स्त्री दर्पण मुंबई की प्रसिद्ध कवयित्री अनुराधा सिंह को 15 वें शीला सिद्धांतकर स्मृति पुरस्कार मिलने पर बधाई देता है। अनुराधा सिंह ने अपने पहले कविता संग्रह” ईश्वर नहीं नींद चाहिए” के आधार पर समकालीन हिंदी कविता में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है। वह एक कुशल अनुवादक भी हैं और उन्होंने कई महत्वपूर्ण विदेशी कवियों की कविताओं के अनुवाद भी किए हैं। आज गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया।इस अवसर पर कुछ तसवीरें भी यहां दी जा रहीं हैं।
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हिंदी की चर्चित कवयित्री अनुराधा सिंह को आज यहां प्रतिष्ठित शीला सिद्धान्तकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
गांधी शांति प्रतिष्ठान सभागार में आयोजित एक गरिमामय समारोह में हिंदी की वरिष्ठ कवयित्री एवम स्त्रीविमर्शकार सविता सिंह और भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक एवम प्रसिद्ध लेखक लीलाधर मंडलोई ने श्रीमती सिंह को यह पुरस्कार प्रदान किया। पुरस्कार में पंद्रह हजार रुपये की राशि ,एक प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिन्ह शामिल है।
गौरतलब है कि प्रख्यात आलोचक डॉक्टर नित्यानंद तिवारी की अध्यक्षतावाली समिति ने श्रीमती अनुराधा सिंह के कविता संग्रह” ईश्वर नहीं नींद चाहिए “को 15 वें शीला सिद्धान्तकर स्मृतिपुरस्कार के लिए चुना था लेकिन कोविड के कारण 2019 में यह पुरस्कार नहीं दिया जा सका।करीब 3 साल के बाद अनुराधा सिंह को यह पुरस्कार दिया गया।पिछला पुरस्कार सुधा उपाध्याय को दिया गया।
अब तक नीलेश रघुवंशी, मंजरी दुबे रजनी अनुरागी, तब्बसुम जहां सोनी पांडेय आदि को यह पुरस्कार दिया जा चुका है।चयन समिति में नित्यानंद तिवारी, लीलाधर मंडलोई अनामिका और शिवमंगल सिद्धान्तकर शामिल हैं।
समारोह की अध्यक्ष सविता सिंह मुख्य अतिथि लीलाधर मंडलोई और मुख्य वक्ता संजीव कुमार ने अनुराधा सिंह की कविताओं पर अपने विचार व्यक्त किये और समकालीन हिन्दी कविता में एक नए स्वर के रूप में रेखांकित किया।
चयन समिति के सचिव रवींद्र के दास ने प्रशस्ति वाचन किया जिसमें अनुराधा सिंह को प्रगतिशील और संवेदनशील बताया गया और कहा गया कि वह शीला जी की परंपरा की कवयित्री हैं।
5 अप्रैल 1944 को कानपुर में जन्मी शीला जी एक प्रतिबद्ध कवयित्री थी और जनसंस्कृति मंच से भी जुड़ी थी।वह कैंसर से लड़ते हुए 25 अप्रैल 2005को हमसब से विदा हो गयीं।