Friday, November 22, 2024
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“क्या आप रानी को जानते हैं?”

हिंदी के महान लेखकों की पत्नियों की श्रृंखला में आपने अब तक आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य शिवपूजन सहाय, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नरेश मेहता की पत्नी के बारे में पढ़ा । आज पढ़िए हिंदी के महान स्वतंत्रता सेनानी समाजवादी आंदोलन के स्तम्भ पत्रकार नाटककार शैलीकार कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी की पत्नी के बारे में। बेनीपुरी जी जयप्रकाश नारायण के साथ हजारी बाग जेल में रहे और जेपी को जेल से भागने की योजना के सूत्रधार थे। आज़ादी की लड़ाई में पांच छह बार जेल गए और छह सात साल जेल में रहे।सोचिए उनकी पत्नी ने कितना बड़ा त्याग किया होगा कितना संघर्ष बच्चों को पालना परिवार का खर्च चलाना भी।
हिंदी और मैथिली की प्रसिद्ध लेखिका उषाकिरण खान बता रहीं है बेनीपुरी जी की पत्नी के बारे में।
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रामबृक्ष बेनीपुरी बिहार के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी थे। समाजवादी गुट के प्रारंभिक समन्वयक थे। लेकिन उससे बड़ा काम था उनका साहित्यकार होना। बेनीपुरी जी अद्भुत शैलीकार थे। उन्होंने साहित्य में सदा नई लीक बनाई। कवि विद्यापति के गीतों का संग्रह तथा संपादन किया ,साथ ही पुस्तक भंडार से प्रकाशित होने वाली अलभ्य पत्रिका “हिमालय” का संपादन करके मानक रच दिया। स्नेही आनंदी स्वभाव के बेनीपुरी जी मुजफ्फरपुर के रहनेवाले थे। वहीं सीतामढी के स्वतंत्रता सेनानी महादेव शरण जी की पुत्री रानी से 16 वर्ष की आयु में विवाह हो गया था। उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने लिखाने का रिवाज नहीं था इसलिए बेनीपुरी जी पत्नी निरक्षर थीं। बेनीपुरी जी ने उन्हें साक्षर बनाने की पहल की। व्यस्त होने के कारण पूरा ध्यान न दे सके। लेकिन रानी ने नि:स्वार्थ भाव से स्वतंत्रता सेनानी परिवारों का भार अपने ऊपर सहर्ष ले रखा था। सन् 1942 के समय भारत छोड़ो आंदोलन में सारे नेता या तो भूमिगत हो गये या जेल चले गये। ऐसे समय वे अपने घर मे रह कर रसद मुहय्या करतीं। किताब संसार प्रेस बंद नहीं होने दिया था। जेल गये भाइयों के परिवार की देखभाल करती। रानी देवी अनपढ़ जरूर थी पर बेनीपुरी जी के साहित्य कर्म के महत्व को समझती थीं और उनका ख्याल रखती थीं कि उनके पति को साहित्य की सेवा कर सकें, अवदान कर सकें और देश को गुलामी से मुक्त कराने में अपनी भूमिका निबाह सकें । यही कारण था बेनीपुरी जी जेल जाते रहे उनकी पत्नी घर संभालती रहीं। जब प्रेस ध्वस्त हुआ उनकी पत्नी की देखभाल से ही तब भी वहाँ छपी अनछपी सामग्री सुरक्षित रही।
बेनीपुरी जी को छूटकर साहित्य तथा राजनीति करने का समय मिले यह सुविधा रानी देवी ने ही मुहय्या कराया। वे सबों की बेहद प्रिय थीं। साहित्य जगत में कम लोग ऐसे हैं जिनकी इतनी कर्मठ समझदार पत्नी हुई हों।
श्री रामबृक्ष बेनीपुरी जी ने अपने नाम से शर्मा पदवी हटा दी क्योंकि वे जातिसूचक पदवी नहीं रखना चाहते थे नाम, उसी प्रकार उन्होंने अपनी पत्नी उमा रानी का नाम मात्र रानी रहने दिया। यह एक वज्रादपि कठोर राजनेता और मृदूनि कुसुमादपि कुसुमादपि प्रेमी का मन था। रानी जो अपनी देख रेख में खेती करवातीं, परिवार चलातीं स्वतंत्रता सेनानियों तथा उनके परिजनों की तन मन से सेवा करतीं। उमारानी जी सुकंठी थीं , वे विद्यापति के गीत गातीं, जैसे सभी मिथिला की स्त्रियाँ गातीं हैं। हम कह सकते हैं कि बेनीपुरी जी ने विद्यापति गीत वही सुन कर इकट्ठा किया हो। समयाभाव में बेनीपुरी जी उन्हें पढा तो न सके पर अवगति उनमें सब थी। वे बडे चाव से उनकी लोकरंग में डूबी कहानियाँ सुनतीं, गुनती। तब माटी की मूरतें लिखी गईं! बेनीपुरी जी बार बार संयुक्त बिहार के लगभग सभी जेलों में सजा काट आये थे। रानी पर उन्हें भरोसा था कि वे घर और बच्चों को सँभाल लेंगी। अंबपाली नाटक का गहन प्रेम, मातृभूमि के लिये न्यौछावर हो जाने का जज्बा परकाया प्रवेश किये लेखक का जज़्बा है ; लेखक की संवेदना जहाँ पराकाष्ठा पर होती है वहाँ सहज ही रानी जी का विरह दीख पड़ता है। समाजवादी नेता अपने बल पर जब चुनाव लडने लगे तब रानी जी ने अथक परिश्रम किया ; सफलता इनके वश का नहीं था लेकिन परिश्रम तो था। उन्होंने वैसा ही किया। एक संघर्षपूर्ण सुखमय जीवन था जब बेनीपुरी जी को पक्षाघात हुआ था। रानी जी की अथक सेवा करती रहीं । उनकी अंतहीन पूजा का सूरज 1968 में डूब गया। बाकी के वर्ष उनके शून्य में ताकते बीते और अंत मे सन् 1974 में ज्योति महाज्योति में मिल गई। उमारानी ने सादगी सच्चाई जीवट से अपनी इहलीला सम्पन्न की । जानने वाले कहते हैं कि बेनीपुरी जी के चहुँदिशि व्यक्तित्व की गरिमा थीं उमारानी जी!
वाकई वह बेनीपुरी जी के दिल की रानी नहीं थीं हम सबकी रानी थीं।
– उषाकिरण खान
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