डॉ जया आनंद प्रवक्ता- सी एच एम कालेज मुम्बई शिक्षा- पीएचडी( आधुनिक काव्य में सामाजिक प्रेरक तत्व) लखनऊ विश्वविद्यालय , एमए (हिन्दी साहित्य)लखनऊ विश्वविद्यालय बी एड (कानपुर विश्वविद्यालय) पत्रकारिता में पी जी डिप्लोमा, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रभाकर सितार में सीनियर डिप्लोमा *प्रकाशित कहानी संग्रह- ' पाती प्रेम की'2021 *प्रकाशित काव्य संग्रह- 'गोमती किनारे 2022 *अनुवाद -'तथास्तु' पुस्तक (गांधी पर आधारित) , *प्रकाशित साझा उपन्यास-- हाशिये का हक * प्रकाशित साझा कहानी संग्रह-- ऑरेंज बार पिघलती रही * प्रकाशित अंग्रेजी अनूदित साझा कहानी संग्रह- 'The Soup ' -1 'The Soup- 2 *प्रकाशित साझा काव्य संग्रह ' पल पल दिल के पास [email protected]
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कविताएँ
1
मैं एक लड़की मैं एक लड़की अदम्य इच्छाओं असीम संभावनाओं से भरी बहुत कुछ कर गुजरने की चाह जूझने की शक्ति निर्बन्ध प्रवाह मुझे दिखता है निस्सीम आकाश नीला गहरा सागर धरती का उच्छवास मुझे दिखता है तारों का टिमटिमाना सूर्य का तप चंद्रमा की शीतलता पंछियों का चहचहाना पर अचानक यह सब धूमिल सा होने लगता विचारो का प्रवाह टूटने सा लगता जब 'मैं 'मै नहीं रह जाती बन जाती किसी की बेटी किसी की बहन नए-नए रिश्तों का बंधन है मेरा भी कुछ नाम मुझे रहता नहीं भान अपनी इच्छाओं और कर्तव्यों के बीच पिसती सी जाती तब एक प्रश्न उभरता क्या हूँ मैं वही लड़की?? जिसमें ंथी कुछ कर गुजरने की चाह जूझने की शक्ति !! ......यह अंतः प्रेरणा ही मुझसे कहती - मुझे जरूर मिलेगी मेरी अपनी जिंदगी
2
तुम्हारा प्रेम... मैंने चाहा कि तुम मुझे पढ़ो मैंने सोचा तुम मुझे सुनो मुझे समझो मुझे गुनो मैं तुम्हें पढ़ूँ तुम्हें समझूँ तुम्हें सराहूं तुम्हारी उलझनों को सुलझाऊँ पथरीली राह को सुगम बनाऊँ ये मेरे प्रेम का पैमाना है तुम्हारा प्रेम…सम्भवतः बस मुझे पाना है !!
3
एक पल .... एक पल को लगा घर जैसे छूट गया जहाँ मैं बारिश की बूँद सी थिरकती थी पूरे आँगन में बिखरती थी बादलो की थी छाँव बरसने को थी धरती और पूरा आसमान भिगोने को हर एक सामान अब सब जैसे कुछ भूल गया घर छूट गया .... अब घटा बन उमड़ती घुमड़ती हूँ बरसने को तरसती हूँ मन जैसे कुछ टूट गया घर छूट गया
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