(आरती)
मध्य प्रदेश, रीवा जिले के गोविंदगढ़ में जन्मी आरती ने हिंदी साहित्य से स्नातकोत्तर और पीएचडी किया है।
10 साल से अधिक प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहीं। आरती की कविताएं सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। साथ ही समकालीन मुद्दों और खास तौर पर स्त्री विषयक मुद्दों पर लगातार लेखन करती हैं। एक कविता संग्रह ‘मायालोक से बाहर’ प्रकाशित हो चुका है। दूसरा कविता संग्रह प्रकाशनाधीन है।
आरती ने कई अन्य पत्रिकाओं और किताबों का संपादन किया है। इन दिनों भोपाल में रहकर स्वतंत्र लेखन।
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कविताएं
एक ऋचा का पुनपाठ
चिता से उठती चीखों की आवाज़ें सुन- सुनकर
आखिर एक दिन उनके कान संवेदना से पसीज उठे
और उन्होंने देवभाषा में कहा-
ओ स्त्री उठ!
जिसकी बगल में तू लेटी है वह कब का मर चुका
उठ जीवितों के संसार में वापस चल
उठ देवकामा उठ!
वह अहसान से दोहरी तिहरी हो वापस आई
वह वापस आई देवर के लिए
वह वापस आई पुरोहित के लिए
वह वापस आई किसी न किसी पुरुष के लिए
उन्होंने जब-जब कहा वह हंसी, रोई
और गीत गाने लगी
उन्होंने इशारे किए जब, वह मर गई
जहर खा, फांसी लगा, बच्चे जनकर और
आग में कूद कर भी
इस तरह वह जीवितों कि दुनिया में जिंदा रही
इस तरह वह फिर फिर मरी जीवितों की दुनिया में…
एक और ऋचा का पुनर्पाठ
सबने अक्षत और फूल लेकर हाथ जोड़े
सबने यानी स्त्रियों ने भी
उन्होंने दूसरी ऋचा का पाठ शुरू किया –
‘ओ स्त्री तुम पर भरोसा नहीं किया जा सकता
तुम्हारा मन भेड़िए का मन है
सामने बैठी स्त्रियों की देह जड़ हो गई और
उनके चेहरे पर भेड़िए सरीखे पैने दाँत उग आए
पिताओं ने उनकी ओर हिकारत भरी नजरों से देखा
और उनकी पकाई रोटियाँ कुछ भुनभुनाते हुए खाते रहे
बच्चे आए, वे उनके दाँतों को छूकर, हिलाकर
ठोंक बजाकर देखते और ठहाके लगाते रहे
आखिर में रात के दूसरे पहर पुरुष आए
सबसे पहले उन्होंने उनके नुकीले दाँत तोड़े
फिर शरीर का मांस तोला तोला कर पकाया-खाया
वे डकार आने तक खाते रहे
इस तरह एक भेड़िए के मनवाली का यह संस्कार
सुबह के पहर तक चलता रहा।
रामराज की तैयारी का पूर्व रंग
प्रश्न पूछने वालों को बेंच के ऊपर हाथ उठाकर खड़ा कर दिया जाएगा
मुंडी हिलाने वालों को मुर्गा बनाया जाएगा और
बात-बात पर तर्क करने वालों को क्लास से बाहर धकेल दिया जाएगा
प्रहसन की तैयारी से पहले मास्टर जी ने
यह बात तीन बार बताई
रामराज आने वाला है और यह सब
उसी की तैयारी का पूर्वरंग है
अभी राम को अयोध्या के राजा ने अर्थात उनके पिता ने वनवास दिया है और स्वामी की आज्ञा के आगे कोई भी न्याय वगैरे की बात नहीं करेगा
राम ने भी नहीं की थी न ही किसी देशवासी ने
राजा प्रजा का स्वामी होता है
यह बात भी मास्टर जी ने तीन बार बताई
दूसरे हिस्से में युद्ध का अभ्यास चल रहा है
अस्त्र शस्त्रों के नाम से लेकर तकनीकी की भी जानकारी दी जा रही है
और यह भी कि राम के साथ धनुष बाण हमेशा होना जरूरी है
जैसा की तस्वीर में होता है
अब राम राजा नहीं है फिर भी सेना बनाने में जुटे हैं
रामराज लाने की प्रक्रिया में युद्ध बहुत जरूरी है
इसीलिए जंगल में राम ने पहले भीलों किरातों से
फिर वानर भालूओं से दोस्ती बनाई
सुग्रीम की जरूरत पहचान कर उसे राजा बनने में मदद की
और इस तरह दोस्ती के भीतर दासत्व जैसे नए रिश्ते का ईजाद किया
रामराज लाने से संबंधित तमाम प्रोपेगंडा संभालने का काम
हनुमान के मत्थे सौंपा गया
हां एक बात याद आई
युद्ध में औरतों का क्या काम
इसलिए सारी लड़कियां क्लास से बाहर चली जाए और
वीरों की आरती उतारने का अभ्यास करें
यह बात भी मास्टर जी ने तीन बार बताई
आगे मास्टर जी ने सोने के हिरण वाली बात बताई
राम ने शबरी के जूठे बेर को कितने प्रेम से खाया, यह भी बताया
उन्होंने मारीच से लेकर बाली कुंभकरण और
रावण वध की कथा सविस्तार बताई और तीन तीन बार बताई
उन्होंने यह भी बताया कि रावण बड़ा विद्वान था और
राम विद्वता का बड़ा सम्मान करते थे
अतः उन्होंने लक्ष्मण को रावण के पास राजनीति सीखने भेजा
मास्टर जी ने यह नहीं बताया कि जब लक्ष्मण को राजा बनना ही नहीं था
तो कायदे से राजनीति सीखने राम को जाना चाहिए था
नहीं बताया मास्टर जी ने राम के दुखों और छोटे-छोटे सुखों के बारे में
कि रात के किस पहर अचानक सीता की याद में घंटों रोए थे
कि उन्हें मां की याद कब-कब आई
कि पिता की मृत्यु की खबर राम ने कैसे सहन की
उन्होंने यह सब एक बार भी नहीं बताया कि अग्निपरीक्षा लेते हुए
राम कितने आदर्श बचे थे?
कि गर्भवती पत्नी को बनवास देते हुए राम को अपने होने वाले बच्चे का बिल्कुल भी ख्याल नहीं आया?
सच तो यह है कि राम को राजा ही बनना था
14 साल बाद ही सही
रावण हमेशा राम की छवि चमकाने के काम आया
सच तो यह भी है कि राजा किसी का सगा नहीं होता
न पिता का न पत्नी का न पुत्र का
यहां तक कि उस ईश्वर का भी नहीं जिसकी ढाल वह हमेशा अपने साथ रखता है…
मृत्युशैया पर एक स्त्री का बयान
सभी लोग जा चुके हैं
अपना अपना हिस्सा लेकर
फिर भी
इस महायुद्ध में,कोई भी संतुष्ट नहीं है
ओ देव! बस तुम्हारा हिस्सा शेष है
तीन पग देह
तीन पग आत्मा
मैं तुम्हारा आवाहन करती हूँ
ओ देव अब आओ
निसंकोच
किसी भी रंग की चादर ओढ़े
किसी भी वाहन पर सवार हो
मुझे आलिंगन में भींच लो
अब मैं अपनी तमाम छायाओं से मुँह फेर
निर्द्वन्द हो चुकी हूँ
धरती की गोद सिमटती जा रही
मैं किसी अतललोक की ओर फिसलती जा रही हूँ
प्रियतम का घर
दोनों हाथ खाली कर
बचे खुचे प्रेम की एक मुट्ठी भर
लो अब पकड़ लो कसकर मेरा हाथ
जल्दी ले चलो ,कहीं भी
हां, मुझे स्वर्ग के देवताओं के जिक्र से भी घृणा है
अब कैसा शोक
कैसा अफसोस
कैसे आंसू
यह देह और आत्मा भी
आहुतियों का ढेर मात्र थी
एक तुम्हारे नाम की भी
स्वाहा !!
जीवन में पहली बार इतना सुख मिला
चिरमुंदी आँखों का मौन सुख
सभी मेरे आसपास हैं
सभी वापस कर रहे हैं मेरी आहुतियां
आंसू
वेदना
ग्लानि
बूंद बूंद स्तनपान
अधूरी इच्छाओं की गागरें
हर कोने में रखीं हैं
गरदन उठातीं जब भी वे
मुट्ठी भर भर मिट्टी डालती रही
बाकायदा ढंकी मुंदी रहीं
उसी तरह जैसे चेहरे की झुर्रियाँ और मुस्कान
आहों, आंसुओं और सिसकियों पर भी रंगरोगन किया
आज सब मिलकर खाली कर रहे है
आत्माएं गिद्धों की मुर्दे के पास बैठते ही दिव्य हो गईं
मेरी इच्छाओं का दान चल रहा है
वे पलों क्षणों को भी वापस कर रहे हैं
तिल चावल जौं
घी दूध शहद
सब वापस
सब स्वाहा
उनकी किताबों में यही लिखा है।
अच्छी लड़की के लिए जरूरी निबंध
एक अच्छी लड़की सवाल नहीं करती
एक अच्छी लड़की सवालों के जवाब सही-सही देती है
एक अच्छी लड़की ऐसा कुछ भी नहीं करती कि सवाल पैदा हों
मेरे नन्ना कहते थे- लड़कियां खुद एक सवाल हैं जिन्हें जल्दी से जल्दी हल कर देना चाहिए
दादी कहती- पटर पटर सवाल मत किया करो
तो यह तो हुई प्रस्तावना अब आगे हम जानेंगे
कि कौन सी लड़कियां अच्छी लड़कियां नहीं होती
एक लड़की किसी दिन देर से घर लौटती है
वह अच्छी लड़की नहीं रहती
एक लड़की अक्सर पड़ोसियों को बालकनी पर नजर आने लगती है….. वह अच्छी लड़की नहीं रहती
एक लड़की का अपहरण हो जाता है एक दिन
एक लड़की का बलात्कार हो जाता है और उसकी लाश किसी नदी नाले या जंगल में पाई जाती है
एक लड़की के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जाता है
और एक लड़की तो खुदकुशी कर लेती है…
क्यों -कैसे?
जानने की क्या जरूरत
यह सब अच्छी लड़कियां नहीं होती!
मैं दादी से पूछती -अच्छे लड़के कैसे होते हैं
वह कहती – चुप ! लड़के सिर्फ लड़के होते हैं
और वह शुरू हो जाती फिर से अच्छी लड़कियों के
गुण बखान करने
दादी की नजरों में प्रेम में घर छोड़कर भागी हुई लड़कियां केवल बुरी लड़कियां ही नहीं
नकटी कलंकिनी कुलबोरन होती
शराब और सिगरेट पीने वाली लड़कियां दादी के देश की सीमा के बाहर की फिरंगनें कहलाती थीं
और वे कभी भी अच्छी लड़कियां नहीं हो सकतीं
खैर अब दादी परलोक सिधार गई और नन्ना भी नहीं रहे
फिर भी अच्छी लड़कियां बनाने वाली फैक्ट्रियां
बराबर काम कर रही हैं
और लड़कियों में अब भी अच्छी लड़की वाला ठप्पा अपने माथे पर लगाने की होड़ लगी है
तो लड़कियों! अच्छी लड़की बनने के फायदे तो पता ही है तुम्हें
चारों शांति और शांति…..
घर से लेकर मोहल्ले तक
स्कूल कॉलेज शहर और देशभर में
ये तख्तियां लेकर नारे लगाना जुलूस निकालना
अच्छी लड़कियों के काम नहीं है
धरना प्रदर्शन कभी भी अच्छी लड़कियां नहीं करतीं
मेरे देश की लड़कियों सुनो!
अच्छी लड़कियां सवाल नहीं करती और
बहस तो बिल्कुल भी नहीं करती
तुम सवाल नहीं करोगी तो हमारे विश्वविद्यालय तुम्हें गोल्ड मेडल देंगे
जैसा कि तुमने सुना जाना होगा इस विषय पर डिग्री और डिप्लोमा भी शुरू हो गया है
इन उच्च शिक्षित लड़कियों को देश-विदेश की कंपनियां अच्छे पैकेज वाली नौकरियां भी देती हैं
देखो दादी और नन्ना अब दो व्यक्ति नहीं रहे
संस्थान बन गए हैं
खैर आखरी पैराग्राफ से पहले एक राज की बात बताती हूं
कुछ साल पहले तक मैं भी अच्छी लड़की थी.
आदमी का विलोम
जैसे आग का विलोम पानी होता है
जैसे पिघलना का जमना होता है
या कि जैसे टूटना का जुड़ना होता है
क्या वैसे ही आदमी का विलोम औरत होता है
क्योंकि यहां पर मैं शब्दों के प्रयोग की बात कर रही हूं इसलिए भाषा विज्ञानियों को कोट करना जरूरी है
वे कहते हैं-
नहीं, आदमी का विलोम औरत नहीं होता
सही-सही बरतना सीखो तो आदमी का विलोम जानवर होता है
वे भाषा में बरते जाने वाले गलत रिवाजों को कुछ उदाहरण सहित समझाते हैं
जैसे कि फारसी भाषियों ने आदमी के विलोम को बरता और भाषा के संयंत्रघर में यह मुहावरे की तरह प्रयोग किया जाने लगा
कुछ स्त्री- पुरुष एक आयोजन कक्ष में प्रवेश करते हैं और माइक संभाल कर खड़े संचालक महोदय कहते हैं-
कृपया सभी आदमी दाएं तरफ और
औरतें बाई तरफ….
ऐसे ही वह औरत भी “मेरा आदमी… मेरा आदमी” कहकर बर्तन घिसती, पटकती और दाँत पीसती जाती है
मैं हिंदी की विद्यार्थी और थोड़े समय के लिए शिक्षक होने के बाद भी
कुछ शब्दों को ऐसे ही लापरवाही से बरतती आई
जैसे कि यहां पाँच आदमी और पाँच औरतें बैठे हैं
या फिर फलाँ काम को दो आदमी और दो औरत मिलकर कर रहे हैं
दरअसल जानने से ज्यादा मसले आदतों पर निर्भर होते हैं
और आदतें कोई आसमान से टपकती नहीं
इसे ही शायद राजनीति कहा जाता हैं और बड़े गर्व से इसे ही कूटनीति कहा जाता है
यह वाक्य भी ऐसे ही सदियों पहले कूटनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा बना
और बना एक सर्वकालिक सिद्धांत जिसके तहत औरतें “आदमी” नहीं होती
जिस तरह से यह प्रश्न समाजशास्त्र का हिस्सा है
उसी तरह दर्शनशास्त्र को कमोबेश अब इसे
अपने सलेबस में प्रश्न की तरह शामिल कर लेना चाहिए?
सुना था कि टाइम मशीन बनी थी कभी
फिर यह भी सुना कि वह महज एक कल्पना थी
काश के बन सकती तो कितना आसान होता ऐसी गलतियों को सुधारना और खुद भी सुधर सकना
खैर अब कहां-कहां, क्या-क्या सुधारने की गुहार लगाई जाये
और आखिर तो यह होगा कि मुझे इस कविता को अधूरा ही छोड़ना पड़ेगा
वरना मेरे जमाने के सभी वरिष्ठ और युवा
गैर आधुनिक और आधुनिक
नाना तरह के आदमी, जिनमें मेरे पुरुष मित्र भी होंगे
वे सब के सब चीख ही उठेंगे
ओह, टू मच फेमिनिज्म!!!
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किताबें
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