तो खास यहाँ अपने स्कूल कॉलेज के ज़माने के एक दोस्त को मिलने आई हूँ।फेसबूक पर अभी पिछले साल ही मिला था।मैंने उसे कहा था कि जब भी कसौली आई तो ज़रूर मिलूँगी।”
“ओ माय गॉड !अंजलि यू आर सच ए बिग लायर ! हमें कहा बोर हो गई हूँ ,एक चेंज चाहिए तन और मन को।ये है तुम्हारा चेंज ?”शालू ने हैरानी से पूछा तो आभा और महक भी अंजलि को हैरत से देखने लगीं।
“यार ,ये तो छुपा रुस्तम निकली।कैसे भोली बनती थी और अब देखो।आभा ,तुम तो ‘किसी ‘शब्द से चिढ़ गई थी ये तो ‘किसी’ को मिलने आ गई है।तुम्हारे पति को तो पक्का मालूम नहीं होगा कि तुम अपने प्रेमी से मिलने आई हो ?”
” महक ! पहली बात तो यह कि वो प्रेमी नहीं दोस्त है ! हम शादी से पहले ही मिले जो मिले कॉलेज में।बस फिर उसके बाद राहें जुदा जुदा और हम गुमशुदा। दूसरी बात, पिछले साल जैसा कि बताया हम फेसबूक पर मिले ,एक दूसरे के परिवार से हाय हेलो भी करवाई गई।निखिल और उसकी पत्नी ने औपचारिक रूप से मिलने को कहा था कि जब कभी यहाँ आना हो ,मिलने ज़रूर आऊँ।बस जब यहाँ आने का तुमने प्लान बनाया तो मैंने भी मोहर लगा दी।अंधा क्या चाहे दो आंखें ..की मानिन्द। घूमना और मिलना दोनों हो जाएगा।”
“पतिदेव को मालूम है कि तुम्हारे यहाँ आने का मकसद क्या है या उसे अंधेरे में रखा है ?”
“नहीं ,अंधेरे में क्यों रखती ,महक ! उसने आने से पहले पूछा भी कि निखिल और उसके परिवार से मिलोगी या नहीं ।हालांकि उस समय मैंने कहा कि पक्का मालूम नहीं ।वक़्त मिला तो ! लेकिन सच कहूँ कि वक़्त तो मैं कैसे भी निकाल लेती।अगर मैं योगेश को बोल देती कि हाँ ! तो शायद वो ऊपरी तौर से हाँ में हाँ मिला देता लेकिन अब तक उसके सौ फ़ोन आ चुके होते ।मेरी ख़ैरियत नहीं अपनी इनसिक्योरिटी की वजह से और मैं यही नहीं चाहती थी ।”
अंजलि ने मानो अपने दिल का राज़ खोला जिससे सब अंजान थीं।
“पर क्यों है वो इनसिक्योर ? तुम्हारे आगे पीछे घूमने वाला पति ,प्यार करने वाला पति है । तुम भी उतना ही प्रेम करती हो फिर ये निगोड़ी इनसिक्योरिटी कहाँ से आ गई।कोई हीन भावना का शिकार है क्या योगेश ?”
” शालू ..लेट मी टेल यू वन थिंग कि हर आगे पीछे घूमने वाला पति प्रेमी नहीं हो सकता।”
“तो कौन होता है डियर ये भी बता दे।”
“झंडू बाम होते हैं..!”खीजकर अंजलि ने जवाब दिया।
“अरे ,यार तूँ ही तो पति को डिफाइन कर रही है।हम तो तेरी ही डेफिनेशन पूछ रहे हैं पति की।”महक ने उखड़ते हुए कहा।
“चेपु होते हैं यार ! मैंने हमेशा एक दिलफेंक और जिंदादिल इंसान की कल्पना की थी अपने पति के रूप में। पर मुझे पति तो मिला बस आज्ञाकारी सा।मेरी इच्छा होती कि वह मुझे डाँट दे ,गुस्सा हो और मैं उसे मनाऊँ तो वो नखरे दिखाए या मैं नखरे दिखाऊँ तो वो मुझे मनाए।मुझे तन मन से इशारों ही इशारों में बस घायल कर दे पर यहाँ तो गाड़ी ही उल्टी चलती है । पर रूठता तो ये बन्दा है नहीं और मुझे रूठने का या तो मौका नहीं मिलता या फिर कभी गुस्सा हो जाऊँ तो सारा काम धाम छोड़कर घर बैठ जाएगा और आगे पीछे घूमता जाएगा ।मैं इर्रिटेट होती हूँ बस इस रवैय्ये से।”
“कितनी लकी हो यार ! पति गुलाम बना फिरता है और तुम हो कि कद्र नहीं करती।काश मुझे मिला होता ऐसा पति।”
“दूसरों की थाली में हमेशा अधिक ही दिखता है।जिस तन लागे सो तन जाने मैडम महक जी।”
“अब तुम दोनों लड़ मत पड़ना कहीं।बताओ अंजलि क्या करना है अब ? क्या तुम मिलने जाना चाहती हो उससे ?”
आभा ने महक और अंजलि के बीच बहस को खत्म करने हेतू बात बदलने का प्रयास किया।
“मुझे एक बार निखिल से मिलना है फ़िलहाल तो ।”
“बस एक आखिरी बात का जवाब दो, अंजलि ..! कहीं तुम योगेश की आड़ में खुद से तो नहीं लड़ रही हो ?कहीं उसकी नेचर से दुखी होकर ,खुद ही स्पेस लेने की कोशिश तो नहीं कर रही ?”
आभा ने अंजलि के चेहरे को पढ़ कर बड़ी संजीदगी से पूछा।
“हाँ ..शायद तुम सही रही हो। स्पेस तो चाहिए मुझे ! जब योगेश से मिली नहीं तो मैंने जानबूझ कर निखिल को हमारे रिश्ते में आने दिया। ताकि योगेश चिढ़ जाए ,मुझसे थोड़ा दूरी बना ले और मैं अपनी स्पेस एन्जॉय करूँ।”
“बेवकूफ़ लड़की ..जानती हो ऐसे करने से तुम्हें कितना नुकसान होता ?अंगारों पर चल पड़ी हो और अब अपना बचाव कैसे करोगी?”
“मैं कौन सा निखिल से अफ़ेयर करने वाली हूँ? बस अपनी ज़िंदगी में एक एक्सम्पेरिमेंट करने वाली थी कि शायद योगेश चिढ़ कर ही आगे पीछे घूमना बंद कर दे।”
आभा ,शालू और महक को सुनकर झटका से लगा।फिर भी आभा ही थी कि उम्र के अनुभव के तहत उसे समझा सकती थी।
“देखो अंजलि ! ज़िन्दगी को एक्सपेरिमेंट समझ कर न आज़माओ। योगेश की कमियाँ जो तुम गिनवा रही हो वो कमियाँ है ही नहीं।सबका अपना अपना स्वभाव होता है।वैसे भी हर किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता।अगर निखिल से तुम केवल दोस्त बनकर मिलना चाहती हो तो ठीक है ,गो अहेड।पर लाइफ को रिस्क मोड पर लाकर नहीं।
“ठीक है ,मिल तो लूँ अब इतनी दूर आई हूँ तो।तुम कहती हो कि रिस्क न लूँ तो योगेश को नहीं बताऊँगी कि मैं निखिल से मिली ।अब ये ठीक रहेगा न ?”
“तुम समझना नहीं चाहती या समझ कर भी अंजान बनने का नाटक कर रही हो ,नहीं जानती।तुम्हारी मर्ज़ी।तुम मिल लो उससे ..तब तक हम शॉपिंग कर लेंगे।”महक ने कहा।
“अकेले नहीं जाऊँगी उससे मिलने ..! आभा साथ चलेगी।मेरी इच्छा मिलने की है वो तो मिलूँगी ही पर अकेले नहीं।तुम और शालू शॉपिंग करो।।मैं और आभा मिल लेते हैं।”
“ओ के।तो अपने दोस्त को फ़ोन मिला और टाइम ले लो ताकि यहाँ से इकट्ठे ही निकलें।”
“यस ! ग्रेट आईडिया शालू।”
कहकर अंजलि ने निखिल का नम्बर तीन चार बार मिलाया।लेकिन नो रिप्लाई आया।मन मसोस कर अंजलि भी सबके साथ शॉपिंग पर चल दी।रह रहकर अंजलि का ध्यान फ़ोन पर जा रहा था कि शायद निखिल ही कॉल बेक कर ले।लेकिन उस दिन निखिल का फ़ोन नहीं आया बल्कि अगले दिन भी शाम को निखिल ने फोन किया।
“हाय ! कहाँ थे निखिल तुम ? कल कितने फ़ोन किये और तुम आज बात कर रहे हो ? डेट्स नॉट फेयर !” अंजलि ने शिकायत भरे लहज़े से पूछा।
“क्या करूँ यार ! कल मेरे ससुराल वाले आये हुए थे।उन्हें यहाँ घूमना था तो सबके साथ था ।मेरा फोन साइलेंट पर था।आज देखा।”
“झूठ मत बोलो ! सायलेंट फ़ोन नहीं तुम थे।बीवी के साथ थे तो क्या दोस्त का फ़ोन भी नहीं पिक कर सकते थे ?”
“अब यार ! तुम सब समझती हो फिर भी ऐसी बातें कर रही हो।हमारे पार्टनर्स जैसे भी हैं निभाना तो पड़ता ही है न ! डेट्स कॉलड मैरिड लाइफ।” निखिल ने हँसते हँसते अपना एक्सक्यूज़ दे दिया।
“कल मिल पाओगे क्या सुबह .? फिर रात तो हमारी वापिसी है।” निखिल की बातें सुनकर अंजलि ने बुझे मन से ही पूछा।
“नॉट श्योर ! आई विल ट्राय।” दो दिन पहले ही ऑफिस की छुट्टी हो गई।सो कल जाना भी ज़रूरी है।”निखिल ने बहाना बनाया या सच लेकिन अंजलि का चेहरा लटक गया।ओ के कहकर उसने फ़ोन कट कर दिया।
निखिल की आवाज़ सुनाने के लिए अंजलि ने मोबाईल स्पीकर पर रखा था।अब किसी से छुपाने की तो किंचित मात्र भी गुंजाइश नहीं थी कि निखिल क्या चाहता था।
थोड़ी देर तक चारों सखियों के बीच माहौल में उदासी सी छाई रही।
“चलो यार ! आशिक़ी तो हमें सूट की नहीं।अब बाकी की जगह तो घूम लें वरना ये मौका फिर नहीं मिलेगा।मैं भी स्टुपिड हूँ इतनी तुम सब की अच्छी कम्पनी छोड़ उस निखिल को मिलने चली थी।”
“पर ,बिना मिले रह लोगी क्या ? मन में कसक तो नहीं रह जाएगी कि एक बार मिल लेती।”आभा ने अंजलि को गौर से देखते हुए कहा।
“कैसी कसक आभा ! जिस बात से मैं भाग रही थी वही निखिल में भी दिखी मुझे।”
“वो क्या …?” तीनों ने एक ही स्वर में पूछा।
“कि वो भी बीवी के गुलाम है।फ़ोन साइलेंट था या नहीं ,उसने तो बीवी से डरकर ही कॉल नहीं की मुझे और मिलने से इनकार भी कर दिया।अब झूठ है या सच ,जो दिखा वो तो यही है न।”
“समझदार हो गई ..इतनी जल्दी ?”महक ने फिर चिढ़ाया।
“हाँ यार ! ज़िन्दगी की ठोकरें समझदार बना ही देती हैं।”
दार्शनिक अन्दाज़ में अंजलि ने कहा।
“ठोकरें और आजकल के छोकरे भी !”शालू ने कहा और चारों की हँसी से माहौल खुशनुमा हो गया।
उस शाम चारों ने मिलकर शॉपिंग के साथ खूब मस्ती की।चारों के चेहरों की खुशी यह बता रही थी कि ज़िन्दगी में यह वक़्त दुबारा आये या आए ,इन हसीं पलों को ही सहेज कर अपने साथ ले जा रहीं हैं।आभा को एक दो बार जरूर लगा कि अंजलि कहीं खोई सी है पर उससे पूछना भी नहीं चाहती थी। जब अपनों के बीच रहते हुए ज़िन्दगी की पुरानी कड़वाहटों को वक्त के साथ भूल जाते हैं तो यह तो दो पल की कड़वाहट है वो भी किसी गैर इंसान की दी हुई है , वक़्त अपने आप भुला ही देगा।
अगले दिन सुबह नाश्ता कर एक दो मंदिर देख कर लौटीं और आकर सब पैकिंग करने लगीं।जाने से करीब आधे घन्टे पहले निखिल का फ़ोन आया।
“अंजलि..देख न ! निखिल का फोन आया है।शायद दिल माना नहीं होगा।मिलना चाहता होगा।फ़ोन पिक तो कर ..!”
महक ने खुशी से कहा लेकिन अंजलि ने फ़ोन स्विच ऑफ कर दिया।
“अरे ..! बन्द क्यों कर दिया ।एक बार बात तो कर।”
” महक ..! अंजलि एहसानों पर नहीं जी सकती।उसने जान बूझकर आधा घण्टा पहले फ़ोन किया ताकि वो खुद को साबित कर सके कि उसने मिलने का प्रयास किया था पर वक़्त नहीं था।बेवकूफ नहीं हूँ …! भाड़ में जाए अब वो या फिर अपनी बीवी की गोद में बैठा रहे।मुझे मेरा योगेश ही सही है।बेचारे अपने पति को कितना टॉर्चर किया मैंने।”मुस्कुराते हुए अंजलि अपने कपड़े बैग में भरती जा रही थी।
“देर आए दुरुस्त आए ..!”आभा ने कहा और अंजलि ,महक और शालू कुछ पलों के बाद बस में बैठी गुनगुना रहीं थीं और बार बार एक दूसरे को देख किसी न किसी बात पर हँस देती थीं।
बेचारे अगल बगल की सीटों वाले समझ नहीं पा रहे थे कि ये “वोमेनिया “आखिर कर क्या रही हैं।लब तो हिल नहीं रहे थे फिर किस बात पर इतना हँस रही हैं एक दूजे को देखकर ?अब किसी ने उनके दिल में कहाँ झाँककर देखा कि ये चारों “वोमेनिया”आज कितनी खुश हैं !
वैसे एक बात कह दें कि आँखों में उतरो या दिल में … “वोमेनिया “को कोई समझ भी नहीं सकता। यह एक सबसे बड़ा सच है।समझ जाओ बस !!
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कविताएं
चल यार कुछ बिगड़ते हैं
चल यार कुछ नया सा करते हैं
चल यार कुछ नया से करते हैं ..!
हम भी कुछ देर मर्दो की राह चलते हैं
कुछ बिगड़ते है ,कुछ हंगामा करते हैं
कुछ पल की मस्ती, कुछ धमाल करते हैं
ग़म भुला के दिल को जवान करते हैं
गाड़ी निकाल क्लच पर पंजा दबा
हनी सिंह के गाने लगा
लौंग ड्राईव पे जाकर हो हल्ला करते है
और सुन …
चल समंदर में कुछ फ़िश पकड़ते हैं
चल यार आज कुछ बिगड़ते हैं..!
आँखों पे रेबेन का गॉगल्स लगा
अरमानी की टाइट जीन्स पहन
नए मौलों में शौपिंग करते हैं
कौन कहता है मर्दों की मौज सारी
जहाँ निकाल ले अपनी सवारी
बता हम किसी से डरते है
और सुन..
निकाल ताश की गड्डी एक
चल फ्लेश खुल के खेलते है
चल यार आज कुछ बिगड़ते हैं..!
थोड़ा बहक लेंकुछ चहक लें
नमकीन,कुक्कड़ ते टंगड़ी मंगवा
अदा से कहें “सुन सम्पत चल दारू ला”
और सुन..
एक दो घूँट भी गले उड़ेलते है
कोई देखकर बोले तो सही
आज बिगड़े मर्दो को परे धकेले हम
चल यार कुछ बिगड़ते हैं….
यह रोज रोज की झिकझिक से निकल
खुद को ही समझाते हैं
कब तक उलझे रहे थोड़ी
ज़िम्मेदारियों से हम निकलते है
कभी तो जी ले ख़ुशी का समंदर
और सुन …
आज सर्फिंग कर हर लहर चढ़ते हैं
चल यार कुछ बिगड़ते हैं..!
ज़िन्दगी की हर अदा सीखें हम
दुख की हर बात भूल जाएँ हम
कब तक मायूस हो कर जीते रहें कर लें मस्ती हर ग़म को भुलाएँ हम
और सुन…
आज सब दुख को किनारे करते हैं चल मिलके आज फिर बिगड़ते हैं
चल यार कुछ बिगड़ते हैं
चल यार कुछ बिगड़ते हैं….।
रश्मि तरीका,
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