पारुल पुखराज
जन्मस्थान-उन्नाव उत्तरप्रदेश
शिक्षा-एम.ए, भारतीय शास्त्रीय संगीत
पता-बोकारो स्टील सिटी, झारखण्ड
प्रकाशित दो पुस्तकें-
कविता संग्रह- ‘ जहाँ होना लिखा है तुम्हारा’
डायरी- ‘ आवाज़ को आवाज़ न थी’
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कविताएँ
1
एक व्यक्ति डर से ढका
एक उसे ढाँपता
एक निगलता शब्दों को
एक उन्हें उच्चारता
सुबह के टटके आकाश पर
शोर का पसारा
“जीवन सहस्त्रमुख भय
सहस्त्रमुख शोक का स्थान।”
2
कातर है
नींद के आले में
भूखा कबूतर
दीमक
निशब्द कुतरती
चौखट
सपनों की
रात के अन्तिम
प्रहर
विरक्त आत्मा
निर्वाण
पथ निहारती
कहीं
3
स्पर्श कर
अधर
जिसके
उड़ गए
अनगिन
भ्रमर
वही
एक
अप्रतिम
उसी
पुष्प का मुख
पवित्र
4
ऐसे ही आता है ग्रीष्म
फागुन की सप्तमी
सुर्ख़ पत्ता शेष रह जाता जब डाल पर
अकस्मात घिर आये मेघ
ढाँप लेते तीजे पहर का आलोक
बवंडर पलाश वन का अटक जाता
श्यामा के कंठ
सूर्य हो जाता दर-बदर
कहीं कोई यात्रारत लिखता
मन ही मन पाती
ऐसे ही आता है ग्रीष्म
अकारण उचट जाता मन
बैन करने लगती हवा छितराये
घाम से
घड़ी को सुस्त हो जाते मार्ग
अनमना बटोही
चौक पर ठगा-सा रह जाता
पट मुंद जाते देवालय के
उच्चारते ही
मध्यान्ह
पक्षी ले उड़ता परछाईं
परोसा अन्न
कोई
जुठारता तक नहीं
5
न अन्न कम पड़ता है
न जल
किसके हाथ उठाते हैं कौर
कौन जीमता है
थाल से
अदृश्य
रसोई में
उमगती कंठ में
हिचकी
काँपता जलपात्र
ईश्वर
यह तुम हो
जूठा जिसे रास आता
मेरा!
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किताबें
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