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Tuesday, July 23, 2024
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नई दिल्ली , 8दिसम्बर। हिंदी की साहित्यिक बिरादरी ने आज हिंदी की प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग के लेखन के पांच दशक पूरे होने पर उनका अभिनंदन कर सम्मानित किया।

स्त्री दर्पण और रजा फाउंडेशन द्वाराइंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित समारोह में उन्हें एक अभिनंदन पत्र भी भेंट किया गया।हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि संस्कृति कर्मी अशोक वाजपेयी ने स्त्री दर्पण की ओर से यह अभिनंदन पत्र भेंट किया।चर्चित कथाकार वन्दना राग ने इस अभिनंदन पत्र का पाठ किया।इससे पहले प्रसिद्ध कवयित्री सविता सिंह ने मृदुला गर्ग का गुलदस्ता देकर स्वागत किया।शास्त्रीय गायिका मीनाक्षी प्रसाद ने मृदुला जी को एक साड़ी देकर सम्मानित किया और वास्तुकार विजय नारायण ने प्रतीक चिन्ह भेंट किये।

समारोह में हिंदी के वरिष्ठ आलोचक एवम कथाकार पुरुषोत्तम अग्रवाल और अंग्रेजी के विद्वान लेखक अमित रंजन ने अपने विचार व्यक्त किये।
समारोह में मृदुला जी के परिवार के अलावा वरिष्ठलेखिका ममता कालिया वरिष्ठ कवयित्री सुमन केसरी चर्चित कवि पीयूष दहिया, गीता श्री अणुशक्ति सिंह पूनम अरोड़ा आदि मौजूद थे।
श्री वाजपयी ने कहा कि यह संभवत पहला आयोजन है जिसमें किसी लेखक के लेखन के 50 साल पूरे होने पर कोई आयोजन किया जा रहा है।और लेखिकाओं के बारे में हिंदी समाज कम चिंता करता है।
उन्होंने कहा कि 50 साल तो बहुत लेखक लिखते हैं लेकिन सभी वह छाप नहीं छोड़ते।बड़ा लेखक वही होता है जो अपना विमर्श अपने लेखन से खुद तैयार करता है ।मृदुला जी स्त्री विमर्श की लेखिका नहीं बल्कि उनका अपना विमर्श विकसित किया है यानी मृदुला विमर्श किया है।
उन्होंने कहा कि 50 साल निरंतर लिखना केवल निरंतरता नही है बल्कि खुद को परिवर्तित करते रहना भी है।उन्होंने कहा कि केवल लेखक नहीं बदलता बल्कि समय और समाज भी बदलता है।
उन्होंने मृदुला जी के उपन्यासों का जिक्र करते हुए विश्व प्रसिद्ध लेखक मिलान कुंदरा को उद्धरित करते हुए कहा कि उपन्यास का जन्म तब होता है जब ईश्वर हंसता है।हंसने का तात्पर्य समाज के बेहतर होने खुश होने से है पर भारतीय संदर्भ में जब ईश्वर हंसता है और रोता है उसके बीच कहीं उपन्यास जन्म लेता है।मृदुला गर्ग के उपन्यास हंसने और रोने के बीच है यानी उपन्यास लेखन में एक आत्मालोचना आत्म विश्लेषण संशय नवाचार और समाज भी होता है।

श्री अग्रवाल ने कहा कि मृदुला जी के लेखन का फलक बहुत बड़ा है।मैं उनको तब से पढ़ रहा हूँ जब 72 में उनकी कहानी “कहांनी” पत्रिका में पुरस्कृत हुई थी।उनकी रचनाओं में एक गहरी मानवीयता के साथ सामाजिक मूल्य भी हैं।वह रूढ़ अर्थों में स्त्री विमर्श की कथाकार नहीं हैं बल्कि उनका लेखन उससे आगे का है।
अमित रंजन ने मृदुला गर्ग के उपन्यास मिलजुल मन का गम्भीर विश्लेषण किया और बताया कि यह कितना महत्वपूर्ण उपन्यास है और वह स्त्री के मन की बात कहता है।इसी उपन्यास पर मृदुला जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था।

समारोह का संचालन मीडिया कर्मी एवम पत्रकारिता की प्रोफेसर शिल्पी झा ने किया।उन्होंने कहा कि मृदुला जी की नायिकाएं बहुत मजबूत पात्र हैं।मृदुला जी का लेखन स्त्री सशक्तिकरण का नहीं बल्कि उनके पात्र खुद सशक्त हैं।
इस से पहले समारोह में मृदुला गर्ग ने अपनी शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक” वे नायाब औरतें” से कुछ अंशों का पाठ किया साथ ही अपनी एक कहानी भी सुनाई जिसे श्रोताओं ने खूब पसंद किया।

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