Monday, May 13, 2024
Homeलेखकों की पत्नियांक्या आप सौभाग्यवती देवी को जानते हैं ?"

क्या आप सौभाग्यवती देवी को जानते हैं ?”

अब तक आपने लेखकों की पत्नियां श्रृंखला में 42 लोगों के बारे में पढ़ा। आज पढ़िए नई कविता के सूत्रधार डॉक्टर जगदीश गुप्त की पत्नी के बारे में। हरदोई जिले में 1924 में जन्में जगदीश गुप्त की जन्मशताब्दी अगले वर्ष से शुरू होगी। आज अगर वह जीवित होते तो वह 98 वर्ष के होते। जगदीश गुप्त, रामस्वरूप चतुर्वेदी और विजयदेव नारायण साही की तिकड़ी काफी मशहूर है। जगदीश जी कवि के अलावा नामी गिरामी चित्रकार थे और बहुत लोगों ने उनके दुर्लभ चित्र देखे होंगे।
इलाहाबाद की कथा कार नीलम शंकर ने बड़ी मेहनत से जगदीश गुप्त की पत्नी के बारे में बहुत सारे तथ्य जुटा कर यह लेख स्त्री दर्पण के लिए लिखा है । हम उनके बड़े आभारी हैं क्योंकि उन्होंने यह लेख लिखने के लिए एक नया लैपटॉप भी लिया और उस पर हिंदी में टाइप करना भी सीखा । यह उनके साहित्य के प्रति गहरे लगाव का सूचक है। वह जगदीशजी के सम्पर्क में थीं।तो पढ़िए यह लेख।
…………………..

– नीलम शंकर
क्या आप सौभाग्यवती जी को जानते हैं, नहीं ना, वो डॉ जगदीश गुप्त जी की पत्नी थी। उनका जन्म बर्मा के रंगून शहर में हुआ था | वहाँ पर उनके माँ पिता ( लक्ष्मी नारायण गुप्ता ,पार्वती गुप्ता ) का सोने चांदी का कारोबार था | द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका के मद्देनजर सपरिवार उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में आ बसे थे | सोलह सत्रह वर्ष की आयु रही होगी जब उनकी शादी की बातचीत डॉ जगदीश गुप्त जी से चलने लगी| उस वक़्त तक डॉ साब उच्च शिक्षा ग्रहण कर चुके थे | उनकी माताजी रामा देवी जी स्वयं काफी धार्मिक समझदार और बौद्धिक महिला थीं | उन्होंने ये जानने के लिए कि जिस लडकी से हम अपने बेटे की शादी करने जा रहे हैं वो पढ़ी लिखी है की नहीं | तो उन्होंने सौभाग्यवती जी से उस वक़्त रामायण पढ़वा के देखा था जो उन्होंने पढ़ कर सुना दिया था। पाठ सुनकर प्रसन्न माताजी ने सौभाग्यवतीजी के गले में सोने का हार पहना दिया | निश्चित सन- तिथि ( उनके परिवार में किसी को याद नहीं) कि कब डॉ जगदीश गुप्त जी की शादी हुई थी| वैसे गुप्तजी अपने समय के आधुनिक व्यक्तित्व में जाने जाते थे| उन्होंने स्वयं भी सौभाग्यवती जी को शादी से पहले देखा था | शादी के बाद वो प्रयाग में जगदीश जी के साथ रहकर गृहस्थी चलाने लगी थीं | धीरे धीरे परिवारिक सदस्य बढ़ते रहे | सौभाग्यवती जी को चार बेटियाँ गीता, चित्रा, अमिता और छमा, और तीन बेटे विभु, अभिनव और स्वस्तिक हुए| दादी रामा देवी ने ईश्वर से और बेटी न होने देने की गोहार लगाई थी उसी के बाद पहला पुत्र हुआ था इसीलिए आखिरी पैदा बेटी का नाम क्षमा रखा था दादी रामावती जी ने | पुत्री अमिता का निधन बडी माता से हुआ था परंपरा अनुसार उसे गंगा में प्रवाहित करने के बाद से ही सौभाग्यवती जी और डॉ साब काफी अनमने से रहने लगे थे ज़ाहिर है उन्हे गहरा आघात लगा था |
डॉ साब का दुख अपनी कविताओं और लेखों के जरिए निकल जाता था| इन्हीं सब आघातों को सहते हुए, घर गृहस्थी को सुचारु रूप से संभालते हुए उन्होंने यू पी से हाई स्कूल और हिन्दी साहित्य सम्मेलन से उत्तमा किया | उन्हें भी यह लग गया था की दुखों का निवारण पढ़ाई लिखाई में ही है | जो ज्ञान के साथ साथ समझदारी भी बढ़ाता है | यह प्रेरणा भी उन्हें डॉ साब से ही मिली थी | नहीं तो बच्चों के बीच मे पढ़ना लिखना आसान नहीं होता है | इन सब जिम्मेदारियों के बीच घर गृहस्थी के सामानों शाक भाजी अनाज़ की बाजार से खरीदारी भी कर लेती थीं | डॉ साब के मित्रों शिष्यों का बराबर आना जाना लगा रहता था लेकिन कोई भी बिना चाय पानी के नहीं जा सकता था| वो अपने और दूसरे बच्चों मे रत्ती भर भी फ़र्क न करती थीं | बहुत विश्वसनीयता से जीवन जीती थीं | यदि काम की अति व्यस्तता होती तो वो चाय पानी नौकर राम सरन से ही भिजवा देती थीं | डॉ साब की माता जी उनके बाल्यकाल से ही स्वामी नारदानंद सरस्वती के आश्रम मे रहती थीं उनसे उन्होंने दीक्षा ली थी | माताजी का जब भी अपने बेटे से मिलने का मन करता प्रयाग खत के ज़रिए सूचना दे कर आ जाया करती थीं | हाँ उस दौरान घर की पूरी व्यवस्था माताजी के हाथ में ही रहती थीं |माताजी को किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो सौभाग्यवती जी पूरा खयाल रखती थीं |
सौभाग्यवती जी रोजमर्रा के घरेलू झंझटों से डॉ साब को हमेशा दूर रखती थीं |जिसके कारण डॉ साब स्वतंत्र होकर अपने रचना संसार मे मशगूल रहते थे | सौभाग्यवती जी इन सब जिम्मेदारियों के बीच ही तरह तरह की बीमारियों से ग्रस्त होने के बावजूद सेवाकार्य में लगन मगन से लगी रहती थीं | उनको कई कई बार हार्ट अटैक का प्रॉब्लम, हार्ट की बाई पास सर्जरी के दौरान सीने में संक्रमण के कारण महीनों इलाज चला | डॉ साब की वाणी का लोप हो जाना जैसी गंभीर बीमारी के वक़्त भी बिना विचलित हुए घर को चलाना, सेवा करना, बच्चों का हौसला बनाए रखना क्या कम बडी बात है | जब भी डॉ साब को आयोजनों में पुरस्कृत होने निवरते बाहर जाना पडता वो साये की तरह साथ रहती थीं कि किसी भी तरह की दिक्कत न हो उनको | गढकोला में एक बार निराला जी पर कार्यक्रम रखा था आयोजकों ने उस वक़्त भी वो उनके साथ रही थीं कारण डॉ साब अस्वस्थ रहने लगे थे | डॉ साब की शिक्षा की प्रेरणा से कई बच्चों ने डॉ साब के घर पर ही रह कर शिक्षा प्राप्त की, उनके खाने और अन्य खर्चों का निर्वहन डॉ साब की सहमति से सौभाग्यवती जी बड़ी कुशलता और पारदर्शिता से करती थीं ये बडी बात थी |
कवि पत्रकार संपादक कन्हैया लाल नंदन ने अपनी संस्मरण पुस्तक में डॉ साब और उनके परिवार द्वारा दिए गए सहयोग का जिक्र बडी शिद्दत से किया है | लेखक पत्नियों से उनके अच्छे संबंध रहे हैं, पुष्पा भारती, कांता भारती से काफी नजदीकियाँ रही हैं | परिमल की गोष्ठियों का आयोजन हो या लेखक मित्रों का सत्कार बड़ी आत्मीयता और लगन से निर्वाह करती थीं |
बकौल डॉ साब के पुत्र विभु ‘ लेखक तो अपनी लेखनी से यश पाते रहे, घर पर रहकर अप्रत्यक्ष योगदान देनेवालों का भी साहित्य सृजन में कम योगदान नहीं माना जाएगा | घर में इतना सुकून का माहौल न मिलता तो क्या इतना गंभीर लेखन हो पाता ? सौभाग्यवती जी का अप्रतिम योगदान डॉ जगदीश गुप्त को जगदीश गुप्त बनाता है | उन्होंने कई लेखक पत्नियों का जिक्र किया जिनके अप्रत्यक्ष योगदान का उल्लेख होना चाहिए |
(सारी बातचीत उनकी बेटी गीता, चित्रा, बेटे विभु और उनके शिष्य हरी शंकर पर आधारित है | )
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!