देवयानी भारद्वाज – कवि, अनुवादक, पत्रकारिताऔरशिक्षाकेक्षेत्रमेंकार्य
प्रकाशित पुस्तकें : इच्छा नदी के पुल पर (कविता संग्रह); मतांगी सुब्रामणियन की किताब ‘डीयर मिसेज नायडू’ और चित्रकार भज्जू श्याम की यात्रा पुस्तक ‘लंदन जंगल बुक’ का अनुवाद। हिन्दी के प्रमुख वेबसाइट और पत्र-पत्रिकाओंमेंकविताएंप्रकाशित।
कार्य अनुभव: दस वर्ष पत्रकारिता में रहने के दौरान प्रेम भाटिया मेमोरियल फ़ेलोशिप के तहत विकास की असमानता और विस्थापन के विषय पर अध्ययन, सिनेमा और अन्य सामाजिक मुद्दों पर लगातार लेखन।
विगत 18 वर्ष से अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ शिक्षा में पाठ्यचर्या-पाठ्यपुस्तकनिर्माणऔरशिक्षणप्रशिक्षणोंमेंहिन्दीभाषाविशेषज्ञकेरूपमेंकार्य।
वर्तमान में पिरामल फाउंडेशन के साथ प्रोग्राम डायरेक्टर के पद पर कार्यरत।
अजमेर में महिला जन अधिकार समिति के साथ महिला मुद्दों पर अध्ययन और कार्य से सम्बद्ध।
राजस्थान पत्रिका कविता सम्मान 2016
संपर्क – devyani.bhrdwj@gmail.com
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कविताएं
सब कुछ होता है सितंबर में
सितंबर में हरसिंगार फूलता है
सितंबर में पानी बरसता है
सितंबर में धूप अच्छी लगती है
और छाँव भी
सितंबर में प्रेमी घर से भाग जाते हैं
सितंबर में वे ब्याह रचाते हैं
सितंबर में दिल टूट जाते हैं
सितंबर में साथी छूट जाते हैं
सितंबर प्रेम में ड़ूब जाने का महीना है आकंठ
सितंबर प्रेम में टूट जाने का महीना है
सितंबर घर बसाने का महीना है
सितंबर में घरों को ढहा दिया जाता है
सितंबर पितरों को याद करने का महीना है
सितंबर बच्चों को जनने का महीना है
सितंबर में मिल जाती है खोई हुई किताबें
———————————— देवयानी भारद्वाज
सितंबर में याद आ जाती हैं भूली हुई बातें।
इच्छा नदी के पुल पर
इच्छा नदी का पुल
किसी भी क्षण भरभरा कर ढह जायेगा
इस पुल मे दरारें पड़ गई हैं बहुत
और नदी का वेग बहुत तेज है
सदियों से इस पुल पर खड़ी वह स्त्री
कई बार कर चुकी है इरादा कि
पुल के टूटने से पहले ही लगा दे नदी में छलांग
नियति के हाथों नहीं
खुद अपने हाथों लिखना चाहती है वह
अपनी दास्तान
इस स्त्री के पैरों में लोहे के जूते हैं
और जिस जगह वह खड़ी है
वहां की जमीन चुम्बक से बनी है
स्त्री कई बार झुकी है
इन जूतों के तस्मे खोलने को
और पुल की जर्जर दशा देख ठहर जाती है
सोचती है कुछ
क्या वह किसी की प्रतीक्षा में है
या उसे तलाश है
उस नाव की जिसमें बैठ
वह नदी की सैर को निकले
और लौटे झोली में भर–भर शंखऔर सीपियाँ
नदीकिनारेकेछिछलेपानीमेंछपछपनहींकरनाचाहतीवह
आकंठ डूबने के बाद भी
चाहती है लौटना बार–बार
उसे प्यारा है जीवन का तमाम कारोबार
———————————— देवयानी भारद्वाज
सूखे गुलमोहर के तले
चौकेपरचढ़करचायपकातीलड़कीनेदेखा
उसकी गुड़िया का रिबन चाय की भाप में पिघल रहा है
बरतनोंकोमाँजतेहुएदेखाउसने
उसकीकिताबमेंलिखीइबारतेंघिसतीजारहीहैं
चौकबुहारतेहुएअक्सरउसकेपाँवोंमें
चुभजायाकरतीहैंसपनोंकीकिरचें
किरचोंकेचुभनेसेबहतेलहूपर
गुड़ियाकारिबनबाँधलेतीहैवहअक्सर
इबारतोंकोआँगनपरउकेरतीऔर
पोंछ देती है खुद ही उन्हें
सपनोंकोकभीजूड़ेमेंलपेटना
औरकभीसाड़ीकेपल्लूमेंबाँधलेना
साधलियाहैउसने
साइकिलकेपैडलमारतेहुए
रोजनापलेतीहैइरादोंकाकोईएकफासला
बिस्तरलगातेहुएलेतीहैथाहअक्सर
चादरकीलंबाईकी
देखतीहैअपनेपैरोंकापसारऔर
समेटकररखतीजातीहैचादरको
सपनोंकाराजकुमारनहींहैवहजो
उसके घर के बाहर साइकिल पर लगाता है चक्कर
उसकेस्वप्नमेंघरकेचारोंतरफदरवाजेहैं
जिनमेंधूपकीआवाजाहीहै
अमलतासकेबिछौनेपरगुलमोहरझरतेहैंवहाँ
जागतीहैवहजूनकेनिर्जनमें
सूखेगुलमोहरकेतले
——————————- देवयानी भारद्वाज
मरुस्थल की बेटी
क्या तुम्हें याद हैं
बीकानेर की काली–पीलीआँधियाँ
उजले सुनहले दिन पर
छाने लगती थी पीली गर्द
देखते ही देखते स्याह हो जाता था
आसमान
लोग घबराकर बन्द कर लेते थे
दरवाज़े खिड़कियाँ
भाग–भागकरसंभालतेथे
अहाते में छूटा सामान
इतनी दौड़ भाग के बाद भी
कुछ तो छूट ही जाता था
जिसे अंधड़ के बीत जाने के बाद
अक्सर खोजते रहते थे हम
कई दिनों तक
कई बार इस तरह खोया सामान
मिलता था पड़ौसी के अहाते में
कभी सड़क के उस पार फँसा मिलता था
किसी झाड़ी में
और कुछ बहुत प्यारी चीजें
खो जाती थीं
हमेशा के लिए
मुझे उन आँधियों से डर नहीं लगता था
उन झुलसा देने वाले दिनों में
आँधी के साथ आने वाले
हवा के ठंडे झोंके बहुत सुहाते थे
मैं अक्सर चुपके से खुला छोड़ देती थी
खिड़की के पल्ले को
और उससे मुँह लगा कर बैठी रहती थी आँधी के बीत जाने तक
अक्सर घर के उस हिस्से में
सबसे मोटी जमी होती थी धूल की परत
मैं बुहारती उसे
सहती थी माँ की नाराज़गी
लेकिन मुझे ऐसा ही करना अच्छा लगता था
बीते इन बरसों में
कितने ही ऐसे झंझावात गुज़रे
मैं बैठी रही इसी तरह
खिड़की के पल्लों को खुला छोड़
ठंडी हवा के मोह में बँधी
अब जब कि बीत गई है आँधी
बुहार रही हूँ घर को
समेट रही हूँ बिखरा सामान
खोज रही हूँ
खो गई कुछ बेहद प्यारी चीजों को
यदि तुम्हें भी मिले कोई मेरा प्यारा सामान
तो बताना ज़रूर
मैं मरुस्थल की बेटी हूँ
मुझे आँधियों से प्यार है
मैं अगली बार भी बैठी रहूँगी इसी तरह
ठंडी हवा की आस में
—————————- देवयानी भारद्वाज
पूर्वोत्तर की लड़कियां (मीरा बाई चानू को ओलंपिक 2021 में भारोत्तोलन में पदक मिलने पर)
खटकती रहती हैं
तुम्हारी आंखों में
दिल्ली की सड़कों पर
देश के विश्वविद्यालयों में
पार्कों में
शॉपिंग मॉल में
फब्तियां सुनती हैं
छेड़ी जाती हैं
चिंकी और चीनी नामों से
बुलाई जाती हैं
पूर्वोत्तर की लड़कियां
पलट कर देखती नहीं तुम्हारी ओर
निगाह लक्ष्य पर रखती हैं
अपने घर से हजारों मील दूर
बेहतर भविष्य का सपना पालती हैं
डट कर पढ़ती हैं
जम कर मेहनत करती हैं
अपना पैसा कमाती हैं
अपनी मर्जी से जीती हैं
हर तरफ भेड़िए हैं
हर पल चौकन्ना रहना है
चुस्त कपड़े पहनती हैं
वर्जिश करती हैं
खूब हंसती हैं
तुम कुत्ते की तरह दुम हिलाते
घात के इंतजार में रहते हो
वे दुनिया में नाम कमाती हैं
तुम भारत की बेटी
कह कर इतराते हो!
——————————————— देवयानी भारद्वाज
रिक्त स्थानों की पूर्ति करो
बचपन से सिखाया गया हमें
रिक्त स्थानों की पूर्ति करना
भाषा में या गणित में
विज्ञान और समाज विज्ञान में
हर विषय में सिखाया गया
रिक्त स्थानों की पूर्ति करना
हर सबक के अन्त में सिखाया गया यह
यहाँ तक कि बाद के सालों में इतिहास और अर्थशास्त्र के पाठ भी
अछूते नहीं रहे इस अभ्यास से
घर में भी सिखाया गया बार–बार यही सबक
भाई जब न जाए लेने सौदा तो
रिक्त स्थान की पूर्ति करो
बाजार जाओ
सौदा लाओ
काम वाली बाई न आए
तोझाड़ूलगाकरकरोरिक्तस्थानकीपूर्ति
माँ को यदि जाना पड़े बाहर गाँव
तो सम्भालो घर
खाना बनाओ
कोशिशकरोकिकरसकोमाँकेरिक्तस्थानकीपूर्ति
यथासम्भव
हालाँकि भरा नहीं जा सकता माँ का खाली स्थान
किसी भी कारोबार से
कितनी ही लगन और मेहनत के बाद भी
कोई सा भी रिक्त स्थान कहाँ भरा जा सकता है
किसी अन्य के द्वारा
और स्वयं आप
जो हमेशा करते रहते हों
रिक्त स्थानों की पूर्ति
आपका अपना क्या बन पाता है
कहीं भी
कोई स्थान
नौकरी के लिए निकलो
तो करनी होती है आपको
किसी अन्य के रिक्त स्थान की पूर्ति
यह दुनिया एक बड़ा सा रिक्त स्थान है
जिसमें आप करते हैं मनुष्य होने के रिक्त स्थान की पूर्ति
और हर बार कुछ कमतर ही पाते हैं स्वयं को
एक मनुष्य के रूप में
किसी भी रिक्त स्थान के लिए
———————————- देवयानी भारद्वाज
औरतें हैं कि फिर भी जिए जाती हैं
एक औरत अभी
अदालत के दरवाजे पर
पहुंची थी विजई मुस्कान लिए
उधर दो लड़कियां
खेत में मृत पाई गईं
तीसरी अभी सांसें गिन रही
एक औरत ने शुरू की थी लड़ाई
तमाम उम्र गाँवबदर रही
दबंगों से दबी नहीं
उसने खोले अदालतों के दरवाजे
वह गाँव की चौखट पर
न्याय के इंतज़ार में
तीस सालों से बैठी है
कानून की किताबों में
जुड़ गए कई पन्ने
अदालतें किताबों को
किनारे रख
बाँच रही मनुस्मृति
खेतों में
सड़कों पर
मठों में
मीडिया में
अदालतों में
संसद में
कुर्सियों पर डट कर बैठे हैं वे
जिनके खिलाफ लाया गया है अभियोग
वे ही सुनाएंगे फैसला आखिरकार
उनकी जुबान लग चुका है
औरत के मांस का स्वाद
वे जानते हैं मुर्दे बयान नहीं देते
अब लड़कियां नहीं
लाश लौटती है घर
या लाश भी न लौटे
जला दी जाए रात-बिरात
यह हाकिम तय करते हैं
साक्ष्य गुनाह के ही नहीं
सुबूत नष्ट कर दिए जाते हैं
उनके होने के भी
वे जो गर्भ में जिंदा रहीं
जिन्हें गाड़ नहीं दिया जन्म लेते ही घर के पिछवाड़े
जिन्हें घर में ही नहीं बना लिया गया हवस का शिकार
वे स्कूल, सड़क, खेत, अस्पताल, गांव, शहर, घर, दफ्तर
कहीं भी
किसी भी पहर
आजाद नहीं हैं
लपलपाती निगाहों से
जिसके हाथ आ जाएं
वह अपने औजार से हार जाए
तो सरिया, चाकू, तलवार, तेजाब
किसी भी जतन से
उन्हें रोंद डालना चाहते हैं
औरतें हैं कि फिर भी जिए जाती हैं
फिर भी पुरुषों से प्रेम किए जाती हैं
——————————————————————— देवयानी भारद्वाज
तेरह साल के लड़के
तेरह साल के लड़के के पास
दुनियाजहानकीप्यासहै
संसार को जानने की
जीवन को जीने की
चांद को छूने की
समंदर को पीने की
झरनों में नहाने की
नदियों में तैरने की
उसके पास हर वर्जित फल को
चखने की प्यास है
ईश्वर को ललकारने की प्यास है
ईश्वर यदि होता तो
मंदिर ही नहीं
आसिफ कहीं भी पानी पी सकता था
आसिफा कहीं भी लंबी तान कर सो सकती थी
जुनैद अपने घर ईद मनाने जाता
अखलाक के घर बिरयानी खाने
तुम बिन बुलाए चले जाते
तेरह साल के लड़के के पास
ज़िन्दगी से अथाह प्यार की प्यास है
तुम जो कभी तेरह साल के लड़के रहे होंगे
तुम्हें किसी ने मंदिर में नहीं
घर में बाप ने पीटा होगा
स्कूल में मास्टर से मार खाए होंगे
गली में गुंडों से डर कर रहे होंगे
चौराहे पर पुलिस ने थप्पड़ लगाए होंगे
तुम्हारे भीतर तेरह साल का लड़का
प्यासा ही मर गया होगा
तुम खुद को बचा लो
मंदिर जाओ
प्याऊ बनाओ
आसिफ को
जुनैद को
अखलाक को
बुला कर लाओ
माफी मांगो
पानी पिलाओ
यह नफरतों का बोझ
तुम्हें जीने नहीं देगा
तुम तेरस साल के लड़के की
प्यास का कुछ नहीं बिगाड़ सकते
बस खुद को बचा सकते हो
खुद को बचा लो
——————————————- देवयानी भारद्वाज
यह समय गुमराह करने का समय है
यह समय गुमराह करने का समय है
आप तय नहीं कर सकते
कि आपको किसके साथ खड़े होना है
अनुमान करना असम्भव जान पड़ता है
कि आप खड़े हों सूरज की ओर
और शामिल न कर लिया जाए
आपको अँधेरे के हक में
रंगों ने बदल ली है
अपनी रंगत इन दिनों
कितना कठिन है यह अनुमान भी कर पाना
कि जिसे आप समझ रहे हैं
मशाल
उसको जलाने के लिए आग
धरती के गर्भ में पैदा हुई थी
या उसे चुराया गया है
सूरज की जलती हुई रोशनी से
यह चिन्गारी किसी चूल्हे की आग से उठाई गई है
या चिता से
या जलती हुई झुग्गियों से
जान नहीं सकते हैं आप
कि यह किसी हवन में आहुति है
या आग में घी डाल रहे हैं आप
यह आग कहीं आपको
गोधरा के स्टेशन पर तो
खड़ा नहीं कर देगी
इसका पता कौन देगा
——————————— देवयानी भारद्वाज