Sunday, September 14, 2025
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नई दिल्ली , 17 दिसम्बर। आज से करींब 65 साल पहले जब हिंदी के प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन ने शेक्सपियर के नाटक” मैकेबेथ “का हिंदी में अनुवाद किया था तो उसके मंचन में तेजी बच्चन ने लेडी मैकेबेथ की भूमिका निभाई थी।

उस नाटक का निर्देशन लोकनायक जय प्रकाश नारायण के सहयोगी एवम 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल जाने वाले रंगकर्मी वीरेंद्र नारायण ने कियाथा।
कल शाम वीरेंद्र नारायण जन्मशती के मौके पर आयोजित समारोह में यह बात उनके पुत्र विजय नारायण ने कही।इस समारोह में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल के प्रमुख राजेश सिंह और युवा रंगकर्मी प्रियंका शर्मा को वीरेंद्र नारायण जन्म शती सम्मान दिया गया।एनएसडी की पूर्व निर्देशक अनुराधा कपूर ने प्रियंका शर्मा को तथा एनएसडी की पूर्व निदेशक कीर्ति जैन ने राजेंश सिंह को सम्मानित किया।सम्मान में 11 हज़ार रुपये प्राशस्ति पत्र और प्रतीक चिन्ह शामिल है।
वीरेंद्र नारायण जन्म शती समारोह एवम रजा फाउंडेशन द्वारा आयोजित
समारोह में एनएसडी के पूर्व निदेशक देवेंद्रराज अंकुर और वर्तमान निदेशक चितरंजन त्रिपाठी भी मौजूद थे।समारोह में वीरेंद्र नारायण के नाटक “बापू के साये में ” का भी लोकार्पण किया गया।
वीरेंद्र नारायण के पुत्र श्री विजय नारायण ने कहा कि मैकेबेथ नाटक में तेजी बच्चन चाहती थी कि उनके पुत्र और आज के बिग बी अमिताभ बच्चन को भी रोल मिले लेकिन मेरे पिता ने उन्हें रोल नहीं दिया क्योंकि उनकी आवाज़ किसी पात्र के अनुकूल नहीं थी।उन्हें पर्दा उठाने गिराने का काम दिया गया।
उन्होंने बताया कि सांग एंड ड्रामा डिवीजन में जब मेरे पिता जी काम करते थे तो अर्चना मोहन नाम की एक युवती भी काम करती थी जिसे मधु मालती नाटक में पिता जी ने काम दिया था और उसे फिल्मों में काम करने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया था और बाद में वह कल्पना नाम से मशहूर अभिनेत्री बनी जिसने देवानंद के साथ” तीन देवियां “तथा शम्मी कपूर के साथ “प्रोफेसर” फ़िल्म में अभिनय किया था।वह जब भी दिल्ली आती तो मेरे पिता जी से मिलने आती थीं।इसी तरह राज बब्बर नादिरा बब्बर दिनेश ठाकुर जब युवा थे तब पिता जी ने उनको अपने नाटकों में काम दिया था।येशुदास जब मशहूर नहीं हुए थे तब मेरे पिता जी ने लाइट एंड साउंड के कार्यक्रम में उनकी आवाज का इस्तेमाल किया और चेन्नई में रिकार्डिंग की थी।उनकी मित्रता प्रख्यात संगीत निर्देशक अनिल विश्वास विलायत खान जैसे लोगों से थी।
16 नवम्बर 1923 में बिहार के भागलपुर में जन्मे वीरेंद्र नारायण जेपी के अखबार जनता में सहायक संपादक थे और 42 की क्रांति में रेणु जी के साथ जेल गए थे और जेल में नाटक लिखा जिसका मंचन कैदियों ने किया था।
श्रीमती कीर्ति जैन ने कहा कि बचपन मे मेरे पिता नेमिचन्द्र जैन ने वीरेंद्र नारायण के लेख पढ़ने की सलाह दी थी और कहा था नाटक के विषय में वे बहुत गम्भीर ढंग से लिखते हैं।उन्होंने कहा कि मेरे पिता अज्ञेय हबीब तनबीर और वीरेंद्र नारायण जैसे लोग स्वाधीनता आंदोलन के दौर से निकले थे इसलिए उन लोगों में एक आदर्श था उनलोगोंने ने साहित्य और रंगमंच में एक राह बनाई जिसपर बाद के लोग चल सके।
श्री अंकुर ने कहा कि जब वह दिल्ली विश्विद्यालय में एम ए कर रहे थे तब प्रख्यात आलोचक डॉक्टर नगेंद्र ने अंग्रेजी में वीरेंद्र नारायण से रंगमंच पर किताब लिखवाई थी।वीरेंद्र जी ने प्रसाद के नाटकों पर जैसा लिखा है वैसा आज तक कोई नहीं लिख पाया।
श्रीमती अनुराधा कपूर ने कहा कि वीरेंद्र नारायण जैसे लोग कितनी विधाओं में काम करते थे।एक विधासे दूसरी विधा में रचनात्मक रूप से सक्रिय रहते थे।एक रंगकर्मीको सभी विधाओं का ज्ञान होना चाहिए।उन्होंने कहा कि वीरेंद्र नारायण का काम आर्काईवल महत्व का है।
श्री त्रिपाठी ने कहा कि उनकी कोशिश होगी कि वीरेंद्र नारायण जैसे लोगों के कार्य से नई पीढ़ी को परिचय कराया जाय और वह इस दिशा में जरूर कुछ करेंगे।ऐसे लोगों ने हम लोगों के लिए रास्ता बनाया है।उस ज़माने में लंदन जाकर नाटक में ट्रेनिग लेना कितना मुश्किल था।वीरेंद्र जी अलका जी और हबीब साहब ने यह सब किया।
नाट्य आलोचक रवींद्र त्रिपाठी ने मंच का संचालन करते हुए कहा कि हिंदी में कहा जाता है कि बुनियादी और मौलिक काम नहीं हुए पर वीरेंद्र जी ने रंगकर्म पर पुस्तक लिखकर इसका प्रमाण दिया।आजतक ऐसी कोई किताब नहीं है।प्रसाद के नाटकों पर और कई विषयों पर उन्होंने लिखा ।नाटक तो लिखे ही, उपन्यास भीलिखे अभिनय भी किया निर्देशन भी किया।कई विधाओं में काम किया।
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