लीना मल्होत्रा
दो कविता संग्रह प्रकाशित
मेरी यात्रा का ज़रूरी सामान 2012 बोधि प्रकाशन, जयपुर
2 नाव डूबने से नहीं डरती 2016 किताब घर दिल्ली
रंगमंच अभिनय से जुड़ी रही। फ़िल्म लेखन , निर्माण में गहरी रुचि।
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कविताएं
स्त्री
वह अपना हक़ माँग रही थी
वह अपने अधनंगे फूले पेट वाले बच्चे को उठाये
मेरी कविता की पंक्तियों में चली आई
और भूख के बिम्ब की तरह बैठ गई
मैं जब भी कविता खोलती
उसके आज़ू बाज़ू में बैठे शब्द मक्खियों की तरह उस पर भिनभिनाने लगते
जिन्हें हाथ हिलाकर वह यदा कदा उड़ा देती।
उस निर्जन कविता में
उसकी दृष्टि
हमारी नाकामी का शोर रचती
जिससे मैं दूर भाग जाना चाहती
किन्तु अफ़सोस कविता गाड़ी नहीं थी जिसके शीशे चढ़ाकर
उसे मेरी दुनिया से बेदख़ल किया जा सकता।
वह आ गई थी
और अपना हक़ मांग रही थी।
हम चोरी जितने अवैध थे
तुम्हें अच्छी लगती हैं
तुम्हें अच्छी लगती हैं
वे जो चुप हैं
और अपने ख़ाली वजूद के पात्र को भरती रहती है घर के सामान से
उनके आँसुओं के इतिहास अपनी ही नमी से गल चुके हैं
अभी अभी समाप्त युद्ध के मैदान से उनके सपाट चेहरों के नीचे छुपाये मिटाये गए
अगर कभी कोई निशान तुम ढूंढ पाए तो वह यह कर टाल देंगी
कि वह पिछले जन्म के स्मृति चिन्ह हैं जो जन्मजात हैं
दादी कहती थी ऐसे निशान और तिल पूर्व जन्म में रही महारानियों को मिलते है
कि कभी उन्होंने भी ज़ुल्म किये होंगे
जबकि वह जानती है
कि सत्ता सिर्फ़ राजनीतिक शग़ल नहीं है
सबसे संहारक युद्ध प्रेम के मैदान में लड़े जाते हैं
वे निर्विकार देखती हैं
प्रलयकारी महानद से उल्टी नाव से उबरते शब्दों को
अर्थ डूब गए जिनमें अपने वज़न की वजह से
वह उन डूब गए अर्थों के शोक में चुप हैं
ये तुम्हारी अनुपस्थिति का अँधेरा है या रात
नदी में धक्का नही दिया
न रेल की पटरी पर ही
किसी पर्वत पर जाकर खाई में नहीं धकेल दिया तुम्हें
तुम्हारा हाथ पकड़ा और एक ऐप में घुस गई
जहां तुम अभी खेलने को तैयार भी न थे कि तुम्हें गोली मार दी
इस तरह प्रेम में हुई हिंसा का बदला
चुकाया मैंने खेल में हिंसा से
स्त्री थी
इतना ही कर सकती थी।
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