आप शिवरानी देवी को जानते हैं, मनोरमा देवी को जानते हैं लेकिन आप कमला के बारे में या सरयू देवी के बारे में नहीं जानते होंगे।ऐसे में भला आप बच्चन देवी को कैसे जानेंगे।उनका नाम भी नहीं सुना होगा।
दरअसल हम लेखकों को ही जानते हैं उनकी पत्नियों को बिल्कुल नहीं जिन्होंने बड़ा त्याग किया है अपने पतियों को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई है।शेक्सपियर टॉलस्टॉय गोर्की चेखव को आप जानते हैं लेकिन उनकी पत्नियों को नहींजानतें होंगे।।हालांकि अंग्रेजी में उन पर भी किताबें है पर हिंदी में लेखकों की पत्नियों पर नहीं। शिवरानी देवी अपवाद हैं जिनपर गत वर्ष एक किताब आयी अन्यथा रामचन्द्र शुक्ल जयशंकर प्रसाद मैथिली शरण गुप्त माखनलाल चतुर्वेदी की पत्नियों के नाम हम नहीं जानते तब भला बच्चन देवी को कैसे जानेंगे । पांडेय बेचैन शर्मा उग्र ने बच्चन देवी पर एक संस्मरण लिखा है।आपको यह भी नहीं पता होगा।
आप को यह भी नहीं पता होगा बच्चन देवी की स्मृति में आयोजित गोष्ठी में पुरुषोत्तम दास टण्डन राहुल सांकृत्यायन बाल कृष्ण शर्मा नवीन आचार्य चतुरसेनबेनीपुरी जैनेंद्र कुमार भगवती चरण वर्मादिनकर उपेन्द्रनाथ अश्क, किशोरी दास वाजपई नागार्जुन धर्मवीर भारतीविद्यानिवास मिश्र जैसे दिग्गज लेखक भाग लेते रहे हैं।चार्ल्स नेपियर ,मैग्रेगर ओदोन इस्मेकल जैसे विश्व विख्यात विद्वान भी । 170 से अधिक गोष्ठियां हुईं।हिंदी का कौन ऐसा लेखक नहीं जो न गया हो। शिवपूजन बाबू ने अपनी पत्नी की स्मृति में 1954 में यह गोष्ठी शुरू की। अपनी पत्नी को किस लेखक ने इस तरह याद किया।एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा आपको।
जिस तरह जयशंकर प्रसाद की दो दो पत्नियां मर गईं ,मैथिली शरण गुप्त की दो दो पत्नियां मर गयी उसी तरह शिवपूजन बाबू की दो दो पत्नियां मर गईं।तीसरी पत्नी बच्चन देवी थीं1928 में बीस साल की उम्र में विवाह हुआ । 16 नवम्बर 1940 में उनका निधन हो गया था।।स्कूल कालेज नहीं गयी पर स्वाध्याय से साहित्यिक धार्मिक किताबें पढ़ती थीं। विवाह से पहले शिवपूजन सहाय से लम्बा पत्रचार हुआ जो इंडिया टुडे वार्षिकी में छप चुका है।शिवपूजन समग्र में वे सारे पत्र है। 1920 के दशक में गांव की एक युवती कितनी पढ़ी लिखी साहित्य अनुरागी थी यह दुर्लभ है।
आज शिवपूजन सहाय की 59 वीं पुण्यतिथि है।इस अवसर पर उनकी पत्नी बच्चन देवी को जाने जिन्हें राजेन्द्र बाबू जयप्रकाश नारायण निराला बेनीपुरी दिनकर जैसे अनेक लोगों का आतिथ्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।वह कोई लेखिका नहीं थी पर साहित्य अनुरागी थी।पति के हर काम मे हाथ बटाती ।हिंदी भाषा साहित्य और पत्रकारिता के निर्माण में 50 साल की साधना के पीछे बच्चन देवी के त्याग को नहीं भुला जाना चाहिए अन्यथा शिवपूजन बाबू साहित्य को अपना ऐतिहासिक योगदान नहीं दे पाते प्रेमचन्द निराला प्रसाद की रचनाओँ का सम्पादन संशोधन नहीं कर पाते 13 पत्रिकाओं का सम्पादन नहीं कर पाते।।अनेक ऐतिहासिक ग्रंथ और
अभिनंदन
ग्रंथ को निकाल नहीं पाते । बच्चन देवी जैसी महिलाओं का भी हिंदी साहित्य के निर्माण में योगदान है परोक्ष रूप से
स्त्री दर्पणदिवंगत लेखकों की पत्नियों को नमन करता है ।लेखकों को याद करें तो उनकी पत्नियों को न भूलेंजो पर्दे के पीछे रहीं और उनकाकिताबों में जिक्र तक नहीं।
(तस्वीर आचार्य शिवपूजन सहाय न्यास से साभार)