प्रिया राणा
जन्म – दिल्ली
शिक्षा – एम. फिल, पी-एच. डी.
विधाएँ- कविता, कहानी, लेख-आलेख,पत्र, आलोचना
कृतियाँ- ‘ नया धर्मग्रंथ’, ‘अपराजिता’ (कविता संग्रह), ‘सुभद्राकुमारी चौहान की चुनिंदा कविताएँ’, ‘प्रेमचंद की स्त्री केंद्रित कहानियाँ (चयन व संपादन)
‘साहित्य अमृत’, ‘साहित्य सेतु’, गंगनांचल पत्रिका,हिमप्रस्थ,’प्रयास'(कनाडा)’हिन्दी
चेतना(कनाडा),’गुलमोहर’आदि विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में
रचनाएँ व शोध-आलेख प्रकाशित
संप्रति- अतिथि प्राध्यापक (हिन्दी) मंगलुरू विश्वविद्यालय, कर्नाटक
पता- 901/E, राणा प्रताप गली नंबर-2, नियर छज्जू गेट,बाबरपुर,शाहदरा,दिल्ली-32
फोन नं -9526414087
ईमेल[email protected]
तुम कुछ नहीं जानते
तुम कुछ नहीं जानते
रजस्वला होना
और पीड़ा प्रसूति की
तुम नहीं जानते
बिल्कुल वैसे ही जैसे…
तुम कहते हो मुझसे
रहने दो तुम !
तुम कुछ नहीं जानती।
ऐतिहासिक दीवार
ऐतिहासिक दीवार
मैं एक दीवार हूँ
बोल नहीं सकती जो
दीवारों के भी कान होते हैं की तर्ज पर
इसीलिए ठोक जाते हैं सब कील
और टांग जाते हैं विषाद अपना
कभी फच्च से चिपका देते हैं अपनी हँसी
जैसे चिपकाया जाता है पोस्टर
सटाकर पीठ,लगाकर सिर
बैठ जाते हैं जब भी
देती हूँ रख अपना
आश्वासित हाथ कंधों पर उनके
तत्पश्चात् मिलते हैं अपशब्द
जैसे थूक जाता है कोई
पान की पीक
परंतु मैं बोल नहीं सकती
बहुत पुरानी दीवार हूँ
जर्जर
किंतु ऐतिहासिक।
स्त्री गाथा
स्त्री गाथा
कितना कुछ तो है आज
किंतु… शब्द कहाँ से लाऊँ ?
स्त्री की कथा है
कहो ! कैसे सुनाऊँ ?
मुक्ति
मैंने मरने का प्रयास किया
मुझे प्रसाद की ‘कामायनी’ ने रोका
मुझे आनंदवाद का लालच दिया
मैं वापस मुड़ गई
मैंने कर्म किए
अर्थ कमाया
स्वतंत्रता को फिर गले लगाया
मुझे मनु ने रोका
मैंने प्रणाम किया
अपना युग दिखलाया
सोमरस की जगह
उसे कड़क चाय का
प्याला पिलवाया
कुछ देर की…
उसके और अपने
युग पर चर्चा
समझा-बुझाकर मैंने फिर
उसे उसके समय में
ससम्मान लौटाया
कुछ ब्राह्मणों ने देनी चाही
मुझे शास्त्रों की शिक्षा
मैंने उन्हें इक्कीसवीं सदी का
भारत दिखलाया
कर दिया उन्होंने
बहिष्कृत उसी क्षण
मैंने उनके हाथ में
भारत का संविधान पकड़ाया
शांति का आवाह्न किया
फिर उठाया आत्मसम्मान
तत्क्षण स्वयं को
श्रृंखला की कड़ियों से
मुक्त कराया।
विद्रोह
मैंने लिखे नहीं अनुभव
नीली स्याही से
विद्रोह के काले वस्त्र पहन
हुंकार भरते मेरे अनुभव
देखो ! आ रहे इस ओर
‘इंकलाब जिंदाबाद!’ के ये नारे
लाल स्याही से लिखे हैं, होर्डिंग पर
ध्यान से देखो
माहौल गर्म है।