कविताएं
कुछ अनावश्यक लड़कियाँ
कुछ अनावश्यक लड़कियाँ
इतनी ढीठ हैं
कि बिना कारण बताये ही
आकर गर्भ में ठहर जातीं हैं
पुत्र जन्म की प्रतीक्षा में उद्धत
सारे परिवार की प्रार्थनाओं के बावजूद
विचरने पहुँचती हैं पृथ्वीलोक पर
साज –संभाल न होने के बाद भी
बेल–लतूरे की तरह पलुहुती है उनकी
बेशर्म देहयष्टि
अंलकरणों के न होते हुए भी
वे नए चावल सी गमकती हैं
अनावश्यक बिना मतलब, बिना मकसद, बिना काम ऐसे ही
ढेरों जीवन जीती हैं
और विजेता होने के भाव से भरती हैं।
कभी-कभी कुछ नहीं मिलता
कभी–कभी कुछ नहीं मिलता
न अच्छी पुस्तक
न अच्छे लोग
न फूल,न क्यारी ,न ही खुशबूदार हवा
यहाँ तक कि मेहंदी भी कई बार नहीं चढ़ती हाथों पर
कुछ अच्छा नहीं होता
न दावतें, न जश्न, न जुलूस
ढूँढ़ने से नहीं मिलते बहुत बार
प्रेमी जनों के जूतों के निशान
पतझड़ के मौसम में ।
लिबास में पुलिस
उस दिन पुलिस वाले इंसानों जैसे लग रहे थे
उतार रखी थी उन्होंने वर्दियाँ
साधारण कपड़ों में वे चहलकदमी कर रहे थे
कुछ जिप्सियों के पास खड़े थे
शायद ड्यूटी से छुट्टी का वक्त रहा होगा
वे दहशतगर्द नहीं लग रहे थे
शहर में उनकी छावनी
नदी के टापू की तरह थी
वहाँ से गुजरते ख़ौफ़ज़दा लोग
हमेशा शक –शुबहों में रहते
वर्दीधारियों की वर्दी को लेकर
परिवार और व्यक्तियों में वहम बना ही रहता
कब किस पर तान दी जायेगी रिवाल्वर
किसे एन्काउंटर कर दिया जायेगा
किस निर्दोष को डाल दिया जायेगा सलांखों के पीछे
पुलिस प्रतिशोध नहीं है जनता का
जनता के ही कुछ मानीखेज लोग पुलिस हैं
ताकत और दहशत के जूलूस तो
व्यवस्था ने बरपाये हैं
मेरा प्रेमी
वह मेरा प्रेमी है
वह अंतरिक्ष में रंग–बिरंगी पतंगें डालता है
मैं उससे प्रेम करती हूँ
इसलिए वह मेरा प्रेमी है
उसकी कई सारी इच्छाएँ हैं
मसलन जब मैं असुन्दर होती हूँ
तो वह सुन्दर होने की माँग करता है
जब मैं गैर पढ़ी–लिखी होती हूँ
तो वह पढ़ी–लिखी होने की माँग करता है
जब मैं पढ़–लिख जाती हूँ
तो वह माँगता है ऐसा कच्चापन
जो पढ़ने–लिखने पर पास नहीं रहता
आंधियाँ
देखो इन आँधियों ने मेरा घर उजाड़
दिया है
मेरी पत्नी और बच्चा कहीं खो गए हैं
कहाँ ढूँढू उनको
वे दोनों मिलते ही नहीं
अकेला गुमनाम सा बैठा हूँ
दिन निकलते हुए बहुत दूर चले गए
मेरे मन का सूरज डूब चुका है
थकान से लथपथ हूँ मैं
सब कुछ रुला देने वाला है
यारियों के शब्द टूट कर बिखर गए हैं
मेरी पत्नी मुझसे नाराज है
वो मुझसे मिलना नहीं चाहती
मेरा बच्चा पिता शब्द को
अब तक भूल चुका होगा
दिनों की दूरी और महीने
सिमटते चले गए
वे दोंनो मुझे नहीं मिले
सोंचा नहीं था
ऐसा हो जायेगा
घर यूँ ही हाथों से फिसल जायेगा
मैं अकेला
इतना लंबा जीवन
जीता चला जाऊँगा ।