इंद्रप्रस्थ महिला कालेज में हिंदी की प्रोफेसर हर्षबाला शर्मा अखबारों और पत्रिकाओं में आलोचना लिखती रही हैं।तहलका में उनके कुछ लेख चर्चित हुए हैं।वह एक कुशल अनुवादक भी हैं।
उन्होंने कार्सन म्युलर की प्रसिद्ध किताब द हार्ट इज लोनली हंटर का अनुवाद किया है जो अगले माह आने वाला है।यहां प्रस्तुत है उस किताब का एक दिलचस्प अंश–
अनुवाद: हर्षबाला शर्मा
कुछ सवाल और अनुवाद:
क्या मनुष्य तमाम भौतिक, आध्यात्मिक, दैहिक सुखों के बावजूद पूरी तरह से बीहड़ ही है? क्या मनुष्य के लिए किसी तरह की उन्नति का कोई अर्थ भी है? कहीं सत्ता की होड़ तो कहीं शासन की। एक देश खुद को बचाने के लिए लड़ रहा है, वहीं दूसरे देश में व्यक्तिगत आज़ादी बनाम देश की अवधारणा गढ़ी जा रही है। कहीं पुराने बाशिंदों को खदेड़कर एक नया कथन गढ़ने की ज़िद है तो कहीं इतिहास के पुनर्निर्माण से नए सूत्र रचकर एक नई अवधारणा गढ़ने की मुहिम और जिद!
सवाल है कि इन सब ज़िदों का खामियाज़ा कौन भुगतता है- ज़िद चाहे धार्मिक सत्ता की हो आर्थिक- कभी कमजोर देश, कभी कमज़ोर कौम, कभी औरतें-बच्चे, कभी दबी-कुचली जातियाँ, कभी दबी-कुचली नस्लें तो कभी दबा-कुचला समाज! फिर भी हर समाज ‘घृणा’ को पालने और पोसने का ही काम कर रहा है। राजनैतिक दल कभी दूसरे के धर्म से घृणा करते हैं, कभी जातियों से तो कभी नस्लों से। डॉक्टर कोपलेण्ड और जेक ब्लाउंट दोनों एक समतामूलक समाज का सपना देखते हैं पर दोनों की लड़ाइयाँ किसी अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाती! क्यों? जब ब्लाउंट कहता है कि हमें मजदूरों के हक की लड़ाई लड़नी है तो कोपलेण्ड का सवाल है ‘हम अश्वेत उसमें किस तरह आएँगे? हमारा सवाल तुम्हारे लिए कितना जरूरी है? उन दोनों के भीतर की छटपटाहट के बावजूद दोनों एक-दूसरे के साथ नहीं खड़े हो पाते। इस सवाल के जवाब की तलाश ने ही मुझे इस उपन्यास के अनुवाद के लिए प्रेरित किया।
कौन से हैं वो कारण, जिनसे प्रभावित होकर हम मनुष्य मात्रा की मुक्ति का स्वप्न साझा नहीं कर पाते। आज 2022 में हम जिस सवाल से जूझ रहे हैं, 1940 में भी ये सवाल कम महत्वपूर्ण नहीं था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मनुष्य के सामने सबसे बड़ा सवाल अस्तित्व के संकट का ही था। ई9वर के अस्तित्व पर सवाल उठाए जा रहे थे पर असल में यह अपने आप पर सवाल उठाने जैसी ही स्थिति थी। कौन बचेगा और बचकर भी होगा क्या? पूँजीवाद और साम्राज्यवाद के बढ़ते हाथों से बचने के कौन से उपाय होंगे? पूँजीवाद का विकल्प कुछ होगा भी या नहीं?
कार्सन मैक्युलर का ये उपन्यास इन बुनियादी सवालों से जूझता है।
घृणा से भरते जाते इस सड़ांध भरे समाज में प्रेम की कोई जगह होगी?
या फिर हम सिर्फ जूझते रहेंगे और अपनी पीढ़ियों को नफरत करना सिखाएँगे! हम धर्मों में आवाजाही बर्दाश्त नहीं करते, अपने धर्म के ही लोगों से भी प्यार नहीं करते! भीतर-बाहर पाबंदी की पैमाइश और नुमाइश करते हैं और फिर पूछते हैं कि इतना अकेलापन, इतना अँधेरा क्यों है?
उपन्यास के पात्र भी भीतर से अकेले हैं। अपनी-अपनी तकलीफों, खुशियों का केन्द्र वे किसी को बनाना चाहते हैं। क्या हम सबकी स्थिति इससे अलग है? हम सबको किसी ई9वर/खुदा/जीसस की तलाश नहीं जिसे हम अपनी तकलीफें सौंप कर खुद को थोड़ा हल्का कर सके या मन को सुकून दे सकें। मन्दिर/मस्जिद/चर्च (गिरज़ाघर) में हम अपने मन को सांत्वना देने ही तो जाते हैं ताकि कोई हमें सुन सके। इस उपन्यास के पात्र भी किसी को ढूँढ़ रहे हैं जिससे वे अपने मन की बात कह सकें। उन्हें मिलता भी है- जॉन सिंगर। जॉन सिंगर जो बोल नहीं सकता, सुनता है और यदि धीमे बोला जाए तो होठों को पढ़ भी सकता है। पर किसी समस्या का वह सीधे तौर पर समाधान नहीं दे सकता। क्या हम सब किसी जॉन सिंगर को नहीं ढूँढ़ रहे जो बस जरूरत होने पर हमें सुन भी ले? पर उसका अपना कोई दर्द भी भीतर छिपा हो सकता है, ये हम कभी सोचते हैं? जिस ई9वर/खुदा के दर पर हम माथा मिटाकर अपनी बात कहते हैं, उसकी अपनी कोई तकलीफ हो सकती है, कभी सोचा है हमने?
क्या जॉन सिंगर की अपनी कोई कहानी है या फिर वह सबकी कहानी के केन्द्र में है पर खुद कहीं नहीं है? क्या सचमुच सब आसपास हों फिर भी खाली रह जाती है जगह कहीं। एंटोनापोलस और सिंगर की इस कहानी में कई पात्रा हैं- मिक केली, विलियम, पोर्शिया, डॉक्टर कोपलेण्ड, बिफ ब्रेनन, जेक ब्लाउंट, जॉर्ज केली। इन सबकी यात्राएँ बिल्कुल हमारी यात्राओं से मेल खाती हैं – साधारण, त्रस्त, पायदान के आखिरे सिरे पर खड़े लोगों की यात्रा, नस्ल, जाति, वर्ग से त्रस्त लोगों की कथा पर फिर भी खुशी ढूँढ़ने की कोशिश करते लोगों की कथा। इनमें से किसी की तलाश पूरी नहीं होती पर फिर भी सब उम्मीद की किसी किरण के सहारे जी रहे हैं। इनकी इस उम्मीद ने मुझे उपन्यास को अनुवाद करने के लिए प्रेरित किया।
कार्सन मेक्यूलर —
कार्सन (1917-1967) ने दक्षिणी अमरीका को केंद्र में रखकर ज्यादातर रचनाएं लिखीं, इसलिए उन्हें ‘दक्षिणी गॉथिक’ परंपरा से जोड़कर देखा जाता रहा। इस उपन्यास की कथा के केंद्र में भी दक्षिणी अमरीका ही है।
कार्सन का जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा। उनका पूरा नाम लूला कार्सन स्मिथ था। 9 साल की उम्र में पियानो सीखने की इच्छा अनेक बीमारियों के चलते शायद ठीक से कभी पूरी ही नहीं हो सकी। जोड़ों के बुखार से लेकर सेरेबरल स्ट्रोक, न्यूमोनिया से लेकर लकवा और अंत में ब्रेस्ट कैंसर का सामना करने वाली कार्सन की जिजीविषा की कहानी अत्यंत सशक्त है। सही दिशा में इलाज न होने के कारण उन्हें अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पहली कहानी उन्होंने 16 वर्ष की उम्र मे लिखी। 17 वर्ष की उम्र में न्यूयार्क के जूलियार्ड स्कूल मे दाखिला लिया पर खराब स्वास्थ्य के कारण कक्षाओं मे नहीं जा सकी। 1937 में उन्होंने the Mute के नाम से इस उपन्यास को लिखना शुरू किया। 1939 में यह पूरा हुआ और प्रकाशित भी। पर तब इसका नाम रखा गया- The Heart is a Lonely Hunter
कार्सन के संघर्षों की गाथा बहुत लंबी है पर उन्होंने शब्दों की ताकत को पहचाना और उन्हें अपना माध्यम बनाया। यह उपन्यास उनकी कई उम्मीदों की कहानी कहता है। उनके प्रकाशित कार्य हैं–
The Heart is a Lonely Hunter (Novel)
Reflection in a Golden Eye (Novel)
The Member of the Wedding (Novel) Clock without Hands (Novel)
Other :- The Ballad of the Sad Cage, Wunderking, The Jockey, Madame Zilensky and the King of Finland, The Sojourmer, A Domestic Dillemne, A Tree, A Rock, A Clod
उपन्यास का एक अंश:
जगह बदलने पर भी उनके तौर-तरीके बिल्कुल नहीं बदलते थे। हर बार वह उन्हीं टूटी झोपड़ियों, किसी मिल के किनारे, किसी रुई मशीन के पास किसी इंडस्ट्री के पास ही अपना नाटक करते। भीड़ भी लगभग एक जैसी होती। अक्सर देखने वालों में फैक्ट्री के वर्कर और अश्वेत समाज ही होता। इनके नाटक और सर्कस अक्सर भड़कीले होते और तेज रोशनी चारों ओर नजर आती। मशीनों के शोर में उड़न खटोले जोर-जोर से चक्कर लगाते, झूला चलता रहता और जिस खेल में पैसे कमाने का फायदा दिखाई देता, वहां भीड़ ज्यादा होती। सर्कस के दो बूथ कोल्ड ड्रिंक, हैमबर्गर और टॉफी (बुढ़िया के बाल) बेचने के लिए बनाए गए थे।
उसकी नियुक्ति पहले तो सिर्फ मैकेनिक के रूप में हुई थी पर धीरे-धीरे उसके काम का दायरा बढ़ने लगा था क्योंकि उसकी आवाज बहुत तेज थी इसलिए उसे एक काम से दूसरे काम पर अक्सर लगा दिया जाता था। वह अक्सर थक जाता, उसके माथे पर पसीना बहता रहता, उसकी मूछें बीयर में डूबी हुई नजर आतीं। शनिवार के दिन उसका मुख्य काम लोगों को ठीक से संभालना ही रखा गया था। उसके गठीले और ताकतवर शरीर को देखकर लोग वैसे ही पीछे हो जाते थे। पर यह सच है, उसके शरीर की ताकत उसकी आंखों में दिखाई नहीं देती थी। चौड़े और भद्दे माथे के बावजूद उसकी सुंदर आंखें जैसे कुछ और तलाशती हुई नजर आती थीं।
वह अक्सर सुबह बारह और एक के बीच में घर पहुंचता। वो जिस घर में रहता वह चार कमरों में बंटा हुआ था और हर कमरे का किराया लगभग पचास डॉलर था। यह कमरा बिल्कुल निम्न स्तरीय था जिसकी दीवारों से सीलन की बदबू आती थी। खिड़कियों पर पुराने-सस्ते रंगीन पर्दे लटके हुए थे इसलिए अक्सर वह अपने अच्छे और बढ़िया सूट या तो बैग में ही रखता या फिर कील ठोककर उसे दीवार पर ही टांगता। इस कमरे में न तो धूप आती थी और न ही लाइट। हालांकि खिड़की के ठीक बाहर लगे खंभे से एक हल्की पीली हरी रोशनी अंदर जैसे झांकती हुई दिखती थी। वो कभी कमरे में लैंप भी नहीं जलाता था जब तक कि उसे कुछ पढ़ना न हो। असल में जलते हुए तेल की गंध भी उसे बीमार करने के लिए काफी थी।
जब तक वह घर पर रहता तो बेचैन होकर इधर से उधर टहलता रहता। कभी-कभी वह अपने बिखरे हुए बिस्तर पर बैठ जाता और अपनी गंदी भद्दी उंगलियों को घूरता रहता। उसके मुंह में जैसे मिट्टी का स्वाद भर जाता। उसके अंदर अकेलेपन की यातना इतनी गहरी हो गई थी कि डर से कभी-कभी घबरा जाता। अक्सर वह इसे दूर करने के लिए शराब का सहारा लेता। रात को देर रात तक शराब पीने के बाद सुबह उसे हल्का महसूस होता। ठीक सुबह पांच बजे मिल की पहली शिफ्ट शुरू हो जाती। मिल के भोपूं की आवाज इतनी तेज थी कि उसके बाद कोई सो नहीं सकता था।
पर अक्सर वह घर पर रुकता ही नहीं था। वह खाली सड़कों पर निकल पड़ता। सुबह के कुछ अंधेरे घंटों के दौरान आकाश काला दिखाई देता और तारे चमकते हुए नजर आते। कभी-कभी वह देखता कि मिल में लोग अभी भी काम कर रहे हैं। उस पीली इमारत से मशीनों के चलने की आवाज आती। वह दरवाजे पर खड़े होकर सुबह की शिफ्ट का इंतजार करता। कई लड़कियां स्वेटर और अपनी प्रिंट ड्रेस पहनकर सड़कों पर चलती हुई नजर आती। लोग अपने खाने के डब्बे लिए हुए दिखाई देते। उनमें से कुछ घर जाने से पहले सामने की सड़क पर बने कैफे में कोका कोला या कॉफी पीने के लिए जाते और जेक उन्हीं के साथ चल पड़ता। मिल के अंदर के शोर में वह एक दूसरे की हर बात को समझ जाते थे पर बाहर आने के बाद लगभग एक घंटे उन्हें ऐसा लगता जैसे वह बिल्कुल बहरे हो चुके हैं।
सड़क पर जो चलता फिरता कैफे बना होता था, जेक अक्सर कोका कोला में व्हिस्की मिलाकर पीता और उसके बाद वह लगातार बोलता। भयंकर सर्दियां पढ़ रही थीं और सर्दी में उसका चेहरा किसी शराबी की तरह और भयानक दिखाई दे रहा था। अक्सर लोग उसे देख कर हंसते और जब ऐसा होता तो न जाने वह किस भाषा में गुस्से से कुछ कहने लगता। अपनी छोटी उंगली को ग्लास में डुबोकर वह अपने मूछों को ताव देता था और अगर तब भी लोग उस पर हंसना बंद नहीं करते तो वह उन पर मुक्के बरसाता और जोर-जोर से रोता।
इस सुबह के बाद वह चुपचाप अपने काम पर लौट आता। काम पर लौटना उसके अकेलेपन को कम कर देता। शोर, भीड़, एक दूसरे पर टकराते हुए कंधे उसे थोड़ी देर के लिए शांत कर देते।
*** काले कानूनों के कारण कुछ समय के लिए यहूदी और अश्वेत लोगों के लिए सर्कस को बंद कर दिया गया। इतवार को वह जल्दी उठा और उसने सबसे बढ़िया सूट निकालकर पहना। मुख्य सड़क पर पहुंचते हुए वह न्यूयॉर्क कैफे पहुंचा। वहां से उसने बीयर की पूरी पेटी खरीदी। उसके बाद वह सिंगर के कमरे में पहुंचा। हालांकि वह इस कस्बे में बहुत से लोगों को जानता था पर यह ‘चुप्पा’ उसका अकेला दोस्त था। सुबह दोनों उस शांत कमरे में बैठते और चुपचाप अपनी-अपनी बीयर पीते। वह लगातार बोलता जैसे उसके शब्द उसकी अंधेरी सुबहों के बारे में, कमरे में बिताए अकेले कमरे के बारे में कुछ ही आकार लेना शुरू करते। वह बोलता और बोलते समय जैसे उसे गहन शांति का अहसास होता।
आग अब तक बुझ चुकी थी, सिंगर मेज पर अकेले ही कोई खेल खेल रहा था। जेक को सोते हुए काफी समय बीत चुका था। अचानक वह बेचैन होकर उठा, अपने सर को सिंगर की ओर घुमाते हुए उसने कहा, ‘सुनो’, वह कह तो रहा था पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई सवाल कर रहा हो, ‘हम में से कुछ लोग कम्युनिस्ट हैं पर सारे नहीं। अब मुझे ही ले लो! मैं किसी भी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं हूं। पहली बात तो यह कि मैं उनमें से किसी के बारे में जानता नहीं। ऐसा कई बार हो सकता है कि बरसों बरस भटकते रहो और कोई कम्युनिस्ट तुम्हें मिले ही नहीं। अब ऐसा तो है नहीं कि कोई ऑफिस बना हुआ है और जाकर कहो कि मैं पार्टी का सदस्य बनना चाहता हूं और अगर हो भी तो मैं उस बारे में नहीं जानता और ऐसा भी नहीं हो सकता कि न्यूयॉर्क जाओ और जाकर उनकी पार्टी का सदस्य बनो। जैसे मैंने कहा मैं किसी को जानता भी नहीं। हां, एक को मैं जानता था, वह पक्का शराबी था जिसकी सांस में से बदबू आती थी। हमारी बहुत भयंकर लड़ाई हुई। अब इसका यह भी मतलब नहीं कि मैं कम्युनिस्ट के खिलाफ हूं। असल में सच्चाई यह है कि मैं स्टालिन और रशिया के बारे में कुछ सोचता ही नहीं। मुझे हर देश और उनकी सरकारों से नफरत है। पर फिर भी अगर तुम मुझे कहो तो सबसे पहले कम्युनिस्ट पार्टी का ही सदस्य बनूंगा। मैं आज भी नहीं जानता कि कौन सा रास्ता सही है और कौन सा पूरी तरह गलत। तुम क्या सोचते हो?’ सिंगर के माथे पर बल पड़ गए और उसे वह देर तक सोचता रहा। उसने अपनी चांदी की पेंसिल उठाई और कागज पर लिखा कि वह इस बारे में नहीं जानता।
‘पर फिर भी ऐसा है। सुनो, जब तुम्हें पता लग जाता है उसके बाद तुम शांत नहीं बैठ सकते। जो गलत है उसका विरोध भी करना पड़ता है। हममें से कुछ तो बिल्कुल पागल हो चुके हैं। दुनिया में इतना कुछ है करने के लिए और अक्सर यह पता ही नहीं होता कि शुरू कहां से किया जाए। और यह बात मुझे बिल्कुल पागल कर देती है। अब मुझे ही ले लो! मैंने ऐसा बहुत कुछ किया जो मुझे अब बिल्कुल भी ठीक नहीं लगता। एक बार मैंने खुद अपनी संस्था बनाई। इन मिलों में काम करने वाले बीस मजदूरों को चुना और उन्हें तब तक समझाता रहा जब तक मुझे लगा कि वह समझ गए होंगे। हमारा केवल एक ही उद्देश्य था- सब कुछ बदलना है। हम दंगे करने को भी तैयार थे, बड़ी से बड़ी परेशानी को भी झेलने के लिए तैयार थे, लेकिन हमारा उद्देश्य केवल एक था- आजादी। असली आजादी, इंसान की आत्मा को मिलने वाली आजादी। पूंजीवाद के बढ़ते खतरों ने हमें परेशान किया हुआ था। मैंने इसके लिए खुद एक नया संविधान बनाया था और उस संविधान में सब कुछ बदलने को ‘आजादी’ शब्द से बदल लिया गया था। हम में से हर एक उस आजादी के लिए लड़ रहा था’
जेक ने एक माचिस की तीली उठाई और उस तीली के सहारे अपने माथे को ठीक करने लगा। एक पल के बाद उसने फिर कहना शुरू किया, ‘और जब हमने अपना पूरा संविधान लिख लिया और जब मुझे कुछ साथी मिल गए तो मैं उनके भरोसे सब कुछ छोड़ कर और लोगों को जोड़ने के लिए बाहर निकल गया। जब मैं तीन महीने बाद वापस आया हूं तो तुम्हें पता है वहां क्या तमाशा मचा हुआ था? पहले कौन सा बड़ा काम उन्होंने किया था जानना चाहते हो? पता नहीं कौन सा गुस्सा था उनके अंदर जो उन्होंने कोई योजना बनाए बिना उसे हाथ में ले लिया? क्या था वह? विनाश, कत्ल, या क्रांति?’ बोलते-बोलते जेक अपनी कुर्सी पर आगे झुक गया। कुछ देर रुक कर उसने उदास आवाज में कहना शुरू किया, ‘सुनो दोस्त, उन्होंने लॉकर में रखे हुए सत्तावन डॉलर और तीस सेंट्स चुरा लिए थे जिससे उन्होंने वर्दियां खरीदी, टोपियां खरीदी और शनिवार के मुफ्त खाने की व्यवस्था कर ली। मैंने उनको कॉन्फ्रेंस टेबल के पास बैठे हुए पकड़ लिया जहां वह मस्ती कर रहे थे, शराब पी रहे थे और तला भुना जो मिल रहा था वह खा रहे थे’
सिंगर के चेहरे पर एक उदास मुस्कान थी और जेक जोर-जोर से हंस रहा था। सिंगर के चेहरे की मुस्कान कम होते-होते बिल्कुल खत्म हो गई। जेक अभी भी हंस रहा था, उसके माथे की नस फड़क रही थी और उसका चेहरा लाल हो गया था। सिंगर ने ऊपर घड़ी की तरफ देखा था 12:30 बज रहे थे। खाने का समय हो चुका था। उसने अपनी घड़ी निकाली, अपनी पेंसिल, लिखने की कॉपी, सिगरेट, माचिस की तीलियां सब उठा कर अपनी-अपनी जगह पर रख दिया। रात के खाने का समय हो चला था, जेक अभी भी हंस रहा था। उसकी हंसी में कुछ पागलपन के लक्षण भी थे। वह कमरे में इधर से उधर भटक रहा था और अपनी जेब में पड़े पैसों को जोर-जोर से हिला रहा था। उसके लंबे-लंबे हाथ तनाव के कारण और ज्यादा जकड़े हुए लग रहे थे। खाने की बात होते ही उसने खाने की चीजों का नाम लेकर जोर-जोर से बोलना शुरु कर दिया। जब वह खाने की बात कर रहा था तो उसका चेहरा गुस्से से भर रहा था। हर शब्द के साथ उसका ऊपर का होंठ ऐसे फड़क रहा था जैसे किसी गुस्से में भरे जानवर का चेहरा फड़कता है, ‘जाओ जाकर भुना हुआ मांस लाओ, खूब सारी तरी के साथ। चावल, गोभी, ढेर सारी ब्रेड, एप्पल पाई भी जरूर लाना। मैं भूखा हूं मैं सब कुछ खा जाऊंगा। ओह जॉनी! मैं देख रहा हूं अमेरिकी हमारी तरफ आ रहे हैं। अच्छा! और खाने की बात करते हुए मैंने तुम्हें कभी श्रीमान क्लार्क पैटरसन के बारे में बताया है? वही आदमी जो यह सनी डिक्सी शो चलाता है। वह इतना मोटा है कि शायद पिछले बीस सालों से उसने अपने निचले हिस्से को भी नहीं देखा होगा। सारा दिन वो खाली बैठकर ताश के पत्तों का खेल खेलता है और चिलम पीता है। तुम जानते हो वह अपना खाना उसी जगह से मंगाता है जो बिल्कुल सामने है और सुबह सुबह…’ जेक रुक गया और उसने देखा कि सिंगर उठकर बाहर जाना चाहता था। वह इस बात का ध्यान रखता था कि चुप्पे के साथ रहते हुए उसे कोई परेशानी न हो। वह हमेशा कोशिश करता था कि सिंगर आगे-आगे चले और वह उसके पीछे-पीछे चले। सीढ़ियों पर चलते हुए भी वह कुछ ना कुछ बड़बड़ा ही रहा था। उसकी आंखें सिंगर के चेहरे पर ही टिकी हुई थी।
दोपहर का मौसम अच्छा था। वे दोनों घर के अंदर ही बैठे रहे। घर के अंदर ही बैठकर दोनों व्हिस्की पी रहे थे। सिंगर शतरंज का खेल खेल रहा था और जेक यूं ही आराम के मूड में था। शाम बीत रही थी, कमरे की दीवार पर शाम और दोपहर की मिली जुली आकृतियां बनती हुई देखी जा सकती थी। रात होते-होते उसे फिर तनाव ने घेर लिया। सिंगर ने शतरंज एक तरफ रख ली थी और अब वे दोनों एक दूसरे को देख रहे थे। आज फिर जेक उसी तरह की बेचैनी से गुजर रहा था। बार-बार व्हिस्की पीने पर भी उसका तनाव कम नहीं होता था। आज फिर उसी गुस्सा और गहमा-गहमी में उसने बोलना शुरू किया, ‘देखो उन्होंने हमारे साथ क्या कर दिया है! सारे सच को एक बड़े झूठ में तब्दील कर दिया है। सारे आदर्शों की उन्होंने धज्जियां उड़ा दी। अब जीसस को ही देख लो, वो हम में से एक ही थे और वह इस बात को अच्छी तरह से समझते थ। जब उन्होंने यह कहा कि एक ऊँट का एक सुई से गुजरना उतना ही मुश्किल है जितना एक अमीर आदमी का खुदा के दरबार में पहुंचना तो उन्हें पटा था कि वह क्या कर रहे हैं। पर देखो, चर्च के लोगों ने जीसस का दो हज़ार सालों में क्या कर दिया। वह क्या थ और उन्हें क्या बना कर रख दिया। उन्होंने जो कुछ उनके विरोध में कहा उसे उन्होंने अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया। तुम जानते हो अगर जीसस आज होते तो उन्हें जेल में डाल दिया जाता। जीसस अकेले आदमी थे जो सच जानते थ। मैं और जीसस मेज के आमने-सामने बैठते। मैं उन्हें देखता और वह मुझे देखते और हम एक दूसरे की बात समझ जाते। मैं जीसस और कार्ल मार्क्स हम तीनों ही एक मेज पर बैठ सकते हैं और…
और देखो उन्होंने हमारी आजादी के साथ क्या किया! वह आदमी जो कि अमरीका की क्रांति के लिए लड़ा था, वह इन कुत्तों से बहुत बेहतर आदमी था। वह जानता था कि वह क्या कर रहा है। उन लोगों ने एक असली क्रांति की थी। वे इसलिए लड़ रहे थे ताकि वे एक ऐसा देश बना पाएं जहां हम आदमी समान हों और सब को आजादी हो और जब वे यह कहते हैं कि सब बराबर है तो इसका सा फ-साफ मतलब है कि ईश्वर की निगाह में भी सब समान है और सभी को आगे बढ़ने का एक जैसा मौका मिलना चाहिए। इसका कतई यह मतलब नहीं है कि बीस प्रतिशत लोग अस्सी प्रतिशत लोगों की चीजों पर डाका डालें, सब कुछ छीन लें और मौज उड़ाएं। इसका यह मतलब नहीं कि एक आदमी अमीर से अमीर होता चला जाए और अपने पैरों तले दस हजार लोगों को कुचल दे। इसका यह भी मतलब नहीं कि इस देश में आतंक करना इतना आसान हो जाए कि हजारों लोग किसी को भी धोखा दें, झूठ बोलें, हाथ पाव तोड़ दें और केवल अपनी सुविधा के लिए जो चाहे करें। इन लोगों ने आजादी शब्द को एक भद्दा मजाक बनाकर रख दिया है। सुन रहे हो? इन्होंने आजादी शब्द को एक गंदा और बदबूदार शब्द बना दिया है जिसका यह जब मर्जी इस्तेमाल करते रहते हैं’
जेक के माथे की नस जोर-जोर से फड़क रही थी। उसका मुंह खुला हुआ था। सिंगर को जैसे किसी दुर्घटना का अंदेशा हो रहा था। जेक ने बोलने की कोशिश की पर शब्द उसके गले में ही अटक गए। उसका शरीर कांप रहा था। किसी तरह उसने भर्राई हुई आवाज़ में कहा, ‘सच कहूँ सिंगर, पागल होना कतई बुरा नहीं है हम कुछ भी अच्छा कर नहीं सकते। बस इतना ही कर सकते हैं कि लोगों को सच बताएं और जैसे-जैसे लोगों को सच समझ आएगा, वे यह जान सकेंगे कि इस लड़ाई का कोई लाभ नहीं है। हमारा यही काम है कि हम उन्हें यह एहसास दिलाएं, पर यह कैसे होगा मैं बिल्कुल नहीं जानता।‘
दीवार पर आग की परछाई नजर आ रही थी, यह परछाई धीरे-धीरे ऊपर उठ रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में एक अजीब सी हलचल हो रही हो। समुद्र की लहरों की तरह जैसे कमरा ऊपर उठता और नीचे गिर रहा था। जेक को लग रहा था जैसे वह नीचे समुद्र में अंदर ही अंदर धंसता जा रहा हो, वो इतना दुखी और इतना असहाय महसूस कर रहा था की आंखें खोलने पर भी उसे बस तूफानी लहरें दिखाई दे रही थीं जो सिर्फ डूबा ही देने वाली थीं और फिर उसे अचानक नजर आया चुप्पे का चेहरा जैसे कहीं दूर दिखाई दे रहा था जिसने अपनी आंखें बंद कर लीं।
अगली सुबह वह बहुत देर से उठा।. सिंगर को गए हुए घंटो बीत चुके थे।सामने की मेज पर ब्रेड चीज संतरा और कॉफी रखी हुई थी। उसने जल्दी जल्दी नाश्ता खत्म किया क्योंकि अब उसे काम पर जाना था। जब वह बाहर निकला उसके कंधे झुके हुए थे उसके चेहरे पर उदासी थी। जहां वह रहता था वहां के पास की एक छोटी सी तंग गली से गुजर रहा था तो उसने देखा कि सामने के गैराज से ईंटों के भट्टे से धुआं उठ रहा था। उस बिल्डिंग की दीवार पर कुछ ऐसा था जिससे उसका ध्यान कुछ देर के लिए भटक गया। उसने फिर चलना शुरू किया लेकिन फिर उसका ध्यान कहीं अटक गया। दीवार पर लाल रंग की चौक से एक बड़े-बड़े अक्षरों में संदेश लिखा हुआ था।