Tuesday, May 14, 2024

मनीषा श्रीवास्तव 21-7-76(जन्म दिन) शिक्षा-संगीत से एम. ए. (एम.म्यूज़) योग में डिप्लोमा किया है योग शिक्षिका हूँ।

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कविताएं

1

मुझे जब भी मिलना
अपने बनाए साँचे तोड़ के मिलना
मैं उनमें नहीं ढलुँगी
कोशिश भी मत करना
अपनी कल्पनाओं का आकार देने की
आँच पर तो रखना भी मत
चटक जाऊँगी
अनगढ़ ही रहना है मुझे
गिली ही रहने दो मेरी मिट्टी
रौंदा हुआ छोड़ दो
घूमने दो चाक
मैं अपना आकार खुद गढ़ुंगी
कच्चा ही रहना है मुझे
अनगढ़ ही रहना है मुझे ।

2

अगली बार जब हम मिलना चाहें तो दुनिया खूबसूरत हो चुकी हो
नफ़रत की ज़मीन बंजर हो चुकी हो
मोहब्बत की फसलें लहलहाने 
 लगी हो 
तुम यो न कहो कि हम निहत्थे लोग जो मुँह में ज़बान रखते हैं वो मारे जाएंगे । 
हमारे बीच शिकवा ए तल्ख़िए हालात न हो। 
तुम परेशाँ न रहो मैं हिरासाँ न रहूँ। 
 
माथे की शिकन, परेशानी का सबब 
मुल्क के हालात और सियासत न हो
 तुम परेशान रहो मेरी शरारतों से सदा
तुम सताओ तो कहूँ यार परेशाँ न करो। 

3

उम्र के साथ उतारी गईं ख्वाहिशें 
मैं लिबास के साथ टाँगती चली गई
वो ख्वाहिशें लिबास पर 
मैल की तरह चिपकी हैं
मैं लिबास उजले कर कर रही हूँ 
और मैल धो रही हूँ
 
कुछ ख्वाहिशें रात के आसमान में 
तारे सी टिमटिमाती हैं 
जिन्हें देखना सुकून भरा होता है
चेहरे पर मुस्कान ला देती हैं ये
इन्हें चाहना अगली रात का इंतज़ार है
 
एक ख्वाहिश उस दिन 
मैं तुम्हारे  सीने में भी टांक आई थी
वो अब मेरी नहीं रही
तो अब मैली भी नहीं होगी
तुम्हारे मन सी साफ़ रहेगी
हज़ार दाग लगे हैं मुझसे
हज़ार बार साफ़ भी किया है
ज्यों की त्यों नहीं धर पाई
शायद कभी ओढ़ी भी नहीं 
संजोते -संचोते ही इतने दाग़ लगा लिए।

4

वो औरत जो पेट्रोल पंप पर
पेट्रोल भर रही थी
वो आदमी जो मंदिर के कोने वाली दुकान पर
ताज़ा मोगरे के गजरे बना रहा था
दोनों ही एक जैसे इंसान थे
कर्मठ, कोमल और हँसमुख।
औरत ने बालों में गजरा सजा रखा था
आदमी मोटर साइकिल पर
गजरे की डलिया बांध कर
पेट्रोल पंप की ओर जा रहा था
दोनों ही जीवन की गाड़ी
खूबसूरती से चला रहे थे
पेट्रोल पंप पर
मोगरा महक रहा था

5

 एक दिन औरत उठी 
उसने सारे ग़ैर-ज़रूरी काम निबटाए
और ज़रूरी कामों में व्यस्त लोगों को 
उनके काम के साथ छोड़ कर चली गई। 
 
उसे आखरी बार किसी ने समुंदर में जाते देखा था 
किसी ने बर्फ़ीली चोटी पर देखा था 
किसी ने घने जंगल में देखा था
 किसी ने सड़क पर यूँ ही घूमते भी देखा था
किसी ने गहरी झील के किनारे पर देखा था
चाय वाले की गुमटी पर गप्प मारते भी देखा था 
 
नालायक! 
 बोल के गई थी 
ज़रूरी काम से जा रही हूँ

6

छोटे-छोटे काम को
छोटी-छोटी खुशियों की तरह
 टालते जाना
मुड़ के देखना
फिर मुँह मोड़ लेना
 
आँख मूंद कर सो जाना
उठ के चलना
फिर बैठ जाना
 
अलसाते रहना
सुबह से शाम हो जाना
 
भीगे बरतनों का सूख जाना
सूखे कपड़ो का भीग जाना
 
सोते- जागते, भीगते -भागते
टलते-टालते सब कुछ टल जाना
ख़ुद को टालते जाना
 
कल हँस लेंगे, कल मिल लेंगे 
कल दूर कहीं पर चल देंगे
 
गर वक्त मिला तो कह देंगे 
गर वक्त मिला तो सुन लेंगे
 
हर वक्त का यूँ टाला जाना
जैसे जीवन हो टलते जाना
 
चलो तुम्हारी मानी हमने
 जीवन है टलते जाना 
पर मौत ने कब टलना जाना ।

7

अधूरे आदमियों को
 चाहत रही संपूर्ण औरतों की 
ख़ुद की कमियों को 
व्यक्तित्व का हिस्सा बताने वालों ने
ज़हीन औरतों को बताया सनकी
 
इन सनकी औरतों ने 
तुम्हारी कमियों को नज़रअंदाज़ किया
 तुम्हारे अधूरे पन से किया पूरा प्रेम
 
और तुम उसकी तमाम खूबियों में
ढूंढते रहे कोई एक कमी
 
सनकी औरतें अपनी कमियाँ 
ख़ुद में समेट कर चल देतीं है 
अधूरी दुनिया की ओर,अकेली
 
उन्हें किसी भी सम्पूर्ण मनुष्य की तलाश नहीं होती

8

हम सेल्फ ओब्सेस्ड औरतें
मुँह निकालती 
अपनी सेल्फियों
पर इतराती 
सैकड़ों लाइक्स बटोरतीं
कुछ सच्चे कुछ फर्जी
कमेंट्स पर मुस्कुराती 
अपनों के ताने सुनती –
बड़ी सेल्फियाँ चिपका रही हो,
आदमियों को चुभतीं-
ये फोटो लगाने से क्या होता है
खूब ज़ोर से हँसतीं 
दिल वाले स्माइली चिपकातीं
संस्कारों की छाती में
घुप सी घुसती कटारें 
      
हम सेल्फ ओब्सेस्ड औरतें
 
जूठी थाली सी सरकायी जातीं
मरियल कुत्ते सी दुत्कारी जातीं 
औकात में रखी जातीं 
चूल्हे पे पकायी जातीं 
सोने में तौली जातीं
गालियों में घोली जातीं 
कपड़ों में धोई जातीं 
प्रेम में बिछाई जातीं 
जी भर के तोड़ी जातीं 
ममता में निचोड़ी जातीं 
बैठक से भगायी जातीं 
आॅफिस में सतायी जातीं 
 
सेल्फ ओब्सेस्ड औरतें
 
तुम्हें मुग्ध करने की चाहत से आज़ाद 
हम सेल्फ ओब्सेस्ड औरतें

9

पृथ्वी पर अकेले होने का एहसास होता है
साथ ही भीड़ में गुम हो जाने का भी
 
जैसे कहीं कोई नहीं है
फिर भी
हर वक्त खुद को ढूँढते रहना
हर वक्त किसी और को ढूँढते रहना
 
 जैसे साथ हैं पर साथ नहीं हैं
बहुत सारे लोगों से मिले
पर किसी से नहीं मिले
 
कितनों को जाना
और किसी को भी नहीं जाना
रास्तों से गुज़रे पर कहीं नहीं गए
 
जो कहना चाहा कभी नहीं कहा
जो सुनना चाहा किसी ने नहीं कहा
 
देखा हुआ अनदेखा ही रहा
जाना हुआ अनजान ही रहा
पहचान हुआ अचीन्हा ही रहा
हर एहसास का एहसास भर रहा
 
जैसे पसीने से भीगी देह पर 
ठंडक और तपन का एहसास 
होता है साथ – साथ
वैसे ही होने और न होने का
एहसास होता है साथ-साथ
बारिश और उमस होती है साथ-साथ
होश और नींद  होती है साथ-साथ
अकेलापन और भीड़ होती है साथ-साथ।

10

हम मोटी होती औरतें
दिन भर भागतीं दौड़तीं
बच्चों को जगातीं
तैयार करतीं
लंच बनातीं
दौड़ते भागते कुछ खा लेती
बैठ कर खाने की फुर्सत नहीं
जो बचा वो खा लिया ,
बच्चे ने छोड़ा खा लिया
पति ने छोड़ा खा लिया
सबका जूठा थोड़ा -थोड़ा,
पति का डब्बा ,बच्चों का डब्बा
बनाया खिलाया पैक किया
ख़ुद भी पकड़नी है मेट्रो ,लोकल
जाना है दफ्तर ,भागते भागते लिफ्ट में खा लिया
हाँ हम नहीं सोचतीं क्या खाना है हमें ,कब खाना है हमें,
कब नहीं खाना है ,पर पकाना है ।
कोई टोकता भी तो नहीं ये मत खाओ
ये तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं ,
ठहरो फल काट देता हूँ , कुछ हल्का पका देता हूँ
मूँग भिगो देता हूँ ,
तो ठीक है हम खा लेंगे कुछ भी
जो मन होगा वो भी , नहीं होगा वो भी
हर वक्त चूल्हे के साथ जलना किसे भाता है ,
तुम्हें मोटापा नहीं भाता तो ना सही ।

11

दिन भर की मेहनत के बावजूद ,
छूट जाता है कोई न कोई कोना
पकाते रहने के बावजूद
रह जाती है भूख
सामान जुटा लेने के बावजूद
रह जाती हैं ज़रूरतें
जैसे लाख सम्भालने के बावजूद
छूट जाता है रिश्तों का
कोई न कोई सिरा ।

12

मुझे जब भी मिलना
अपने बनाए साँचे तोड़ के मिलना
मैं उनमें नहीं ढलुँगी
कोशिश भी मत करना
अपनी कल्पनाओं का आकार देने की
आँच पर तो रखना भी मत
चटक जाऊँगी
अनगढ़ ही रहना है मुझे
गिली ही रहने दो मेरी मिट्टी
रौंदा हुआ छोड़ दो
घूमने दो चाक
मैं अपना आकार खुद गढ़ुंगी
कच्चा ही रहना है मुझे
अनगढ़ ही रहना है मुझे ।

13

लड़कियों की कविताओं की डायरी अक्सर बदल जाती है
हिसाब और रेसिपी की डायरी में,
जब कभी ढूँढने लगती हैं कविताएँ तो मिलता है-
प्रेस वाला ३८ रूपये
दूध वाला २०००/
अखबार ५७०/
डाँस क्लास हज़ार और नीबू का अचार ।

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