अब तक आपने भारतेंदु युग के महाकवि नाथूराम शर्मा “शंकर”, रामचन्द्र शुक्ल , राजा राधिकरामण प्रसाद सिंह , आचार्य शिवपूजन सहाय , रामबृक्ष बेनीपुरी, जैनेंद्र , आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, गोपाल सिंह नेपाली , रामविलास शर्मा, नागार्जुन , अरविन्द कुमार, विनोद कुमार शुक्ल, प्रयाग शुक्ल आदि की पत्नियों के बारे में पढ़ा । अब पढ़िए विश्वप्रसिद्ध कवि टैगोर की पत्नी के बारे में।
आप मृणाली देवी से परिचित हो सकते हैं लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि मृणालनी देवी का वास्तविक नाम भवतारिणी देवी था।उनका टैगोर से बाल विवाह हुआ था।।यह भी बहुत कम लोगों को पता होगा कि वह मात्र 28 साल की उम्र में मर गईं। टैगोर को तब नोबेल पुरस्कार भी नहीं मिला था। इस तरह गुरुदेव ने बहुत लंबा विधुर जीवन गुजारा।
बर्लिन से उज्जवल भट्टाचार्य आपको टैगोर। की पत्नी के बारे में बता रहे हैं।
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“भवतारिणी से मृणालिनी बनने की यात्रा”
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आधुनिकता के उन्मेष के पर्व में इंगलैंड में स्त्री सशक्तीकरण, ख़ासकर स्त्री शिक्षा की चर्चा करते हुए एरिक हॉब्सबॉम ने कहा है कि अक्सर इसके पीछे पिता या भाइयों द्वारा दिया गया प्रोत्साहन रहा है. इसका आशय कतई उनके अपने प्रयासों को कम करके आंकना नहीं है.
रवीन्द्रनाथ की पत्नी मृणालिनी देवी के जीवन पर नज़र डालते हुए भी कुछ हद तक ये बातें कही जा सकती हैं. लेकिन यहाँ प्रोत्साहन देने वाले उनके पिता या भाई नहीं, बल्कि पति और ससुर थे.
रवीन्द्रनाथ का परिवार एक समृद्ध ब्राह्ण ज़मींदार परिवार था, लेकिन मुगल दौर में मुसलमानों के संस्पर्श में आने के आरोप में धार्मिक रूप से ब्राह्मण समाज से बहिष्कृत. इस परिवार के बेटे-बेटियों के लिये जीवन साथी का चयन आसान नहीं था, और बहु व दामाद ज़मींदारी के दरिद्र सद्ब्राह्मण परिवार से लाये जाते थे. रवीन्द्रनाथ के लिये ऐसे ही एक परिवार की दस वर्षीय कन्या भवतारिणी चुनी गई. 1883 में उनका विवाह हुआ. विवाह में रवीन्द्रनाथ का विशेष उत्साह नहीं था, लेकिन आपत्ति भी नहीं थी.
मायके में दिया गया नाम भवतारिणी अब ठाकुर परिवार की आधुनिक संस्कृति से मेल नहीं खाता था. उसे नया नाम दिया गया – मृणालिनी. वह पढ़ी-लिखी नहीं थी, उसके लिये पहले घर में, फिर अंग्रेज़ी की शिक्षा के लिये लोरेटो स्कूल में व्यवस्था की गई. रवीन्द्रनाथ चाहते थे कि उसे संस्कृत साहित्य का भी ज्ञान हो. इसके लिये एक संस्कृत अध्यापक घर आकर उसे पढ़ाते रहे.
इसमें कोई शक़ नहीं कि भवतारिणी से मृणालिनी बनी किशोरी को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया उसकी इच्छा के बिना शुरू हुई थी, लेकिन इच्छा के विपरीत नहीं. जल्द ही साहित्य में मृणालिनी की रुचि बढ़ती गई, यहाँ तक कि वह अंग्रेज़ी साहित्य में भी दिलचस्पी लेने लगी. मार्क ट्वेन उनके प्रिय लेखक बन गये. धीरे-धीरे उनका लेखन भी प्रस्फुटित हुआ. वह अपनी डायरी में लिखती थीं, जिन्हें कभी प्रकाशित नहीं किया गया. उनके स्वतंत्र लेखन के बारे में कुछ पता नहीं चलता है. लेकिन ठाकुर परिवार के कई रिश्तेदारों व मित्रों ने इस बात की पूष्टि की थी कि वह संस्कृत साहित्य से अनुवाद करने लगी थी, जिसमें प्रमुख था वाल्मिकी रामायण का सरल बांगला में अनुवाद. यह काम पूरा नहीं हुआ और अन्य रचनाओं की तरह यह भी अप्रकाशित रहा.
ऐसा नहीं है कि ठाकुर परिवार की सभी बहुएँ अनपढ़ थीं. रवीन्द्रनाथ के बड़े भाई व देवेन्द्रनाथ के दूसरे पुत्र सत्येन्द्रनाथ की पत्नी ज्ञानदानन्दिनी देवी एक सुशिक्षित आधुनिक महिला थी. बाँये कंधे पर आंचल रखते हुए साड़ी पहनने का रिवाज उन्हीं के साथ शुरू हुआ था, जिसे ब्राह्मिका शैली का नाम दिया गया था. चौथे भाई ज्योतिरिन्द्रनाथ की पत्नी कादम्बरी देवी की भी साहित्य में गहरी रुचि थी. जहाँ तक मृणालिनी देवी का सवाल है तो साहित्य में रुचि के साथ-साथ वह ठाकुर बाड़ी में मंचित होने वाले नाटकों में भी अभिनेत्री के रूप में भाग लेती थीं. लेकिन घरेलू कामों में, ख़ासकर तरह-तरह का स्वादिष्ट भोजन बनाने में उनकी ज़्यादा दिलचस्पी थी.
रवीन्द्रनाथ अपनी पत्नी का बहुत ख्याल रखते थे व उनका वैवाहिक जीवन सुखी था. लेकिन यह भी सच है कि शुरू में उनकी शिक्षा में दिलचस्पी लेने के अलावा रवीन्द्रनाथ ने उनके बौद्धिक व रचनात्मक विकास में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई. ऐसी बात नहीं है कि ठाकुर परिवार की स्त्रियाँ रचनात्मकता के क्षेत्र में पीछे थीं. रवीन्द्रनाथ की सबसे बड़ी बहन स्वर्णकुमारी देवी बांगला की पहली उपन्यास लेखिका थीं व उस समय कलकत्ता के सांस्कृतिक जीवन में उनकी एक ख़ास जगह थी. मृणालिनी की लगभग हमउम्र भतीजी इन्दिरा देवी व सरला देवी की भी विदुषियों के रूप में ख्याति थी. एकबार जब परिवार के एक मित्र ने पूछा था कि क्या मृणालिनी भी लिखती हैं, तो उसकी दूसरी ननद सौदामिनी ने कहा था कि जिसके पति इतने प्रसिद्ध लेखक हो चुके हैं, उसे ख़ुद लेखिका बनने की क्या ज़रूरत है?
मृणालिनी देवी के बौद्धिक व भावनात्मक जगत के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. बाहर से देखने पर इतना ही पता चलता है कि ठाकुर परिवार के वातावरण में उनके मन में सांस्कृतिक रुचि भले ही विकसित हुई हो, सांस्कृतिक महत्वाकांक्षा नहीं पनपी. परिवार और पति रवीन्द्रनाथ की ओर से कोई रोक नहीं थी, लेकिन प्रोत्साहन सीमित था. बाद में बच्चों के जन्म के बाद वरीयतायें भी बदल गईं. संयुक्त परिवार में अपने पति व बच्चों की देखभाल में ही वह व्यस्त हो गईं. उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था व जल्द ही उन्हें पता चल गया था कि उनके जीवन में अब कुछ ही वर्ष बाकी रह गये हैं. ऐसी हालत में वह चाहती थी कि उनकी मौत से पहले तीनों बेटियों की शादी हो जाय. रवीन्द्रनाथ की तीनों बेटियों की शादी बालिग होने से पहले ही कर दी गई. यह उस समय ठाकुर परिवार में एक अपवाद ही था. रवीन्द्रनाथ की भतीजियों की शादी तीस वर्ष की उम्र हो जाने के बाद ही हुई थी.
यह वह दौर था जब रवीन्द्रनाथ की ख्याति सारे देश व विश्व में फैलने की शुरुआत हो चुकी थी. सामाजिक क्षेत्र में भी वह काफ़ी सक्रिय थे. पति के इन कामों में मृणालिनी का पूरा सहयोग मिलता था. जब रवीन्द्रनाथ द्वारा स्थापित विद्यालय के लिये पैसों की कमी हो रही थी तो मृणालिनी ने अपने गहने बेचकर उनकी मदद की. पति के साथ वह घूमती भी रही और उन्हीं के दबाव के चलते अपने छोटे बच्चों की परवरिश के लिये रवीन्द्रनाथ को कुछ समय के लिये अपनी घुमक्कड़ी त्यागनी पड़ी.
गाँव के एक दरिद्र परिवार की बेटी को ठाकुर परिवार में एक विशाल, एक आधुनिक जगत का परिचय मिला था. वह उसमें रच-बस गई, जहाँ तक ज़रूरत थी उसके अनुसार उसने अपने आपको उसके अनुरूप ढाला, लेकिन कहा जा सकता है कि उसकी चकाचौंध में वह बह नहीं गई. उनका एक छोटा सा घरेलू जगत था, जिसे वह अपने अन्तिम दिन तक सँजोकर रखती रही. विशाल जगत में अपने प्रतिभावान पति के विचरण से वह मुग्ध थी, मदद करने की कोशिश करती थी, लेकिन अपने छोटे से घोंसले की कीमत पर नहीं. और उस छोटी सी दुनिया की मालिक वह ख़ुद बनी रही – अपने अन्तिम दिन तक.
1903 में सिर्फ़ 28 साल की उम्र में मृणालिनी देवी की मृत्यु हो गई. इस तरह 38 साल तक टैगोर विधुर रहे।