Thursday, September 18, 2025
नाम अनामिका चक्रवर्ती
जन्मस्थान- जबलपुर
परवरिश और शिक्षा – भोपाल
वर्तमान रहवासी – छत्तीसगढ़ , मनेंद्रगढ़
संप्रति- स्वतंत्र लेखन एवं सामाजिक कार्य, फोटोग्राफी।
लेखन विधा – कविता, कहानी, लघुकथा, लेख, गीत।
जन्म- 11 फरवरी
शिक्षा- स्नातक , कम्प्युटर पी.जी.डी.सी.ए.।
प्रकाशित साहित्य –  देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं इ- पत्रिकाओं  में कविता, लेख ,आलेख
,गीत , रचनाएँ प्रकाशित ।
 
1-एक गीत एलवम प्रतिति सेव गर्ल चाइल्ड अनाथ बच्चियों की शिक्षा के लिए चैरिटी हेतु
2- बाॅलीवुड में निर्मित हिन्दी फिल्म ‘मिराधा’ के लिये  गीत 
3 आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण एवं घर आँगन परिचर्चा का प्रसारण।
 
सम्मान– कई पुरस्कारों से सम्मानित।
…………………………..

कविताएँ

प्रेम

प्रेम करके कविताएँ लिखना आसान है
कविताएँ लिखकर प्रेम करना नहीं
कविता लिखना आसान है
प्रेम करना नहीं 
तो 
प्रेम कविताएँ, प्रेम करके लिखी गई 
या कविता लिखते लिखते प्रेम हो गया
या प्रेम और कविताएँ साथ साथ जीते मरते रहे
 
फिरभी कितनी सहजता से हो जाता है प्रेम
और समय के साथ कठिन हो जाती है कविताएँ
 
शायद इसी तरह प्रेम , 
कविताएँ और कविताएँ ,प्रेम हो जाती हैं।

महानगर

साँकल होती है शहर के दरवाजों पर
घरों में कुण्डियाँ नहीं लगी होती हैं
हर कस्बा शहर जाकर बूढ़ा हो जाता ह,
जवानी पगडंडियों पर छूट जाती है
 
मिट्टी के आँगन पर पड़ी दरारें
नहीं भरी जा सकती कंक्रीट से
और जहाँ भर दी जाती हैं,
वहाँ दरारें रिश्तों में पड़ी होती हैं।
 
नजर आता है आसमाँ गलियों सा,
जमीं पर गलियाँ, 
अनाथों सी लगती है
रौनकें तो सिर्फ रातों को होती हैं यहाँ
स्ट्रीट लाईटों और गाड़ियों की हेडलईटों से।
 
दिन के उजाले डरते है जहाँ
खिड़कियों के अन्दर झाँकने से,
वहाँ न जाने कैसे दिन 
और कैसी रातें होती हैं।

अंतिम बिंदु

समय की धार से जब भी तुम
पहाड़ की तरह टूटते हो
समय के कटाव से एक सैलाब
मेरे भीतर भी बहता है
 
हमारे प्रेम का विस्तार
हमें अचेत समय के
क्षितिज पर ले आता है
 
ये दृष्टि का वह अंतिम बिंदु होता है
जहाँ एकाकार होने का भाव
मन को विश्वास में लेता है
 
ये विश्वास प्रेम की नम सतह पर
अपने पद चिन्हों को देखते हुए
आनंदित होता है
और अपनी पीड़ा का उत्सव मनाता है

तुम जहाँ हो!

जिन अंधेरो से तुम गुजर रहे हो
उन्हीं अंधेरों में,
मैं अपने उजालो से झुलज रही हूँ।
 
तुम जिन तनहाइयों में बिखर रहे हो
उन्हीं तनहाइयों में,
मैं अपने शोर से सिमट रही हूँ।
 
तुम जिस बेबसी से गुजर रहे हो
उन्हीं बेबसी में,
मैं उम्मीदों को सहला रही हूँ।
 
जीवन के जिस पड़ाव पे तुम उचट रहे हो
उन्हीं पड़ाव में,
मैं प्रतीक्षा की कंदील को हवा से बचा रही हूँ।

तुम्हारी जगह

 जीवन की कोई भी व्यस्तता
तुम्हारे खालीपन को नहीं भर पाती
 
कोई सुख कोई दुःख
कोई खुशी कोई उत्सव
कोई रौशनी कोई अंधेरा
तुम्हारी अनुपस्थिति को 
नहीं पाट पाता
 
मन में नीरसता बनी रहती है
मझेरे दिन की उमस की तरह
ताकती रहती है आँखें
मेघ से घिरे आकाश की ओर
 
तुम आओ तो भीगे मन का आंगन
और पलकों में जमी
खारी बूँदे भी बह जाए
…………………………..
error: Content is protected !!
// DEBUG: Processing site: https://streedarpan.com // DEBUG: Panos response HTTP code: 503 // DEBUG: Failed to fetch from Panos endpoint (HTTP: 503)