नाम -निदा रहमान
जन्म स्थान-छतरपुर, मध्यप्रदेश
शिक्षा – बीएससी, मास्टर इन जर्नलिज्म
परिचय- एक दशक तक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी, सामाजिक, राजनीतिक
विषयों पर निरंतर संवाद, स्तंभकार और स्वतंत्र लेखक
सम्मान- पत्रकारिता में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मान 2019 (वूमन्स प्रेस क्लब एमपी)
लाड़ली मीडिया एडवरटाइजिंग अवार्ड 2021
किताब- संयुक्त कविता संग्रह ‘वर्जनाओं से बाहर’
………………………….
कविताएं
रिहाई
हाँ इक रोज़
मैं भी चली जाऊंगी
सबकी तरहा दुनिया से
ज़िंदगी का सबसे बड़ा सच मौत होती है
हाँ मुझे भी सामना करना होगा इस सच का
और तुम्हें भी ये मान लेना होगा कि
तुमको इश्क़ करने वाली
तुम्हारे इश्क़ में ही फ़ना हो गई,
हाँ मैं यही दुआ करती हूं कि
ख़ुदा मुझे तुम्हारे आगोश में हमेशा के लिए सुला दे
हालांकि मैं ज़िंदगी बिताना चाहती थी संग तुम्हारे
लेकिन बात नसीब की हो तो कौन जीत सकता है
अब मैं लड़ना नहीं चाहती
बस हाथ उठाती हूँ आसमान की तरफ
और गिड़गिड़ाती हूँ
शायद ख़ुदा को रहम आ जाएं मुझ पर
मेरी पहली ख़्वाहिश इश्क़ था
मेरी आख़िरी ख़्वाहिश तुम्हारे बाज़ुओं में मौत है,
सुनो तुम मेरे चले जाने के बाद
ख़ुद को संभाल लेना
जानती हूं तुम्हें हमारे इश्क़ का आसरा है
उसी इश्क़ के सहारे ज़ब्त कर लेना मेरी मौत के ग़म को
मैं चली जाऊंगी तब भी रहूंगी तुम्हारे साथ,
तुम जब गुज़रोगे मेरे शहर की गलियों से
मैं मुस्कुराती कहीं किसी सड़क किनारे नज़र आऊंगी
बारिश की बूंदें जब जब तुम्हें भिगोयेंगी
मेरे साथ को महससू कर पाओगे
सर्दी की धूप में तुम्हें मेरी गरमाहट का एहसास होगा,
मैं हर मौसम, हर दिन, हर रात में साथ रहूंगी
तुमको मज़बूत बनाकर
मैं आज़ाद होना चाहती हूं दर्द से
इसलिए ख़ुदा से मौत मांगती हूँ।
निदा रहमान
तुमसे भागते हुए
तुमसे अलग होने के बाद
ना जाने कितने घर बदल दिए
पुराने पतों पर
ना कोई ख़त आता है
ना किसी का कोई पैग़ाम,
हर बार पता बदल देती हूँ
परछाइयों से पीछा छुड़ाने के लिए
अक़्सर निकल जाती हूँ उस गली से
जहाँ तुमने मुझे तनहा छोड़ा था,
इक उम्मीद होती है
कहीं कोई आवाज़ दे दे
कि रुको कब से खड़ा हूँ तुम्हारे इंतज़ार में,
लेकिन
पता सिर्फ मेरा बदला है
तुमने तो कई बरस पहले
अपनी मंज़िल ही बदल ली थी,
हाँ मैंने आख़िरी बार
इक गुज़ारिश की थी तुमसे
अपना फ़ोन नंबर मत बदलना
ताकि एहसास रहे तुम्हारा,
सुनो मैंने अपना नंबर भी नहीं बदला
क्योंकि मुझे पता है
कैसा लगता है जब कोई बोलता है
ये रॉन्ग नंबर है।।।।।
निदा रहमान
ज़िन्दगी
बरसों बरस बाद
चेहरे पर मुस्कुराहट आई
आँखें ख़्वाब देखने लगीं
दिल एहसासों से लबरेज़ हुआ
उम्मीदें जागने लगीं
मैं फिर ज़िंदा होने लगी…
मैं हैरान थी इसलिए
क्योंकि ये बुत में
जान आने जैसा था
बंजर ज़मीन पर जैसे
फ़सल लहलहा रही हो
समंदर का पानी मीठा हो गया हो
ज्वालामुखी से लावा नहीं
जैसे फूल निकल रहे हों…
वो लोग भी हैरान थे
जिन्होंने देखा था मुझे पत्थर होते
वो अब भी देख रहे थे
कि बदल रहा है फिर से बहुत कुछ…
मेरा हंसना, मुस्कुराना
साँस लेना सब तुम्हारे होने का सबूत थे…
लेकिन तुम पिछली दफ़ा की तरह ही
सिर्फ़ छलावा निकले
इक ऐसा किरदार
जो चंद लम्हों की हक़ीक़त है
ना तुम ख़्वाब हो
ना उसकी ताबीर
तुम, तुम्हारा ख़्याल
मुझे ज़ख़्मी भी करता है
और उन ज़ख्मों पर मरहम भी बनता है…
बरसों बरस से चल रहा है
यही सिलसिला
मैं मरती हूँ
ज़िंदा होती हूँ
तुम्हारे लिए
तुम्हारे ‘इश्क़’ में…
निदा रहमान
क़ैद ए मोहब्बत
हाँ मरना बहुत
आसान था हमारे लिए
एक झटके में मिल जाती
तमाम मुश्किलात से निजात
ना हमारे अलग होने का ग़म होता
ना ये हर लम्हें का सितम होता,
हम मर जाते एक साथ, हाथों में लिए हाथ
तो क्या सुकूं मिल जाता
हमारा इश्क़ मुक़म्मल हो जाता
सवाल ये भी है कि
मरने के बाद क्या हमारीं रूहें भटकती नहीं
क्या हम इस जहां से जाने के बाद खुश होते
सवाल बहुत से हैं
और उनके जवाब हैं ही नहीं,
सच सिर्फ़ इतना है कि
हमने ज़िंदगी का रास्ता चुना
वो रास्ता जो कांटों से भरा है
जहां कदम कदम पर इम्तिहान हैं
हमारे ऊपर हज़ारों नज़रें पहरा देती हैं
ज़िंदगी कभी भी आसान नहीं थी हमारे लिए
फिर भी हमने ज़िंदा रहने का फ़ैसला किया
जानते थे हम कि अब कभी साथ नहीं रह पाएंगे
अलग रास्ते, अलग हमसफ़र लेकिन मंज़िल एक
हम लगातार चलते हैं, बिना थके
सिर्फ़ एक नज़र दीदार के लिए
उस चेहरे को देखने के लिए
जो ज़िंदगी जीने का सबब भी है और
ज़िंदगी के लिए ज़रूरी भी,
सुनो हमें थकना नहीं है
चलते रहना है तमाम उम्र
सिर्फ़ इसलिए क्योंकि हम बुज़दिल नहीं
हमने मुश्किल सफ़र चुना है एक दूसरे से जुदा होके,
सच ये है कि हम ज़िंदा है एक दूसरे के लिए
एक दूसरे की खुशी के लिए
हमारे इश्क़ के लिए।।।
निदा रहमान
बेमानी कोशिशें
ख़तों को फाड़ने से
उनमें दर्ज एहसास मर नहीं जाते
तस्वीरें जला देने से
इश्क़ ख़ाक़ नहीं होता है
किसी को हर जगह से ब्लॉक करने से
ख़त्म नहीं होता उसकी यादों से वास्ता,
ये सारे जतन बेमानी होते हैं मोहब्बत में
बचकाना है सबकुछ
हाँ ख़त फाड़ने
तस्वीरें जलाने से
किसी को ब्लॉक करने से
होता होगा हमारा इगो थोड़ा सुकूं में
लेकिन इश्क़ वालों को
तमाम उम्र बेचैन जीना होता है
कि उनके लिए सुकूं जैसा लफ़्ज़
बेमानी होता है….
निदा रहमान
………………………….
किताबें
………………………….