डॉ. गीता पुष्प शॉ
सुभद्रा कुमारी चौहान हमारे देश की सुप्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका और स्वतंत्रता सेनानी थीं. उनकी पहचान हिन्दी की सबसे अधिक पढ़ी और गाई जानेवाली, उनकी लिखी अजर अमर कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी’ से है.यही सुभद्राकुमारी चौहान मेरी मुंहबोली नानी थीं .
तब हम संस्कारधानी जबलपुर में रहते थे. मेरी मां स्कूल में पढ़ाती थीं और कहानियां भी लिखती थीं. उनकी कहानियां उस समय के अखबारों में छपती थीं. साहित्यकार होने के नाते सुभद्रा नानी के घर में हमारा आना जाना था. मेरी मां को वे अपनी बेटी की तरह मानती थीं. दरअसल हमारी मां पदमा बैनर्जी (बंगाली) और पिता माधवन पटरथ (मलयाली) का विवाह सुभद्रा नानी ने ही करवाया था.
सुभद्रा नानी की पांच संतानें थीं. बड़ी बेटी सुधा का विवाह कथा सम्राट प्रेमचंद के बेटे अमृत राय के साथ हुआ था. इसके बाद तीन बेटे अजय, विजय और अशोक थे जिनके घर के नाम क्रमशः बड़े, छोटे और मुन्ना थे. सबसे छोटी बेटी ममता मुझसे कुछ वर्ष बड़ी थीं. मैं इन्हें मामा और मौसी कहती थी. सुभद्रा कुमारी चौहान के पति ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान स्वयं बड़े वकील, नाटककार और स्वतंत्रता सेनानी थे .वे दोनों स्वाधीनता आंदोलन में कई बार जेल भी गये थे. घर-बाहर के सभी लोग इस दंपत्ति को काकाजी और काकीजी कहकर संबोधित करते थे.
मैं तब बहुत छोटी थी, तीन-चार साल की. सुभद्रा नानी बहुत ही मिलनसार और स्नेहमयी थीं. मेरी माँ जब भी उनके घर जातीं मुझे भी साथ ले जाती थीं. दिन भर उनके घर में बिताने के बाद जब हम घर जाने लगते तो अशोक मामा मुझे कंधे पर बिठा लेते और कुछ दूर तक साथ चल कर छोड़ने आते. रास्ते में मुझे दो पैसे की ‘लइया करारी’ भी खरीद देते जो मैं उनके कंधे पर बैठी कुटुर-कुटुर खाती रहती. लाई के रामदाने टूट कर अशोक मामा के घुंघराले बालों के बीच में बिखर जाते. तब मामा हंस कर कहते- “अरे गीता मेरे बाल क्यों खराब कर रही है?” यही अशोक मामा यानी मुन्ना मामा के बारे में कहा जाता है कि जब वे स्कूल से लौटते थे तो पहले अपना बस्ता पटक कर घर के बाहर लगे कदंब के पेड़ पर चढ़ जाते थे. कुछ देर उछल-कूद कर लेते तब घर में प्रवेश करते. इन्हीं अशोक मामा पर सुभद्रा नानी ने ‘कदंब का पेड़’ शीर्षक से प्रसिद्ध कविता लिखी थी- ‘यह कदम्ब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे, मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे .’ मुन्ना मामा की और बातें बाद में बताऊंगी, पहले बेलन वाला किस्सा.
मुझे सुभद्रा नानी के साथ रहने का अवसर बहुत कम मिला क्योंकि 1948 में ही उनका निधन हो गया था. वे नहीं रहीं पर उस घर से हमारे स्नेह के तार अब भी जुड़े हुए हैं. मैं तब बहुत छोटी थी और उनकी छोटी बेटी ममता मुझसे कुछ साल बड़ी थीं. मां जब सुभद्रा नानी से बातें करतीं, मैं ममता मौसी के साथ खेला करती थी. एक बार सुभद्रा नानी ने बनारस से लौटकर हम दोनों को एक-एक पिटारी खिलौनों की दी उसमें सुंदर-सुंदर लकड़ी के रंग-बिरंगे बर्तन, कड़ाही, करछुल, चूल्हा, तवा और चकला-बेलन वगैरह थे. मैं और ममता मौसी झट से अपने-अपने खिलौने सजाकर खेलने बैठ गईं .
ममता मौसी ने चूल्हे पर तवा चढ़ाया और आंगन से शहतूत की पत्तियां तोड़कर चकले पर रखकर फटाफट झूठ-मूठ की रोटियां बेलने लगीं. उनकी देखा-देखी मैंने भी अपने चूल्हे पर तवा रखकर चकला निकाला. पर यह क्या! मेरे वाले सेट में बेलन तो था ही नहीं. दुकान वाला शायद बेलन रखना भूल गया था. मैं ममता मौसी की तरफ देख कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी. हाथ-पैर पटकने लगी. अश्रु धारा बह निकली. अब भला मैं रोटी कैसे बेलूँगी. तब सुभद्रा नानी ने मुझे प्यार से गोदी में बिठा लिया फिर चौके की तरफ आवाज़ दी- “महाराजिन, ज़रा अपना बेलन लेकर तो आना.”
यहां एक बात बता दूं. उनकी खाना पकाने वाली महाराजिन खूब विशालकाया, मोटी थुल-थुल थीं. छोटे बच्चे उन्हें चुपके से ‘ताड़का’ कहकर चिढ़ाकर भागते तो वे भी मारने दौड़तीं पर मोटापे के कारण भाग नहीं पातीं और वहीं खड़ी होकर हंसने लगतीं. उन्हें खुद भी इस खेल में मज़ा आता था.
हाँ, तो महाराजिन रसोईघरवाला बेलन लेकर हाजिर हो गईं. सुभद्रा नानी ने मेरे हाथ में वह बड़ा सा बेलन देकर कहा- “गीता बेटा लो, देखो यह अन्नपूर्णा का बेलन है. हमारी महाराजिन अन्नपूर्णा हैं. इसी बेलन से हम सबको रोटियां बना कर खिलाती हैं. यह संसार का सबसे अच्छा बेलन है. जाओ इससे रोटियां बेलो.” मैंने आंसू पोंछकर बेलन ले लिया और उस छोटे से चकले पर बड़ा-सा बेलन रखकर रोटी बेलने लगी. ममता मौसी कनखियों से मुझे देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं.
आज भी कभी-कभी रोटी बेलते हुए वह ‘अन्नपूर्णा का बेलन’ याद आ जाता है. कितनी महान थीं सुभद्रा नानी. उन्होंने एक साधारण सी खाना बनाने वाली स्त्री को ‘अन्नपूर्णा’ की संज्ञा दे डाली थी. स्वयं मालकिन होते हुए भी उसे अन्न-दात्री कर कर उसका मान बढ़ा दिया था ऐसी उदारता तो सुभद्रा कुमारी चौहान जैसी महान विभूति ही दर्शा सकती हैं. उनकी स्मृतियों को सादर नमन करती हूँ.
यादों के एल्बम से…
1. सुभद्रा नानी के सम्मान में ज़ारी डाक टिकट
2. जबलपुर नगर निगम परिसर में सुभद्रा कुमारी चौहान की आदमकद प्रतिमा
3. लेखक जैनेन्द्र कुमार के साथ सुभद्रा कुमारी चौहान और उनकी छोटी बेटी ममता
4. मैं गीता पुष्प बचपन में अपनी माँ पद्मा पटरथ और भाई प्रदीप के साथ
5. अशोक चौहान मामा के साथ मैं गीता पुष्प अपने बेटे संजय, सुमित और भांजी मेघना के साथ
6. सुभद्रा कुमारी चौहान नानी के घर में उनकी प्रतिमा के साथ मैं गीता पुष्प अपने बेटे सुमित, छोटी बहन मंजू और उसकी बेटियों शिखा और मेघना के साथ
7. सुभद्रा नानी के आँगन में मेरी मामी मालती बैनर्जी, मनोरमा मामी (अजय चौहान की पत्नी), ममता चौहान मौसी और अन्य
8. हरी साड़ी में बैठी हुई मंजुला मामी (अशोक चौहान की पत्नी), पीछे खड़े उनके बेटे कार्तिक और बहू मनीषा, गुलाबी साड़ी में मेरी छोटी बहन मंजू अपनी नव-विवाहिता बेटी मेघना और दामाद सुबोध के साथ
9. मंजुला मामी (अशोक चौहान की पत्नी) मेरी छोटी बहन मंजुला दवे के साथ