कविताएँ
स्त्रीयुग
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औरतें
अम्मा
ऊनी फ्रॉक
माँ ने बनाया था मेरे लिए
बैगनी रंग का ऊनी फ्रॉक
यही कोई जब पाँच-छः वर्ष की रही होऊँगी
बड़ा प्यार था मुझे उस फ्रॉक से
इसलिए नहीं कि बहुत ऊष्मा थी उसमें
बल्कि इसलिए जब मैं पहन कर निकलती
तो सभी औरतें उसका डिजाइन देखने के लिए
अपने पास बुलातीं,बहुत दुलार से करीब बैठातीं
सच,निहाल हो जाया करती थी मैं
दाँए,बाँए मुझे घुमाकर पूरी तसल्ली से
चार-पाँच गुणवन्तियां सलाह-मशविरा करतीं
मैं गर्विता गोल-गोल भी, घूमकर दिखाती माँ का हुनर
दो सलाई सीधा,दो सलाई उल्टा
दो फंदा बढ़ाना,दो फंदा घटाना
पहले दो घर छोड़ना,फिर तीन घर एक साथ बुनना
यही उस बैठक का मुद्दा रहता
घर आकर जब माँ को बताती
कितने लोगों ने इसकी बड़ाई की
चमक उठती थीं उनकी आँखें
चेहरे पर पसर जाती मद्धम सी मुस्कान
मन ही मन वो अपनी पीठ भी थपथपातीं
कितना भला था न वो समय
कि ऊन और सलाई भी
आपसी रिश्ते बुनते थे
किसी रिश्ते में फंदा गिर जाए
तो हाथोंहाथ उस फंदे को उठाकर
पूरी बुनाई दुरूस्त कर लेते थे
पूरी सर्दियां रंग-बिरंगे ऊनों से गुलजार रहती थीं
छत,बच्चे व औरतों से रंगीन रहते थें
कहीं मिल जाए गर्माहट भरी यारी
तो करनी चाहिए
पूरे मनोयोग से हर फंदे की बुनावट
कि ऊष्मित रहे आपसी संबंध