हिंदी कविता में शमशेरीयत की चर्चा होती रहती है। कुछ सालों से वीरेनियत की भी चर्चा चल पड़ी है। हमसबके प्रिय कवि वीरेन डंगवाल को भला कौन भूल सकता है लेकिन उनकी पत्नी के बारे में हम कहाँ कुछ जान पाते हैं।
युवा कवयित्री मनीषा श्रीवास्तव ने रीता डंगवाल से स्त्री दर्पण के लिए एक इंटरव्यू लिया है। आज हम उसे लेखकों की पत्नियां शृंखला में दे रहे हैं। इससे उनके व्यक्तिव के बारे में पता चलेगा।
“मुझे वीरेन डंगवाल की पत्नी होने पर गर्व है- रीता डंगवाल”
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मनीषा श्रीवास्तव
हिंदी के चर्चित कवि वीरेन डंगवाल 28 सितंबर 2015 को इस दुनिया में नहीं रहे। उनकी पत्नी रीता डंगवाल आजकल ग़ाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में रहती हैं। वीरेन जी को आख़िरी दिनों में कैंसर हो गया था। उनके घर और दिल्ली में आयोजित कुछ कार्यक्रमों में उनके साथ रीता जी से भी मुलाकात हुई थी। वे वीरेन जी की बीमारी का बड़े धैर्य से मुकाबला कर रही थीं। काफी़ गंभीर महिला लगी थीं। कुछ दिन पहले ‘लेखकों की पत्नियाँ’ शृंखला के लिए उनसे बातचीत की थी। पेश हैं उसके कुछ अंश-
प्रश्न– रीता जी, आप अपने बारे में कुछ बताइये.
उत्तर–मेरा नाम रीता डंगवाल है। शादी से पहले मैं इलाहाबाद में रहती थी। मेरे पिता वहीं पोस्टेड थे। वहीं 22 सितंबर 1952 को मेरा जन्म हुआ और पढ़ाई-लिखाई भी। पिता का नाम महेशानंद भट्ट और माँ का नाम यशोदा था। अब दोनों ही इस दुनिया में नहीं हैं।
प्रश्न–आपके बचपन में आपको घर वाले प्यार से किस नाम से पुकारते थे.. या रीता ही कहते थे?
उत्तर– हाँ, सब रितु-रितु पुकारते थे।
प्रश्न- आप किसके ज़्यादा क़रीब थीं..माँ के या पिता के?
उत्तर– पिता जी थोड़ा कड़क स्वभाव के थे तो मैं माँ के ही ज़्यादा क़रीब थी।
प्रश्न- अपने भाई-बहन और उनके साथ बीते बचपन के बारे में कुछ बताइये।
उत्तर- हम लोग छह भाई बहन थे। मैं सबसे छोटी हूँ। भाई अब नहीं रहे, भाभी हैं। बहन भी नहीं है अब। वो मुझसे बीस साल बड़ी थी तो साथ खेलने या लड़ाई-झगड़े जैसी कोई बात बचपन में नहीं थी।
प्रश्न- आप अभी इलाहाबाद जाती हैं..?
उत्तर- नहीं, बहुत साल से नहीं गयी।
प्रश्न- अपनी स्कूली शिक्षा के बारे में कुछ बताइये।
उत्तर– मेरी पढ़ाई बारहवीं तक सेंट मेरीज़ कान्वेंट में हुई। 1972 में मेरा स्कूल ख़त्म हो गया था।
प्रश्न- इंटर में आपके विषय क्या थे?
उत्तर- मैं आर्ट्स साइड से थी और मनोविज्ञान भी एक विषय था।
प्रश्न- आपका कोई मनपसंद विषय?
उत्तर–नहीं ऐसा कोई प्रिय विषय नहीं था, लेकिन मनोविज्ञान पढ़ना अच्छा लगता था।
प्रश्न- अपने कॉलेज के बारे में कुछ बताइये?
उत्तर– मैंने 1974 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए किया था। इंग्लिश, एजूकेशन और इतिहास विषय थे।
प्रश्न- जब आप विश्वविद्यालय में थीं तो उस समय के सामाजिक माहौल के बारे में कुछ बताइये।
उत्तर– मुझे लगता है कि उस समय का माहौल आज से बेहतर था। सांप्रदायिकता का ज़हर इतना नहीं था। आजकल बुरक़े और हिजाब वग़ैरह पर बहस चल रही है लेकिन जब मैं स्कूल में थी तो हमारे साथ स्कूल में पढ़ने वाली कई लड़कियाँ बुरका पहनकर आती थीं। स्कूल में आकर उतार देती थीं। कभी कोई परेशानी या विरोध नहीं हुआ।
प्रश्न- क्या कभी कविताओं के प्रति आपका रुझान रहा? आपकी पसंदीदा कविता कौन सी है?
उत्तर–नहीं, कविताएँ बहुत प्रिय नहीं थीं। कुछ-कुछ अच्छी लगती थीं पर अब ध्यान नहीं है।
प्रश्न- एम.ए.आपने किस विषय से किया था?
उत्तर– मैंने इंग्लिश लिटरेचर में एम.ए.किया था। जब एम.ए.फाइनल में थी तो 24 फरवरी 1976 को मेरी शादी हो गयी।
प्रश्न- क्या शादी के बाद आपकी पढ़ाई पूरी हो पायी?
उत्तर- हाँ, शादी के बाद पढ़ाई पूरी करने में कोई दिक्कत नहीं आयी। मेरी सास बहुत उदार स्वभाव की थीं और उन्होंने इसमें मेरी मदद की। घर का माहौल भी पढ़ाई-लिखाई वाला था।
प्रश्न- क्या आप वीरेन जी को पहले से जानती थीं?
उत्तर- नहीं, पहले से नहीं जानती थी। एकदम से शादी तय हुई। उसके बाद ही जाना-समझा।
प्रश्न- आपकी शादी के वक़्त वीरेन जी क्या नौकरी कर रहे थे?
उत्तर– वे बरेली कॉलेज में पढ़ा रहे थे।
प्रश्न- वीरेन जी से शादी के बाद ससुराल का माहौल आपके मायके से कितना अलग था?
उत्तर-देखिये, मैं आपको शुरू से बताती हूँ। शादी के बाद बिल्कुल ही अलग माहौल था। हालाँकि परिवार बहुत अच्छा है, पर एडजस्ट होने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है। हमारे विचार और परवरिश भी अलग थी। शादी के बाद वीरेन जी के साथ हम इलाहाबाद के लूकरगंज में रहते थे। पहले-पहल जब ये मुझे कॉफी हाउस ले गये तो फ़ैमिली वाले हिस्से की जगह मेन हॉल में बैठे। वहाँ बैठकर मुझे कुछ अजीब लग रहा था। वहाँ बहुत सारे लोग आ गये। ज्ञानरंजन जी आये, उनसे मिलना हुआ। मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था, लेकिन बाद में रोज़ ही जाने लगे। धीरे-धीरे आदत हो गयी। अश्क जी का नीलाभ प्रकाशन भी था, वहाँ भी जाते थे। फिर इस सबकी आदत हो गयी। शुरू में लगता था कि कहाँ ले आये।
प्रश्न- आपका दाम्पत्य जीवन कैसा था?
उत्तर—अच्छा था। वे बहुत अच्छे और सहयोगी इंसान थे। बहुत ख्याल रखते थे। रुचियों में भिन्नता और समानता दोनों होती है, हम दोनों में भी थी। ये ज़्यादा पढ़ने वाले थे और मैं कम पढ़ती थी। पर मैंने हर तरह से इनको सहयोग दिया। हम दोनों को ही सादगी का जीवन पसंद था। ज़्यादा की चाह नहीं थी। इसलिए सारा जीवन संतोषजनक रहा।
प्रश्न- आमतौर पर पति बाहर जाते हैं और पत्नी घर में रहती हैं। कभी बैठकी हुई तो चाय-नाश्ता कराती हैं। लेकिन आपकी बातों से ऐसा नहीं लगता। आपका क्या अनुभव रहा?
उत्तर- नहीं, किचन में तो लगना ही होता था। पर, मेरी सास बहुत एक्टिव थीं। तो वे भी लगी रहती थीं। जो आता था वो खाना खाकर ही जाता था तो हम मिलजुल कर काम कर लेते थे। लेकिन जो भी आता था, उससे मेरा मिलना-जुलना, बातचीत होती थी। उनकी मित्रता का दायरा बहुत बड़ा था। शहर के रिक्शेवालों से भी उनकी मित्रता हो जाती थी। उन्हें घर भी ले आते थे।
प्रश्न- आप वीरेन जी की कविताओं की पाठक रहीं या नहीं?
उत्तर- शादी के एक साल बाद 1977 में पहला बेटा हुआ तो व्यस्तता बढ़ गयी। पढ़ने-लिखने का वक्त कम मिलता था। लेकिन बाद में पढ़ने लगी। बैठकियाँ होती थीं तो कविताएँ सुनती थी। धीरे-धीरे पढ़ने लगी।
प्रश्न- आपने अध्यापन भी किया है। उसके बारे में कुछ बताइये।
उत्तर- जब मेरे बेटे बहुत छोटे थे तभी मैंने बी.एड करने की इच्छा जताई थी। लेकिन 1992 में ही पत्राचार से बीएड कर सकी जब बड़ा बेटा दसवीं में था। मेरे बेटे बरेली के सेंट बिशप मिशनरी कान्वेंट स्कूल में पढ़ते थे, वहीं 1995 में मेरी नियुक्ति हुई और मैंने पंद्रह साल, 2010 तक वहाँ पढ़ाया।
प्रश्न- आप और वीरेन जी दोनों ही शिक्षक रहे हैं, तो क्या पढ़ाने को लेकर सलाह-मशविरा होता था?
उत्तर- उनका क्षेत्र बहुत विस्तृत था, तो कभी पूछने पर मुझे सलाह दिया करते थे.
प्रश्न–क्या वीरेन जी अपने कविता पाठ के कार्यक्रमों में आपको लेकर जाते थे?
उत्तर- बहुत लंबे समय तक वो अपने कार्यक्रमों में घर वालों की उपस्थिति नापसंद करते रहे। शायद असहज महसूस करते होंगे। लेकिन बाद में मैं उनके साथ जाने लगी।
प्रश्न- आप अपने जीवन की सबसे खूबसूरत यादों के बारे में बतायें।
उत्तर – जब मेरा बड़ा बेटा पैदा हुआ तब हम डेढ़ साल लगभग इलाहाबाद में रहे। कवि मंगलेश डबराल और हम लोग साथ ही रहे। वीरेन जी पीएच.डी के लिए गये थे और मंगलेश जी अमृत प्रभात में काम करने गये थे। उनकी पत्नी संयुक्ता भी वहीं थीं। तो उनका परिवार, मैं और मेरा बेटा। वे मेरी सबसे ख़ूबसूरत यादें हैं। गोल्डन मेमोरीज़। हम एक परिवार की तरह रहे और ये प्यार जब मंगलेश जी और वीरेन जी नहीं हैं, तब भी बना हुआ है। लूकरगंज में वहीं पास में विश्वमोहन बडोला भी रहते थे। पत्रकार और अभिनेता। वो भी अक्सर आ जाते थे। अश्क जी और उनके बेटे-बहू से भी मुलाकात होती थी। बहुत कुछ सीखने को मिला उस दौरान।
प्रश्न–एक पाठक के रूप में वीरेन जी की कविताओं को आप कैसे देखती हैं और आपको उनकी किस तरह की कविताएँ सबसे अच्छी लगती हैं?
उत्तर- वो बहुत सारे विषयों पर कविताएँ लिखते थे। ख़ासतौर पर सामाजिक विषयों पर। उनकी कविता ‘हमारा समाज’ और ‘हाथी’ मुझे बहुत पसंद है। इसके अलावा उनकी कई मार्मिक कविताएँ हैं जो बहुत अच्छी लगती हैं। ऐसी ही एक कविता है जो उन्होंने दोस्त पर लिखी थी जब वो बहुत बीमार थे।
प्रश्न- अब जब वीरेन जी नहीं हैं तो आपकी क्या दिनचर्या रहती है।
उत्तर –अब तो मैं यहीं इंदिरा पुरम में अपने छोटे बेटे के पास आ गयी हूँ। यहीं सारा दिन बच्चों के साथ बीतता है। थोड़ा बहुत समय निकालकर पढ़ लेती हूँ। बाक़ी जो कमी है जीवन में, उसके बारे में क्या ही कहना। पति-पत्नी का रिश्ता बहुत ही नज़दीक का होता है। उनके जाने के बाद सबसे ज्यादा उनकी कमी महसूस हुई। उनका हँसना-बोलना, मेरे लिए चिंतित रहना, सब याद आता है। जीवन में अकेलापन और ख़ालीपन आ गया। उनके न रहने पर ऐसा महसूस हुआ जैसे जीवन रुक सा गया है। बच्चों ने मेरा बहुत ख्याल रखा और अभी भी रखते हैं पर उनकी जगह तो कोई भी नहीं ले सकता। मुझे गर्व है कि मैं उनकी पत्नी हूँ जो एक अच्छे शिक्षक, साहित्यकार और पत्रकार के साथ एक अच्छे इंसान भी थे। आज वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कविता उनको हमेशा जीवित रखेंगी और उनके चाहने वालों को उम्मीद और हौसला देती रहेंगी।
प्रश्न- क्या आपने कभी कुछ लिखने के बारे में सोचा है?
उत्तर- हाँ लिखने की इच्छा तो बहुत होती है। विचार भी आते हैं, पर फ्लो आयेगा कि नहीं, लिख पाऊँगी कि नहीं, ये दुविधा रहती है। मन तो है लिखने का।
प्रश्न- आपको क्या लगता है, ज़िंदगी में सबसे ज़रूर क्या है?
उत्तर- सबसे ज़रूरी है, अपने बच्चों की अच्छी देखभाल करना। उन्हें अच्छा नागरिक बनाना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
रीता जी, इस बातचीत के लिए आपका बहुत शुक्रिया।