कल्पना मनोरमा, कानपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में परास्नातक एवं बी.एड. इग्नू से एम.ए (हिंदी भाषा), सम्प्रति-सीनियर एडिटर ( गोयल ब्रदर्स प्रकाशन) अध्यापन से स्वैक्षिक सेवानिवृत्ति, प्रकाशित कृतियाँ – प्रथम नवगीत संग्रह -“कबतक सूरजमुखी बनें हम” “बाँस भर टोकरी” काव्य संग्रह “ध्वनियों के दाग़” कथा संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। साझा प्रकाशित संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित। कथाक्रम, समावर्तन समेत कई पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। निज ब्लॉग कस्तूरिया का कुशल संचालन व सम्पादन|
प्राप्त सम्मान- कई पुरस्कारों से सम्मानित।
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कविताएं
पहली बार
प्रेमपथ
वह भीगना चाहती थी
उजले हंसी प्रेम में
लेकिन नहीं समझा गया उसकी
भावनाओं को महत्वपूर्ण
स्थूल प्रेम की थपक से
वह बदलती गयी भद्दे रेतीले दर्रों में
फिर एक दिन अचानक चली हवा
घिर आये श्याम बादल
उसके चारों ओर हुई बारिश झूम-झूमकर
वह भीगती रही अबोध बालक की भाँति
देर तक अपने बाहर-भीतर
महसूसती रही बादलों के हाथों को
अपने ललाट पर
हवा की अंतहीन यात्रा चुक गयी आकर
पथरीले उरोजों पर
बेस्वादी जीवन के गिलास में
भरने लगा रंगहीन प्रेम का शरबत
बूँदों से लदी पलकों को उठाकर देखा
पहली बार उसने सतरंगी इंद्रधनुष
भावनाओं के सुरमई आकाश पर
उसने घेर लिया खुद को
गोलाकर अपनी ही बाहों में
अंजाना मन खोया रहा अपने होने में
वह भीगती रही फुहारों में
उस दिन बदल गयी थी अचानक
कठोरता तरलता में
धरती कब आकाश बन गयी
नहीं चला था पता
न जानने की अबूझी कलम ने लिख दी
नई इबारत प्रेम की
निर्मित हुआ घनघोर बारिश के बीच
नया प्रेम-पथ
स्वयं से स्वयं तक का.
कोशिश
साफ बोलने की कोशिश में
बोलती हूँ हमेशा रुक-रुककर
समझ-समझकर
फ़िर भी उलझ जाते हैं
शब्द अपने पहचाने हुए शब्दों में
अकड़ने लगती है जीभ
और भरने लगती है गालों में
अतिरिक्त हवा
अटकने लगती हैं ध्वनियाँ
दाँतों के बीचोंबीच
हैरान होकर ढूँढती हूँ कारण
शब्दों में आये अवरोध का
तो पाती हूँ
चुप रहने के अनेक आदेशों को
चिपका हुआ
बचपन के होठों पर।
मुट्ठियों में बंद
बीज
किताबें
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