Wednesday, December 4, 2024

एम. ए. (राजनीति) बी. एड…
अध्यक्ष – “युवा प्रतिभा सांस्कृतिक मंच” ग्वालियर, मध्यप्रदेश
तीन पीढ़ियों से हिन्दी साहित्य की सेवा
प्रपितामह :महाकवि नाथूराम शंकर शर्मा
पितामह :हरिशंकर शर्मा पिता :कृपा शंकर शर्मा “कृपाचार्य”
अभिरुचि : संगीत, रंगकर्म , कविता और कहानी लेखन, फोटोग्राफी, पेन्टिंग
पिछले तीन दशक से ग्वालियर में रंगकर्म
प्रदेश और प्रदेश के बाहर भी अनेक नाट्य प्रस्तुति , टेलिविजन और रेडियो पर प्रसारण
2018 का “ग्वालियर गौरव” सम्मान.(.रंगमंच के लिए) “ग्वालियर विकास समिति” द्वारा प्रदत्त।
. वसुंधरा व्यास.
ग्वालियर मध्यप्रदेश

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कविताएं

मन की बात

मैं उकेरना चाहती हूँ कुछ ऐसे चित्र 
इन्द्रधनुषी  रंगों से 
जिन्हें देख, 
प्रकृति नृत्य कर उठे
संपूर्ण धरा हो जाए हरी-भरी 
 
मेघ भर-भर लाऐं बारिश… 
कल कल बहने लगें, 
सूखी और बीमार नदियाँ 
 
 
मैं गढना चाहती हूं कुछ ऐसे राग 
जिनमें अज़ान के भी  स्वर हों
 जिनकी पवित्र मधुर धुन में
गायी जा सके गुरुवाणी
और.. क्रिसमस कैरोल 
 
मैं गाना चाहती हूँ 
ऐसी वात्सल्य भरी लोरियाँ 
जिन्हें सुनकर लौट आऐं
वो  मेहनतकश मजदूर 
मासूम  बच्चे  और औरतें 
जिन्होंने कैरोना काल में 
गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही 
दम तोड़ दिया था 
 
 
मैं लिखना चाहती हूँ 
कुछ कहानियाँ भी, 
जिनके पात्र केवल
मानव धर्म के अनुयायी हों
कभी न करते हों घाव
किसी के तन पर, किसी के मन पर 
 
मैं लिखना चाहती हूँ
बहुत सी प्रेम कविताएँ 
जिन्हे पढकर 
सारी सृष्टि हो जाऐ
प्रेम और सुख से सम्पन्न 
 
मैं जीवन के  आंगन में 
अनुभूतियों और… 
संवेदनाओं का वृक्षारोपण करना चाहती हूँ 
 
 
     वसुंधरा  व्यास

कविता २

गुनगुनी सी लग रही है चाँदनी
सर्द सी लगने लगी है धूप….
नयन विस्मित् हो रहे हैं देखकर
प्रेम का ऎसा समर्पित रूप. 
 
बोलती हूं पर अधर ख़ामोश  हैं
मन पटल पर प्रेम का उद्घोष है
भोर सी लगने लगी है यामिनी
रात भर खिलने लगी है धूप
 
नयन विस्मित् हो रहे हैं देखकर 
प्रेम का एैसा समर्पित रूप ।
 
आइने से बात करती रात भर
गुनगुनाती, .खिलखिलाती रात भर
भोर की पहली किरण के साथ क्यूँ 
शब्द हो जाते हैं सारे मूक …. !
 
नयन विस्मित् हो रहे हैं देखकर 
प्रेम का एैसा समर्पित रूप ।
——————-वसुन्धरा व्यास

वसंत स्वागत धूप

वसंत स्वागत धूप
अवनि का अनन्य रूप 
पीली – पीली सरसों खिली 
हरी – हरी दूब.. 
वसंत स्वागत धूप 
 
मदिर मदिर बहे पवन
नीलवर्ण सौम्य  गगन
आल्हादित अंतर्मन 
प्रकृति प्रणय रूप 
 
वसंत स्वागत धूप 
 
निखर उठे वन – उपवन
मुस्काये विरही नयन
होगा प्रिय पुनर्मिलन 
प्रेम गंध रूप
 
वसंत स्वागत  धूप.
 
सुरमयी सी शाम हुई 
अकुलाई घाम हुई
शीतलता लौट चली
सूरज से ऊब
 
वसंत स्वागत  धूप 
वसुंधरा व्यास

कविता ४- स्मृति लोप

भूल जाती हूँ.. 
आजकल, अक्सर भूल जाती हूँ। 
ब्लडप्रेशर की दवाई खाना, 
हिसाब-किताब लगाना, 
फ़्रिज के सामने खड़ी हो जाती हूँ
 भूल जाती हूँ, 
क्या है सामान निकालना। 
 
स्वजनों और मित्रों के जन्मदिन भी
नहीं रहते स्मृति में, 
उलाहने खाकर चुपचाप मुस्कराती हूँ 
 
आजकल अक्सर भूल जाती हूँ 
 
मॉर्निंग वॉक पर दिखते कई चेहरे
बहुत अपने से लगते हैं 
किन्तु स्मृति में नहीं आते उनके नाम
डरती हूँ, कहीं कोई ऐसा प्रश्न न कर दे
जिसका उत्तर न  हो मेरे पास। 
बेबस  होकर,  दूर से ही मुस्कराती हूँ 
 
पता नहीं क्यों! 
आजकल अक्सर भूल जाती हूँ। 
 
गूगल सर्च बताता है कि ये स्मृति लोप है! 
डाक्टर भी कहते हैं यही। 
 
किन्तु, 
मैं कैसे मान लूँ.! 
मैं  कभी नहीं भूलती  तुम्हारा नाम
तुम्हारा चेहरा, तुम्हारा  प्रथम स्पर्श 
 
तुम्हारे आलिंगन का स्मरण 
आज भी मेरी देह  गुनगुनी कर देता है। 
 
प्रेम में जागृत  अनेक मधु-यामिनी, 
और दिवस भी;
मेरी स्मृति में लोबान से महकते रहते हैं
 
तुम्हारी लिखी कविताएँ 
  ज़ुबानी याद हैं मुझे 
तुम्हारी ग़ज़लों की
 बहर तक याद हैं मुझे 
 
प्रेम! तुम ही अन्तिम सत्य हो
मृत्यु से पूर्व इस जीवन का। 
         वसुंधरा व्यास 

तुम कह दो तो............

तुम कह दो तो गीत लिखूँ मैं
अधरों पर संगीत लिखूँ मैं
पढ लो यदि नयनों की भाषा
नवल प्रीत की रीत लिखू मैं
 
तुम कह दो तो सिंचित कर दूँ
जीवन का अरण्य में सारा
पुलकित कर दूँ मन उपवन को
सुरभित कर दूँ जीवन सारा
 
तुम कह दो तो आस लिखूँ मैं
सांसो में विश्वास लिखूँ में
पढ लो यदि तुम मन की भाषा
तृषित हृदय की प्यास लिखूँ में
 
तुम कह दो तो अर्पण कर दूँ
प्रेम  हृदय का  तुमको  सारा
सांस सांस अभिमंत्रित कर दूँ
पोर पोर चंदन सा प्यारा
 
तुम कह दो तो प्यार लिखूँ मैं
दो हृदयों की हार लिखूँ मैं
पढ लो यदि तुम तन की भाषा
नयनों में अभिसार लिखूँ में ……..
 
_____वसुन्धरा व्यास
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