मनीषा कुलश्रेष्ठ आज की उन लेखिकाओं में से हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के जरिये हिंदी समाज में अपना विशेष स्थान बनाने में सफल रहीं हैं। मनीषा कुलश्रेष्ठ की रचनाओं में विषय की विविधता दिखलाई पड़ती है। उनकी हर रचना में यह दिखलाई पड़ता है। वह चाहे मल्लिका हो, शिगाफ़ हो, पंचकन्या हो या स्वप्नपाश हो। प्रत्येक रचना में लेखिका का उद्देश्य विराटता को लिए हुए रहता है। उनकी रचनाओं को पढ़कर लगता है रचना करते हुए वे अपनी रचनाओं के पात्रों से बातें करती है।
“शिगाफ़” उपन्यास में जहाँ उन्होंने कश्मीर समस्या को उठाया है, विस्थापन का दर्द दिखलाया है तो “मल्लिका” में भारतेंदु की प्रेमिका मल्लिका की उस पीड़ा को स्थान दिया है जिसे इससे पहले के इतिहासकार अथवा अन्य साहित्यकार याद करना भूल गए थे। मल्लिका जो पहली महिला रचनाकार हो सकती थी आज इतिहास के पन्नों में धूमिल है। मनीषा कुलश्रेष्ठ का यह उपन्यास इसी कारण श्रेष्ठ है। इन्होंने मल्लिका के जीवन को कल्पना के रेशों से बुन-बुन कर वास्तविक क्षेत्र में लाया हैं और गल्प की शैली में बनी यह रचना पाठक के मन में घर बना लेती है। पाठक इसे पढ़कर मल्लिका की खोज में इतिहास को खंगालता है पर वह जो नायिका होते हुए भी नायिका न हुई और स्वयं को इतिहास के अंधकार भरे कोने में छोड़ गई, उसे मनीषा कुलश्रेष्ठ जी ने तलाशा, तराशा और हमारे सामने प्रस्तुत किया। इससे इस उपन्यास को पढ़ने के बाद पाठक ‘मल्लिका’ में इस प्रकार खो जाता है कि मल्लिका उसके जीवन का एक हिस्सा बन जाती है और पाठकों को यह लगता है कि मल्लिका उसी के आसपास की किसी नारी के जीवन की कथा है जो उसे बार-बार इतिहास से बाहर निकालने के लिए, उसे अंधकारमय संसार से बाहर निकालने के लिए पाठक को कहती है, जहाँ वह होकर भी नहीं है।
“पंचकन्या” उपन्यास नवीन कथात्मक शैली में धैर्य के साथ लिखा गया है। यह कई पुराणों तथा मिथकों की कथाओं को अपने में समेटे वर्तमान की ज़मीन पर भारतीय स्त्री के जीवन, उसकी अस्मिता, जिजीविषा, उसके स्वप्नों और भविष्य की संभावनाओं को नए सिरे से देखने की कोशिश में लिखा गया एक प्रयोगात्मक उपन्यास है। वर्तमान समय में आधुनिक स्त्री के जीवन की जटिलताओं के धागे बिलगाती इस कथा के पार्श्व में तारा, कुन्ती, अहिल्या, द्रोपदी, मन्दोदरी जैसे मिथकीय चरित्रों की छाया दिखाई देती है और ऐसा अनायास नहीं है बल्कि मनीषा कुलश्रेष्ठ ने सायास इन मिथकीय चरित्रों को बारीकी से देखते हुए ‘मॉर्डन फेमेनिज़्म’ के सन्दर्भों में बिलकुल नए आयाम जोड़ने की कोशिश की है। नारी विमर्श पर लिखा गया यह एक श्रेष्ठ उपन्यास है।
“स्वप्नपाश” एक मनोवैज्ञानिक उपन्यास है जिसमें स्किजोफ्रेनिया बीमारी से पीड़ित महिला के जीवन संघर्ष को दिखलाया गया है। अतीत में पायी गयी गहरी चोट किस प्रकार मनुष्य का वर्तमान और भविष्य जीने नहीं देता. नायिका गुलनाज के माध्यम से लेखिका एक स्त्री पर हुए शोषण का चित्रण किया है अतीत की घटनाएं नायिका को मानसिक रूप से बीमार कर देती है।स्किजोफ्रेनिया पर आधारित यह उपन्यास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मनोविज्ञान को केंद्र कर रचनाएं हिंदी साहित्य में बहुत कम लिखी जाती है और लेखिका ने ना सिर्फ मनोविज्ञान को केंद्र कर सृजन किया है बल्कि एक ऐसी बीमारी कोई इसका आधार बनाया है जो बहुत ही चिंताजनक है।
इसके अतिरिक्त शालभंजिका नाम का एक और लघु उपन्यास है यह उपन्यास स्त्री-पुरुष के जटिल संबंधों को एक नये नजरिये से परखते हुए मन और देह दोनों बातों को सामने रखती है।
इनका नया उपन्यास “सोफिया” हिंदू लड़के से मुस्लिम लड़की के प्रेम पर आधारित है। आउटलुक में छपे इस उपन्यास की समीक्षा करते हुए लिखा गया है, “इस उपन्यास की मूल विषय वस्तु प्रेम है, जिसके कई आयाम हैं। बल्कि कहें कि इसका मुख्य तत्व ही प्रेम है। प्रेम और अंतरजातीय विवाह इस उपन्यास का केंद्र है। उपन्यास की नरेटर मीनल और सोफिया की कहानी अलग-अलग ढंग से परिभाषित होती है। सोफिया के बरअक्स मीनल प्रेम और अंतरजातीय विवाह दोनों में सफल रहती है, पर जैसा कि अपेक्षित है मीनल का प्रसंग गौण होकर नेपथ्य में चला जाता है। सोफिया का प्रेम और हिंदू लड़के से विवाह और उसके बाद के द्वंद्व को लेखिका ने खूबसूरती से चित्रित किया है।”
इन्होंने कई कहानी संग्रह भी लिखे हैं जिसमें किरदार, कुछ भी तो रूमानी नहीं है, कठपुतलियां, बौनी होती परछाईं आदि हैं। इनकी कहानियाँ भी आधुनिक परिवेश से जुड़ी हुई है। हर कहानी में एक विशेष प्रकार का मनोविज्ञान है जो पाठक को अपनी तरह खींचने में सफल होता है। कुछ महत्वपूर्ण कहानियों के नाम “बिगड़ैल बच्चे”, “किरदार”, ” कालिन्दी “, ” समुद्री घोड़ा “, “आर्किड” आदि हैं।
वैसे तो गद्य में इन्होंने ज्यादा हाथ आजमाया है पर कुछ कविताएँ भी इन्होंने लिखी है और लिखती रहीं हैं। इसके अतिरिक्त यात्रा वृतांत “अतिथि होना कैलाश का” भी लिखा है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मनीषा कुलश्रेष्ठ किसी एक विधा तक सीमित नहीं रही हैं। इन्होंने प्रत्येक विधा में अपनी लेखनी चलाई है और सफलता पाई है। एक तरफ जहाँ इन्होंने स्वप्नपाश, शिगाफ़, मल्लिका जैसे प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की है वहीं दूसरी तरफ कठपुतलियां, किरदार, गंधर्व गाथा जैसे कहानी संग्रह की रचना की है। इसी के साथ इन्होंने अनुवाद कार्य में भी हाथ आजमाया है। कविताएं तो प्रारंभ से ही लिखती रही हैं और हाल फिलहाल में इन्होंने यात्रा वृतांत लिखा है क्योंकि लेखिका यात्रा की बहुत ही शौकीन हैं। यह भी एक कारण है कि उन्होंने यात्रा- वृतांत लिखा है।