डॉ वंदना मिश्रा ,एसोसिएट प्रोफेसर G.D. बिनानी P. G कॉलेज मिर्ज़ापुर
दो कविता संग्रह और तीन गद्य पुस्तके प्रकाशित
विभिन्न पुस्तकों में अध्याय लेखन
दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से
कविताएं प्रसारित
Www. pahlibar blogspot और sitab diyara blogspot पर कविताएं प्रकाशित
*कुछ कविताएं बांग्ला ,मराठी ,पंजाबी भोजपुरी एवं अंग्रेज़ी भाषा में अनुदित
*कविता संग्रह:’कुछ सुनती ही नहीं लड़की ,’तथा ‘कितना जानती है स्त्री अपने बारे में ‘
……………………….
किताबें
……………………….
कविताएं
मुझे पता ही नहीं
मुझे पता ही नहीं
तुम कैसे आ गये
मेरे जीवन में
एक शीतल हवा के झोंके की तरह ।
छीजती ,शख्सियत थी
टूट रही थी ,
भीतर भीतर,
तुमने प्रेम नहीं किया ,
मैंने भी प्रेम नहीं किया ।
जीवन जीने का साहस दिया
तुमने ,
किताबों से प्यार करना सिखाया ,
और उन किताबों के सहारे लौट आई
मैं इस दुनिया में ।
दृष्टि दी तुमने
कभी प्रेम नहीं कहा
किया भी नहीं ,
पर दुआ है कि
हर लड़की को मिले ,ऐसा ही प्रेम
कि
जिसने ,
सिखाया , फूलों के प्यार में भी
जान दी जा सकती है ।
वह दुबली सी लड़की
सच बताओ क्या तुम्हें कभी याद आती है ?
वह कच्चे नारियल सी दूधिया हँसी की
उजास बिखेरने वाली लड़की
जिसके कम लंबे बालों की घनी छांव में
बैठने की कल्पना कर
उसे चिढ़ाते थे तुम
इतना कि ,
हँसते -हँसते आँसुओ से भर जाए
आँखें उसकी
या जिसकी आँसू भरी आँखें तुम्हें देखते ही
खिल उठती थी ।
जिसे प्यार व्यार जैसा कुछ कहकर
भरमाए रहते थे तुम
और जानते हुए भी कि झूठे हो तुम
तुम्हारे हर झूठ पर
आश्चर्य करती थी जो ।
जिसे देख तुम्हारी आंखों में
अनोखी चमक आ जाती थी
और बड़ी मासूम लगती थी
जिसे तुम्हारी वह चमक ।
जो सिर्फ तुम्हारी डांट के लिए करती रही गलतियाँ
और कर बैठी ,
तुमसे जुड़ने की अक्षम्य गलती
सच बताओ कभी याद आती है तुम्हें !
वह दुबली सी लड़की ?
उस क्षण कैसे लगते हो
खुद की नजर में तुम !
योगदान
हर सफल पुरुष के पीछे होती है
एक स्त्री
और हर सफल स्त्री के आगे – आगे,
चलते हैं कई पुरुष ।
अपने योगदान का
डंका पीटते हुए
उस स्त्री का रास्ता रोकते हुए।
उसे भाषा से
लहूलुहान करते हुए,
और उसके सफल हो जाने पर ।
चरित्र से ख़ारिज करते हुए,
हल्की बताते हुए ।
कुछ बेरोजगार लड़के
कुछ बेरोजगार लड़के न हों तो
सूनी रह जाये गलियाँ
बिना फुलझड़ियों के रह जाये दीवाली
बिना रंगों के रह जाये होली
बेरौनक रह जाये सड़के
त्यौहारों का पता न चल पाए
बिना इनके हुडदंग के
मंदिर सूने रह जायें
बिना श्रृंगार के
यदि ये चंदा न उगाहे
फूँके ट्रांसफार्मर बहुत दिनों तक न बने
यदि ये नारे न लगायें
धरने,प्रदर्शन,तमाशों के लिए हमेशा
हाज़िर रहती है इनकी जमात
हम बड़े खुश होते हैं
जब हमारी सुविधाओं के लिए
ये नारे लगाते हैं
या पत्थर फेकते हैं
पर सामने पड़ते ही बिदक
जाता है हमारा अभिजात्य
हम इन्हें मुँह नहीं लगाते
इनकी खिलखिलाहट खिजाती है हमें
हम बन्द कर लेते हैं खिड़कियाँ दरवाजे इनकी आवाज़ सुनकर
अजीब तरह से ताली बजाकर
हँसते हैं
नुक्कड़ पर खड़ा देख कर कोसते हैं हम
लफंगा समझते हैं हम इन्हें
और ये हमें
स्वार्थी समझते हैं
सचमुच हम चाहते हैं
ये नज़र न आये
हमें बिना काम
पर इन्हें कहीं खड़ा रहने की जगह
नहीं दे पा रहे हैं
हम या हमारी सरकार।
"तुम्हारा नाम मेरी प्रेमिका से क्यूँ मिलता हैं"?
आँखों में आँसू, रुआँसा चेहरा
सामने बैठा, एक पूर्ण पुरुष
बच्चों सी कोमलता लाता है
आवाज़ में,
भीग जाती है ,लड़की उसके सच से
धीमी,रूकती, सन्तुलित, लड़खड़ाती आवाज़ में कहना
शुरू करता है
पुरुष
कहने को
मैं शादी शुदा हूँ
हाँ , दो बच्चों का बाप भी
पत्नी से ठीक ठाक सम्बन्ध
भी है
साथ दिया है उसने हर समय
सब तरह से
खुश दिखता हूँ ,न ?
पर क्या करूँ तुम्हारी आवाज़ का
जो सोने नहीं देती रातों को
मुझे,
क्या करूँ ,तुम्हारे नाम का
जो मेरे पहले प्यार से मिलता है
सोचो जब पुकारूंगा तुम्हे
तो लगेगा कि पुकार
रहा हूँ
मैं अपने बिछड़े प्यार को
यदि कहूँगा कि मैं प्यार करता हूँ ,
इस नाम को तो
पत्नी भी शक नहीं करेगी
हाँ ,पता है उसे,
जी ,लूँगा थोड़ा
और तुम्हारी
बन्द आँखे तो
बिलकुल उसके जैसी
बन्द कर लेती है
लड़की अपनी
आँखे
उफ ,बेचैन हो जाता हूँ ।
सिर को झटका देता है एक भरा पूरा आदमी
लड़कों की तरह
खुद को बीस साल पहले वाला
महसूस कर रहा हूँ
बोलों ?
छीन लोगी
यह अहसास
उस प्रेमिका ने छोड़ दिया,
पर कोई मजबूरी
होगीं उसकी
न,न
उसे बुरा न कहो
दिल दुखता है
मेरा ।
क्या लगता नहीं कि
ईश्वर लौटाना
चाहता है
मेरा प्यार
तुम्हारे रूप मे
क्या लौकिक
लगता है
ये सब ?
अहसास से भर जाती आँखे
“जग ने छीना मुझसे “वाले अंदाज
में
याचक की तरह देखता
है
और लड़की आँखें बंद कर
कूद जाती है
अंधे कुएँ में
बदल लेती है
खुद को
बस ,
प्रेमिका का नाम
बदलता रहता है
पुरुष ।
……………………….