Tuesday, May 14, 2024

मैं दिव्या श्री, कला संकाय में स्नातक कर रही हूं। कविताएं लिखती हूँ। अंग्रेजी साहित्य मेरा विषय है तो अनुवाद में भी रुचि रखती हूं। बेगूसराय बिहार में रहती हूं।

प्रकाशन: हंस, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, समावर्तन, ककसाड़, कविकुम्भ, उदिता, इंद्रधनुष, अमर उजाला, शब्दांकन, जानकीपुल, अनुनाद, पोषम पा, कारवां, साहित्यिक, हिंदी है दिल हमारा, तीखर, हिन्दीनामा, अविसद, सुबह सवेरे ई-पेपर। 

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कविताएं

शिक्षक दिवस

शिक्षक काँटे हैं 
जिनके बीच खिलते हैं रंग-बिरंगे फूल कई-कई 
वे फूल अंधेरी रातों में ही गुम हो जाते हैं अक्सर 
जिनके बीच नहीं होते हैं काँटे कोई 
 
माँ बचा लेती हैं अपने बच्चों को पूरी दुनिया की नजरों से 
तो पिता अपने कंधों से दिखा देते हैं पूरी दुनिया उसे
इस पृथ्वी पर केवल एक शिक्षक ही हैं
जो हमें सबकी निगाहों में बैठाने का सामर्थ्य रखते हैं।

मैं कविताओं में सौंदर्य तलाशती हूँ

प्रेम खत्म हो जाने पर भी 
गर जानती दुःख के छाले पड़ते रहते हैं
मैं कभी न करती प्रेम 
 
तुम्हें भूलने की नाकाम कोशिश करती
साबित कर चुकी हूँ कई बार
मेरी याददाश्त बहुत अमीर है
 
तुम्हारे सच न कहने पर भी
मैं सब सुनती रही वर्षों तक
मेरा उसे झूठ कहना भी तुम्हें तकलीफ देती है अब
 
जीवन में प्रेम संग प्रवेश हुआ दुःख भी
जिसे मेरी माँ ने मेरी देहरी से दूर रखने की कवायद में प्रार्थनारत रही थी मेरे छुटपन से ही
 
उन दिनों उनकी सारी तपस्याएँ भंग होकर रह गई 
मैं प्रेम में अभागिन बनकर
मेरी एक गलती ने उनके जीवन से सुख के दिन सदा के लिए छीन लिये
मेरी आँखों का खारापन रह गया उनकी त्वचा का छाला बनकर 
 
तुम्हारी यादें मुझे बुरी तरह घायल करती हैं
मैं तुम्हारे प्रेम में पीड़ित रही हूँ
यक़ीनन मनोनुकूल होने की सम्भावना भी बेहद कम है इन दिनों
 
कुछ चीज़ें कचोटती रहती हैं जीवनपर्यंत 
जिसे कविता में कहना, कविताओं से प्रेम करने जैसा न होगा
मैं कविताओं में सौंदर्य तलाशती हूँ
 
मैं अपने अंतिम समय तक
तलाशती रहूँगी प्रेम 
नहीं चाहती इसके ऊपर भी पड़े कभी कोई छाले।
 

गवाह हैं हमारे प्रेम के

यदि जीवन की सबसे यंत्रणादायक यात्रा रही कोई तो प्रेम की
तुम्हारे प्रेम में मन के निर्जन वन में कस्तूरी बनने से लेकर
स्मृतियों के कंटकवन में यात्रा करते हुए 
मैंने कई बार तुम्हें भूलना चाहा
 
प्रेम जीवन का इकलौता ऐसा इम्तिहान है
जिसमें सदियों से बेवफाई के प्रश्न अंकित रहे
वे तमाम खुशी रंगहीन हो जाती है
जब छाए रहते हैं बादल प्रेम के
 
मेरी हथेली पे किसी और का नाम दर्ज है
जानते हुए भी दिल ने तुम्हें चुना
तुम सीप के वे मोती हो
जो जीवनभर मेरे दिल के खोले में कैद रहोगे
 
जब खाई थी कसमें तुम्हारे नाम को अपनी जिह्वा पर न लाने की 
प्रेम में इससे बड़ा दुःख और क्या होगा
न चाहते हुए भी तुम्हें प्रेम किया
चाहतें तो थी जीवनभर संग बिताने के 
 
तुम्हारे प्रेम में मैं जंगल के वे फूल बीनती हूँ
जिसे ईश्वर के समीप जाने का सौभाग्य न मिल सका
मैं खुद को उस फूल के जरिए देखती हूँ
और अपनी किस्मत को कोसते हुए मुरझा जाती हूँ
 
तुम मेरे लिए हीरे जैसे तो नहीं पर मिट्टी हो
सुनो न मैं तुम्हारे लिए कविताएँ लिखूँगी
तुम मेरे लिए पेड़ लगाना न
मेरी कविताएँ तुम्हारे लगाये पेड़ पर फलेगी
 
बच्चे हमारे प्रेम से अनभिज्ञ 
उसी पेड़ के नीचे कविताई करते हुए खेलेंगे 
जब वे पोछेंगे एक-दूसरे का पसीना
हम गले मिलेंगे और एक साथ कहेंगे ये गवाह हैं हमारे प्रेम के होने के। 
 

मेरी आवाज ही पहचान है

देह से अदेह होने की यात्रा तक
संगीत की मृदुल चाल तुम्हारे साथ रही
तुम्हारे स्वर की पवित्रता
संगीत के पोर-पोर से झलकती है
 
जब तुम गाती हो
लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो
तुम्हारी आवाज आत्मा की आवाज लगती है
जहाँ न शोर होता है न भय
होती है आँखों के सामने प्रेमी की उदास भरी एक तस्वीर 
 
तुम्हारी आवाज ईश्वर की आवाज है
कहते हुए आत्मा प्रेम की बारिश से भींग जाती है
तुम प्रेमियों के वे अनकहे शब्द हो
जिसे तुम्हारी आवाज मिली
 
तुम्हें सुनते हुए 
सुन लेती हूँ कई अनकही बातें भी
जिसे बिना सुने ही छोड़ आई थी
और जो छोड़ गया है
उसे कहने के लिए भी सुनती हूँ तुम्हें बार-बार 
 
दुनियाभर के प्रेमियों के शब्द 
तुम्हारे स्वरों में कैद हैं
उनके दुखों पर लगे हैं तुम्हारे सुर के मलहम 
जो एक उम्मीद है आने वाले दिनों में थिरकने की। 
(लता जी को समर्पित)
 

मेरी आवाज ही पहचान है

देह से अदेह होने की यात्रा तक
संगीत की मृदुल चाल तुम्हारे साथ रही
तुम्हारे स्वर की पवित्रता
संगीत के पोर-पोर से झलकती है
 
जब तुम गाती हो
लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो
तुम्हारी आवाज आत्मा की आवाज लगती है
जहाँ न शोर होता है न भय
होती है आँखों के सामने प्रेमी की उदास भरी एक तस्वीर 
 
तुम्हारी आवाज ईश्वर की आवाज है
कहते हुए आत्मा प्रेम की बारिश से भींग जाती है
तुम प्रेमियों के वे अनकहे शब्द हो
जिसे तुम्हारी आवाज मिली
 
तुम्हें सुनते हुए 
सुन लेती हूँ कई अनकही बातें भी
जिसे बिना सुने ही छोड़ आई थी
और जो छोड़ गया है
उसे कहने के लिए भी सुनती हूँ तुम्हें बार-बार 
 
दुनियाभर के प्रेमियों के शब्द 
तुम्हारे स्वरों में कैद हैं
उनके दुखों पर लगे हैं तुम्हारे सुर के मलहम 
जो एक उम्मीद है आने वाले दिनों में थिरकने की। 
(लता जी को समर्पित)
 

आंसु मेरे प्रेम का नमक

दुनियाभर की सारी किताबें
मेरे प्रेम को छापने में असफल रही
 
मैं एक कवि थी, प्रेम में असफल 
रात में तारे संग ठिठोली करती
दिन धूप भरी मोहब्बत लेकर आता
मैं वसंत की वह फूल थी
जो अंजाने ही पैरों तले कुचली गई 
 
तुम वसंत हो
जो आता है साल में एक बार
अबकी वसंत मेरे घर का पता भूल गया है
मैं लिखूँगी एक कविता 
जिसमें होगा मेरा पता
 
सुनो मेरी कविताओं में 
मेरे बिछड़े हुए प्रेमियों को न ढूँढना 
वे सबके सब कैद हैं मेरी रातों में
जिन्हें नसीब हुई है मेरी नींद
मैं अपनी रातें बिछड़े हुए प्रेमियों को सौंपकर 
अपनी मोहब्बत कुबूल करती हूँ
 
मैं करती हूँ प्रार्थना अपने इष्टदेव से
रातें जब हो निश्शब्द
मेरे प्रेमियों को मेरी याद न दिलाना
अतीत की यादें आँसू है
आँसू मेरे प्रेम का नमक 
मैं चाहती हूँ उस नमक का स्वाद बरकरार रहे ताउम्र।
 

अंधेरा रातों का वस्त्र है

उस दिन जब हम दोनों की आखिरी बातें होंगी
हम बात नहीं करेंगे
सुनेंगे एक-दूसरे की आहट को
हमारी मौन में शब्दों से अधिक शक्ति होगी
हम प्रेम में होकर भी पुकारेंगे नहीं
 
हमारी अधूरी नींद गवाह है हमारे प्रेम की
हमारा भोर संगीत से नहीं, तुम्हारे नाम से होता है
तुम्हारा नाम एक पवित्र स्थल है
सुकून के सारे दरवाजे तुमसे होकर खुलते हैं
पर तुम तक नहीं पहुँचते
 
मैं बैशाख की लू भरी धूप हूँ
दो बूँद पानी को तरसती
तुम सावन की बरसती बूँद हो
मेरा प्रेम मेरी रातों के अंधेरों का उजाला है
पर हर रात स्याह तो नहीं
 
डरने लगी हूँ अब सफेद रातों से
अधिक रोशनी रात को रात नहीं रहने देती है
अंधेरा रातों का वस्त्र है
रात के तीसरे पहर में जब हम मिलेंगे हमारे बीच चुप्पी होगी
हम दोनों की चुप्पी ही हमारा संवाद होगा
 
बेशक हम दूर हो जाएँगे एक-दूसरे से
पर हमारे दुःख एक रहेंगे
इसी बहाने हम मिलेंगे 
प्रेम की नदी में डूबे हुए 
दुःख के बीहड़ सागर में तैरेंगे हम 
 
हम एक-दूसरे को रोज पुकारेंगे 
पर किसी नाम से नहीं
हमारी आत्मा पर एक-दूसरे का हस्ताक्षर है
पर कितने दुःख की बात है!
अबतक हमने हाथ नहीं मिलाया।
 

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