Wednesday, December 4, 2024

रीतू कलसी हिंदी और पंजाबी की लेखिका हैं।वह कविता और कहानियों के अलावा फिल्मों पर भी लिखती है और पत्रकार भी है।भिन्न स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। सोलह साल विभिन्न समाचार पत्रों में भिन्न पदों पर कार्यरत रहीं।एफ एम गोल्ड लुधियाना में आर जे के तौर पर भी कुछ देर काम किया

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कहानी

मधुबाला एस मोहिंदर से शादी करना चाहती थी
ऋतु कलसी
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 ‘चोरी चोरी आना औ  राजा मोरे ‘ सुरैया की आवाज़ में यह गीत आज की पीढ़ी ने शायद ही सुना होगा, नहीं सुना तो सुनना चाहिए तभी पता चलेगा कितना खजाना हमारे खुद के पास ही है, ओरिजिनल यानी मूल रूप के लिए ही कितनी मेहनत करते थे , प्रेरित  होते थे तब के लोग भी दूसरे प्रतिभावान से  प्रेरित होने के नाम पर चोरी शायद कम ही होती थी। ‘चोरी चोरी आना औ  राजा मोरे ‘ नहीं भी सुना होगा तो ‘गुज़रा हुआ ज़माना’ यह तो पक्का सुना ही होगा, इन नग्मों की बात मैंने इसलिए की है, मैं यहाँ संगीतकार बक्शी मोहिंदर सिंह सरना की बात करने वाली हूँ
जो बॉलीवुड में एस मोहिन्दर के नाम से जाने पहचाने गए।  सुरैया के गाये नग्मे से शुरुआत  की ।सुरैया को श्रेय जाता है एस मोहिन्दर को फिल्म इंडस्ट्री में लाने का, ।एस मोहिन्दर ऑल इंडिया रेडियो लाहौर में गायक के तौर पर नौकरी करते थे वहीँ सुरैया ने गाते सुना और फिर मुलाक़ात भी हुई,। मुलाकात के  दौरान सुरैया ने मोहिंदर को मुंबई आने के लिए कहा।  तब शायद एस मोहिंदर ने मुंबई आने क लिए न सोचा हो पर किस्मत में संगीतकार बनना ही लिखा था ।हुआ यूँ कि भारत पकिस्तान के बटवारे के समय एक दिन जब रेडियो स्टेशन से घर वापस जाने के लिए लायलपुर स्टेशन पहुंचे तो पता चला उनकी ट्रेन दंगों की वजह से कैंसिल हो चुकी है। और स्टेशन पर भी दंगे शुरू हो गए थे,। स्टेशन पर एक ही ट्रैन खड़ी थी जो चल ही पड़ी थी और किसी गाड़ी के आने का कोई पता नहीं था,। किसी के वहां कहने पर इसी ट्रैन पर चढ़ गए और बॉम्बे जो आज का मुंबई है पहुँच गए।  अनजान शहर था, शहर के बारे में कुछ पता भी नहीं था तो गुरूद्वारेमें शरण ली ,।तकरीबन एक महीना वहां रहे। शब्द कीर्तन किया।  ऐसे ही एक दिन अपनी जेबे देखते समय सुरैया का नंबर उन्हें मिल गया और फिर शुरू हुआ फिल्मों में संगीत देने का सफर।  “पापी” फिल्म में राजकपूर के लिए मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ को एस मोहिंदर ने लिया, बल्कि राजकपूर की आवाज़ तो मुकेश को माना जाता था, लेकिन मोहिंदर ने ‘ ले ले गोरी पहन ले चोरी ‘ नग्में के लिए रफ़ी साहिब की आवाज़ को चुना। इसी फिल्म का दूसरा गाना जो काफी चला, चाहे फिल्म बिलकुल भी न चली थी ‘तेरा काम है जलना परवाने, चाहे शमा जले या ना जले 
तू पंख जलाले दीवाने, चाहे शमा जले या ना जले’। इस नग्मे की भी अलग ही कहानी है। इसे पहले फिल्म में शामिल किया ही नहीं गया था ।बाद में किया गया और जितनी भी फिल्म चली इसी गाने की वजह से। एस मोहिंदर के चर्चे हमेशा फिल्म इंडस्ट्री में लग अलग वजह से रहे हैं।  शीरीं फरहाद फिल्म में मधुबाला थी और संगीतकार एस मोहिंदर । इस फिल्म के नग्मे बेहद मकबूल हुए थे । कहा जाता है मधुबाला को एस मोहिंदर से प्यार हो गया था ।वह हर हालत में एस मोहिंदर से शादी करना चाहती थी पर चूँकि मोहिंदर पहले से शादी शुदा थे ।वह अपनी पत्नी दविंदर कौर से बहुत मोहब्बत करते थे ।इसलिए मधुबाला के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।  यहाँ तक मधुबाला ने कहा था मैं दविंदर कौर और बच्चों का पूरा खर्चा उठा लुंगी।  एस मोहिंदर को यूँ तो तलत मेहमूद गायकों में बेहद पसंद थे और गायिका में आशा भोंसले।  
एस मोहिंदर ने पंजाबी फिल्मों के लिए भी संगीत दिया। एक से बाद कर एक संगीत दिया।  फिल्म नानक नाम जहाज के संगीत ने तो धूम ही मचा दी थी। इस फिल्म के लिए राष्ट्रिय पुरूस्कार भी मिला।  
अब एस मोहिंदर के जन्म के बारे में भी बात कर लेते हैं।   बक्शी मोहिंदर सिंह सरना  का जन्म  08 सितम्बर 1925 को अविभाजित पंजाब के मोंटगोमरी जिले में एक गांव था सिलनवाला यहीं हुआ। एस मोहिन्दर के पिता सुजान सिंह बख्शी पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे और वह बांसुरी बहुत अच्छी बजाते थे। इस तरह संगीत पिता से विरासत में ही मिला। दस साल के मोहिंदर ने सबसे पहले  संत सुजान सिंह से शास्त्रीय संगीत सीखा।  इस के बाद भाई समुंद सिंह से सीखा।  एस मोहिंदर ने बड़े गुलाम अली से भी संगीत की शिक्षा ली इसी के साथ लक्ष्मण दास से भी शास्त्रीय संगीत सीखा। 
एस मोहिंदर की बतौर संगीतकार आखिरी फिल्म मानी जाती है 1981 में आई फिल्म दहेज़। पर इस फिल्म के बाद 1986 की फिल्म संदली का संगीत भी एस मोहिंदर का ही है, और पंजाबी फिल्म मौला जट्ट का भी जो 1988 की फिल्म है।    छह सितम्बर 2020 में 95 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से एस मोहिंदर निधन हो गया था। चाहे अब शारीरिक तौर पर एस मोहिंदर हमारे बीच में नहीं है पर संगीत की वजह से हमेशा हम उन्हें गुनगुनाते रहेंगें।

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किताबें

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