कविताएं
चुपचाप सोचना इस ब्रह्मांड का फैलाव
ठिठक जाओगे
हरदम के ही फैलाव से
जैसे तुम अटकते हो जीभ पर
मीठे और कड़वे का भेद जानती है जीभ
अपनी तेजी में एकसार
मीठा और कड़वा ही बतलाती
ये चाँद जो है न
पृथ्वी के शुरुआती दिनों का साथी है
ऊँट की तरह रोकता रहा धरती की चाल
मौसम ने तो बदलाव ही सिखाया था
कि सिर्फ़ चाँद और समुद्र के साथ
उमड़ती-घुमड़ती स्मृतियों में
कहीं छुप गई थी हवा
जिसके साथ हम हवा में
हवा से करते फिरते थे सिर्फ़ बातें ।
मेरे तुम्हारे होने का
पहला क्रांतिकारी ईंधन की तरह आया था ऑक्सीजन
वो काँटे वाली मछली पहला रीढ़ लेकर पैदा ही हुई थी
कि उसकी छटपटाहट में
शामिल हुई थी
हवा की भाषा
सबसे सहज सी भाषा
जब बहती है तब हर रोम-रोम में महसूस होती है
एक संवेदन
वो गर्म होगी फिर ठंडी
जिसकी तासीर बदल देती है
हर का शरीर
हर एक सिहरन में
हिलते-डुलते पत्तों से
निकलते हैं नमूने
जिनसे
आग और पानी दोनों ही हवा का अनुवाद हैं ।
पानी के बुलबुले में
तो जलती हुई
आग की साँसों में है ऑक्सीजन
उसकी धड़कनों में रहने वाला
खुद नहीं जलता
बस जलाता ही है ।
तुमने सबसे पहले सीखा आग जलाना
डरा कर भगा दिया जानवरों को
उसी गुफा में बची थी राख
जिसके कंठ से फूटी होगी कोई नदी ।
आग का जलना नीचे से ऊपर चढ़ना
जैसे चढ़ा होगा आदम
लिया होगा पानी का स्वाद ।
एवरेस्ट चढ़ने वाले नीचे से ऊपर पहुँच बोलते हैं आग की भाषा
पानी की भाषा कितनी सरल और सहज है
ऊपर से नीचे सिर्फ़ और सिर्फ़ बहना
स्मृतियों को मस्तिष्क से निकाल
हृदय में उतार बह जाती हैं
उसे नहीं जरूरत होती
प्रेम या नफ़रत की
वो एक सी कहाँ रहती
हरपल हर क्षण बहती है पानी की भाषा ।
पानी हो
माटी
तुम हों
हम हों
बिन हवा की जुबानी
नाही कोई निशानी
माटी बनना होना
पानी बनना हो
बस हवा में घुलना होगा
जिसमें घुली थी तुम्हारी उपस्थिति ।
कहानी
- विनीता परमार
उसे बचपन से ही पानी से लगाव था। घंटों खड़े होकर पानी का बहना देख सकती थी। नदी के किनारे बैठ जाती फिर किसी से भी पूछने लगती कितनी होगी इस पानी की उम्र? जिससे भी सवाल किया जाता वह उलझ कर जाता था। पानी तो अबूझ पहेली है। उसके जन्म की कहानी परियों सी रहस्यमय तो उसकी टप-टप,छप-छप की आवाज़ एक पहेली। कलियों पर पड़ी बूंदें फूल तो बीजों पर पड़ी बूंदें नई पौध। उसके जन्म के बाद भी तो स्नान और मृत्यु के बाद भी होगा नहान। चट्टानों को चीर हहराते गिरते पानी को लगते चोट को भी उसने महसूसा था। वो समंदर के किनारे भी जाती तो बालू वाले तट उसे पसंद आते। पत्थरों पर पानी की गिरती थाप में उसे हमेशा लगता पानी को पत्थरों पर चोट लगती होगी। लोगों से लड़ पड़ती जब लोग कहते पानी की मार से पत्थर घिसते हैं।
माँ कहती थी उसने पहले माँ नहीं मम बोला था। पहली बारिश होने पर भाग जाती खुले आकाश के नीचे। जी भर नहाने के बाद माँ की एक प्यारी सी डांट के बाद घर में घुसती थी। स्कूल से लौटते समय एक दिन हवा ने भाप की बूंदों को कैद कर रखा था। शरीर के चुनचुनाहट में पानी के अंदर छुपे गर्म चिपचिपाहट को महसूस कर रही थी।
तभी उसका सीनियर उसकी छाती पर हाथ मार भागा था। तब उसने उसके बाद की बारिश में नमी नहीं उष्णता का अहसास किया था। जैसे – जैसे बड़ी होती गई अब पानी नहीं उसका स्वभाव उसे अपनी ओर खीचने लगा। मसलन पानी सा बहना लगातार बहना बस स्त्रियॉं के स्वभाव के विपरीत वो ऊपर से नीचे बहती।
बहती गई थी घर-परिवार की धार में। एक भरे-पूरे परिवार में बड़ी होने की जिम्मेदारी। सबको समेटकर चलने में जाने कब वो लीक पर चलती धार को छोड़ अपनी लाईन खींच चुकी थी।
सास की अनुपस्थिति में पति के दो छोटे भाइयों के परिवार में अपने-पराये के फ़र्क को पाटकर चल रही थी। बीचवाला देवर तो एक मिनट के लिए नहीं छोड़ता उसकी हर छोटी-बड़ी बात में भाभी शामिल होती। फिर अचानक काल ने पति को छीन लिया। दिन-रात घर-परिवार में रमी सुमि को ज्यादा अंतर नहीं महसूस हुआ घर में वही दमखम वैसे ही निर्णय लेना। एक दिन देह की आग के पीछे छुपे बूंदों ने अपनी कैद छुड़ा ली और पानी ने आग को बहा दिया। मँझले देवर को अपनी अंतरंगता दे चुकी सुमि अपने भीतर की नमी में गर्मी महसूस करने लगी। समय और समाज दोनों नहीं रुकते। बढ़ते वक्त के साथ देवरों की शादी और बच्चों के साथ परिवार बढ़ता गया। कमरे की सीमाएँ अब छतों में बंट चुकी थी। इन सबके बीच पहले बाढ़ फिर अचानक एक दिन सुनामी सा उसके जीवन में आ गया।
अब ऐसा हो गया था कि उसे घंटों पानी की बहती धार में बैठना अच्छा लगता। पानी के साथ उसे पहले भी अच्छा लगता था लेकिन अब उसके और पानी की अबकी दोस्ती किसी को भी पसंद नहीं आती है। वो नल खोल देती और कभी हाथ धोती तो फिर पैर। पानी और सुमि के इस रिश्ते ने घर में आग लगा दी है। उस आग में पानी की बूंदें पड़ते ही फफक और बढ़ जाती है जैसे सोडियम का कोई टुकड़ा पानी में गिर पड़ता हो।
“बड़ी मम्मी जल्दी चलिए” सब आपका इंतजार कर रहे हैं। यह कहते हुए मानसी सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी।
“उनका तुरंत!
तुम क्या जानो?“
‘ऐसा क्या? आप भी न चाचू हमेशा उन्हें बोलते ही रहते हैं।’
“तुम ख़ुद देख लेना। एक दिन तुम भी उनकी हरकतों से ऊब जाओगी। बहुत दिन बाद मिली हो इसी कारण प्यार उमड़ रहा।”
नीचे इंतजार कर रहे सबका ध्यान सीढ़ियों की ओर है।
“साढ़े नौ बज गए ठंड के दिनों में इतनी देर तक पार्टी चलती है क्या?”
“एक बार फिर देखकर आओ।”
“हाँ सुनो ! अबकी साथ लेकर ही उतरना।”
“बड़ी मम्मी कितनी देर लगा रही हो। अब लेट करोगी तो सब हमें छोड़कर चले जायेंगे।”
बड़ी मम्मी, बड़ी मम्मी की आवाज़ लगाती मानसी गुसलखाने तक आ गई।
उसने देखा बड़ी मम्मी यानि सुमी तो तैयार हो चुकी हैं लेकिन लगातार पैर धोए जा रही हैं। नल खुला हुआ है।
“मम्मी आप क्या कर रही हैं?
“बहुत ठंड है इतना पैर क्यों धो रही हैं?”
मानसी ने जैसे सुमि को नींद से झकझोर दिया।
“अरे ! सही में लेट हो गई। उधर से उतर रही थी तो पैर गंदे हो गये। चलो चलते हैं सब चिल्ला रहे होंगे।”
“हाँ जल्दी चलो ! चाचा गुस्से में हैं।”
सुमि और मानसी लगभग दौड़ते हुए नीचे पहुँचे।
सबके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था। जैसे किसी पिंजड़े से भागी चिड़िया को पकड़ लिया गया हो।
बड़ी माँ थोड़ी सिहकी हुई गाड़ी में बैठ गईं।
कार स्टार्ट हो गई है। सुमि कहीं गुम हो गई है यहीं तो हूँ लेकिन सब छूटते गए। मेरी एक आवाज़ पर सारा घर घूमता था। सारे खर्च और निर्णय धीरे-धीरे हाथ से निकलते गये। वो तो पानी का ही सहारा है जो काट देता है सारे विकार। पानी में अपनी उमड़ –घुमड़ को निकाल लेती हूँ।
“चलो जल्दी गाड़ी से उतरो सब! वैसे भी अब पार्टी में कुछ नहीं रखा है। कहीं सिर्फ़ बर्तन धोना पड़े। यह तंज चाचा ने किया”।
मानसी छोटे देवर की बेटी है जो चार दिन पहले ही तो आई है। उसे लग रहा है हालात उसकी पकड़ में बिल्कुल ही नहीं। सबकुछ होते हुए भी उसे कुछ अजीब लग रहा है। पार्टी में मानसी का मन नहीं लग रहा था। उसके दिमाग में घर की बदलती परिस्थितियाँ चल रही हैं। एक साथ सबकुछ कितना बढ़िया चल रहा था । कमरे और फ्लोर बदलने के बावजूद सब एक-दूसरे के सुख-दु:ख में साथ ही तो थे।
“यह सोचते – सोचते मानसी अपने अनोखे परिवार की संयुक्त सुख – दुःख को याद करने लगी। बड़ी मम्मी जो धुरी थीं इस परिवार की उनके इर्द – गिर्द सारा परिवार घूमता था। मजाल था कि उनकी अनुमति के बिना घर में कोई एक नया सामान आ जाए या कोई एक नया पैसा ख़र्च कर ले। पापा और चाचा को तो जैसे उन्होंने ही पाला था। पतली – दुबली फुर्तीली बड़ी मम्मी झाड़ू – पोछे से लेकर घर के सारे काम बड़ी तल्लीनता से करती थीं। हरएक की सारी चीजें जानती थी। दादी के जाने के बाद दादा जी का ख़्याल रखना। घर को एक धागे में बाँधकर चलने का हुनर था उनमें। एक – एक तिनके पर अधिकार रखने वाली बड़ी मां उसे भी कितना प्यार करती थी। संजू भैया और कुहू अपने बच्चों को छोड़कर सारा प्यार हमारे ऊपर उडेलते रहती थीं। अब जाने क्या हो गया? किसकी नज़र लग गई हमारे इस परिवार को जिसकी धुरी की गूँज सारे रिश्तेदारों और जानने वालों में थी।”
पार्टी की थकान के बाद सब घर वापस आ गए मानसी भी घर आते ही सो गई। थकान की पूर्णता नींद की पूर्णता का समानुपाती होता है। आँखों में नींद के थपेड़े अभी चोट मार ही रहे हैं कि कहीं किसी मशीन के चलने की आवाज़ कानों में सुनाई देने लगी। आधी खुली आँखों से मोबाइल में देखा तो अभी साढ़े चार बज रहे हैं। अभी वाशिंग मशीन चलने की आवाज़ कहां से आ रही है? मानसी नींद को तिलांजलि दे कमरे से बाहर निकल वाशिंग मशीन की आवाज़ की दिशा का पता करने लगी।
बाहर निकलने पर पता चला ऊपर के फ्लोर से आवाज़ आ रही है। अभी कौन वाशिंग मशीन चला रहा होगा?
वो ऊपर जाकर देखने चली गई। ऊपर जाकर देखा तो इतनी ठंड में बड़ी मम्मी सिर्फ़ ब्लाऊज पेटीकोट पहनी हुईं हैं। वाशिंग मशीन में कपड़े धुल रहे हैं। वो बाथरूम खुला रख नल का पानी बहवा रहीं हैं। कभी हाथ धो रहीं हैं तो कभी पैर। दूसरे सभी लोग अपने-अपने कमरों में सो रहे हैं। शायद लगातार कुछ अजीब होने की क्रिया आदतों में शामिल हो चुकी है।
इतनी ठंड में नल के पानी से हाथ पैर धोना देख मानसी ने बाथरूम से बाहर निकालने की कोशिश की तो मना करने लगीं।
“अरे ! गंदा लगा हुआ है मुझे धोने दो।” पानी ही तो सबकुछ धो देता है। तुम जाओ! मैं अभी सब साफ़ करूंगी।”
मानसी ने भी ज्यादा जिद नहीं की सारे लोग जागने के साथ बतंगड़ बनायेंगे यह सोच वो नीचे चली आई। कंबल में घुस सोच में पड़ गई ये बार – बार दिमाग में किसी अनिष्ट का विचार घुमड़ रहा है। अभी रात का धुंधलका ख़तम होने ही वाला है कि फिर ऊपर झाड़ू से फर्श धोने की आवाज़ कानों में आने लगी।
चाचू के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज़ आ रही है।
“आप नहीं मानोगी एक बार धो दिया फिर ये बार – बार एक ही जगह को क्यों धो रही हो?“
“अरे! यहाँ भी तो गंदा है कोई पैर में मैला लेकर आया है उसने पूरे घर में फैला दिया है।”
“कोई नहीं आया है? बस अब आप पागल हो गई हो।”
दोपहर में फिर बाथरूम खाली नहीं होने के मुद्दे पर बहस की आवाज़ सुनाई दे रही है। पानी ठंड और सफाई के कारण दिन रात की चिक-चिक। यह हल्ला – गुल्ला ऊपर – नीचे और बीचवाली छत के लोगों के लिए आम बात हो गई है।
सब अपने-अपने में व्यस्त हैं और सुमि पानी के साथ व्यस्त। खांसते रहती है; पानी में काम करते रहती है। दिन भर में चार – पाँच बार नहाना बार – बार कपड़े धोना ये सब आम बात है। आज नीचे के फ्लोर में चिकेन करी बना था। रात में सभी ने मिलकर खाया था सुमि ने अपने पसंदीदा डिश का भी त्याग कर दिया है। आज फिर लगातार वाशिंग मशीन चल रहा है। सारे कमरों के बेडशीट, पर्दे, चादर और सोफा कवर सब धुल रहे हैं। अभी तो न दिवाली है ना होली फिर किस खुशी में इतनी सफाई। इस सफाई के पीछे का राज़ भी बड़ा खोटा निकला। मांसाहार ने सारे घर को अपवित्र कर दिया। लगातार सफाई और फर्श की धुलाई की वजह से टंकी का पानी भी ख़त्म हो गया। सुमि के कमरे में जाने से कोई भी डरता है ।
मानसी की भी छुट्टियाँ खत्म होनेवाली है आज वो सुमि से बात करने गई। उसके दरवाजा छूने की आहट लगते ही सुमि को लगा मानसी ने कुछ गंदा लगा दिया हो। सुमि उससे बात करने की बजाय दरवाजे को साफ करने में लग गई। मानसी की कोशिश बेकार गई वह अपनी बड़ी माँ को वापस चाह रही है। सुमि के उस पानी प्रेम को जानना उससे उपजी उलझनों को सुलझाने की कवायद में मानसी लग गई। उसने अपनी छुट्टियाँ आगे बढ़ा लीं।
एक दिन बिना बताए मानसी डॉक्टर के पास बड़ी माँ को लेकर गई।
“मुझे कुछ नहीं हुआ है।”
“आपको कुछ नहीं हुआ है एक बार डॉक्टर से मिलने में कुछ नहीं जाता।”
नाम, उम्र के बाद पहले दिन केस जानने के बाद केस हिस्ट्री लिखना शुरू हुआ जहां सिर्फ़ डॉक्टर और पेशेंट हैं।
“केस हिस्ट्री मसलन आपकी शादी किस उम्र में हुई?”
“आपकी माँ को कोई बीमारी थी?”
“आपके कितने बच्चे हैं?”
आपको क्या महसूस होता है?
इस सवाल के जवाब में सुम्मी अटक चुकी है।
“डॉक्टर मुझे एक अँधेरी सी सुरंग दिखाई पड़ती है जिसमें मेरे पूरे शरीर पर चींटियाँ रेंगती हुई नज़र आती हैं। अपने शरीर से एक बदबू आती है; जिसकी दुर्गंध मुझे जीने नहीं देती। मुझे मन करता है अपने गंदे शरीर को सिर्फ़ साफ़ करते रहूँ।”
पानी की तरह बहती रहने वाली सुमि डॉक्टर की काउंसलिंग और बातों में बहवाने लगी। रोज़ की बैठकों में अपने अंदर जमा गाद को खाली करते जाती। अपनी बातों को खाली करती लेकिन फिर एक निर्वात को भरते जाती।
डॉक्टर ने मानसी को बताया – “ये पागल तो नहीं लेकिन ऑब्सेसिव क्ंप्ल्सिव डिसोर्डर (ओसीड) की शिकार हैं। इस बीमारी में बीते हुए कल और आनेवाले कल के बीच में इंसान जीता है। अपने वर्तमान को भूल चुका इंसान सिर्फ़ और सिर्फ़ भविष्य पर फोकस करने में लगा रहता है।”
सुमि के बीते कल में भी पानी शामिल था जो बर्षों पहले छूट चुका था। अपनी नमी की दुनिया में आगे निकल चुकी सुमि अपने समर्पण को नहीं भूल पा रही थी। वो वहीं रुकी हुई थीं तभी सारी चीजों को धोने लगतीं। उसे अपने भविष्य में एक सूखी नदी दिखाई पड़ती है जिसमें कीचड़ भरा हुआ है उसमें उसके पैर फँसे हुए हैं। आगे दौड़ने के लिए बेचैन सुमि को अपनी अभी की दुनिया नहीं दिखाई देती। न तो ही उसे अपना किया याद रहता है।
डॉक्टर ने इलाज शुरू तो कर दिया लेकिन जब डॉक्टर ने केस हिस्ट्री को पलटना शुरू किया। जिसमें सुमि ने अपने अवचेतन में छुपी सारी बातों को उड़ेलना शुरू किया। कीटाणुओं के संपर्क में आने से दूसरे भी गंदे हो जायेंगे।
भूत में इसी घर में सेक्स संबंधी हिंसक घटना और प्यार अचानक से उनके जीवन से चले जाने का जिक्र किया है। उस दिन डॉक्टर के सामने रोने लगी –“उसे तो मैंने अपना सर्वस्व दे दिया । जब उसका रिश्ता बना उसका परिवार बना उसने मुझे मक्खी की तरह अलग कर दिया। वर्षों तक देखती रही लौट जायेगा। वह फिर मेरे साथ वैसे ही शामिल होगा। मुझे कुछ हो जायेगा चारों तरफ सिर्फ़ गंदगी है। अक्सर ही सपने में चाकू लेकर भागती रहती हूँ लगता है उसे गोद-गोद कर मार डाला। भागते-भागते जाने कब नींद खुल जाती है।पूरी नींद में सोये हुए जाने कितने बरस हो गये।”
कुल मिलाकर डॉक्टर की पर्ची में लिखी बातें यही कह रही हैं कि – इन्होंने अपने आसपास एक भय की दीवार बना ली है। अब डुबो देना चाहती हैं, इस दीवार को धो देना चाहती है अपने भूत की छुअन को। उस घुटन में दिखता भविष्य बिल्कुल नग्न खड़ा है।
इन्हें डॉक्टर की दवाई के साथ मन के उस कोने की तलाश है जहां यह ख़ुद को महसूस कर सकें। इनपर ध्यान देने की जरूरत है; विशेषकर रसोईघर में गैस चालू कर भूल जायेंगी चालू है या बंद।
सुमि अपनी बीमारी और इलाज से अनभिज्ञ मानसी के मन के कोने से मिले नमी में पनपने लगी है।
समय पर विटामिन की गोली कहकर दी जानेवाली दवाइयों से ज्यादा परिवार में लोगों से मिल रहा ध्यान वर्तमान की तरफ़ खींच रहा है।
वर्तमान भी कितना अजीब होता है भूत के स्मरण और विस्मरण के बीच डोलता रहता है। वर्तमान अपनी चौहदी का विस्तार भविष्य के दायरों में करता है। सुमि का वर्तमान भूत और भविष्य के बीच में जाने कहाँ गुम गया है। वैसे अक्सर ही हर कोई वर्तमान में नहीं होता हमेशा भूत की यादों और आनेवाले कल के पीछे ही तो पड़ा रहता है।
आज पार्क में झरने के पास खड़ी होकर सुमि अपने बचपन के पानी को महसूस कर रही थी। हँसते- हँसते उसने मानसी को कहा –“देखो न पानी कितना गीला है भींजना कितना अच्छा लग रहा।”
पानी की धड़कनों को सुनती बड़ी माँ को देखकर मानसी अपनी आँखों की नमी को नहीं रोक पाई।
मानसी ने केस हिस्ट्री के साथ दवाइयों को अपने पापा से डिस्कस किया – “पापा मैं इतनी बड़ी हो चुकी हूँ मुझे बड़ी माँ की स्थिति समझ आ रही है। फिर भी कई चीजें कहने की नहीं होती इनकी इस बार – बार एक ही काम को करने के पीछे जो भी कारण हैं वे सब बीत चुके हैं। इन्हें वापस आने में बहुत ही लंबा समय लगेगा लेकिन हमें वापस लाना है।”
पापा ने भी मानसी को भरोसा दिलाया – “जानता तो मैं भी था अलग – अलग फ्लोर पर जाने के कारणों में से एक था इनकी बीमारी का कारण। अगली बार तुम्हारी बड़ी मम्मी वर्तमान में नज़र आयेंगी। आँखों में चमक और चेहरे पर एक सुकून लेकर मानसी अपनी छुट्टियाँ ख़त्म कर वापस हो गई।
( नाम – विनीता परमार
शिक्षा –एम.एससी, पीएचडी (पर्यावरण विज्ञान) ,एम.एड, एम.ए (अर्थशास्त्र)
व्यवसाय पद – केन्द्रीय विद्यालय पतरातू (झारखंड) में शिक्षिका के पद पर कार्यरत
विशेष – बोधी प्रकाशन जयपुर से “दूब से मरहम“ काव्य संग्रह और खनक आखर की संयुक्त काव्य संग्रह, “धप्पा” (संस्मरण संग्रह ) का संपादन , आजकल , बया ,कादंबिनी ,कथादेश, मधुमति,प्रकृति दर्शन,विभोम स्वर , सृजन सरोकार,अहा ज़िंदगी,समहुत आदि पत्र –पत्रिकाओं ,समाचार पत्रों में कवितायें, आलेख एवं कहानियाँ प्रकाशित, शोध पत्र एवं पर्यावरण विज्ञान की किताबे सृजन प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित ।
संपर्क नंबर – 7633817152 ई –मेल – [email protected]