Wednesday, December 11, 2024

रेखा चमोली 8 नवंबर 1979 कर्णप्रयाग , उत्तराखंड शिक्षा Bsc , MA शिक्षाशास्त्र , NET स्कूली अनुभवों पर आधारित लेख प्रकाशित। मेरी स्कूल डायरी पुस्तक अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय बंगलुरू से 2018 में प्रकाशित। स्कूल में नवाचारों के लिए प्रशंशनीय रहीं। उत्तराखंड में पाठ्यपुस्तक लेखन में कक्षा 1 से 8 तक की हिंदी की किताबों में लेखन व संपादन में सहयोग। विभिन्न शैक्षिक कार्यशालाओं व सेमिनारों में प्रतिभाग। शैक्षिक दखल नामक छमाही पत्रिका की सहयोगी संपादक व सक्रिय सदस्य। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित । पेड़ बनी स्त्री कविता संग्रह 2012 में प्रकाशित जिसे वर्ष 2012 का समकालीन सूत्र सम्मान मिला था। 17 साल प्राथमिक शिक्षा में काम करने के बाद वर्तमान में अस्सिस्टेंट प्रोफेसर शिक्षाशास्त्र के पद पर कार्यरत। संपर्क [email protected]

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कविताएं

बिना डरे स्वीकार

कब तक रोओगी अभागी
कब तक यूँ ही बैठी रहोगी
अब तो जीवन भर का रोना है
बहुत सी हैं तुम्हारे जैसी 
इसको देख , इसका पति जब मरा तब ये सत्रह साल की थी 
तब से भोग रही
बच्चा भी नहीं कि उसके सहारे रहती
मुझे ही देख , आज बीस साल हो गए 
घर देखा बच्चे बड़े किए सब निभाया 
जिनका मुॅंह नहीं देखना था उनके पैर देखे
इसका पति जब मरा तब बेटा पेट में ही था
जी रहीं हैं सब , अपने बच्चों के सहारे 
अपने सास ससुर की खातिर
 
पतियों के असमय मरने की कितनी कहानियाँ सुनीं इस बीच
हर कहानी में एक अभागी स्त्री थी
जिसे बच्चों की खातिर जीना था
बूढ़े सास ससुर की खातिर खड़ा उठना था
कमर कसनी थी 
साहस बढ़ाना था
अपने पुराने जन्मों के पापों का फल भोगना था
 
अपने बच्चों की ओर देखा मैंने 
मुझे क्यों जीना चाहिए ? 
इनके लिए  ? हॉं ,
और इसलिए भी कि 
मुझे जीवन से प्यार है 
और ये बात मुझे बिना डरे स्वीकार है। 

समय

कमजोर समय में छूटे साथ का 
शोक मत करो
ठीक ही हुआ वो छूट गया
 
कमजोर समय में माँगी क्षमा को
उसी समय भूल जाओ
 
माँगने से क्षमा मिल सकती है प्रेम नहीं
 
एक ही रास्ता आते-जाते हुए अलग-अलग तरह से मिलता है
चीजें कैसी दिखेंगी ये रौशनी पर निर्भर है 
 
जाने दो उसे जो जाना चाहता है
जाने में ही उसकी मुक्ति है
गए हुए का शोक
अपमान है उसका
जो गया है पूरी आभा से खिलकर
खिलने में ही जाना छुपा है
 
कमजोर समय में जो भी छूटे 
लोग चीजें समय जगहें भावनाएं
उन सबका शुक्रिया मानो
उन तमाम वजहों का शुक्रिया मानो
जिन्होंने तुम्हें अपनेआप से मिलने के मौके दिए 
 
मेरी दोस्त जिंदगी बड़ी चीज है।
 
अपने मन को अपनी सबसे जरूरी अलमारी की तरह समय समय पर साफ करते रहना । जरूरी चीजें बनी रहें और खराब हो चुकी अनुपयोगी चीजों को ससम्मान कूड़ेदान । न न यहाँ कबाड़ से जुगाड़ निकालने की कोई जरूरत नहीं। दुनिया में कितना कुछ बचा है सीखने समझने के लिए और हम कितने कम बचे हैं। मन दुनिया को समझने की खिड़की है। सीखने के सभी रास्ते यहीं से होकर गुजरते हैं।
 
अपने भीतर के दुःखों की गहरी कालिख को
बदल दो स्याही में 
और लिख डालो अपने संघर्ष की कथा
क्या पता इस कथा को लिखते लिखते ही 
तुम्हें सूझ जाए कोई रास्ता
अपने दुःखों से राह बनाने का
अपने जीवन को अभिशाप की तरह नहीं
किसी मूल्यवान चीज की तरह बरतने का।

खूबसूरत लड़कियाँ

इनका बचपन खूब लाड़ प्यार में बीता 
लेकिन जरा बड़ी होते ही ये चिंता का विषय बन गईं
घरवालों का इनको देख देख खून बढ़ा
पर मन ही मन डरे 
कहीं किसी की बुरी नजर न पड़ जाए
दुनिया का क्या भरोसा
दूसरों का क्या अपनों की नियत भी कब डोल जाए कह नहीं सकते
इतिहास भरा पड़ा है सच्ची झूठी कहानियों से 
धर्मग्रंथों में अलग अलग तरह से व्याख्याएं हैं
 
कुछ भी हो सुंदर लड़कियाँ हमेशा रहीं निशाने पर
फिल्में भरी पड़ी हैं ऐसे गानों से 
जिनमें सुंदर लड़कियों को खूब सर चढ़ाया जाता है
खूब सताया जाता है
रूठा मनाया जाता है 
बागों में घुमाया क्लबों में खिलाया पिलाया जाता है
लड़ा जाता है बचाया जाता है
और जब सुंदरता के साथ मर्यादा और संस्कारों की डिग्री भी हो 
तो घरवालों को बताया जाता है
 
सुंदर लड़कियाँ बाकी लड़कियों से थोड़ी सी अलग 
बस इस बात में थीं कि उनमें 
बाई चांस अपने पूर्वजों के वो गुण आ गए
जो उनके समाज में अच्छे नैन नक्श के मापक थे
इन मापकोेें ने कभी इन्हें किंगोड़ के झाड़ पर खूब ऊँचा चढ़ाया
कभी जीना मुहाल किया
जबकि ये अपनी बाकी हमउम्र लड़कियों जितनी ही सहज रहना चाहती थीं
उतनी ही निडर और उतनी ही होशियार बनना चाहती थीं
 
 
किशोरावस्था से ही बाकी लड़कियों से ज्यादा सुनाई दी इन्हें 
सीटियों की आवाजें और फब्तियाँ 
रास्ते ज्यादा तंग और गलियाँ ज्यादा डरीं
ज्यादा मिले प्रेम पत्र और आर्चीज कार्ड 
इनके घर पर बार बार आए रॉन्ग नम्बर से कॉल्स
हर कॉल पर ज्यादा अपराधी साबित हुईं ये 
नाते रिश्तेदारों पास पड़ोस वालों ने मजाक मजाक में कई बार बनाया इन्हें बहू
अपनी क्लास में बाकी लड़कियों से पहले मिली इन्हें प्रैक्टिकल की कॉपी
थोड़ा ज्यादा मिले बर्थडे और बड़े भाई दीदी की शादी के इन्विटेशन
इनके साथ फोटो खिंचवाने को लगी होड़
इन शार्ट ये की अपने मोहल्ले से लेकर शहर भर में चर्चा का विषय रहीं ये
रौनक बनीं ये
खूब खिली महकी चहकीं ये
झेंपी डरीं झल्लाई सकुचाई ये
सच्चे झूठे लंपट चोर हर तरह के प्रेमियों से अमीर बनीं ये 
 
बहुत बार इन्होंने दुनिया को रखा अपने जूते की नोक पर 
बहुत बार इमोशनल ब्लैकमेलिंग में बुरी तरह फँसीं ये
इन खूबसूरत लड़कियों की खूबसूरती के किस्से गूंजे ड्राइंग रूमों में 
इनके पिताओं को राह चलते ज्यादा टोका जवान लड़कों के पिताओं ने
 
इनमें से बहुत सी जल्दी ब्याह दी गईं 
ये कहकर की इस मुसीबत को कब तक बचाएं दुनिया की नजरों से
हमें और बच्चे देखने और काम भी तो करने हैं
इनकी विदाई में घरवालों के अलावा
बहुत से और लोग भी रोए
शहर का मौसम कई दिनों तक रहा उदास
कई दिनों तक नहीं बजे फोन , नहीं बिके आर्चीज के कार्ड
फिर धीरे धीरे भुला दी गईं ये
किसी को इस बात का जरा भी पता न चला कि उन्होंने कैसे 
इन सुंदर लड़कियों का जीना कम किया
इनको खिलने से पहले मुरझा दिया
 
मेरे शहर में भी ऐसी कुछ सुंदर लड़कियाँ थीं
जिनके किस्से अभी भी कभी कभी सुनने को मिल जाते हैं
 
इनकी खूबसूरती इनसे कभी इनाम की तरह मिली 
तो कभी अभिशाप की तरह
 
ये बात याद आयी मुझे 
जब एक माँ को कहते सुना 
अच्छा है बहुत सुंदर बहुत खिली खिली नहीं हैं मेरी बेटियाँ
दुनिया की नजर कम पड़ती है
 
कितनी अजीब है ये दुनिया जहाँ खूबसूरत स्वस्थ लड़कों को देख देख
सीने चौड़े होते हैं माँ बाप के
और खूबसूरत स्वस्थ लड़कियों को देख डर से भर जाता है मन ।।

वह नदी जो मन में है

जनवरी की एक सुबह भागीरथी के बीचों बीच दिखती है वह
डुबकी लगाती और बाहर निकलने पर जोर से चिल्लाती
उसकी चीख सुन आते – जाते लोग रुक गए पुल पर
उस स्त्री में देखने जैसा कुछ खास नहीं
पूरे कपड़े पहने प्रौढ़ा सी वह स्त्री
पुल से गुजरते लोगों के बीच हँसी ठठ्ठा का विषय बन गयी
पागल औरत ! कहती है एक आवाज
बेशर्म औरत !
कितनी जोर से चिल्लाई बाप रे बाप !
ठंड लग गयी होगी ज्यादा
कुछ लोग रुक जाते हैं दो चार सेकंड 
फिर से डुबकी लगाएगी तो चिल्लाएगी क्या ?
 
थोड़ी देर बाद वह नदी के थोड़ा और भीतर उतरती है 
पानी से बाहर निकल और जोर से चिल्लाती है
इस बार किसी का नाम
किसका  ?  समझ नहीं आता 
पुल पर रुकीं दो स्त्रियाँ एक दूसरे की ओर देखती हुई हँसती हैं
अच्छा किया इसने , अपना दर्द नदी में बहा दिया
अब कुछ ठीक महसूस कर रही होगी
 
क्या पता अभी कितना बचा हो भीतर ? 
होने दो  , एक बार आयी है तो दुबारा भी आ जाएगी । 
नदी है ही कितनी दूर
 
क्या पता अगली बार तक खुद में ही ढूँढ़ ले अपनी नदी 
यहाँ आने की जरूरत नहीं होगी तब 
तुम्हें कैसे पता ? 
सारी स्त्रियों के भीतर होती है उनकी अपनी नदी , ढूँढनी पड़ती है 
फिर उस नदी में उतरना होता है चुपचाप
तभी तो चलती है ये दुनिया व्यवस्थित
होते हैं काम काज 
घूमते हैं चाँद तारे सूरज पृथ्वी अपनी अपनी गति ।।

चरित्रहीन

उस स्त्री के रक्त में प्रेम था 
नसों में बहता गुनगुना प्रेम 
सुर्ख लाल गहरा गाढ़ा 
कभी टपक जाता कहीं एक बूंद तो प्रेम के दरिया बहने लगते आसपास 
लोक लाज संभालती वह स्त्री झटपट अपने पल्लू से पोंछ डालती उस दरिया को
अपनी आँखों में समेट लेती
फिर देर तक घर बाहर के कामों से सिर न उठाती
 
मेरे भीतर हरदम सुलगता है प्रेम 
जलाता है मुझे
मेरा इतना नाश किसी दुश्मन ने भी नहीं किया जितना इस प्रेम ने
एक दिन असहनीय पीड़ा में कह जाती है वह 
 
ये स्त्री शादीशुदा है 
ये स्त्री शादीशुदा पुरूष से प्रेम करती है
ये जानते हुए भी कि कभी मिल नहीं पाएगी उससे
पास नहीं बैठ पाएगी दो पल
उसका हाथ अपने हाथ में ले 
उसे तसल्ली के दो बोल नहीं बोल पाएगी
दो चार कदम साथ चलना तो दूर 
कभी बहुत दूर से भी उसे नजर भर देखना नसीब न होगा
फिर भी ये स्त्री प्रेम में भीगी है
इसकी नसों में दौड़ता प्रेम इसे जिलाए रखता है
ये सुलगती 
हरदम बेचैन रहती
तिल तिल जीती मरती स्त्री
पता नहीं अभी तक कैसे बची हुई है ?
 
बता क्यों नहीं देती ? 
किसे ? 
जिसे प्रेम करती हो उसे और किसे ?
जानता है वो , 
कुछ कहता नहीं ? 
तुम्हें डाँटता नहीं ?
कहता है न , अपना ख्याल रखो 
तुम्हारे दो बच्चे हैं और मेरे दो , उनके बारे में सोचो
अपने पति और मेरी पत्नी के बारे में सोचो !! 
 
वो कुछ नहीं कर सकता सिवाए इस बात से खुश होने के 
कि उसकी पत्नी के अलावा भी कोई स्त्री उससे इतना प्रेम करती है 
उसके कहने से दे देगी अपनी जान
 
मुझे भी कौन सा सुख चाहिए उस निर्मोही से 
बस इतना कि कभी कभार सुन लूँ उसकी आवाज
जान लूँ राजी खुशी
 
पता है सखी , इस प्रेम के बारे में किसी से कुछ कहूँगी न , तो 
उसी पल बिना आगे पीछे सोचे चरित्रहीन साबित हो जाऊँगी
कुलटा , घरतोड़ू , दूसरे का पति छीनने वाली हो जाऊँगी
मेरे सारे काम , अभी तक मेरे परिवार और दुनिया के लिए किए काम सब बेकार हो जाएंगे
मेरे पति तो पति , बच्चे तक मेरा चेहरा नहीं देखना चाहेंगे
मैं कैसे किसी को यह समझाऊँ कि सारे रिश्तों में गणित नहीं चलती
 
प्रेम से कई गुना बड़ी है नफरत
इसीलिए कुछ न चाहते हुए भी सिर्फ यह कहने से रह जाती हूँ 
मैं प्रेम में हूँ
इसमें किसी का कोई दोष नहीं
किसी ने मुझे बहलाया फुसलाया नहीं 
मेरी किसी से कोई चाहना नहीं
मैं तो बस सहज जीते हुए प्रेम में रहना चाहती हूँ
प्रेम को जीना चाहती हूँ
बिना आत्मग्लानि महसूस किए
 
प्रेम मेरा चयन है 
इसकी तमाम सुलगन तमाम बेचैनियाँ मेरी चाहतें हैं
मैं इसके बिना नहीं जी सकती
इन सबके बाबजूद मैं अपने पति , बच्चों , घर , समाज , काम से भी प्रेम करती हूँ
क्या ये अनोखी बात है ?
 
अब तुम भी मुझे समझाने न लगना 
कुछ बातें अपने वश में नहीं रहतीं 
अच्छा लगने की कोई वजह नहीं होती 
वजह ही पूछनी है तो जाकर उनसे पूछो 
जो दिन रात दुनिया को खराब करने में लगे हुए हैं
उन्हें पहचानो 
जिसके भीतर जो होगा वही जियेगा 
मेरे प्रेम से भला दुनिया का क्या फायदा क्या नुकसान ?
 
अब तुम भी मुझे चरित्रहीन स्त्री कहती हो तो कहो ।। 
 
रेखा चमोली 
असिस्टेंट प्रोफेसर शिक्षाशास्त्र
रा0 स्ना0 महा0 मालदेवता , रायपुर 
देहरादून
उत्तराखण्ड

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किताबें

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