Saturday, November 23, 2024
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10 अगस्त, 2022। तीन सदस्यीय निर्णायक-मंडल द्वारा सर्व सम्मति से लिए गए निर्णय के अनुसार आमंत्रित पांडुलिपि के आधार पर दिया जाने वाला ‘लक्ष्मी-हरि स्मृति उपन्यास सम्मान’ महत्वपूर्ण कथा लेखिका और रंगकर्मी विभा रानी को ‘कनियाँ एक घुँघरुआ वाली’ के लिए 28 सितंबर, 2022 को नई दिल्ली में दिए जाने की घोषणा हुई है।

10 अगस्त, 2022। तीन सदस्यीय निर्णायक-मंडल द्वारा सर्व सम्मति से लिए गए निर्णय के अनुसार आमंत्रित पांडुलिपि के आधार पर दिया जाने वाला ‘लक्ष्मी-हरि स्मृति उपन्यास सम्मान’ महत्वपूर्ण कथा लेखिका और रंगकर्मी विभा रानी को ‘कनियाँ एक घुँघरुआ वाली’ के लिए 28 सितंबर, 2022 को नई दिल्ली में दिए जाने की घोषणा हुई है। ज्ञातव्य हो कि इस पुरस्कार का आरम्भ मैथिली-हिन्दी के लेखक श्रीधरम और उनकी पत्नी प्रोमिला ने अपने माता-पिता महालक्ष्मी और हरिदास जी की स्मृति में किया है। हरिदास की आत्मकथा ‘जनम जुआ मति हारहु’ पिछले साल अंतिका प्रकाशन से प्रकाशित होकर चर्चित हुआ था। गत वर्ष पहला ‘लक्ष्मी-हरि स्मृति उपन्यास सम्मान’ सच्चिदानंद सच्चू को उनके उपन्यास ‘लालटेनगंज’ के लिए दिया गया था।
मैथिली और हिन्दी में एक साथ आठवें दशक से लेखन में सक्रिय विभा रानी का जन्म 1959 में हुआ और वह वर्तमान में मुंबई में रहती हैं। कहानी, नाटक और अनुवाद में उनकी विशिष्ट पहचान है। उनकी मैथिली में प्रकाशित प्रमुख मौलिक कृति है- ‘खोह स’ निकसैत’, ‘रहथु साक्षी छठ घाट’ (कथा-संग्रह), ‘मदति करू माई’, ‘भाग रौ आ बालचन्दा’ (नाटक)। हिंदी में ‘प्रेग्नेंट फादर’ (नाटक), ‘कांदुर कड़ाही’ (उपन्यास), ‘अजब शीला की गज़ब कहानी’ (कथा-संग्रह) आदि।

अंतिका प्रकाशन की ओर से आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में इसकी घोषणा करते हुए लेखक-संपादक गौरीनाथ ने पुरस्कार की निर्णय प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी दी। साथ ही तीन सदस्यीय निर्णायक मंडल में से वरिष्ठ नाटककार और रंगकर्मी कुणाल, चर्चित आलोचक कमलानंद झा, महत्वपूर्ण कवयित्री बिभा कुमारी ने चयनित उपन्यास पर अपना वक्तव्य दिया।

रंगकर्मी कुणाल के अनुसार उपन्यास ‘कनियाँ एक घुँघरुआ वाली’ मिथिला केंद्रित स्त्री-प्रतिभा के प्रतिमान बनने की कहानी है जो बिडंबनापूर्ण पितृ-सत्ता के निरंतर अवरोध-विरोध के बावजूद असीम धैर्य के साथ अविराम संघर्ष करती है और जीतती है। कथानक (इतिवृत्त) मिथिला की स्त्री की नैसर्गिक संगीत-नृत्य प्रतिभा से संपर्कित है जो अलहदा है और जिसका वर्णन काफी तरलता पूर्वक किया गया है।

आलोचक कमलानंद झा के अनुसार : मैथिल स्त्री की अद्भुत और लोमहर्षक कहानी है उपन्यास कानियां एक घुँघरुआ वाली’। नृत्य सीखने और कुशल नृत्यांगना बनने की उत्कट आकांक्षा और इस आकांक्षा की प्राप्ति हेतु खुद को झोंक देने का साहस इस उपन्यास को विशिष्ट बनता है। उपन्यास के केंद्र में है नृत्य और संगीत। नृत्य और संगीत इस उपन्यास के नायक हैं। मिथिला के अन्यान्य नृत्य गायन के साथ ‘डोमकछ’ की विशिष्टता विलक्षण रूप में इस उपन्यास में उभरी है। मिथिला में स्त्री द्वारा स्त्री-यौनिकता की उन्मुक्त अभिव्यक्ति डोमकछ को विशिष्ट नृत्य का दर्जा देता। नृत्य-संगीत के प्रति अभिजात्य वर्ग में घोर उपेक्षा भाव को उपन्यास में आलोचनात्मक दृष्टि से दर्शाया गया है।

कवयित्री बिभा कुमारी के अनुसार : यह उपन्यास एक नए कथानक पर केंद्रित है। ग्रामीण स्त्री की नृत्य और गीत की इच्छा, अभ्यास, प्रशिक्षण और उसके कलाकार बनने की यात्रा सहज तो नहीं है, लेकिन वह यात्रा संभव हुई है उपन्यास ‘कनियाँ एक घुँघरुआ वाली’ में। उपन्यास में विपरीत परिस्थिति में भी अपनी लगन से लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा पाठक लिए अच्छा सन्देश है।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कथाकार-आलोचक और महालक्ष्मी-हरिदास के सुपुत्र श्रीधरम ने कहा कि पिछले वर्ष के सम्मान अर्पण कार्यक्रम का आयोजन हरिदास जी के गाँव चनौरागंज, मधुबनी में हुआ था। इस वर्ष यह कार्यक्रम 28 सितंबर को नई दिल्ली में सम्पन्न होगा। उसी अवसर पर ‘कनियाँ एक घुँघरुआ वाली’ उपन्यास का लोकार्पण और उस पर चर्चा भी होगी।
(अंतिका प्रतिनिधि द्वारा जारी)

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