लेखकों की पत्नियों की शृंखला में आपने रविन्द्रनाथ टैगोर, नाथूराम शर्मा शंकर, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिली शरण गुप्त, राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, शिवपूजन सहाय, रामबृक्ष बेनीपुरी, जैनेंद्र, हजारी प्रसाद दिवेदी, गोपाल सिंह नेपाली, रामविलास शर्मा, नागार्जुन, नरेश मेहता, कुंवर नारायण, विनोद कुमार शुक्ल, प्रयाग शुक्ल आदि की पत्नियों के बारे में पढ़ा। आज पढ़िए प्रगतिशील आंदोलन के यशस्वी कवि केदारनाथ अग्रवाल की पत्नी के बारे में। हिंदी के वरिष्ठ कवि नरेंद्र पुण्डरीक पार्वती देवी के बारे में बता रहे हैं।
“क्या आप पार्वती देवी को जानते हैं”?
—————————————————————————————————- नरेंद्र पुण्डरीक हिंदी के प्रगतिशील आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ केदारनाथ अग्रवाल, कवियों में एक अनूठे कवि थे। एक अप्रैल 1911 में जन्मे केदारनाथ अग्रवाल बांदा जिले के कमासिन गांव के थे और पेशे से वकील थे और बांदा में बस गए थे। वह हिंदी के प्रख्यात आलोचक और सप्तक के कवि रामविलास शर्मा के अनन्य मित्र थे।रामविलास जी ने “श्रम का सूरज” नाम से केदारनाथ जी की कविताओं का एक संचयन भी निकाला था। केदार जी के नाम पर केदारनाथ अग्रवाल पुरस्कार भी हिंदी में हर साल दिया जाता है लेकिन आप पार्वती जी को नहीं जानते होंगे। वह उनकी पत्नी थीं। वह इलाहाबाद के निकट नैनी के लाला भैरव प्रसाद अग्रवाल की बेटी थीं। जब उनकी शादी केदारनाथ अग्रवाल से हुई थीं तब केदार जी इरविन क्रिश्चियन कालेज में कक्षा 9 में पढ़ते थे। उन दिनों शादी के बाद गौने का रिवाज था।पार्वती जी का भी शादी के तीन साल बाद गौना हुआ था। वह नैनी से केदार जी के गांव कामसीन में आई थीं। इस समय केदार जी के परिवार का अधिवास बांदा में भी हो गया था। तब केदार जी के बाबा महादेव प्रसाद अग्रवाल और पिता हनुमान प्रसाद अग्रवाल गांव में ही रहते थे। बाबा महादेव प्रसाद ने अपनी महाजनी से देव गांव की जमींदारी खरीदी थी। जब केदार जी का गौना हुअ वह इलाहाबाद विध्विद्यालय में बी. ए. में आ गए थे और हिन्दू होस्टल में रहते थे। वे कमर नंबर 113 और 115 में रहे। केदार जी ने कानपुर से कानून की डिग्री हासिल की और बांदा में आजीवन वकालत की।केदार जी का रामविलास शर्मा से लम्बा पत्र व्यवहार हुआ और दोनों के पत्राचार “मित्र संवाद” नामक पुस्तक के रूप में छप चुका है लेकिन केदार जी अपने समकालीनों में पहले ऐसे लेखक हैं जिनका अपनी पत्नी से भी लम्बा पत्रव्यवहार हुआ है। वह बाँदा इलाहाबाद और कानपुर और लखनऊ ही नहीं बल्कि चेन्नई से भी अपने पति को पत्र लिखती रहीं। चेन्नई में वह अपने बहू के साथ रहीं। केदार जी ने हमेशा अपनी पत्नी के पत्रों का जवाब दिया। वे हमेशा उन्हें पत्र लिखते रहे जो बड़े दिलचस्प भी होते थे और उनमें उनका पत्नी के प्रतिगहरा प्रेम झलकता रहा है। केदार जी पार्वती जी को पत्रों में प्रिय शब्द से संबोधित करते थे जबकि पार्वती जी उन्हें हमेशा प्यारे प्रीतम लिख कर संबोधित करती थीं।पार्वती जी का पहला पत्र मुझे 4 फरवरी 1931 का मिला है जब वे बी ए के छात्र थे। उनका अंतिम पत्र 5फरवरी 1972 का है जो उन्होंने चेन्नई से केदार जी को लिखा था।इस पत्र में उन्होंने एक कविता लिख कर भेजी है —“आंखों में यूं देखा करनाक्या जरूरत है दर्पण कीबोलो प्रीत निभाओगे नेप्रियतम अपने जीवन की “14 मार्च 1932 को वह केदार जी को लिखे अपने पत्र में कहती हैं – “आपकी कविता की तो क्षमता नहीं है “।फिर उनको एक कविता लिख कर भेजती हैं जो उन्होंने अपनी बेटी हेमा के बचपन के बारे में लिखती हैं — “प्रेम मिलन में अति सुकुमारीबोलन मेंबड़ी सलोनी हैभौंहे इसकी देख देखइंद्र धनुष भी शर्माता हैमुख मंडल को निरख निरखशशि भी छिप जाता हैफूल गुलाब की अरुणाई इसके कपोलों पर है छाईमोती सरीखे दांत बने हैंइसको है उसने पाई..”यह काफी लंबी कविता है। लेकिन इस कविता को पढ़कर लगता है उनके भीतर एक कवि हृदय था और कुछ कविताई का भी हुनर उनको था लेकिन घर परिवार संभालने के चक्कर में वह अपनी कविताई को पल्लवित पुष्पित नहीं कर पाई। केदार जी अपने पत्र में पार्वती जी की इस कविता में सुधार भी करते है । क्योंकि अगले पत्र में पार्वती जी इसका जिक्र करते हुए लिखते हैं– “आपने मेरे बेतार के शब्दों को सुधार कर एक अच्छी कविता बना दी है।”केदार जी की कविताओं को पढ़कर लगता है वे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। उन्होंने पार्वती जी के प्रेम और सौंदर्य पर अद्भुत कविताएं लिखी हैं। वह हिंदी कविता में स्वकीया प्रेम के कवि कहे जाते हैं। स्वकीया प्रेम पर हिंदी में ऐसी कविताएं मिलना कठिन है। ‘हे मेरी तुम’ अपनी पत्नी को लेकर लिखी गयी कविताओं का संग्रह है। शायद ही किसी हिंदी कवि ने अपनी पत्नी के प्रेम में प्रेम कविताओं का एक संग्रह ही छपवा डाला। उनका यह संग्रह 1980 में आया था।अब तो 42 साल हो गए। पत्नी पर लिखी कविताओं का उनका दूसरा संग्रह जामुन जल तुम 1985 में आया। 1985 में पार्वती जी के गिर जाने के कारण उनके कूल्हे की हडडी टूट गयी।केदार जीउनको अपने बेटे अशोक के पास चेन्नई गए और अपोलो अस्पताल में इलाज करवाया। पार्वती देवी तीन माह अस्पताल में रहीं। केदार जी लगातार तीन महीने उनके पास रहे। उनकी देखभाल की पर जनवरी 1986 में उनका निधन हो गया। पत्नी के नहीं रहने का उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके निधन के बाद उन्होंने बीमारी के दौरान लिखी गयी कविताओं का संकलन “आत्मगंध” शीर्षक से छपवाया। यहां प्रस्तुत है उनकी एक कविता जो उन्होंने 25 दिसम्बर 1985 को लिखी थी, जब पार्वती जी अस्पताल में भर्ती थीं —मौन पड़ी है प्रिया प्रियम्बदबिना बोल के मुंह खोलेप्यार पुलक की आँखे नीचेदुख में डूबी सांसे लेतीपास खड़ा मैंमहाकाल को रोक रहा हूँ कविताओं का घेरा डालेयहां न आये उनको लेनेजीवन की जय प्रेम योगिनी पाए।