Friday, November 29, 2024

उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में जन्मी नीलिमा शर्मा हिंदी की सुपरिचित कथाकार हैं। उनका एकल कहानी संग्रह "कोई खुशबू उदास करती है "।इसके अलावा उन्होंने कुछ किताबों का संपादन भी किया है जिनमे हिंदी साहित्य का प्रथम डिजिटल साझा उपन्यास 'आईना सच नही बोलता' शामिल हौ जो शीघ्र ही प्रिंट में भी प्रकाश्य होगा । इसके अलावा उन्होंने :- खुसरो दरिया प्रेम का ( स्त्री मन की प्रेम कहानियाँ) :- मृगतृष्णा( रिश्तों के तिलिस्म की कहानियाँ)। :-लुकाछिपी ( कहानियों में छिपा बालमन ) :-हाशिये का हक़ (साझा उपन्यास) लेखन और संपादन :-मन पिंजरा तन बांवरा (साझा कहानी सँग्रह)का भी सम्पादन किया है।उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं और कुछ भाषाओं में अनुवाद भी हुए है।

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कहानी

अभी चार दिन पहले तक जो एक अजनबी-सा था आज उसकी रस्म पगड़ी में उसकी पत्नी रेनू की बग़ल में वह ख़ास सहेली जैसे बनकर बैठी है। सबसे उसका परिचय अपनी पुरानी सखी की तरह कराती रेनू की आँखें बार-बार सजल हो उठती थी। निमाणा-सा मन ख़ामोशी से ऐसे ऐसे रास्तों से गुज़र रहा था जहाँ पर उसने ख़ुद ही बड़े-बड़े पत्थर लगाकर अवरोध बनाए थे आज उन्हीं रास्तों पर सफ़र करती ईशिता सामने रखी तस्वीर की आँखों में आँखें डालकर मन-ही-मन हज़ारों बातें कर रही थीं। ज़िंदगी ने जब उसका कोमल हृदय तोडा था, उसके कच्चे सपनों को जब बारीकी से छिन्न-भिन्न किया गया था, उसके भीतर बसी मोगरे और बल्वगरी की मदमाती ख़ुशबू को जब मसालों की महक से सरोबार कर दिया था, तब भी इतना नहीं रोई थी जितना इस बरसों पुरानी डायरी को पढ़कर रो रही थी। अठारह बरस पुरानी डायरी के कई पन्नों में उदासी की सीलन आज भी ताज़ा थी। कहीं मोगरे के सूखे फूल थे तो कहीं परफ्यूम की ख़ुशबू तो एक जगह एक मोरपंख भी था। किसी पन्ने पर सिर्फ़ नाम लिखे थे तो कहीं पर नाम के पहले अक्षरों को मिलाकर किसी लॉकेट की आकृति बनी हुई थी। कहीं शायरी लिखी थी तो कहीं मन की बात। टुकड़ों में लिखे गए आत्मालाप का पहला वाक्य ही आर्तनाद कर रहा था। बाक़ी विवरण उस लिसड़ी उदासी के गवाह बने खंडहर मात्र थे जो बता रहे थे कि लिखने वाले के दिल को बहुत गहरी चोट लगी थी। उस दिल से कभी पनीले दर्द की नदियाँ बही होंगी। इस दर्द की नदी में आई बाढ़ का पानी बरसों तक कहीं ठहर गया था। कीचड़ और गाद के इस ताल से दर्द के ज़ख़्म सड़ने लगा था और अब यह ताल जैसे यात्री के डूबते ही सूख गई थी अब वो सूखी बदबूदार खुरचने ईशिता के हिस्से में आ गई थी। विधि का विधान कोई नहीं जानता। सोचा क्या जाता है और होता कुछ और ही है। विधि ने ऐसा ही कुछ विधान रचा था उसके साथ भी। सवाल तो उसके पास अभिनव के लिए भी थे जो मोगरे के फूल दोनों हाथों की अँजुरी में भरे तस्वीर को अर्पित कर रहा था जिसकी आँखें सजल थीं और हाथ जोड़कर चुपचाप सामने ही बैठ गया था। ईशिता की उपस्थिति से एकदम अनजान वो शख़्स इस वक़्त बेहद ग़मगीन था मानो किसी गुनाह की मुआफ़ी माँग रहा हो। अपने सर पर पगड़ी पहने शेखर का बेटा सबके सामने हाथ जोड़े खड़ा था। एकदम शेखर की प्रतिलिपि जैसा। फीके से चेहरे में रेनू उसके साथ आँसुओं से सरोबार खड़ी थी। उसने अपनी आँखों में आए आँसुओं को छिपाने के लिए पलटकर मुँह फेर लिया। पलटते ही सामने अभिनव से सामना हो गया। उसके हाथ में पूजा का थाल था जिसमें ढेर सारी मोगरे की ख़ुशबू वाली अगरबत्तियाँ जल रही थीं। आज उसको यह ख़ुशबू उदास कर रही थी।

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किताबें

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