अलका प्रकाश
मऊ, उत्तर प्रदेश में जन्मीं, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. और डी.फिल. अलका प्रकाश स्त्री विमर्शकार और आलोचक के रूप में पहचानी जाती हैं। अपनी दृष्टि, विचार और विमर्श की सर्वथा नई भंगिमा के कारण उनकी उपस्थिति एक ऐसी लेखिका की है जिसमें नयापन है और स्त्री विषयक समस्याओं तथा चिंताओं को उनके पूरे परिप्रेक्ष्य में देखने-परखने की वैज्ञानिक समझ है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके लेख इन्हीं कारणों से सबका ध्यान आकृष्ट करते हैं। तमिल तथा कन्नड़ में अनुदित होकर प्रकाशित उनके लेख इस बात के प्रमाण हैं। उनकी मौलिक आलोचना कृति – ‘हाशिये के स्वर’ की बड़ी चर्चा रही है जो स्त्री, दलित तथा आदिवासी जीवन और उनके संघर्ष को लेकर लिखी रचनाओं को विमर्श के केंद्र में लाती है और शक्ति केंद्रित मुख्य धारा के लेखन को उसके समानांतर रखकर उस पर जिरह करती है। उन्होंने अनेक पुस्तकों का लेखन और सम्पादन भी किया है जिनमें स्त्री जीवन के बुनियादी प्रश्नों को उनकी पूरी संरचना में समझने की ईमानदार पहल है। इन पुस्तकों में, नारी चेतना के आयाम, तन्द्रा टूटने तक, समय समाज और स्त्री, सत्ता प्रतिष्ठान और स्त्री अस्मिता तथा स्त्री-विमर्श : साहित्य और सैद्धान्तिकी शामिल हैं।
स्त्री विमर्श और आलोचना से सम्बन्धित विषयों पर निरन्तर लिखने-बोलने वाली अलका प्रकाश एक सुपरिचित कवयित्री भी हैं जिनकी कविताएँ प्रकाशित होकर चर्चा में आईं हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रतिष्ठित रामचंद्र शुक्ल नामित आलोचना पुरस्कार ‘हाशिये के स्वर’ नामक पुस्तक पर मिल चुका है।
लंबे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अतिथि अध्यापक रहीं डॉ. अलका प्रकाश अब प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भय्या) विश्वविद्यालय, नैनी, प्रयागराज में हिंदी की सहायक प्रोफ़ेसर हैं।
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कविताएं
इंतज़ार नहीं होता महज़ एक शब्द
जीवन-समय
तुम्हारी स्मृति एक प्रार्थना गृह है
जिसमें रहती है तुम्हारी ही आकृति
हम झुके रहते प्रार्थना में तब तब
जब जब आते हो स्मृति में बेतरह
घण्टियों की तरह बजती हैं मेरी धड़कनें
शंख की तरह आत्मा करती है उदघोष
आंखों में चमक उतरती है तुम्हारी
ठीक उसी तरह जैसे
देवता हमारी श्रद्धा लेकर
उतरता है अपनी आभा के साथ
तुम एकतान होते हो हमारे ध्यान से
मंत्र के अजपा जाप से आह्लादित होते हो
स्फूर्त करते हो हमारे रोम रोम
तब एक साथ असंख्य फूलों की सुगन्ध
समा जाती है हमारे भीतर
हम बनने लगते हैं कुछ अलग
और इस तरह अपने होने का भ्रम खोकर
हम हो जाते निर्विकार
यह जो स्मृति है तुम्हारी
जीवन – समय है हमारे प्रेम का
रहते हम जिसमें निरन्तर होम होते हुए….
हमारा प्यार
प्यार हमारा
पत्तों का हिलना है
उसकी हरियाली भी
प्यार हमारा
होली का गीत है
उसका रंग-गुलाल भी
प्यार हमारा
बांसुरी की मीठी तान है
उसकी लय और रस भी
प्यार हमारा झरने का जल है
झरते जल का स्रोत भी
बांस वन में उठते स्वर
ताल में रह रह कर जाग उठता वृत्त
हमारा प्यार है
हम होते हुए प्यार में
ठीक उसी तरह उमग रहे
जैसे उमगती है धार
हर गति लय ताल स्वर में
हमारा प्यार प्यार हमारा.
प्रेम जीवन
उसका नाम
मेरे आंसुओं में जो अबूझ से अक्षर उभरते हैं
वे पता देते प्रिय का
आंखों में रह रह कर जो कौंध उठती है
वही है छवि है उसकी
साँसों की सुलगन में है उसका नाम
चाहें तो पूछ लें धड़कनों से
रखकर हाथ हृदय पर……
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किताबें
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