Wednesday, December 4, 2024
डॉ. विजय शर्मा, पीएच. डी
 
समालोचक, सिनेमा विशेषज्ञ, विश्व साहित्य अध्येता                                             
 
§  पूर्व एसोशिएट प्रोफ़ेसर, लॉयला कॉलेज ऑफ़ एडुकेशन, जमशेदपुर
 
§  पूर्व विजिटिंग प्रोफ़ेसर, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी तथा एकेडमिक स्टाफ़ कॉलेज, राँची
 
§  देश के विविध स्थानों पर अनेक सेमीनार एवं कार्यशाला आयोजित
 
§  सेमीनार में शोध-पत्र प्रस्तुति
 
§  कई हिन्दी और इंग्लिश पत्रिकाओं में सह-संपादन
 
§  अतिथि संपादन ‘कथादेश’ दो अंक
 
§  ‘हिंदी साहित्य ज्ञानकोश’ में सहयोग
 
§  प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, आलेख, पुस्तक-समीक्षा, फ़िल्म-समीक्षा, अनुवाद प्रकाशित
 
§  आकाशवाणी से पुस्तक-फ़िल्म समीक्षा, कहानियाँ, रूपक तथा वार्ता प्रसारित
 
§  5वें चलचित्रम् नेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल जूरी में शामिल
 
§  11 वर्षों से साहित्य, सिनेमा, कला संस्था ‘सृजन संवाद’ का संचालन
 
§  प्रकाशित पुस्तकें: अपनी धरती, अपना आकाश: नोबेल के मंच से (द्वितीय संस्करण); वॉल्ट डिज़्नी: ऐनीमेशन का बादशाह; अफ़्रो-अमेरिकन साहित्य: स्त्री स्वर; स्त्री, साहित्य और नोबेल पुरस्कार (द्वितीय संस्करण); विश्व सिनेमा: कुछ अनमोल रत्न; सात समुंदर पार से… (प्रवासी साहित्य विश्लेषण); देवदार के तुंग शिखर से; हिंसा, तमस एवं अन्य साहित्यिक आलेख; क्षितिज के उस पार से; स्त्री, साहित्य और विश्व सिनेमा; बलात्कार, समलैंगिकता एवं अन्य साहित्यिक आलेख; सिनेमा और साहित्य: नाज़ी यातना शिविरों की त्रासद गाथा; तीसमार खाँ (कहानी संग्रह); विश्व सिनेमा में स्त्री (संपादन); नोबेल पुरस्कार: एशियाई संदर्भ; वर्जित संबंध: नोबेल साहित्य में; मृत्यु: विश्व साहित्य की एक यात्रा; कथा मंजूषा; विश्व की श्रेष्ठ 25 कहानियाँ (अनुवाद); लौह शिकारी (अनुवाद) महान बैले नृत्यांगनाएँ (अनुवाद); ऋतुपर्ण घोष: पोर्ट्रेट ऑफ़ ए डॉयरेक्टर (ई-बुक); ऑर्सन वेल्स: निर्देशन की जिद, काँटों का ताज (ई-बुक); सत्यजित राय का अपूर्व संसार भाग 1-2  (किंडल, ई-बुक उपलब्ध, मई 2022 में मुद्रित पुस्तक का प्रकाशन), सिनेमैटिक चिंतन (ई-बुक)
 
§  दो पाण्डुलिपि प्रकाशनाधीन
 
सम्पर्क: डॉ. विजय शर्मा
 
9-10, 326 न्यू सीताराम डेरा, एग्रिको, जमशेदपुर 831009
 
फोन: 8789001919 ईमेल: [email protected]
………………………..

लेख

ऑड्री लॉर्ड: निर्भीकता की पर्याय
डॉ. विजय शर्मा
दर्द एक घटना है, एक अनुभव है जिसे पहचाना जाना चाहिए, जिसे नाम दिया जाना चाहिए। जिस अनुभव का किसी-न-किसी तरह के परिवर्तन के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। जिसे किसी अन्य बात में परिवर्तित किया जाना चाहिए। दर्द को शक्ति, ज्ञान या कार्य रूपांतरित किया जाना चाहिए। जब मैं दु:ख से उसे बिना पहचाने गुजरती हूँ तब मैं उसके उपयोग से, उसकी शक्ति से खुद को वंचित करती हूँ। उस शक्ति से वंचित रहती हूँ जो ईंधन के रूप में कोई आंदोलन प्रारंभ कर सकता है। ऐसा कहने वाली ऑड्री लॉर्ड ने जिंदगी में खूब दु:ख पाए मगर उन दु;खों को पहचाना, उन्हें नाम दिया और उसे अपने ज्ञान, अपनी शक्ति और अपने कार्य में रूपांतरित किया।
लॉर्ड अपने भाषणों, अपनी किताबों में जीवन के तमाम सूत्र थमाती चलती हैं। जैसे कि एक स्थान पर वे कहती हैं, दूसरे का प्रेम ग्रहण करने अथवा दूसरे को प्रेम करने से पहले मुझे खुद को प्रेम करना सीखना होगा। एक अन्य स्थान पर वे लिखती हैं कि बिना इस बात को जाने कि क्या सृजित होगा हमें एक-दूसरे की सृजनात्मकता को अवश्य पहचानना चाहिए और उसका पोषण भी करना चाहिए। वे कहती हैं कि कविता करना, खासकर स्त्री के लिए कविता करना कोई ऐय्याशी नहीं है। यह उसके अस्तित्व की एक बहुत महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
लॉर्ड बड़े गर्व और निर्भीकता से स्वयं को एक स्त्री, एक अश्वेत स्त्री, एक नारीवादी, एक कवयित्री, दो बच्चों की माँ, सक्रिय कार्यकर्ता और एक समलैंगी घोषित करती हैं। और वह यह सब वास्तव में थी भी। आज किसी स्त्री द्वारा कही इस तरह की बातें भले ही हमें न चौंकाती हों लेकिन कुछ दशक पहले तक किसी भी देश में यहाँ तक कि अमेरिका में भी किसी स्त्री का ऐसी घोषणा करना बहुत साहस की बात थी। जिस काल में वह यह कह रही थी और डंके की चोट पर कह रही थी, वह अमेरिका का ऐसा समय और समाज था जहाँ सबसे ऊपर श्वेत पुरुष थे, उसके बाद श्वेत स्त्रियों का नंबर आता था, तीसरे स्थान पर अश्वेत पुरुष थे और सबसे निचले पायदान पर थी अश्वेत स्त्री। जी, हाँ। लॉर्ड का जीवन काल 1934 से 1992 तक है। इस काल में अमेरिका में भले ही कानूनन दास प्रथा समाप्त हो गई थी लेकिन समाज का नजरिया अश्वेतों के प्रति बहुत नहीं बदला था। अभी भी वे कुछ खास कामों के लिए ही योग्य माने जा रहे थे। लॉर्ड ने स्त्री, अश्वेत स्त्री, नस्लवाद, लैंगिक भेदभाव, समलैंगी होने, समाज की मुख्य धारा से हट कर जीने का फ़ल भोगा था। वे नस्लवाद की परिभाषा देते हुए कहती हैं कि नस्लवाद एक नस्ल की अन्य सब नस्लों से सर्वोच्चता की विरासत में विश्वास है और इस कारण शोषण के अधिकार का विश्वास है। इसी प्रकार उनके अनुसार लिंगवाद भी एक लिंग की दूसरे लिंग पर उच्चता की विरासत में विश्वास है और दूसरे के शोषण-दमन के अधिकार में विश्वास है।
तीन बहनों में सबसे छोटी ऑड्री जेराल्डीन का जन्म 1934 में न्यू यॉर्क में हुआ था। उनकी माँ का नाम लिंडा बेल्मर लॉर्ड तथा पिता का नाम फ़्रेडरिक बायरन लॉर्ड था। उनके माता-पिता वेस्ट इंडीज से आए थे। उनके लिए अमेरिकी नस्लवाद अश्वेतों को तोड़ने वाली सच्चाई थी। जिसका बड़े जीवट के साथ वे सामना कर रहे थे। बच्ची अपनी माँ से करैबियन टापू ग्रेनाडा के विषय में सुनती आ रही थी। बहुत बाद में उन्हें वहाँ जाने का अवसर मिला वह उनके लिए उनकी कल्पना में सच के निजी स्वर्ग की तरह था। उनके बचपन का अमेरिका मंदी की चपेट में था। बचपन से उनकी आँखें खराब थीं इस कारण उन्हें बहुत कष्ट झेलने पड़े। ऑड्री को नस्लीय भेदभाव का अनुभव सबसे पहली बार तीव्रता से तब हुआ जब उनका परिवार वाशिंगटन डी. सी. घूमने गया और पैसे होने के बावजूद उन लोगों से आइसक्रीम पार्लर में भेदभाव बरता गया। यह हुआ ठीक सुप्रीम कोर्ट की नाक के नीचे। इसके पहले और इसके बाद भी बहुत बार ऑड्री को नस्लगत भेदभाव का सामना करना पड़ा।
सबसे छोटी होने के कारण वे अपने माता-पिता के साथ सोती जबकि दोनों बड़ी बहने फ़िलिस तथा हेलेन अलग कमरे में सोती थीं। वे बच्ची को अपने कमरे में न आने देतीं। उनके अनुसार वह एक बिगड़ैल बच्ची थी। जबकि वह सोचती थी कि वह बहुत कुरूप है। बहनों में उसका रंग सबसे दब था। बच्ची को अपनी बहनों से ईर्ष्या होती बहुत बाद में जा कर उसे अपना अलग कमरा मिल पाया। आँख खराब होने के कारण बहनें और माँ सदैव उसे हाथ पकड़ कर चलाती, वे खुद तेज चलतीं और बच्ची को उनके साथ घिसटना पड़ता। कई बार उसकी गलती से या अनजाने में चश्मा टूट जाता और नया बनवाना उतना आसान न था। यह बच्ची शुरु से बोलने में भी कुशल नहीं थी यदि बोलती तो पद्य में बोलती, यह दीगर है कि बाद में वह कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हुई और उसे लेक्चर देने के लिए दूर-दूर से बुलावे मिलते थे।
ऑड्री का अपनी माँ के प्रति विचित्र भाव था, उनकी अपनी माँ से नहीं बनती थी, लेकिन वे माँ के प्रति आकर्षित थीं, साथ ही उनसे बहुत डरती भी थीं। बाद में जा कर उन्हें अपनी माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ और महत्ता ज्ञात हुई। उनकी माँ एक मजबूत और कुशल स्त्री थीं, उन्हें बहुत सारे रोगों के घरेलू उपाय मालूम थे। माँ बच्चियों को बराबर लाइब्रेरी ले जाती थी वहीं एक दिन चार साल की ऑड्री को एक लाइब्रेरियन मिली। लाइब्रेरियन अगस्टा बेकर ने बच्ची को कहानी पढ़ कर सुनाई। पहली बार बच्ची ने स्थिर हो कर किसी की बात सुनी और चीख-चिल्ला कर बात नहीं की। बच्ची को पढ़ने का चस्का लग गया और माँ ने इस बात को बढ़ावा देते हुए उसे ककहरा सिखाया। इस तरह बहुत बचपन से वह बड़े आकार के अक्षरों वाली किताबें पढ़ने लगी। इसमें शक नहीं बच्ची शुरु से बहुत जिद्दी किस्म की थी। उसे जो पसंद नहीं आता वह उसे बदल डालती। स्कूल जाने से पहले उसने अपने ऑड्री नाम की वर्तनी से अंतिम अक्षर वाई गिरा दिया, उसे वाई का नीचे की ओर जाना अच्छा नहीं लगता था, उसे अपने नाम के हिज्जे के अक्षर एक समान चाहिए थे और तबसे वह अपना नाम AUDRE LORDE लिखने लगी।
शिक्षा और शिक्षकों की अजीबोगरीब हरकत का ऑड्री को बचपन में सामना करना पड़ा। टीचर उसे ‘काली गंध’ (‘ब्लैक स्मेल’) कहती और उसके अफ़्रीकन तरीके से बाँधे हुए बालों के सख्त खिलाफ़ थीं। इन सबका बड़ा मार्मिक चित्रण अपनी प्रयोगात्मक आत्मकथा में वह करती है। अपनी आत्मकथा ‘ज़ामी: ए न्यू स्पेलिंग ऑफ़ माई नेम’ को वह बायोमिथॉलॉग्राफ़ी (biomythography) की संज्ञा देती है। ‘ज़ामी’ शब्द करैबियन स्त्रियों के आपसी बहनापे के लिए प्रयुक्त होता है। वहाँ पुरुष समुद्र में जाते तो उनकी अनुपस्थिति में स्त्रियाँ मिल-जुल कर पशु पालन, खेती, घर की देखभाल, बच्चों का पालन-पोषण आदि सारे काम करती और आपस में प्रेम भी। यह बहनापा पुरुषों के समुद्र से लौट आने पर भी जारी रहता। ऑड्री की आत्मकथा एक नारीवादी जिंदगी का लेखाजोखा है। वे इसे संस्मरण या आत्मकथा का नाम नहीं देती हैं। उनके अनुसार इसमें कई विधाएँ घुली-मिली हैं। यह इतिहास, मिथक, मनोविज्ञान का समुच्चय है। इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। यह नारीवाद की एक प्रमुख किताब है। इसमें वे अपने विद्रोही बचपन से ले कर अपनी समलैंगिक रूचि का चित्रण करती हैं। वे इरोटिसिज्म को ऊर्जा और सृजनात्मकता का आध्यात्मिक स्त्रोत मानती हैं।
उसका बचपन हारलम में एकाकी बीता। वह लड़कियों के स्कूल हंटर हाई स्कूल गई लेकिन दूसरे बच्चों से घुल-मिल नहीं पाई। वहाँ वह ‘द ब्रांडेड ग्रुप’ की एकमात्र अश्वेत लड़की थी। यह समूह पढ़ाकू और कविता लिखने वाली लड़कियों का था। किशोरावस्था से उनकी दोस्ती लड़कियों से थी। जेनी नाम की उसकी एक शुरुआती दोस्त ने आत्महत्या की जिसका असर ऑड्री के जीवन पर सदा रहा। जेनी के बाद उसका एक श्वेत युवक से अफ़ेयर हुआ जिसका अंत छिपा कर किए गए गर्भपात में हुआ। शुक्र है ऑड्री की जान बच गई। गहरे अवसाद से उसे कविता ने उबारा, वह मृत्यु, विनष्टता और गहन विषाद की कविताएँ लिख रही थी। वह मैक्सिको जाना चाहती थी इसके लिए उसने तमाम-छोटे-छोटे काम किए। मैक्सिको में उसका पहला समलैंगिक संबंध बना। पत्रकार युडोरा गैरेट के साथ उसका संबंध शारीरिक-आध्यात्मिक था। वह मैक्सिको की गाथाओं-मिथकों से खूब प्रभावित थी। वहाँ के मिथक को आधार बना कर उसने ‘योराना’ नाम से एक कहानी भी लिखी। इसमें उसने मैक्सिको के प्रसिद्ध मिथक का पुनर्लेखन किया। वह न्यू यॉर्क लौट आई और पचासवें दशक ‘गे गर्ल’ समूह का हिस्सा बन गई। समलैंगिक समूह के सदस्य ही ऐसे लोग था जिनका रंगभेद के बावजूद वार्तालाप बना हुआ था। इन श्वेत-अश्वेत स्त्रियों ने मिल कर साठ के दशक में सिविल राइट्स मूवमेंट में जम कर हिस्सेदारी की।
जेनी से ऑड्री का कोई शारीरिक संबंध नहीं था परंतु दोनों विद्रोही लड़कियाँ कभी जिप्सी तो कभी डाकू, कभी चुडैल तो कभी वेश्या, कभी राजकुमारी तो कभी कुछ और रूप धर कर शहर छाना करतीं। ऑड्री का अपनी कई शिक्षिकाओं के प्रति भी आकर्षण था साथ ही वह श्वेत लड़कों से भी वह डेटिंग किया करती। 1952 में कुछ दिन वह ‘हारलम राइटर्स गिल्ट’ में भी जाती रही, उसकी कुछ कविताएँ इस समूह की पत्रिका में प्रकाशित हुई। यहीं उसकी मुलाकात रोसा गाई और लैंग्स्टोन हग्स से हुई। कॉलेज पढ़ाई के दौरान वह हॉस्पीटल और फ़ैक्टरी में काम भी करती रही।
ऑड्री युवा समलैंगिकों की तुलना ‘सिस्टर एमाज़ोन्स’ से करती है। उस समय बहुत कम समलैंगिक खुद को खुल कर व्यक्त कर रहीं थीं, ऑड्री उनमें से एक थी। वह मानती थी कि उसका जीवन स्त्रियों के लिए पुल था। वह अपनी कविताओं में कई दोस्तों, रिश्तेदारों और अफ़्रीकी देवी मावुलीसा और उसकी पुत्री एफ़्रिकेट की प्रशंसा करती है। मगर उसकी कविताएँ समलैंगी पत्रिका ‘लाडर’ द्वारा नकार दी गई। इस अस्वीकृति से उसे बहुत चोट पहुँची। उसने कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की परंतु उसकी वास्तविक शिक्षिकाएँ उसके कॉलेज से न हो कर समाज की अन्य स्त्रियाँ थीं। साहित्य की डिग्री के बाद उसने लाइब्रेरी साईंस की शिक्षा प्राप्त की और मैनहट्टन तथा माउंट वेर्नॉन में बच्चों की लाइब्रेरी स्थापित की। यह भी उसकी सृजनात्मकता का एक पक्ष था।
संकलनों में ऑड्री की कविताएँ प्रकाशित हो रही थीं मगर स्वतंत्र संकलन के रूप में उसका संग्रह 1968 में ‘द फ़र्स्ट सिटीज’ नाम से आया। इसमें प्रेम, मातृत्व और बच्चों से संबंधित कविताएँ थीं। 1962 में ऑड्री ने एडविन एशले रोलिंस से विवाह किया। एडविन लीगल एड अटर्नी था। ऑड्री की तरह उसकी सैक्सुआलिटी भी बहुत जटिल है। एलिज़ाबेथ तथा जॉनाथन, उनके दो बच्चे हुए। विवाह के बावजूद ऑड्री के समलैंगिक संबंध जारी रहे। एडविन सदैव उसे आगे बढ़ने, लिखने और पढ़ाने के प्रोजेक्ट लेने के लिए प्रेरित करता। इसी का नतीजा हुआ वह टौगालू में एक ग्रांट के अंतर्गत अश्वेत छात्रों को क्रियेटिव राइटिंग का कोर्स करवाने गई। यहाँ उसकी मुलाकात फ़्रांसेस क्लेटोन से हुई जिससे उसका जिंदगी भर संबंध बना रहा। रोलिंस से तलाक के बाद वह क्लेटोन के साथ रहने लगी। दोनों ने मिल कर परिवार बसाया और दोनों बच्चों का पालन-पोषण किया। श्वेत नस्ल की स्त्रियों से भी उसकी दोस्ती थी। कवयित्री एडरिन रिच से उसकी एक लंबे समय तक दोस्ती रही। बाद में ऑड्री ने न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में शिक्षण किया और थॉमस हंटर प्रोफ़ेसर के रूप में अपने कॉलेज में भी शिक्षण किया। एन मूडी, ज्वेल गोम्ज़ जैसी प्रसिद्ध अश्वेत रचनाकार एक समय उसकी छात्राएँ हुआ करती थीं। उसके सामाजिक कार्यों और लेखन शैली से नारीवादी लेखिका बेल हुक बहुत प्रभावित थी।
ऑड्री जितनी अपनी कविताओं के लिए प्रसिद्ध थी उतनी ही अपने सामाजिक कार्यों के लिए भी। साठ से अस्सी के दशक तक वह नारी स्वतंत्रता, गे/लेस्बियन अधिकारों तथा सिविल राइट्स मूवमेंट जैसे विभिन्न सामाजिक कार्यों में सक्रिय थी। उसकी कविताओं के ग्यारह संग्रह प्रकाशित हुए हैं। अपने 1970 के संग्रह ‘केबल्स टू रागे’ में सम्मिलित ‘मार्था’ कविता उनकी पहली प्रकाशित समलैंगिक कविता मानी जाती है। ऑड्री लॉर्ड की कविताओं में हारलम में बिताया बचपन, किशोरावस्था, अश्वेत पूर्वज, अफ़्रीका और करैबियन के कहानी कहने वाले रूपक बन कर आते हैं। ‘कोल’ शीर्षक कविता में काले कोयले का हीरे में परिवर्तित होना उसका एक महत्वपूर्ण रूपक है। उसकी कविताओं और साक्षात्कारों में अश्वेत किशोरों के सामने आने वाले खतरों की चिंता जाहिर होती है। नॉर्टन से प्रकाशित हो कर उनका पाँचवाँ काव्य संग्रह एक बड़े पाठक तक पहुँचा और मिथक के नवीन प्रयोग के कारण यह संग्रह ‘द ब्लैक यूनिकॉर्न’ काफ़ी सराहा गया। ‘सिस्टर आउटसाइडर’ तथा ‘ए ब्रस्ट ऑफ़ लाइट’ उनके भाषणों और लेखों का संग्रह है। 1981 में ऑड्री ने बारबारा स्मिथ के साथ मिल कर ‘किचेन टेबल: वूमन ऑफ़ कलर प्रेस’ नाम से एक प्रेस खोला। यहाँ इन लोगों ने हाशिए के लेखकों को प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया।
ऑड्री, रिच और एलिस वॉकर में अच्छी दोस्ती और समझदारी थी। 1974 में तीनों को कविता के नेशनल बुक अवार्ड के लिए नामित किया गया था। उन्हें मालूम था कि यह रिच को मिलेगा फ़िर भी तीनों ने मिल कर एक साझा पत्र तैयार किया जिसे पुरस्कार मिलने पर रिच ने पढ़ा और सारी अनसुनी स्त्रियों की ओर से इस सम्मान को ग्रहण किया।
अस्सी के उत्तरार्द्ध में फ़्रांसेस क्लेटोन से अपना संबंध छोड़ कर ऑड्री वर्जिन आईलैंड रहने चली गई। यहाँ वह वैज्ञानिक ग्लोरिया जोसेफ़ के साथ रहने लगी। इसी समय उसने अमेरिकी प्रशासनिक नीतियों के विरोध में बोलना शुरु किया। उसने अमेरिकी सेना के ग्रेनेडा पर धावा बोलने की आलोचना की। सेंट क्रोइक्स पर अमेरिकन कंपनियों और पर्यटन के कुप्रभाव पर प्रहार किया। अपनी बातों के प्रचार-प्रसार के लिए उसने अफ़्रीका, यूरोप तथा ऑस्ट्रेलिया की यात्राएँ कीं। शिक्षण के लिए कई बार बर्लिन गई। यहाँ उसने जर्मनों के एफ़्रो-जर्मन के प्रति पूर्वाग्रह और अफ़्रो-जर्मन के यहूदी के प्रति पूर्वाग्रह की तुलना की और एक साक्षात्कार में बताया कि यदि अमेरिका और जर्मनी के श्वेत नारीवादी आंदोलन नस्लवाद को नारीवादी मुद्दा मानने की अनदेखी करते हैं तो उनका आंदोलन कभी सफ़ल नहीं होगा। उसने 1986 में पहला एफ़्रो-जर्मन संकलन निकाला जो बाद में ‘शोइंग अवर कलर्स: एफ़्रो-जर्मन वीमेन स्पीक आउट’ नाम से प्रकाशित हुआ। उसकी मृत्यु के एक साल के बाद 1987-1992 तक की कविताएँ ‘द मार्वलस अर्थमेटिक्स ऑफ़ डिस्टेंस: पोयम्स 1987-1992’ शीर्षक से प्रकाशित हुईं।
अब तक ऑड्री लीवर के कैंसर की चपेट में आ चुकी थी, पहले ही 1978 में स्तन कैंसर के कारण उसका एक स्तन काटा जा चुका था। स्त्री संगठनों को कैंसर के इलाज की जानकारी फ़ैलानी चाहिए ऐसा उसका दृढ़ मत था। कैंसर से उसने संघर्ष किया इस कठिन समय ने उसे जीवन में शरीर की प्रसन्नता का समारोह मनाने का मंत्र थमाया, इरोटिक्स के सिद्धांत-सूत्र गढ़ने में सहायता की। उसने हँसी और नृत्य के अपने प्रेम को इसका हिस्सा बनाया। इन अनुभवों को उसने ‘द कैंसर जनरल्स गे कौकस बुक’ लिखी। ऑड्री के लिए नारीवाद का मतलब था देश की प्रमुख समस्याओं से भिड़ना। 1990 में 23 देशों से 2,000 से अधिक लोग बोस्टन में ऑड्री को सम्मानित करने के लिए उपस्थित हुए। इस कॉन्फ़्रेंस का नाम था, ‘आई एम योर सिस्टर: फ़ोर्जिंग ग्लोबल कनेक्शन्स अक्रॉस डिफ़रेंस’। इसी साल उसे ‘लाइफ़टाइम अचीवमेंट इन गे एंड लेस्बियन लिटरेचर’ का अवार्ड मिला, यह पब्लिशिंग ट्रैएंगल्स बिल व्हाइटहेड मेमोरियल अवार्ड की ओर से दिया गया था।
1991 में न्यू यॉर्क स्टेट ने उसे दो साल के लिए पोयेट लौरेट के रूप में मनोनित किया परंतु वह इसे पूरा न कर सकी। 17 नवम्बर 1992 को सेंट क्रोइक्स में उसकी मृत्यु हो गई। इस समय उसे ग्लोरिया जोसेफ़ तथा जर्मनी की डैगमर सुल्ज़, इका हु तथा मे ऐयिम का सहारा था। उसकी स्मृति सभा में हजारों की तादाद में लोग जमा हुए जिसमें उसके अपने बच्चे, सोनिया सैन्चेज़, एंजेला डेविस शामिल थी। श्वेत, अश्वेत दोनों से उसकी दोस्ती थी। वह नारीवादी समूहों को भी चुनौती देती रहती थी, उसने नारीवादियों की सोच और समझ को प्रभावित किया। उसका कहना था अश्वेत स्त्री अस्मिता में अश्वेत समलैंगिक को नकारना अच्छा नहीं होगा, अश्वेत समलैंगिकों को अपने लिए खुद को परिभाषित करना होगा। अगर उन्होंने खुद को परिभाषित नहीं किया तो दूसरे उनकी परिभाषा तय करेंगे यह उचित नहीं होगा। उसका प्रमुख विचार था, ‘तुम्हारी चुप्पी तुम्हारी रक्षा नहीं करेगी’। वह खुद भी खुल कर बोली, उसने दूसरों को भी खुल कर बोलने के लिए प्रेरित किया नतीजन बहुत सारी स्त्रियाँ जो समलैंगिक जीवन छिप-छिप कर बिता रहीं थीं खुले में आ गईं। अभी और बहुत सारी चुप्पियों को टूटना है।
०००
विजय शर्मा, 326 न्यू लेआउट सीताराम डेरा, एग्रिको, जमशेदपुर 831009,
मोबाइल : 8789001919, ईमेल : [email protected]

………………………..

किताबें

………………………..
error: Content is protected !!