मनीषा श्रीवास्तव 21-7-76(जन्म दिन) शिक्षा-संगीत से एम. ए. (एम.म्यूज़) योग में डिप्लोमा किया है योग शिक्षिका हूँ।
कविताएं
1
मुझे जब भी मिलना
अपने बनाए साँचे तोड़ के मिलना
मैं उनमें नहीं ढलुँगी
कोशिश भी मत करना
अपनी कल्पनाओं का आकार देने की
आँच पर तो रखना भी मत
चटक जाऊँगी
अनगढ़ ही रहना है मुझे
गिली ही रहने दो मेरी मिट्टी
रौंदा हुआ छोड़ दो
घूमने दो चाक
मैं अपना आकार खुद गढ़ुंगी
कच्चा ही रहना है मुझे
अनगढ़ ही रहना है मुझे ।
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4
वो औरत जो पेट्रोल पंप पर
पेट्रोल भर रही थी
वो आदमी जो मंदिर के कोने वाली दुकान पर
ताज़ा मोगरे के गजरे बना रहा था
दोनों ही एक जैसे इंसान थे
कर्मठ, कोमल और हँसमुख।
औरत ने बालों में गजरा सजा रखा था
आदमी मोटर साइकिल पर
गजरे की डलिया बांध कर
पेट्रोल पंप की ओर जा रहा था
दोनों ही जीवन की गाड़ी
खूबसूरती से चला रहे थे
पेट्रोल पंप पर
मोगरा महक रहा था
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हम मोटी होती औरतें
दिन भर भागतीं दौड़तीं
बच्चों को जगातीं
तैयार करतीं
लंच बनातीं
दौड़ते भागते कुछ खा लेती
बैठ कर खाने की फुर्सत नहीं
जो बचा वो खा लिया ,
बच्चे ने छोड़ा खा लिया
पति ने छोड़ा खा लिया
सबका जूठा थोड़ा -थोड़ा,
पति का डब्बा ,बच्चों का डब्बा
बनाया खिलाया पैक किया
ख़ुद भी पकड़नी है मेट्रो ,लोकल
जाना है दफ्तर ,भागते भागते लिफ्ट में खा लिया
हाँ हम नहीं सोचतीं क्या खाना है हमें ,कब खाना है हमें,
कब नहीं खाना है ,पर पकाना है ।
कोई टोकता भी तो नहीं ये मत खाओ
ये तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं ,
ठहरो फल काट देता हूँ , कुछ हल्का पका देता हूँ
मूँग भिगो देता हूँ ,
तो ठीक है हम खा लेंगे कुछ भी
जो मन होगा वो भी , नहीं होगा वो भी
हर वक्त चूल्हे के साथ जलना किसे भाता है ,
तुम्हें मोटापा नहीं भाता तो ना सही ।
11
दिन भर की मेहनत के बावजूद ,
छूट जाता है कोई न कोई कोना
पकाते रहने के बावजूद
रह जाती है भूख
सामान जुटा लेने के बावजूद
रह जाती हैं ज़रूरतें
जैसे लाख सम्भालने के बावजूद
छूट जाता है रिश्तों का
कोई न कोई सिरा ।
12
मुझे जब भी मिलना
अपने बनाए साँचे तोड़ के मिलना
मैं उनमें नहीं ढलुँगी
कोशिश भी मत करना
अपनी कल्पनाओं का आकार देने की
आँच पर तो रखना भी मत
चटक जाऊँगी
अनगढ़ ही रहना है मुझे
गिली ही रहने दो मेरी मिट्टी
रौंदा हुआ छोड़ दो
घूमने दो चाक
मैं अपना आकार खुद गढ़ुंगी
कच्चा ही रहना है मुझे
अनगढ़ ही रहना है मुझे ।
13
लड़कियों की कविताओं की डायरी अक्सर बदल जाती है
हिसाब और रेसिपी की डायरी में,
जब कभी ढूँढने लगती हैं कविताएँ तो मिलता है-
प्रेस वाला ३८ रूपये
दूध वाला २०००/
अखबार ५७०/
डाँस क्लास हज़ार और नीबू का अचार ।