नैनीताल से भूगोल विषय से स्नातकोत्तर एवं बी एड l गाज़ियाबाद (सीआईएसऍफ़)”के परिवार कल्याण की सयुंक्त सचिव के तौर पर कार्यअनुभव l अवितोको रूम थियेटर, लखनऊ कीसंचालिका ।
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कविताएं
मैं बाट जोहूँ सूर्य का
दिवस के अवसान में
घिरती घटायें घन सी
घटायें घन सी
छेड़ती है तार तन की
विरह का कोई गीत गाऊँ
साँझ का दीया जलाऊँ
बुझे मन के दलान में
काल के मध्याह्न में
तृष्णायें हर क्षण सताती
कामनाएं कुनमुनाती
बांचता है ज्ञान अपना
योग का मन-मनीषी
मोह के उद्यान में
ह्रदय के सिवान में
प्रेम का जो धान रोपा
नेह के न बरसे बादल
नियति ने परोसे हलाहल
भाग्य बैरी सोया रहा
दुर्भाग्य के मचान में
निराशा के मसान में …
चिंता चिताओं सी जल रही
जिजीविषा हाथ मल रही
अँधियारा जो छंटता नहीं
मैं बाट जोहूँ सूर्य का
आशा के नव-विहान में !!
सिवान =खेत
तुम तो आकाश हो"
गृहस्थी की कांवर
परिणय मंडप में धरे गए दो कलशों में
बराबर ,भरे गए मधुर संबंधों के सभी तत्व
प्रेम, मैत्री, स्नेह और विश्वास
और इससे तैयार हुई,गृहस्थी की कांवर
यात्रारंभ में जब कंधे की बारी आई
तुम्हारे अहम् ने ………..
उसे अपने कंधे पर रखना स्वीकारा
मैं पथगामिनी ,तुम्हारी सहचर
साथ चलना बदा था
सभी ऋतुओं अवरोधों को पार करते
शिवालय तक !!
प्रारंभ, सूर्योदय की स्निग्ध लालिमा लिए
थकन से दूर ,वानस्पतिक सम्पदा से पूर्ण
उत्सव से भरा अरण्य था !
चलते समय ……….
आगे के घट का छलकना तुम्हे दिखता था
पीछे का घट ,जो मेरा था
जाने कितनी बार छलका
किन्तु ,वह अदीख था तुम्हारे लिए
जितना छलकती
तापस भूमि पर पड़ते ही ,वाष्पित हो जाती
और मेघ बन तुम्हारे शुष्क अधरों पर बरस जाती
और नेत्र कोरों के जल के आशय से
उस घट को पुन: भर देती
कारण, कांवर में
दोनों घटों में संतुलन आवश्यक था !
वर्षा ऋतु में जल से भरे मार्ग में
जाने कितनी बार पाँव फिसला तुम्हारा
हर बार कांवर के साथ साथ
तुम्हे संभालते हुए मैं स्वयं आहत हो जाती !
शीत ऋतु में ,तुम्हारे ठिठुरते देह पर
अग्रहायणी की प्रातः धूप सी
तुम्हारे देह पर पसर जाती !
तुम्हारे नंगे पाँव आहत न हों इसलिए
कंटीले मार्ग पर
पतझड़ की मरमरी पत्तियों सी
मार्ग पर बिछ जाती !
किन्तु इन सब से अनभिग्य
तुम यदा कदा विस्मृत भी हो जाते हो कि
साथ तुम्हारे मैं भी हूँ ……..!
जीवन के इस पड़ाव पर
तुम्हारे मुख पर सूर्यास्त सा मलिन भाव
नहीं देखा जाता ,
यह कांवर तुम्हे बोझ न प्रतीत हो
अतः कुछ देर को,यह मुझे दे सकते हो
किन्तु ओह्ह !! तुम्हारा अहम् !!
प्रिय ,देखो शिवालय की घंटियाँ
सुनाई दे रही हैं !
तुमने अबतक ……..
अपने पुरुषत्व को, मेरे स्त्रीत्व से मिलाया है
क्या ही अच्छा हो कि ……
तुम अपने भीतर के छिपे स्त्रीत्व को
मेरे भीतर के छिपे पुरुषत्व से मिला दो
क्योंकि,शिवालय में बैठे उस अर्धनारीश्वर को
यह जलाभिषेक, तभी पूर्ण एवं सफल होगा !!
पगली
ज़ारबंद
थाने मे …
बेंच के कोने पर
ज़ख्म से बेज़ार
गठरी बनी घायल लड़की
सिकुड़ी,सहमीत सिसकती है
घूरती नज़रें उसके ज़ख्मों को
और भी गहरा कर देती हैं
उसकी माँ बौख़लाई सी
उनके, कब, कहाँ, कितने, कैसे
जैसे सवालों का
जवाब देती हुई, दर्ज़ करा देती है
उन दरिंदों के ख़िलाफ़
ऍफ़ आई आर !
अस्पताल के ….
जनाना जनरल वार्ड में
मुश्किल से बेड मयस्सर हुआ है
वार्ड बॉय, नर्स और मरीज़ों में
फुसफुसाहट जारी है
एक के बाद एक डाक्टर
जिस्म के ज़ख्मों का
अपने-अपने तरीके
से जांच करता हैं
मन का जख्म
जो बेहद गहरा है
वो किसी को नहीं दिखता
और इस तरह
तैयार हो जाती है
बलात्कार की
मेडिकल रिपोर्ट !
अदालत में …
अभियोगी वकील बे-मुरउव्वत हो
उससे सवाल पर सवाल दागता है
कब, कहाँ, कितने, कैसे
वो घबराहट और शर्म से
बेज़ुबान हो जाती है
जवाब आंसुओं में मिलता है
उसका वकील
उसके आँसू पोंछते हुए कहता है
जनाब-ए-आली ये सवाल ग़ैर-ज़रूरी है
अदालत वकील पर एतराज़ कर
उसके आँसू खारिज़ कर देता है
आँसू रिकॉर्ड-रूम में चले जाते हैं
हर पेशी तक उसकी माँ
उम्मीद का एक शॉल बुन लेती है
और अदालत बर्ख़ास्त होने तलक़
वो तार-तार उधड़ जाता है
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