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कविताएं
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“तुम फिर आ जाते एक बार”
कहते हैं
किसी बूढ़े बरगद के तने से लिपट कर
कलेजा फाड़ कर चिल्लाओ
तो
वह सारा दर्द अपने अन्दर खींच लेता है
और बदले में
दर्द का लेखा जोखा भी नहीं माँगता
……..
बुद्ध चले गये
पर बरगद खड़ा है
प्रतीक्षा में
कि
कोई उसके “कलेजे” से लगे
तो
वह बताए
कि
बरगद आदमी में नहीं मिलते।
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“आहत ध्वनि
और
अनाहत नाद के बीच
निरन्तर बहता
यह बहरा समय
जिसमें अनवरत गूँजता रहा
छेनी हथौड़ी का स्वर
सुना है
ऋचाओं के पास लिपियाँ नहीं थीं
स्वयं को छीलते गढ़ते मानव के
दर्द को
एक अबूझ चक्रव्यूह सौंप दिया उसने
अभी भी
निकलने का मार्ग ढ़ूढ़ती मानवता
कविता लिखती है
ईश्वर मौन है”
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किताबें
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