कविताएं
एक दिन गर्व करते-करते भगवान देई मर गईं
ओसारे में बैठ ख़ूब चिल्लाती थीं
हमर गाम, हमर देस, हमर बोली
जब दाना घर में नहीं बचता
तो कहतीं ई दऊ की मरजी बा
महुआ का पेड़ बिक गैल
कटहल भी कौनो के भेंट चढ़ गैल
बेटवा के डिग्री मिल गैल
भगवान देई एक दिन ‘मान’ से विच्छिन्न चली गईं
हम बचे रहे
हमें दूर तक दिखता
हमारा गर्व जहाँ-तहाँ छितराया हुआ
छाती ठोंकने पर अब सीना महुआ जैसा चू जाता है
जिसे कोई अपने बूटों से रौंद डाला है
हम कुछ नहीं बोले, कुछ नहीं सीखे
गर्व किए, चिल्लाए
और एक दिन चिलचिलाती मौत मार गए!
मनोरोग
गोली चलाता हत्यारा
कहता है उसे शोर पसंद नहीं
‘ रघुपति राघव राजा राम’
‘अल्लाह हू अकबर’
गाते हुए वह बताता है
गोली और बंदूक शांति कायम करने के लिए हैं
‘पुरुष की शारीरिक ज़रूरत नियंत्रित नहीं हो पाती’
कहता हुआ वह
स्त्रियों का रक्षक बनना चाहता है
एक विक्षिप्त मनोरोगी
अपने को ईश्वर का शांतिदूत बताता हुआ
बाहें पसारकर कहता है
आओ गले मिलें ईद मनाएँ, होली खेलें
और सुदूर ख़ून के फव्वारे छूटने लगते हैं।
कुछ लोग आख़िर तक कहीं नहीं पहुँचते
कहीं से कहीं पहुँचने के लिए
किसी को जनम लग जाएँगे।कोई कई रात भूखे सोएगा
कोई अपना सबकुछ खो देगा
कोई कोई तो ख़ुद को ही भूल जाएगा
आत्मतत्व वस्तुतत्व की गणना वो करेंगे
जिन्होंने कहीं पहुँचने के लिए जन्म से पहले टिकिट करवा लिया है
वो मुस्करा कर पूछेंगे
आखिर विकास की इस लहर में
तुम गाँव में तांगा क्यों ढूँढते हो
घोड़े की गर्दन लिपटने के लिए नहीं है
सवारी करो और लगाम अपने हाथ में रखो सटासट
तुम कोविड के पहले के अछूते लोग हो
तुमसे प्रश्न भी वो दूर से करेंगे
और झट निर्णय लेकर
रास्ता नापने को कहेंगे
तुम जब कहीं से कहीं पहुँचना चाहोगे
इनकी टाँगें तुम्हें एक खंभे सी नज़र आएँगी
जिसे तुम अकेले नहीं खिसका पाओगे
कुर्सी के दूसरी तरफ ही दुनिया अलग नहीं दिखती
पास बैठा कोई छलांग लगाता उनकी टाँगों का विस्तार बन जाएगा
तुम कहीं नहीं पहुँच पाओगे
वो किसी रोज़ हाथ लहराते तुम्हें आश्वासन देंगे
कोई कुछ नहीं करता कहीं नहीं पहुँचता पर जीता तो है
वो तुम्हारा वजूद छीनकर तुम्हें किसी अरण्य में छोड़ आएँगे
जहाँ मोगली के बाद कोई नहीं बचा है
तुम अपना कुछ उगा नहीं पाओगे
इतिहास में उन्हें ही दर्ज़ होना है
वर्तमान तो भीषण संस्कारों से लहूलुहान छोड़ ही जाएँगे
और तुम्हारी लाश पर अब गिद्ध भी कहाँ मंडराएँगे!
प्रेम
लजीना लाज छोड़ो
एक मिनट का खेल
एक मिनट का मौन
जब भी कहा जाता है
हर कोई गि न रहा होता है समय
और फिर मौन बदल जाता है शोरगुल में
एक मिनट का मौन गायब हो जाता है
सिर्फ एक मिनट में
अपने शव के पास उमड़ी भीड़ को देख
व्यक्ति और मर जाता है
मृत्यु वाकई पहला और अंतिम सत्य है
और माफ करें मुझे मरने में ज़रा समय लग गया।